मुझे ख़ुद पे क्यूँ न गुरूर हो
मैं एक मुश्ते गुबार हूँ
समझूँगा मैं तेरी बात क्या
पत्थर की इक मैं दीवार हूँ
आया हूँ बच के ख़ुशी से मैं
मैं सोगो ग़म का बज़ार हूँ
उड़ने की है किसे जुस्तजू
मैं ऊँचाइयों का शिकार हूँ
मुझसे मिलीं रहमतें खुल के
और ज़ुल्मतों का मैं प्यार हूँ
हर दर्द का हूँ मैं देनदार
और ग़मों का मैं खरीददार हूँ
इतराऊं खुद पे न क्यूँ 'अदा'
पर कैसे चलूँ ? लाचार हूँ
उड़ने की है किसे जुस्तजू
ReplyDeleteमैं ऊँचाइयों का शिकार हूँ
ऊचाईया शिकार करती है. कमोबेश हर कोई इनके गिरफ्त मे आने के लिये अभिशप्त है.
बेहतरीन भाव
आया हूँ बच के ख़ुशी से मैं
ReplyDeleteमैं सोगो ग़म का बज़ार हूँ
-बहुत उम्दा है जी!!
मुझसे मिलीं रहमतें खुल के
ReplyDeleteऔर ज़ुल्मतों का मैं प्यार हूँ
वेहतरीन गजल के लिए बधाई!
समझूँगा मैं तेरी बात क्या
ReplyDeleteपत्थर की इक मैं दीवार हूँ ...
समझी है हर बात उस पत्थर की दीवार ने...किसी ने झुकर हाले से कानों में कहा तो होता ...
इतराऊं खुद पे न क्यूँ 'अदा'
पर कैसे चलूँ ? लाचार हूँ...
खूब इतरायें ...
और हम आपके इतराने से इतराएँ ....!!
भावों का बाजार है यह गजल !
ReplyDeleteअदा जी, बहुत अच्छा व्यंग्य किया है.
ReplyDeleteहक से रुक मेरे भीतर ,
ReplyDeleteहां मैं तेरा संसार हूं ॥
जब तलक कयामत न हो ,
और उसके बाद भी तैयार हूं ॥
यदि तेरी इबादत है गुनाह तो,
यकीनन मैं गुनाहगार हूं ॥
देखिए आपने मुझे फ़िर बहका दिया न .....आपके लिखे के पीछे पीछे ये कलम दौडने लगती है
उड़ने की है किसे जुस्तजू
ReplyDeleteमैं ऊँचाइयों का शिकार हूँ
सुन्दर भाव की पंक्तियाँ बहन मंजूषा।
मेरी जुस्तजू में है जिन्दगी
ऊँचाइयों का आधार हूँ
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman. blogspot. com
"उड़ने की है किसे जुस्तजू"
ReplyDeleteअपनी धुन में रहता हूँ मैं भी तेरे जैसा हूँ
ओ पिछली रुत के साथी अब के बरस मैं तनहा हूँ
बहुत खूब बहुत खूब।
ReplyDeleteहर शब्द गया भाव में डूब। बहुत खूब बहुत खूब।
कैमरॉन की हसीं दुनिया 'अवतार'
मुझसे मिलीं रहमतें खुल के
ReplyDeleteऔर ज़ुल्मतों का मैं प्यार हूँ
हर दर्द का हूँ मैं देनदार
और ग़मों का खरीददार हूँ
बहुत खूब, बेहतरीन !
मुझसे मिलीं रहमतें खुल के
ReplyDeleteऔर ज़ुल्मतों का मैं प्यार हूँ
बेहद खूबसूरत.
रामराम.
उड़ने की है किसे जुस्तजू
ReplyDeleteमैं ऊँचाइयों का शिकार हूँ
हर दर्द का हूँ मैं देनदार
और ग़मों का खरीददार हूँ
बहुत प्यारी ग़ज़ल है......ये शेर मन को छू गए....बधाई
ye sher to lazawab hai:
ReplyDelete"उड़ने की है किसे जुस्तजू
मैं ऊँचाइयों का शिकार हूँ "
par Poori ghazal hi acchi hai,
Kai baar keh chuka hoon Aur kai baar keh sakta hoon.
