दिल में इक तस्वीर थी और आईना टूटा न था
हादसे होते रहे कई बार मेरे दिल के साथ
आज से पहले किसी ने यूँ शहर लूटा न था
चुभ गए संगीन से वो तेरे अल्फ़ाज़ों के शर
सब्र का प्याला मगर ऐसे तो फूटा न था
रौनकें पुरनूर थीं और गमकता था आसमाँ
झाँक कर देखा जो दिल में एक गुल-बूटा न था
मंजिलें दरिया बनीं और रास्ते डूबे 'अदा'
साँस का कच्चा घड़ा, पर तूफ़ान में टूटा न था
मरते मरते बच गए कितने लोग इसीलिए ,
ReplyDeleteसब गया, पर दामन-ए-उम्मीद छूटा न था...
बहुत अच्छे, लिखते रहिये ....
बस यही दुआ है की ये कच्चा घड़ा ना टूटे .सुंदर रचना.
ReplyDeleteखूबसूरत गज़ल ....रौनकें पुरनूर थीं ....बहुत सुन्दर लगा यह शेर
ReplyDeleteवाह वाह ...बहुत खूब..सारे शेर सटीक पड़े हैं....
ReplyDeleteमज़ा आ गया...यह रचना तो बगल वाली तस्वीर में भी दिख रही है.....
साँस का कच्चा घड़ा, पर तूफ़ान में टूटा न था
ReplyDelete-- सबसे दमदार पंक्ति !!
अब शिकवे भी इतने सारे :)
ReplyDeleteहर तूफ़ान झेल जाये ये घड़ा, यही कामना है। तूफ़ानों से तो नरमी की उम्मीद रख नहीं सकते।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत पोस्ट।
आभार।
गहराई लिये सागर की, जीवटता घड़े की।
ReplyDeleteहादसे होते रहे--- वाह वाह उमदा शेर हैं। बधाई।
ReplyDeletehum to fan ho gaye hai aapke...aap to kamal hai...bahot khubsurat rachna...
ReplyDeleteदीदी,
ReplyDeleteलो जी मैं फिर आ गया करने परेशान आपको
"गमकता" ,"गुल-बूटा" क्या होता है ??
मौ सम कौन जी का कमेन्ट मेरा मानिए
सम्पूर्ण
ReplyDeleteकोई कमी नहीं
मैं महा मिलन के क़रीब हूं
‘हादसे होते रहे कई बार मेरे दिल के साथ
ReplyDeleteआज से पहले किसी ने यूँ शहर लूटा न था’
दिल शहर हुआ तो दिलबर शहरबदर :)
ओह सोरी सोरी दीदी
ReplyDeleteगुल-बूटे=फूल, कलियाँ
ये एक पिछली रचना में बताया था आपने
गमकता भी महकने जैसा ही कुछ होता होगा
तूफ़ानों के सम्मुख भी डटे रहना, और उससे जूझने का हौसला रखना, यही तो हमारे साधारण से जीवन को भी असाधारण बना देता है. खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर
डोरोथी.