Sunday, October 10, 2010

श्री सत्यनारायण की कथा....


महीनों से पंडित जी सत्यनारायण की
कथा करा रहे हैं,
और हर बार साधू बनिया की कहानी सुना रहे हैं
कथा नहीं सुनने पर कितनी दुर्गति हो सकती है
इसके लिए दृष्टान्त कलावती, लीलावती का बता रहे हैं
मेरी विपदाएं आज भी वहीँ अचल खड़ी हैं
क्यूंकि पंडित जी ने वो कथा आज भी नहीं कही है 
बस लगातार साधू बनिया की कहानी बांचे जा रहे हैं
कहा हमने,
पंडित जी हमको सत्यनारायण की कथा बताइये
राजा ने जिसको सुना था, हमको वही कथा सुनाइये
बोले बिटिया,
तुमरी बात हम अच्छी तरह समझ रहे हैं
लेकिन जो लिखा हुआ है वही सब हम भी कह रहे हैं
आज फिर हुई है कथा सत्यनारायण जी की
लेकिन कहाँ सुनी हमने वो कथा आज भी...!

आज हमारे घर में श्री सत्यनाराय की कथा होनी है...वैसे तो मुझे बचपन से ये बात सालती रही है..कि आख़िर वो कौन सी कथा थी जिसे नहीं सुनने से इतनी समस्याएं हुई थी कलावती, लीलावती को,  कोई बताता क्यों नहीं है...हम तो सुनना चाह कर भी नहीं सुन पा रहे हैं...

लेकिन अब मन को समझा लिया है, सोचती हूँ ये पूजा-पाठ, देखा जाए तो पवित्रता, स्वच्छता के बहाने हैं, कम से कम इनकी वजह से घर की सफाई, तन की सफाई और मन की सफाई तो हो जाती है....
यहाँ... भारत से दूर....हमारे जैसों के बच्चों को, पंडित, पूजा, अक्षत, पंचामृत, मौली, गंगा जल, प्रसाद  इत्यादि के दर्शन भी हो जाते हैं और घर का माहौल भी अनुपम हो जाता है...सच में...

तार्किक दिमाग की मालकिन हूँ ..किसी भी बात को आँख बन्द करके स्वीकारने की आदत नहीं है..इसलिए ऐसे सवाल करती ही रहती हूँ...परन्तु रचनात्मकता का भी कुछ अंश है, लहू में, जो बहुत देर तक हठ नहीं करने देता....तो हम भी ढूंढ  ही लेते हैं...ऊ का कहते हैं...बहाने... दिल को बहलाने के ...
हाँ नहीं तो...!!!




6 comments:

  1. दीदी,
    नो कमेंटस हमारी तरफ से
    बढ़िया कथा है
    हा हा हा

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  2. दीदी,
    बढ़िया कथा है
    ....... आप सब को नवरात्रो की शुभकामनायें,

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  3. प्रथमदॄष्ट्या तो व्यक्तित्व में विरोधाभास लगा कि आप खुद पूजा का आयोजन करवा रही हैं और खुद ही प्रश्न उठा रही हैं, लेकिन दोबारा सोचे तो यह आपकी संतुलित सोच लगी कि परंपराओं का पालन भी हो, लेकिन आँखें मूँदकर नहीं। जो न समझ आये उसपर प्रश्न करना कहीं से बुरा नहीं है। इस कथा से संबंधित प्रश्न का हल कहीं से मिले तो शेयर कीजियेगा।
    हमें तो कथा के अंत में मिलने वाले प्रसाद का इंतज़ार रहता था, अब यहाँ वर्चुअल वर्ल्ड में कैसा प्रसाद और कैसा इंतज़ार।
    कथा आयोजन का उद्देश्य सफ़ल हो, शुभकामनायें।

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  4. बस इतना ही कह सकता हूं के:

    "फ़लसफ़े को बहस से खुदा नहीं मिलता,
    डोर उलझती जाती है सिरा नहीं मिलता।"

    भगवान कथा में कहां, वो तो सिर्फ़ और सिर्फ़ भाव में है!

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  5. सत्यनारायण की कथा ही क्यों ?हमारे हर तीज त्यौहार की कथाये ऐसी ही है किन्तु कुछ तो बात है हमारी पूजा पद्धति में जो हमारे इन तर्कों को कपूर की तरह उड़ा देती है और ये सब करना अच्छा लगता है सबसे आश्चर्य की बात है हमारी नै पीढ़ी भी लगन से पूजा कोम्ह्त्व देने लगी है |

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  6. ईश्वरत्व के लिये तर्क की कोई गुंज़ायश नही !

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