Sunday, December 20, 2009

बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जायेगी....


रात के तीन बजे हैं यहाँ Canada में...नींद खुल गयी मेरी...मेरा लैपटॉप बगल में था...अब तो आँख खुलती है तो भगवान् भी बाद में याद आते हैं पहले अपनी पोस्ट याद आती हैं..रश्मि का मेल था उसको जवाब दे दिया....रश्मि ने जागने के लिए फटकार लगाईं और विवेक जी का लिंक भेज दिया....कल से कुछ पढ़ नहीं पाई थी....पढ़ा तो माथा ही फिर गया...हमारे देहात में कभी एक कहावत सुनते थे बाबा कहा करते थे.....'तुमलोगों ने बन्दर के घाव कि तरह गींज कर रख दिया है'... मुझे भी लगा कि 'नारी' और 'नारी सम्बन्धी' बातों को ब्लॉग जगत ने भी गींज कर रख दिया है..... जिसका जो जी में आ रहा है कहता ही चला जा रहा है...हम नारी न हुए पंचिंग बैग हो गए....यूँ लग रहा है....पूरा ब्लॉग जगत ही भड़ासियों का कोना हो गया है....नारियों का अपमान खुले दिल से लोग कर रहे हैं.....टिपण्णी करने वालों से गुजारिश है...कृपया भद्र भाषा का प्रयोग करें.....किसी भी तरह का अपमान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा...अगर आपको यह आलेख नहीं पसंद है तो टिपण्णी ही मत कीजियेगा....

विवेक जी,

http://kalptaru.blogspot.com/2009/12/blog-post_2095.html


आपकी पोस्ट को पढने के बाद ...यह समझ में आया कि 'नारी' की खुदाई अभी भी जारी है....
आपने प्रगतिशील महिलाओं से यह सवाल पूछा है .... क्या वो...जीवन में नारी-पुरुष के रोल में अदला-बदली करेंगी....अर्थात क्या स्त्री बाहर जाकर काम करेगी और पुरुष घर सम्हालेगा...??? और क्या यह बात स्त्री को पसंद आएगी...???
सबसे पहली बात कि आज की हर नारी प्रगतिशील है.....चाहे वो शहर की हो....गाँव की या..विदेश में रहने वाली.....बल्कि पूरा समाज ही प्रगतिशील है ...फिर नारी अपवाद कैसे हो सकती है....??
स्त्री ने तो पिछली पीढ़ी से ही अपना रोल बदल लिया है....मैंने अपनी माँ को सारी उम्र नौकरी करते हुए देखा है और घर का काम भी करते हुए देखा है....आज ज्यादातर नारियां बाहर जाकर काम कर ही रही है.....हाल ये हैं कि शादी से पहले ही लड़के वाले स्वयं पूछते हैं लड़की नौकरी कर रही है या नहीं...अगर कर रही है तो कितना कमाती है...मतलब लड़की, लड़के के घर मैं जाने से पहले ही अपने खाने-पीने का खुद ही इंतज़ाम करके जाती है...और आश्चर्य यह कि फिर भी वो लड़के के घर जाती है....उसके बाद पूरा घर भी सम्हालती है....सबके ताने भी सहती है.....और अब हम ये पूछते हैं आपलोगों से इतनी बढ़िया नौकरानी कहाँ मिलेगी जो कमा कर पैसा भी लाये और घर का काम भी करे...वो भी फ्री....न हींग लगे न फिटकरी और रंग भी आये चोखा..!!



स्त्री-विमर्श की हद्दें अब पार होने लगीं हैं....आप लोगों ने ब्लॉग को अखाडा बनाया हुआ है.....स्वस्थ विमर्श और समस्याओं पर कभी बात नहीं होती है....या तो छींटा-कस्सी होती है या फिर चुहलबाजी..
इसलिए आज कुछ कहने की इच्छा हुई है....
आगे सुनिए अगर पुरुषों ने रोल सचमुच बदल लिया .....जैसा आपने कहा है...और पुरुषों ने घर में रहने कि और घर सम्हालने की ठान ली..तो मुझे नहीं लगता किसी भी प्रगतिशील नारी को कोई आपत्ति होगी.....लेकिन बात यही पर ख़तम नहीं होती......अगर ऐसा होता है तो फिर बात दूर तलक जायेगी.......