For you Thousand Times And Over.
सुंदर और प्यारी सी रचना..!
ReplyDelete'' इतराऊं खुद पे न क्यूँ 'अदा'
ReplyDeleteपर कैसे चलूँ ? लाचार हूँ ''
........... बस इसी बीच से जीवन खींच लीजिये ...
आया हूँ बच के ख़ुशी से मैं
ReplyDeleteमैं सोगो ग़म का बज़ार हूँ
उड़ने की है किसे जुस्तजू
मैं ऊँचाइयों का शिकार हूँ
बहुत खूब बधाई
हर दर्द का हूँ मैं देनदार
ReplyDeleteऔर ग़मों का खरीददार हूँ
अच्छे विचार।
हर दर्द का हूँ मैं देनदार
ReplyDeleteऔर ग़मों का खरीददार हूँ
bahut hi sundar gazal.
उड़ने की है किसे जुस्तजू
ReplyDeleteमैं ऊँचाइयों का शिकार हूँ
kya baat kahi hai ada ji ! bahut badhiya
समझूँगा मैं तेरी बात क्या ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
हे प्रभु, मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना
ReplyDeleteकि मैं गैरों को गले लगा न सकूं...
- अटल बिहारी वाजपेयी
जय हिंद...
बड़े जज्बे से भरी है,ग़ज़ल...बहुत खूब
ReplyDeleteसमझूँगा मैं तेरी बात क्या
ReplyDeleteपत्थर की इक मैं दीवार हूँ
आया हूँ बच के ख़ुशी से मैं
मैं सोगो ग़म का बज़ार हूँ
मुझसे मिलीं रहमतें खुल के
और ज़ुल्मतों का मैं प्यार हूँ
waah hatts off.apki kalam ka jadu sidha dil me utar raha hai.bahut acchhi gazel.badhayi.
गजल पढ़ी
ReplyDeleteकुछ तासीर ऐसी है की दिल को भा गयी !
कई शेर कीमती बन पड़े हैं !
समझूँगा मैं तेरी बात क्या
पत्थर की इक मैं दीवार हूँ
उड़ने की है किसे जुस्तजू
मैं ऊँचाइयों का शिकार हूँ
मुझसे मिलीं रहमतें खुल के
और ज़ुल्मतों का मैं प्यार हूँ
कुल मिलाकर एक बेहतरीन गजल सामने आई है !
अच्छा ये भी लगा की आपको उर्दू की समझ खूब है !
थोड़ी बेचैनी मुझे इस शेर से हुयी :
हर दर्द का हूँ मैं देनदार
और ग़मों का मैं खरीददार हूँ
तजुर्बा कहता है कि दर्द देने वाला ग़म का खरीददार नहीं होता :)
नए गाने का इन्तजार है
बहुत बहुत शुभ कामनाएं
समझूँगा मैं तेरी बात क्या
ReplyDeleteपत्थर की इक मैं दीवार हूँ
khair aapke liye kya kahoon ,shabd hi nahi hamare pass hai ,is unchai ko hum sirf salaam karte hai .waah waah waah kya baat hai itna hi kahte hai
ada ji aapke blog par bahut baar aai aur madhur geet bhi sunti rahti hoon ,magar shaadi ki saalgirah par jo rachna daali aur phir aake 3-4 geet bhi suni yahan aur tippani bhi di magar aap badhai dene nahi aai ,achchhe logo se kuchh umeede vevjah kar lete hai shayad ....intjaar me ek mahina nikal gaya ,khas din pe khas ka hona khushi deti hai ,insaaniyat se jyada aur chahte kya ,judi hui hai aap mere blog se isliye na chahte bhi kah gayi ,kis haq se ye pata nahi .
ReplyDeleteek baat kahna chahungi
gar tum bhula na doge ,
sapne ye sach hi honge
hum-tum juda na honge .