Monday, December 7, 2009
तो सोचिये न.....!!!
बात कनाडा की ही है....
एक दिन दरवाज़े की घंटी बजी...
दरवाज़ा खोला तो ३ white लोग, १ पुरुष और २ महिलाएं दरवाज़े पर खड़े थे....हाथों में कुछ पुस्तकें थी.. मुझे लगा कि शायद ये किताबें बेचने के लिए आये हुए हैं...तीनों ने बहुत ही शिष्टता से कहा कि हम आपको एक पुस्तक देना चाहते हैं पढने के लिए.... आप इसे पढ़िए...आपके जीवन में जरूर बदलाव आएगा...ईसा मसीह का सन्देश है इसमें और ....यह सन्देश आपके ह्रदय में घर कर जाएगा...बात टालने के लिए मैंने पूछ ही लिया....so how much should I pay for this book ?? उन्होंने ने कहा नहीं- नहीं कुछ भी नहीं बस आप पढ़िए... हम फिर आयेंगे २-३ दिन के बाद और इसे वापिस ले जायेंगे....मुझे भला क्या आपत्ति होती....किताब फ्री थी और मर्जी मेरी...पढू ना पढूं....२-३ दिन बाद दे दूंगी वापस....मैंने कहा OK ... फिर उस पुरुष ने मुझे कुछ पन्नों पर ख़ास ध्यान देने की बात कही...और दिखा भी दिया...
मैंने उनका शुक्रिया अदा किया...और किताब लेकर अन्दर चली आई.....
दूसरे दिन उस किताब को पढ़ने की कोशिश भी की....और जैसा की आप जानते हैं...मिशन स्कूल में पढ़ने की वजह से लगभग सभी प्रार्थनाएं मुझे याद हैं... ईसा मसीह और उनके अनुयायुओं की भी थोड़ी बहुत जानकारी है.....पढ़ना तो चाहा पर मेरा मन उचाट हो गया और किताब उठा कर किनारे रख दिया..... फिर मैं उस किताब को एकदम भूल ही गई....
कई दिनों बाद फिर घंटी बजी...खोलने पर वही लोग सामने खड़े थे.....मेरे पाँव के नीचे से ज़मीन ही खिसक गयी क्यूँकी मुझे अब बिलकुल भी याद नहीं आ रहा था... मैंने वो किताब कहाँ रख दी...उनको बाहर खड़ा करके मैंने ढूँढा ....मुझे किताब नहीं मिली...अब मुझे पसीना आने लगा...कितनी देर उन्हें बाहर खड़ा रखती...उन तीनों से कहना पड़ा कि आप लोग अन्दर आ जाइए.....तीनों को ड्राइंग रूम में बिठा कर मैं फिर किताब की तलाश करने लगी....देर फिर भी हो रही थी...इसी बीच मैं उनसे बात करती जाती....अब क्यूंकि देर हो रही थी...हम हिन्दुस्तानी चाय-पानी पूछ ही लेते हैं...ये सब उनके लिए थोडा अट-पटा था लेकिन वो भी खुश हो गए...अब मैंने बेटे को किताब ढूँढने में लगा दिया और उनको चाय बना कर पिलाने लगी....वो तीनों भी अब काफी गप्प के मूड में आ गए थे....मैं भी उनके साथ ही आकर बैठ गयी और बातें करने लगी....उनकी बातों से यही महसूस हो रहा था कि....चलो एक बकरी मिली है धर्म-परिवर्तन के लिए....पुरुष ने अपना सारा ज्ञान बघारना शुरू कर दिया....बात के दौरान उसने अपना नाम मार्क बताया...अब उससे जो बात हुई है वो सुनिए...
उसने मुझसे पुछा कि मैं किस धर्म को मानती हूँ ???....मैंने कहा हिन्दू.....उसका कहना था....संसार में हर व्यक्ति के मुक्ति का एक ही रास्ता है ....बप्तिस्मा.....बिना बप्तिस्मा के आपको मुक्ति नहीं मिल सकती है...भगवान् आपको तभी मुक्ति देंगे जब आप बप्तिस्मा ग्रहण करेंगे.....