आपने मातृप्रधान परिवार का नाम सुना ही होगा.... एक समय था जब समाज में मातृप्रधान परिवार हुआ करते थे...घर की मुखिया माता होती थी.....बच्चों के नाम के साथ ...माँ का नाम जुड़ेगा पिता का नहीं....(कुंती के पुत्र कौन्तेय कहाते थे , सुमित्रा के पुत्र लक्ष्मण, सौमित्र भी कहाते हैं ), क्यूंकि एक बात तो तय तब भी थी और अब भी है ..पिता कोई भी हो माँ वही होती है जिसने जन्म दिया है.....पुरुष किसी भी बच्चे को उसका अपना बच्चा मान लेता है क्यूंकि स्त्री ऐसा कहती है...और पुरुष इस बात पर विश्वास करता है.....वर्ना......आप स्वयं समझदार हैं...

अगर यह रोल सही मायने में बदलता है जैसा आपने इंगित किया है तो लड़की का ससुराल जाने का कोई औचित्य नहीं बनता है फिर....बरात लड़के के घर आएगी और लड़का विदा होकर लड़की के घर आएगा.......मैं स्वयं यही सोच रही हूँ कि अगर..मेरी बेटी अपने साथ-साथ अपने पति को भी पालने का जिम्मा ले रही है तो फिर उसे मैं उसके घर क्यूँ भेजूंगी...लड़का मेरे घर आएगा...कम से कम मेरे घर का काम तो करेगा...फ्री में...उसे खाना-कपडा दिया जाएगा...



कितनी अजीब बात है....स्त्री ने कब का अपना रोल बदल दिया है...आज ज्यादातर औरतें काम-काजी हैं....पुरुष के साथ कंधे के कन्धा मिला कर चल रही है बिना हील-हुज्जत किये हुए...और किसी को उसका महत्त्व नहीं समझ में आया...शायद हम स्त्रियाँ चुप-चाप सब कुछ इतनी आसानी से गटक जातीं हैं कि पता ही नहीं चलता है किसी को.... क्या कुछ बदल गया है.....कभी-कभी सोचती हूँ एक शिव ने ज़हर क्या पी लिया हंगामा हो गया.....यहाँ हम स्त्रियाँ रोज ही हलाहल पी रही हैं इसी ब्लॉग पर....घर बाहर भी और ऐसे पचा लेतीं हैं कि सामने वाले को अमृत का भान हो जाता है....आप सबसे अनुरोध है. ..हम स्त्रियों को आप अपनी किस्मत समझिये और किस्मत को लात मत मारिये....वर्ना पछतावे के अलावा कुछ भी हाथ नहीं आएगा ....!!!

22 comments:

  1. मञ्जूषा जी, आपने बड़ी सशक्त पोस्ट लिखी है। आज की नारी के साथ किसी भी तरह का भेद भाव करना या उसे हीन समझना , पुरुष समाज की भयंकर भूल हो सकती है। आज नारी किसी भी रूप में पुरुष से कम नहीं है। फिर भी दोनों की तुलना करना भी ठीक नहीं है। दोनों का अपना अपना रोल है समाज में, परिवार में और आपस में भी।

    आप कभी हमारी पोस्ट भी पढ़िए, आपको अंतर नज़र आएगा। विशेष कर अगली दो आने वाली पोस्ट पढना मत भूलियेगा।

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  2. अदा जी,
    ये सारी बहस बेमायने हैं...जब तक हम नर और नारी में यूंही विभेद करते रहेंगे, विवाद खत्म नहीं होंगे...मेरा मानना यही है कि नर और नारी दोनों तराजू के पलड़ों पर एक समान है...न कोई हल्का, न कोई भारी...दोनों को बस अच्छाइंसान बनना चाहिए, सारा रगड़ा वहीं खत्म हो जाएगा...बाकी सब विद्वान हैं...अपनी-अपनी सोच है...किसी की सोच पर कैसे पहरा लगाया जा सकता है...हां ये ज़रूर देख रहा हूं कि पुरुष-नारी विमर्श के हॉट केक टॉपिक होने की वजह
    से बार-बार इस मुद्दे को सुलगाने की कोशिश की जा रही हैं...

    जय हिंद...

