Sunday, December 6, 2009

ख़ौफ के साए रेंग रहे वो प्यार का मंजर कैद में है...


जो टूटा कल औ बिखर गया वो आज समंदर कैद में है
खौफ के साए रेंग रहे वो प्यार का मंजर कैद में है

यूँ हीं तूने मुझे जाँ कहा और यूँ हीं कहा मुझे जानाँ
यूँ हीं लफ्ज़ अब डूब गए और रूहे-सुखनवर कैद में है

सड़कें कितनी खाली हैं और बाहर कितना सन्नाटा
अरमानों और ख़्वाबों के कई लाव-लश्कर कैद में हैं

फ़िक्र कहाँ किसी की मुझे कोई रंज भी अब नहीं तारी
फूल सा दिल पत्थर हुआ पत्थर का ज़िगर कैद में है

वो रौनक वाले दिन थे 'अदा' और आज अजीब आलम है
बस उम्र से खुशियाँ रूठ गईं अब मस्त कलंदर कैद में है

रूहे-सुखनवर=कवि की आत्मा

अब सुनिए यह गीत :

'प्रथम रश्मि का आना' स्वर स्वप्न मंजूषा 'अदा' , संगीत संतोष शैल.....


पंत की कविता 'प्रथम रश्मि'

प्रथम रश्मि का आना रंगिणि!
तूने कैसे पहचाना?
कहां, कहां हे बाल-विहंगिनि!
पाया तूने यह गाना?

सोयी थी तू स्वप्न नीड़ में,
पंखों के सुख में छिपकर,
ऊंघ रहे थे, घूम द्वार पर,
प्रहरी-से जुगनू नाना।

शशि-किरणों से उतर-उतरकर,
भू पर कामरूप नभ-चर,
चूम नवल कलियों का मृदु-मुख,
सिखा रहे थे मुसकाना।

स्नेह-हीन तारों के दीपक,
श्वास-शून्य थे तरु के पात,
विचर रहे थे स्वप्न अवनि में
तम ने था मंडप ताना।

कूक उठी सहसा तरु-वासिनि!
गा तू स्वागत का गाना,
किसने तुझको अंतर्यामिनि!
बतलाया उसका आना!

छिपा रही थी मुख शशिबाला,
निशि के श्रम से हो श्री-हीन
कमल क्रोड़ में बंदी था अलि
कोक शोक में दीवाना।

प्रथम रश्मि का आना रंगिणि
तूने कैसे पहचाना?
कहाँ-कहाँ हे बाल विहंगिनी
पाया तूने यह गाना?

25 comments:

  1. रूहे- सुखनवर कैद में इतनी कवितायेँ लिख देता है ...
    ऐसी कैद भगवान् किसी को ना दे .....
    हम तो भाग रहे है ...इतना खौफनाक मंजर ,डर लगने लगा है ...!!

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  2. तूने यूँ हीं मुझे जाँ कहा और यूँ हीं कहा जानाँ
    यूँ हीं लफ्ज़ अब डूब गए और रूहे-सुखनवर कैद में है


    -गजल बहुत उम्दा लगी....अब सुनने की तैयारी है गीत...

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  3. कविता सुनकर डर भाग गया इसलिए लौट आये ...अब आपकी आवाज के बारे में तो क्या कहे.. आभार ..!!

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  4. एकदम सॉफ्ट म्यूजिक के साथ सुन्दरता और कोमलता के साथ सुरबद्ध किया यह गीत खत्म होने के बाद भी देर तक कानों में बजता रहा...


    वाह!! अति सुन्दर!!

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  5. सड़कें कितनी खाली हैं और बाहर कितना सन्नाटा
    अरमानों और ख़्वाबों के कई लाव-लश्कर कैद में हैं
    उम्दा गज़ल. हिलाकर रख देने वाली गज़ल

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  6. स्वप्ना और संतोषजी को शादी की सालगिरह मुबारक हो ....!!

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  7. ada ji,

    shaayad aapki shaadi ki saal girah hai...

    aapko bahut bahut mubaarak ho....

    geet 1--2 din sun nahi sakungaa....
    kuchh bhi download karun....VIRUS aa jaata hai..

    KHAUF chitr mein bhi hai aur ghazal mein bhi...par dono aapas mein mel nahi khaa rahe hain.....

    dono pe dobaraa gaur kijiyegaa...


    manu'be-takhallus'

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  8. अदा जी,
    छह दिसंबर को अच्छी बातें याद करने की लिस्ट में अब आपका और संतोष जी के भी नाम जुड़ गए हैं...शादी की सालगिरह मुबारक...आप दोनों के लिए पहले एक गाना...

    सौ साल पहले मुझे तुमसे प्यार था,
    आज भी है और कल भी रहेगा...

    दूसरी बात, आप जो भी कविता, गीत, गज़ल सुनाती हैं, वो कानों के लिए प्रसाद ही होता है...

