Thursday, December 3, 2009
पर दिल के पत्थर पर आकर कई याद के खंज़र टूटे हैं
टूटे हैं जो रिश्ते आज वो लगते हैं बस झूठे हैं
प्रीत डगर के काँटों से मेरे पाँव के छाले फूटे हैं
शिकवों का दस्तूर नहीं ना है गिलों का ही रिवाज
नेह की वो सारी कोंपल बस कागज़ के गुल-बूटे हैं
कई रतजगे कट गए हर ख़्वाब को तब ही पाला है
पल भर को जो आँख लगी कोई ख़्वाब का लश्कर लूटे है
सोचा तो था बस तेरे नाम के सारे निशाँ मिटा देंगे
पर दिल के पत्थर पर आकर तेरी याद के खंज़र टूटे हैं
झीनी सी ख़ामोशी 'अदा' वो पाँव से लिपटी तन्हाई
मुझे गुमसुम से कुछ राह मिले पर जाने क्यूँ वो रूठे हैं
अरुण यह मधुमय देश
अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को
मिलता एक सहारा।
सरस तामरस गर्भ विभा पर
नाच रही तरुशिखा मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली पर
मंगल कुंकुम सारा।।
लघु सुरधनु से पंख पसारे
शीतल मलय समीर सहारे।
उड़ते खग जिस ओर मुँह किए
समझ नीड़ निज प्यारा।।
बरसाती आँखों के बादल
बनते जहाँ भरे करुणा जल।
लहरें टकरातीं अनंत की
पाकर जहाँ किनारा।।
हेम कुंभ ले उषा सवेरे
भरती ढुलकाती सुख मेरे।
मदिर ऊँघते रहते जब
जग कर रजनी भर तारा।।
- जयशंकर प्रसाद
शायद ..आप में से कुछ ने इस गीत को पहले भी सुना हो....मुझे नया गीत रिकॉर्ड करने का समय नहीं मिला...सोचा श्री जयशंकर प्रसाद जी की अमर कृति को भी सुन लीजिये...इस गीत को हिंद-युग्म द्वारा आयोजित संगीत प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था....
आवाज़ : स्वप्न मंजूषा 'अदा'
संगीत : श्री संतोष शैल
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कई रतजगे काटे हैं हर ख़्वाब को तब ही पाला था
ReplyDeleteपल भर को जो आँख लगी कोई ख़्वाब का लश्कर लूटे है
-बेहतरीन!!
गीत तो आपकी जुबां से हम सुन चुके हैं पहले ही. :)
भावभीनी गजल और जयशंकर प्रसाद की कविता का सुमधुर गायन
ReplyDeleteसंतोष जी का संगीत कविता के अनुरूप है ! बढिया संगत है!
टूटे हैं जो रिश्ते आज लगता है वो झूठे हैं
ReplyDeleteप्रीत डगर के काँटों से मेरे पाँव के छाले फूटे हैं
बढ़िया गीत है!
आपकी आवाज भी सुमधुर है!
कितने अजीब रिश्ते है यहां पे,
ReplyDeleteदो पल मिलते हैं, साथ-साथ चलते हैं,
जब मोड़ आए तो बच के निकलते हैं,
कितने अजीब रिश्ते हैं यहां पे...
जय हिंद...
नेह की वो सारी कोंपल अब कागज़ के गुल-बूटे हैं
ReplyDeletesabse sunder aur nayaa pan liye ye line....
aur geet .....
hamaare hind yugm waalaa....
6 mahjne lahile sunaa tha....
aaj nahi suna jategaa....
net problem......!!!
manu...
अदा जी....
ReplyDeleteहिंदी में भी अब लिखा जा रहा है....
हिंद युग्म की बात करते ही हिंदी का फौंट खुद ही ठीक हो गया....
क्या कमाल है...!!!!!
टूटे हैं जो रिश्ते आज लगता है वो झूठे हैं
ReplyDeleteप्रीत डगर के काँटों से मेरे पाँव के छाले फूटे हैं
बहुत खूब .....झूठे रिश्तो का टूट जाना बेहतर ही है ...
पल भर को जो आँख लगी कोई ख़्वाब का लश्कर लूटे है...
मैं पलक ढांप रख लूं ..ना देखन दूँ ..ना देखूं ....कैसे लूटेगा कोई बंद आँखों से ख्वाब के लश्कर ....?
बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल ...शेर सारे नगीने से जड़े हैं ग़ज़ल में ....बहुत सुन्दर ....!!
जयशंकर प्रसाद की प्रतिभा को आपकी आवाज़ मिल गयी ...और क्या चाहिए ...
ReplyDeleteमधुमय हो ही गया ये जग सारा ...!!