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  3. ओह!!..अदा,मुझे नहीं मालूम था कि तुम्हारी नींद उड़ा दी मैंने,ये लिंक देकर...मैंने सोचा नींद नहीं आ रही....थोडा मनोरन्जन हो जायेगा...अब अगली बार से एक लोरी भेज दूंगी...पक्का वादा :)
    पोस्ट पर तो क्या कहूँ,तुम्हारा ही डायलोग ...लगा बात तो ये सब मेरे मन की है तुम कैसे बांच रही हो.:)

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  4. अच्छी पोस्ट!
    यदि लोग नृवंशशास्त्र पढ़ें तो पता लगेगा कि पुरुष प्रधान समाज में व्यक्तिगत संपत्ति के संचय और उत्तराधिकार ने ही विवाह संस्था को जन्म दिया है। केवल और केवल इस लिए कि पुरुष की संपत्ति का अधिकारी उस की संतान हो यह जरूरी था कि उसे अपनी संतान का पता हो। यह तभी संभव था जब कि स्त्री उस के साथ विवाह कर के एकनिष्ठ हो जाती। यदि व्यक्तिगत संपत्ति का अस्तित्व न होता तो विवाह की उत्पत्ति नहीं होती। पर यह मानव समाज के विकास की अवस्थाएँ हैं। मानव ने अपने समाज का इतिहास बनाया है। वह आगे भी बनाएगा। आज जो अवस्था है वह भी नहीं रहेगी। स्त्री भविष्य के समाज में यथोचित दर्जा प्राप्त कर लेगी। पर शायद तब तक विवाह अपना स्वरूप बदल चुका होगा।

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  5. मैं आपकी बातों से सहमत हूँ कि आज महिलायें किसी भी स्तर पर पुरुषों से कम नहीं हैं, पर ऐसा भी नहीं है कि सभी पुरुष महिलाओं को नौकरानी ही समझते हैं, कुछ महिलायें भी अपने पति को नौकर तक का दर्जा नहीं दे पाते । महिला सशक्तीकरण का मतलब यह तो नहीं है कि महिलायें पुरुष बन जायें और पुरुष महिला । प्रकृति (स्वभाव) तो प्राकृतिक होता है, महिलाओं में जो विशिष्ट गुण हैं वे प्रकृतिप्रदत्त हैं वैसे ही पुरुषों में भी । सबसे अच्छी बात तो है कि दोनों एक-दूसरे को सम्मान दें । मेरे समझ से इसके लिए बहस की नहीं बल्कि मानवीयता की भावना विकसित करने की जरुरत है । कहना न होगा कि महिलाएँ निश्चित रुप से पुरुषों से कई गुणा अधिक संवेदनशील, सहनशील तथा दयालु होती हैं । अहिंसा स्त्रियों का जाति स्वभाव है । फिर मंजूषा जी मैं आपसे आग्रह करूँगा कि अपने दामाद को नौकर बनाने की ना सोचें । आपकी स्त्री सशक्तीकरण से संबंधित सकारात्मक बातों को तो मैं स्वीकार करता हूँ पर यह बात मुझे नहीं जँचता । अब इसे आप एक पुरुष का अहं नहीं कहिएगा । बल्कि ऐसा करने में उन्हीं समस्याओं से जूझना पड़ सकता है, जो शुरु-शुरु किसी परंपरा को तोड़ने में आती है ।

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  6. मुझे लगता है कि इस समय जितना ही ये कहा जा रहा है कि नारी को विषय बना के लिखने कहने की जरूरत नहीं है ,(क्योंकि जैसा कि आपने कहा और बिल्कुल ठीक कहा कि ...इस विषय को गीज दिया गया है )मगर मुझे लगता है कि अभी यदि सबसे अधिक किसी विषय पर लेखन किया जा रहा है तो वो चाहे अनचाहे नारी ही है । और हर बार सोचता हूं कि यदि टीप न भी करूं तो पढ के निकल जाऊं मगर फ़िर इस आरोप से कि अक्सर ऐसी पोस्टों पर नियमित पाठक बिना कुछ कहे निकल जाते हैं ..ठिठक कर रुक जाता हूं और आगे जो है वो आपके सामने है ।
    इस पहलू की सबसे बडी विडंबना तो ये है कि दोनों पक्षों हमेशा ही ये आरोप लग जाता है कि वे biased हो रहे हैं ...जो कि एक नज़र में लगता भी है । जहां तक मुझे लगता है कि सदियों से हर सभ्यता मे, हर युग में , और शायद , दुनिया के हर कोने में ,यही दस्तूर रहा है और सबसे सफ़ल रह है ....कि पुरूष और नारी दोनों एक दूसरे के पूरक हैं ....और यही सबसे सुंदर सत्य है ....बांकी सब तर्क वितर्क ...और कुतर्क भी ...तो चलते ही रहे हैं और चलते ही रहेंगे । मैं पहले भी कहता रहा हूं कि मैं अपने परिवार, अपने आसपास, अपने समाज, अपने सभी रिशते में आने वाली और परिचित /अपरिचित महिलाओं की इज्जत करता हूं । और इसके लिए मुझे किसी भी तर्क की जरूरत नहीं पडी । हां यदि बहस स्वस्थ दिशा में और स्वस्थ तरीके से चले तो कोई हर्ज़ नहीं .....मगर शायद सब इसे पचा नहीं पा रहे हैं ।