    तीसरी बात,
    ये पोस्ट के ऊपर फोटोग्रॉफ़ तो है पर ऑटोग्राफ़ नहीं है...क्यों भला (हा...हा...हा...)

    जय हिंद...

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  9. और हाँ अदा जी....
    ज़रा सी देर और सोचती आप...गजल डालने से पहले...
    तो ये और बेहतर बन सकती थी...

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  10. शुरुआत ही शानदार की आपने ! -
    "जो टूटा कल औ बिखर गया वो आज समंदर कैद में है
    खौफ के साए रेंग रहे वो प्यार का मंजर कैद में है "

    पूरी गज़ल कई आयाम समेटे ! आभार ।
    पंत की कविता के इस गायन के लिये कोटिशः धन्यवाद । हिन्द-युग्म के आयोजन की प्रतिष्ठा बढ़ा दी आपने पंत की इस कविता को स्वर देकर । मधुरतम ।

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  11. सड़कें कितनी खाली हैं और बाहर कितना सन्नाटा
    अरमानों और ख़्वाबों के कई लाव-लश्कर कैद में हैं
    ग़ज़ल दिल को छू गई।
    बेहद पसंद आई।

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  12. पहले शादी की सालगिरह मुबारक !
    गजल भी बेहद उम्दा और पन्त की कविता का पाठ भी

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  13. यूँ हीं तूने मुझे जाँ कहा और यूँ हीं कहा मुझे जानाँ
    यूँ हीं लफ्ज़ अब डूब गए और रूहे-सुखनवर कैद में


    रूहे-सुखनवर कैद में? क्यों भरमा रहीं हैं? हमें तो नहीं लगता :-)

    बी एस पाबला

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  14. हर बार यही उहापोह, हर बार यही बस उलझन एक,
    हम कैदी हैं इस अदा के या खुद अदा हमारे कैद में है


    सालगिरह की बहुत बहुत मुबारकबाद जी ...बताईये क्या दावत दी जा रही है ..एक व्यंजन तो मिल गया ...अरे आपका मीठा मीठा गाना जी और क्या ...

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  15. "यूँ हीं तूने मुझे जाँ कहा और यूँ हीं कहा मुझे जानाँ"

    पहले जां फिर जानेजां फिर जानेजाना हो गये
    रफ्ता रफ्ता वो मेरे हस्ती का सामां हो गये

    बहुत सुन्दर गाया आपने, संगीत भी अत्यन्त मधुर!

    शादी की सालगिरह मुबारक!

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  16. उम्दा कविता और सुंदर गान। आज की सुबह आप ने सार्थक कर दी।

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  17. स्वयं कविवर पन्त आपके स्वर सुनकर बेहद हर्षित हो जाते ,सच कह रहा हूँ....!!!
    हमेशा....................की तरह.........बेहतरीन....!!!

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  18. सड़कें कितनी खाली हैं और बाहर कितना सन्नाटा
    अरमानों और ख़्वाबों के कई लाव-लश्कर कैद में हैं
    बेहद ख़ूबसूरत पंक्तियाँ !

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  19. ओह !!! बहुत सुन्दर !!! दीदी…………

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  20. shadi ki salgirah mubarak ho

    फ़िक्र कहाँ किसी की मुझे कोई रंज भी अब नहीं तारी
    फूल सा दिल पत्थर हुआ पत्थर का ज़िगर कैद में है
    bahut hi gahre ahsaas.

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  21. यूँ हीं तूने मुझे जाँ कहा और यूँ हीं कहा मुझे जानाँ
    यूँ हीं लफ्ज़ अब डूब गए और रूहे-सुखनवर कैद में है

    लाजवाब है ये शेर ......
    आपकी आवाज़ में कविता तो बस कमाल कर रही है ........ आनंद ले रहा हूँ .....
    आपको आज शादी के वर्षगाँठ मुबारक हो ..... ईश्वर से प्रार्थना है वो आपका साथ हमेशा बनाए रक्खे ......

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  22. वो रौनक वाले दिन थे 'अदा' और आज अजीब आलम है
    बस उम्र से खुशियाँ रूठ गईं अब मस्त कलंदर कैद में है

    बहुत खूब. और आवाज़ तो हमेशा की ही तरह फूल सी खिली और मादकता से भरी

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  23. प्रिय बहन,

    विवाह की वर्षगाँठ पर स्नेह और आशीर्वाद । आप अच्छा लिखती हैं.. ईश्वर आपकी मनोकामनाएँ पूर्ण करें । जय श्रीराम ।

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  24. फ़िक्र कहाँ किसी की मुझे कोई रंज भी अब नहीं तारी
    फूल सा दिल पत्थर हुआ पत्थर का ज़िगर कैद में है
    - वाह! बहुत अलग अंदाज़ लिये हैं शेर.

    अब मैं कहूँ - 6-दिसंबर स्पेशल

    आज रौनक वाले दिन हैं 'अदा' चलो गीत कोई गुनगुना दो
    देखो हर तरफ खुशियाँ छायी और नापाक नज़र कैद में है

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