"सोच लिया था हमने तेरे नाम के निशाँ मिटा देंगे
ReplyDeleteपर दिल के पत्थर पर आकर कई याद के खंज़र टूटे हैं"
कल कुछ ऐसा हुआ मैं बहुत थक गया, इसलिये सुन के भी अनसुनी कर गया,
कितनी यादों के भटके हुए कारवां, दिल के जख्मों के दर खटखटाते रहे।
अजनबी शहर के अजनबी रास्ते, मेरी तन्हाई पे मुस्कुराते रहे।
बहुत सुन्दर गाया "जयशंकर प्रसाद" जी की अमर कविता को! मैंने पहली बार ही सुना है।
गज़ल बहुत उम्दा है लेकिन पहले और दूसरे मिसरे मे कुछ वज़न का फर्क लग रहा है देखियेगा ..और प्रसाद का गीत ... यह भी आज मेरे यहाँ गूंज रहा है । अभी सुबह सुबह मॉर्निक वाक से आया हूँ ..ऊगता सूरज देखकर ..
ReplyDeleteशिकवों का दस्तूर नहीं अब ना गिलों का है रिवाज
ReplyDeleteनेह की वो सारी कोंपल बस कागज़ के गुल-बूटे हैं
वाह वाह बहुत खूब पूरी गज़ल कमाल है गीत पहले ही सुन चुके हैं बधाई
क्या कहें इसे..ग़ज़ल कहें....या गिले,शिकवे और दर्द से भरी दास्तान...बेहद ख़ूबसूरत रचना...उदासी भरी ये रचना थोडा उदास कर गयी...तस्वीर ने एक ग़ज़ल याद दिला दी..."हाथ छूटे, तो भी रिश्ते नहीं छूटा करते...'
ReplyDeleteमैंने तो पहली बार ये कविता पाठ सुना...मधुर आवाज़ ने कविता को नए मायेने दे दिए हैं.
"टूटे हैं जो रिश्ते आज लगता है वो झूठे हैं
ReplyDeleteप्रीत डगर के काँटों से मेरे पाँव के छाले फूटे हैं"
आपके सारे शेर बहुत अच्छे हैं !
शिकवों का दस्तूर नहीं ना है गिलों का ही रिवाज
ReplyDeleteनेह की वो सारी कोंपल बस कागज़ के गुल-बूटे हैं
करें क्या कोई, उनसे हम शिकवा
खता कोई कभी ,हमी से हुई होगी
अरे, ये भी शेर बन गया।
बेहतरीन ,-- ये शेर नही,-- आपकी ग़ज़ल।
बहुत सुंदर गीत ओर सुंदर कविता के लिये आप का धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ग़ज़ल...धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत खुब...
ReplyDeleteकई रतजगे काटे हैं हर ख़्वाब को तब ही पाला था
पल भर को जो आँख लगी कोई ख़्वाब का लश्कर लूटे है
काफ़ी अच्छा लिखा है
झीनी सी ख़ामोशी 'अदा' वो पाँव से लिपटी तन्हाई
ReplyDeleteमुझे गुमसुम से कुछ राह मिले पर जाने क्यूँ वो रूठे हैं
इस ग़ज़ल को पढ़ कर मैं वाह-वाह कर उठा।
geet aaj nahi sun paaunga, lekin sununga zaroor, vaise is geet ko pahle bhi sun chuka hun.
ReplyDeleteटूटे हैं जो रिश्ते आज वो लगते हैं बस झूठे हैं
ReplyDeleteप्रीत डगर के काँटों से मेरे पाँव के छाले फूटे हैं
sach kahti hain jo rishte jhoothe hote hain wahi tootate hain, sacche rishte jeewan bhar nahi tootate.
अरुण यह मधुमय देश हमारा
ReplyDeleteप्रसाद जी की अमर कृति यह काव्य गीत सुनकर मैं भाव विभोर हो गया.
अगर इसकी MP3 file ईमेल कर दे या डाउनलोड लिंक दे दें तो
तो मुझे बार बार सुनने में सुविधा होगी. मैं अपनी छोटी बहन को भी यह song भेजना चाहूँगा.
मैं पहली बार गीत के रूप में सुना आपने इस कविता को इस प्रकार गाकर सचमुच एक महान कार्य किया है.
शिकवों का दस्तूर नहीं ना है गिलों का ही रिवाज
ReplyDeleteनेह की वो सारी कोंपल बस कागज़ के गुल-बूटे हैं
shandaar gajal... aur ye kavita prasad ji ki aapke swar mein mere laptop mein pahle se tha.. (kaise ye aap janiye..) par han, padhkar abhi prasad ji ki kitaab khoj raha hun apne puraane books ke khajane mein!!!