उसने मुझे ये भी कहा कि ....आपको उस दिन के बारे में भी सोचना चाहिए जिस दिन क़यामत आएगी और सबको हाज़िर होना होगा उस परम-पिता परमेश्वार के सामने अपने पापों का लेखा जोखा देना होगा....और उस दिन जिसने भी बप्तिस्मा लिया हुआ होगा ...उसे बिना शर्त....स्वर्ग में प्रवेश दिया जाएगा.....मेरा दीमाग बहुत तेजी से काम करने लगा....मुझे लगा इससे बेहतर और क्या हो सकता है...न हींग लगे न फिटकरी और रंग भी आये चोखा.....यह भी बताया उसने कि .....कितने भी घोर पाप आप करें बस... उसे चर्च में पादरी के सामने स्वीकार करने की आवाश्यकता है और ... आपका पाप क्षमा कर दिया जाएगा....छोटे-मोटे पाप तो माफ़ किये ही जाते हैं.....वो पाप भी माफ़ किये जाते हैं...जिनसे आपकी आत्मा तक मर जाती है....अब मेरे सब्र का बाँध टूटने लगा था....और अब मैंने उसे.. उसकी एक-एक बात में फीचने का निर्णय ले लिया....और फीचाई शुरू कर दी...
मैंने पूछा मार्क .... बप्तिस्मा कि आवाश्यकता क्यूँ है ???
उसका जवाब था....क्यूंकि जब बच्चा पैदा होता है तो वो पाप के साथ पैदा होता है...मुझे लगा किसी ने एक घूँसा मारा हो मुझे.....इससे घटिया बात और क्या हो सकती है...एक नवजात बच्चा जो अभी अभी दुनिया में आँख खोल रहा है वो पापी है !!!!! ऐसा कैसे भला ????......Mark ! How the hell this is possible ???? उसने कहा क्यूंकि....आदम और हौवा ने वर्जित फल खाया था....इसलिए.......मतलब कि 'खेत खाए गधा और मार खाए जोलहा'.....मेरी हंसी निकल गयी.....मैंने कहा इससे वाहियात बात मैंने आज तक नहीं सुनी.......वो सकपका गया......उसके सकपकाने से मेरा हौसला बढा....मैंने कहा मिस्टर मार्क....भगवान् और इंसान का रिश्ता पिता और पुत्र का होता है.....और इस तरह के प्रेम में किसी सी प्रकार की शर्त, if then else नहीं होती....इसलिए अगर आपका भगवान् यह कहता है कि 'अगर' तुम बप्तिस्मा (जो कि एक गिलास पानी और दो चमच तेल से किया जाता है ) नहीं लोगे तो तुम मेरे प्यार के काबिल नहीं हो तो ऐसा भगवान् मुझे चाहिए ही नहीं....
फिर मैंने उससे पूछा मार्क....ईसा मसीह ने बप्तिस्मा कब लिया था....??? क्यूंकि मुझे मालूम था...ईसा ने ३० वर्ष कि उम्र में अपने चचेरे भाई जोन से बप्तिस्मा लिया था.....मार्क ने भी यही बताया....मैंने पुछा तो क्या उस बप्तिस्मा से पहले ईसा मसीह सही इंसान या भगवान् के बेटे नहीं थे....वह बगलें झाँकने लगा.....उसके साथ आई स्त्रियों को भी अब पसीना आने लगा था ...