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  7. आखिरी चित्र में बेचारी पुलिसकर्मी महिला किस देश की है?

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  8. क्या कहूँ....

    वैसे सच कहूँ तो कई बार{इधर ब्लौग-जगत में भी} इन तमाम विरोधों में कई "विरोधभास" भी दिखता है मुझमें।

    चकरा दिया ना आपको? सोचिये-सोचिये....

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  9. same comment on kalptaru also:
    बात हाउस हसबेंड या हाउस वाईफ की नहीं वरन मानसिकता की है. हाउस वाईफ़ और आउट साईड आफ द हाउस की छवि वाला हसबेंड का मिथक टूटना ही चाहिये.

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  10. बाटम लाईन
    नर नारी एक दूसरे के पूरक हैं !

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  11. विवेकजी रहस्तोगीजी बडॆ ही सुलझे हुऎ व्यक्ती है.वो हमेशा कुछ प्रयोगात्मक लेखन करते है एवम समाज मे प्रशन बनाकार अपनी विचारो को लोगो के समाने प्रस्तुत करते है. लोगो की राय से वे कुछ सामाजिक धारणाओ से समाधान पाने की कोशिस करते है. वे आज सामान्य नारी एवम प्रगतिशील नारी को अलगथलग कर कुछ विचारो का समाधान पाने आऎ है. इसमे कोई एतराज नही है. वैसे विवेवेक जी सामान्यत: महिलाऒ के सम्मान मे कोई मतभेद नही रखते है. वे भाभीजी का कहना भी नही टालते. जहा तक मै समझता हू विवेकजी बडॆ ही सरल, एवम अच्छे नेक दिल ब्लोगर है.
    रही बात अदा जी आपकी बात की तो हम तो भाई वैसे भी आपसे हर बात पर सहमती रखते है. प्रगतिशील नारी कहकर विवेकजी नारी सक्ती का विभाजन नही कर सकते है. नारी प्रगतिशील हो या अप्रगतिशील वो घर परिवार समाज देश की शक्ती का कारक है. कई बार मैने देखा साधारण से साधारण नारी अपने परिवार पर आऎ दुखो को बडी ही सुझबुझ से निपटती है. जरुरत पडने पर अर्थ तन्त्र को भी अपने हाथ मे लेकर पुरे परिवार का पालन पोषन करती है. ऎसे मे यह कहना की प्रगतिशील नारी घर से बहार निकलकर धन कमा लाए और पुरुष घर का किचन का काम करे. तो मेरे हीसाब से पुरुष फ़ैल हो जाऎगा पर नारी दोनो ही काम सुचारु रुप से कर सकती है . इसलिऎ नारी को शक्ती का रुप माना गया है. पुरुष भाई अडगा नही लगाऎ नही तो हम ना घरके रहेगे ना घाटके.
    विशेषकर मै भारीतिय नारीयो का सम्मान करता हू और प्रणाम करता हू की उन्होने समय समय पर पुरुषो के मान सम्मान मे अपना सर्वस त्याग करती पाई गई.
    वर्तमान सामाजिक व्यवस्था सुचारु रुप से चले इसमे हम सभीकी भलाई है.
    अदाजी! यह मेरे दिलकी बात थी लिख दी. विवेकजी आप भी मेरे अपने है मेरे दोस्त है.
    अदाजी ! आपकी इस बात को ब्लोग चर्चा मुन्नाभाई की मे लिया है देखे.
    आभार!

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  12. अदा जी ,

    आपकी बातें ज़ेहन को झिंझोड़ने वाली हैं ..और रोज़ हलाहल पीने वाली बात तो १०० प्रतिशत सही है...
    अब तो बात दूर तलक निकल ही गयी है ....अच्छी पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई

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  13. वीर जी के कमेंट के पीछे क्या मंशा है वो ही जाने मगर मैं भी कुछ ऐसा ही सोच रही थी...! आपका मेल आई०डी० नही मिल रहा आपके प्रोफाईल पर....!

    कृपया भेजें, तो बात करूँ...!

    सादर
    कंचन

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  14. आपने ठीक कहा
    यह स्त्री विमर्श - बन्दर का घाव हो गया है.
    चलिए ज्ञान और तर्क की बत्ती बुझा दीजिये अँधेरा कायम हो जाये ताकि शान्ति हो जाये हा हा हा ....
    अब देखिये न गया था टिप्पणी में बधाई देने वहां जो पढ़ा तो न चाहते हुए भी पोस्ट लिख बैठा. अब नर विमर्श का इंतज़ार है http://sulabhpatra.blogspot.com/2009/12/blog-post_21.html

    जब तक नया साल नहीं आएगा मानो चर्चा चलती रहेगी ,

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  15. अदाजी ! अब क्या कहें ,कितना कहें सच पूछिए तो मैं इस नारीवाद के पक्ष में बिलकुल नहीं हूँ ....मेरे ख्याल से नारी हो या पुरुष एक दुसरे के बिना कुछ नहीं कर सकते....परन्तु जैसा की आपने अपने आखिरी पेराग्राफ में कहा ...वही वह बात है जिसके चलते हमें नारीवादी ( so called) हो जाना पड़ता है ..आखिर कब तक हंस हंस कर हलाहल पिए कोई...

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  16. अदा जी ! मेरी बातो में कुछ गलत लगे तो अग्रिम क्षमा !
    वैसे, इस विवाद में पढ़ना तो नहीं चाहता था, मगर आपने वो कहावत तो सुनी ही होगी कि जब गीदड़ की मौत आती है तो वह शहर की तरह भागता है ! खैर,
    मेरा मानना है कि इस दुनिया में दो किस्म के जीवन स्तर है, एक सिलेब्रटी जीवन स्तर और दूसरा आम जीवन स्तर ! सिलेब्रती जीवन स्तर मसलन टाइगर वूड्स ! सिलेब्रटी के जीवन में जो चीजे आती है वह पैकेज के तौर पर होता है, जिसमे कुछ अच्छा होता है, और कुछ बुरा ! लेकिन उसे अगर आम जीवन स्तर वाला आदमी कॉपी करने लगे तो वह जीवन मूल्यों, सामाजिक मूल्यों के विपरीत माना जाता है ! हालांकि है दोनों ही इन्सान मगर फिर भी दोनों में अंतर है ! यह जनाव टाइगर वूड्स शादीशुदा होते हुए भी अब तक जो भी सामने आया है कुल चौदह प्रेमिकाओं संग भी रास लीला में व्याप्त थे! यह भी संभव है कुछ तो मौके का फायदा उठाने को यों ही दावे ठोक रही हो, मगर काफी हद तक बात में सत्यता है और यह खुद टाइगर वुड स्वीकार कर चुका ! अकेले गोल्फ से एक अरब डालर कमाने वाला वूड्स पैसे की चकाचौंध में दिमाग से फिर गया, मगर चौदह पढी लिखी लडकिया भी क्या दिमाग से फिर गई ? खैर, वह सिलेब्रटी कम्युनिटी में आता है ! एक देश होता है उसकी सीमाए होती है, जिन्हें आप बिना अनुमति (वीसा, पासपोर्ट ) के नहीं लांघ सकते ! एक ऑफिस होता है जिसके बाहर आप बिना मैनेजमेंट की अनुमति के नहीं जा सकते ! वही बात घर (स्त्री-और पुरुष ) पर भी लागू होती है ! कहने का मतलब कि हरेक की काहे वह स्त्री हो अथवा पुरुष कहीं पर सीमा रेखा होती है ! यह दोनों को ही दिमाग में रखना चाहिये, स्त्री को भी और पुरुष को भी ! मैं मानता हूँ कि यश सीमाए सिर्फ स्त्री के लिए ही लागू की जाती है, जोकि गलत है लेकिन यह भी याद रखना चाहिए कि देश का जो राष्ट्रपति होता है उसे देश की सीमा लांघने के लिए उस तारह की अनुमति की जरुरत नहीं होती जिस तरह की कि एक आम नागरिक को ! कहने का आशय यह कि उसका अपर हैण्ड है !