लेकिन मैं उसे कहाँ छोड़ने वाली थी ...मार्क अब बात करते हैं...पाप स्वीकार और स्वर्ग के अन्दर प्रवेश की...जब सब कुछ इतना आसान है तो फिर किसी भी देश में ...या दूसरे देश को मारो गोली कनाडा में इस जस्टिस सिस्टम की क्या ज़रुरत है....और इन जेलों की भी....कनाडा के जेल अटें पड़े हैं अपराधियों से ...इस हिसाब से जितने भी ईसाई अपराधी इतने सारे जेलों में भरे पड़े हैं....उनको सजा देने का कोई तुक भी नहीं बनता क्यूंकि उनको स्वर्ग तो जाना ही है....सजा देने की जगह सबसे 'पाप स्वीकार' करवा लिया जाए और छोड़ दिया जाए ...बेकार में हम टैक्स पेयर्स के इतने पैसे बर्बाद हो रहे हैं...इन क्रिमिनल्स को जेल में रखने में....मैं तो कल ही लिखती हूँ हमारे प्राइम मिनिटर को और चाहती हूँ की आप सब और आपका मिशन भी इसमें हस्ताक्षर करे....अब तो वो बैठना ही नहीं चाहता था....तीनो के चहरे का रंग अजीब सा होने लगा था...मुझे अपनी विजय बहुत करीब नज़र आ रही थी लेकिन अभी मेरा लास्ट बाल बाकी था.....
मिस्टर मार्क...अपने मुझसे ये भी कहा कि.... मुझे उस दिन के बारे में भी सोचना चाहिए जिस दिन क़यामत आएगी.....सबका न्याय होगा.....और क्यूंकि न तो मैं ईसाई हूँ ना ही बप्तिस्मा किया है ....न ही चर्च जाती हूँ और ना ही अपने पापों को स्वीकार किया है ...तो मेरा तो स्वर्ग में प्रवेश का सवाल ही नहीं उठता है.....अब मुझे ये बताइए.....ईसा मसीह को ही जन्मे...२००० साल हो गए ....इस पृथ्वी को ही आस्तित्व में आये हुए ना जाने कितने लाख वर्ष हुए हैं....'क्या अभी तक कयामत का दिन आया नहीं है???' अगर नहीं तो कब आएगा ???? और अगर आ भी गया तो मेरा नंबर कब आएगा हिसाब-किताब में ...मुझे लगता है वो तो बहुत बाद में आएगा ना .....मुझसे पहले तो ना जाने कौन-कौन और कितने हैं.....तो क्या उसकी फ़िक्र अभी से करना उचित है.....??? अब मार्क बैठने की स्थिति में ही नहीं था.....तीनों ही उठने लगे और मैंने रोकने की कोई चेष्टा नहीं की .....वो सिर्फ इतना ही बोल पाया ...मैंने कभी ऐसे सोचा नहीं.....और तब मैंने कहा .....तो सोचिये न.....!!!
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तो सोचिये न....
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वाह ...ये आपने साबित कर ही दिया कि ऊपर से सबकुछ उजाला , साफ़ और पवित्र नजर आने वाला ...वैसा नहीं होता है जैसा नजर आता है ...
ReplyDeleteये किसी एक धर्म और पंथ की बात नहीं है ...हालाँकि इसके लिए सिर्फ एक जाति विशेष को ही निशाना बनाया जाता रहा है ...जबकि ये पाखंड हर धर्म हर जाति में कही ना कही गहरे पैठा हुआ है ...ईश्वर को मानने और उनकी अर्चना करने कि विधि सबकी अलग अलग हो सकती है ...सिर्फ इस वजह से कोई श्रेष्ठ और कोई कमतर साबित नहीं किया जा सकता ...
आपकी कलम ने सोचने पर विवश कर ही दिया है ...उनको भी ...हमको भी ....
अपने उद्देश्य में सफल हो ....साधुवाद ...!!
चलो, ये बढ़िया रहा. हम तो इनको कई बार किताब लेने से ही मना कर देते हैं..कहाँ तक बहस की जाये. आपने शास्त्रार्थ के माध्यम से परास्त कर अपनी बात साबित की -यह बहुत अच्छा है.
ReplyDeleteसही वाट लगाई आपने....
ReplyDeleteलेकिन अदा जी...
एक बार फिर मैं टोकना चाहूँगा..
जैसे मुक्ति..
इसाई होने से...बप्तिस्मा लेने से....
मुस्लिम होने से.... कुफ्र से तौबा करने से...
सिख होने और .. गुरु में विश्वास रखने से नहिमिलती......
ठीक वैसे ही .... बनारस या काशी जाने से भी नहीं मिलती.....