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  17. अदा जी,

    वाकई आपके विचार अच्छॆ हैं और मैं आपसे सहमत हूँ। मैं नारी का तहेदिल से सम्मान करता हूँ, मैंने अपने परिवार से नारी का सम्मान सीखा है परंतु मैंने समाज में जाने क्या क्या देखा है, जिसे मैं चाहकर भी बता नहीं सकता क्योंकि वो मेरे दिल के घाव हैं, जहाँ नारी की भावना आहत होती है, मेरे दिल पर घाव होता है। हमारे समाज में आज भावनाओं की कद्र नहीं है, पर कोई कितना संवेदनशील हो सकता है ये आप अंदाजा नहीं लगा सकते हैं।

    मैंने प्रगतिशील नारी मतलब जो फ़ूहड़ कपड़े पहनकर बाहर आती हैं, सिगरेट और शराब के दिखावे में अपने को मार्डन बताती हैं, और कोई भी बात बोल दो उन्हें बुरा लग जाता है। और अपने पक्ष में दुनिया को चिल्ला चिल्लाकर इकट्ठा कर लें। भले ही हम २१वीं सदी में हैं परंतु अगर संस्कार पुराने होंगे तो वही अच्छे होंगे, शांतिपूर्ण जीवन के लिये।

    मेरी एक पोस्ट थी [ बहु को शादी के बाद ससुराल में क्यों रहना चाहिये http://kalptaru.blogspot.com/2009/07/blog-post_23.html] इस पर घोर आपत्ति की गई थी जिस पर एक पोस्ट भी लिखी गई थी [http://chitthacharcha.blogspot.com/2009/07/blog-post_24.html] केवल वह टीस ही थी ये पोस्ट कि अगर सामाजिक व्यवस्था उलट हो जाये तो।

    अगर किसी भी नारी के मन को दुखा हो तो मैं कहना चाहता हूँ कि मेरे शब्द हमेशा उनके सम्मान के लिये हैं न कि दुख पहुँचाने के लिये। मेरा मन साफ़ है और मैं शब्दों को आदान प्रदान का एक सशक्त माध्यम मानता हूँ।

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  18. आज आपने सचमुच मेरा गौरव ऊँचा कर दिया है , आपकी टिपण्णी बिलकुल सही है |
    मै एक देहाती युवक हूँ , मुझे देहात सबसे अच्छा लगता है "आपकी ये बातें हमारे देहात में कभी एक कहावत सुनते थे बाबा कहा करते थे.....'तुमलोगों ने बन्दर के घाव कि तरह गींज कर रख दिया है'... मुझे बहुत ही अच्छा लगा की आप कनाडा में रहकर यहाँ की भाषा बोलती है |
    मेरा आपसे इक सुझाव है आपने तो सुना ही होगा " हाथी चले बाज़ार कुत्ता भूके हज़ार " इस लिए आप उन गंदे लोगो का ध्यान नहीं दे जो नारी को खेल मात्र का चीज़ समझते है | आप आपने सुद्ध मन से इसी तरह से लिखा कीजिये |
    अनोद कुमार -----

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  19. सब बेकार की बात,व बहस होरही है , दिनेश जी ने सही कहा है, बात न स्त्री की है न पुरुष की---बात आदमी की है, अगर मनुष्य अच्छा है तो सब अच्छा है, नहीं तो कुछ भी नहीं । बस हमें अच्छा मानव बनना चाहिये, सारे स्त्री-पुरुष हन्गामे स्वतः ही समाप्त होजायेंगे। "अति सर्वत्र वर्जयेत"

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  20. ---हिन्दी साहित्य मन्च पर मेरी कविता ’मान व अहम’ पढें ।

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  21. ईश्वर कृत प्राणी को उन्ही के उपर छोड़ देना चाहिए !
    Otherwise this is the endless talk.

    Amod Kumar

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