माफ़ कीजिएगा....आपको पुरानी पोस्ट याद दिला रहा हूँ....
मनु ' betkhallus '
मार्क क्लीन बोल्ड अदा जी...00
ReplyDeleteअब तो बेटा मार्क...तेरा तीनों लोक में भविष्य डार्क ही रहेगा...
जय हिंद...
ये घटना जो आपने बताई है ...ये कोशिशें मैं यहां भी कई होते देख चुका हूं और अब समझ में भी आ रहा है कि धर्म परिवर्तन क भी बीमा पौलिसी की तरह ही मार्केटिंग और सेल्स कैसे की जा रही है ..
ReplyDeleteआपके तर्क ने बहुत कुछ सामने रख दिया .
कोई ऐसा धर्म हो जिसे बदलने से यदि आदमी इंसान बन जाता है ....तो खुद मैं बदलने को तैयार हूं
अजय कुमार झा
बड़े बे आबरू हो के तेरे कूचे से हम निकले ... :-)
ReplyDeleteवैवाहिक वर्षगाँठ पर (अदा)
ReplyDeleteस्वप्न मंजूषा शैल जी को हार्दिक बधाई!
वैवाहिक वर्षगांठ ki हार्दिक बधाई और अनेक शुभकामनाएँ!!
ReplyDeleteवाह जी आपकी विवाहिक वर्षगाँठ और आप ये क्या मसला ले बैठी अरे कोई प्यार भरा गीत गज़ल सुनायें न। आपको बहुत बहुत बधाई अपका वैवाहिक जीवन मंगलमय हो ।
ReplyDeleteशादी की सालगिरह की हार्दिक
ReplyDeleteशुभकामनाएं.....!!
--
शुभेच्छु
प्रबल प्रताप सिंह
कानपुर - 208005
उत्तर प्रदेश, भारत
मो. नं. - + 91 9451020135
ईमेल-
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शादी की सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं.....!!
ReplyDelete--
शुभेच्छु
प्रबल प्रताप सिंह
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वाह अदा जी क्या खूब घुट्टी पिलाई आपने..ऐसे धरम्पंथी यहाँ हर मोड़ पर मिल जाते हैं....सच पूछिए तो उन्हें खुद ही उस धरम का सही ज्ञान नहीं होता...आपको विवाह की वर्षगाँठ बहुत मुबारक हो.(देरी के लिए मॉफी.अभी यहीं से पता चला :))
ReplyDeleteबेहतरीन। बधाई।
ReplyDeleteशिकार करने को आए, शिकार होके चले ---
ReplyDeleteबहुत बढ़िया संस्मरण है। यहाँ भी इस तरह की घटनाएँ होती रही हैं।
विवाह की वर्षगाँठ की हार्दिक बधाई एवम शुभकामनाएं स्वीकारें ।
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ReplyDelete.
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आदरणीय अदा जी,
आपने 'मार्क' को तो निरूत्तर कर दिया... पर यकीन मानिये कि कोई भी किसी भी 'ईश्वरानन्द', 'फतहउल्लाह', 'गुरतेज सिंह', 'महावीर जैन', 'बोधिसत्व बौद्ध' आदि आदि को भी चुप करा सकता है... क्योंकि धर्म, कर्म, मुक्ति, मोक्ष, स्वर्ग, नर्क, फ़ैसले का दिन, कर्मफल, कयामत, ईश्वर, भाग्य आदि आदि भारीभरकम अवधारणायें हकीकत में हैं तो इन्सान के दिमाग की उपज ही... वह भी उस इन्सान की जो अपने दौर के अन्य इन्सान से थोड़ा ज्यादा बुद्धिमान और शातिरदिमाग था... महज अपने वर्चस्व को बनाये रखने के लिये ये शातिरदिमाग 'धर्म' का इतना बड़ा प्रपंच रच गये... और हम आज तक उलझे हैं इसमें... और दिनोंदिन और उलझते जा रहे हैं...
...अब आप कहोगी....
...मैंने कभी ऐसे सोचा नहीं...
.....तो सोचिये न.....!!!
बेचारा मार्क!
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