इस बात में दो राय नहीं कि हिंदी की दुर्दशा दिखाई देती है, कारण सिर्फ बाजारवाद नहीं, अंग्रेजी की चमक इतनी तेज़ है कि लोग उससे बच नहीं पाते...और हमारी सरकार भी छीछा-लेदर करने से बाज़ नहीं आती, हिंदी के उत्थान की आवश्यकता, उतनी नहीं है जितनी उसे दिल से अपनाने की है, हिंदी आज शक़ के घेरे में है, हिंदी पर अब लोगों को विश्वास नहीं है, अपनी बात हिंदी में कहने में लोग कतराते हैं....उन्हें ये लगता है कि सामने वाले पर धौंस ज़माना हो, तो बात हिंदी में नहीं, अंग्रेजी में करो...और सच्चाई भी यही है...जो बात आप हिंदी में कहते हैं, वो कम असर करती, और जैसे ही आपने अंग्रेजी में बात करनी शुरू की, आपका स्तर सामने वाले की नज़र में एकदम से उछाल मारता है ...बेशक आपने अंग्रेजी की टांग ही तोड़ कर रख दी हो....ब्लॉग जगत में भी अंग्रेजी के वड्डे-वड्डे तीर चलते हुए देखा है, और लोगों को चारों खाने चित्त होते हुए भी...हाँ, तो हम बात कर रहे थे, इसी फार्मूले की...ये मेरा आजमाया हुआ फ़ॉर्मूला है...कसम से हम कहते हैं, एकदम सुपट काम करता है..
पेशे ख़िदमत है एक आपबीती ...
मैं रांची में थी और मुझे इन्टनेट कनेक्शन चाहिए था ...उसके लिए जाने क्या-क्या कार्ड्स चाहिए थे और मेरे पास वो कार्ड्स नहीं हैं, ख़ैर मेरी दोस्त उर्सुला ने मेरा उद्धार करने की सोची ...उसने आवेदन दिया, हमलोगों ने टाटा का फ्लैश ड्राइव खरीदा और कनेक्शन के लिए हमलोगों से ये वादा किया गया कि दूसरे दिन तक हो जाएगा ...मैं अपना लैपटॉप लेकर तैयार बैठी थी...दूसरे दिन दोपहर तक कनेक्शन का नाम-ओ-निशाँ नहीं था...मैंने फ़ोन लगाया उसी जगह जहाँ से इन्टरनेट कनेक्शन लिया था ...उनका कहना था कि आपको कनेक्शन इसलिए नहीं मिला, क्योंकि हम पता का सत्यापन अर्थात एड्रेस वेरिफिकेशन के लिए गए थे लेकिन वहाँ कोई नहीं था...मेरा अगला सवाल था आप कब गए थे वेरिफिकेशन के लिए ...उन्होंने जवाब दिया जी ११ बजे के क़रीब गए थे....मैंने तपाक एक और सवाल दागा..आप इस वक्त कहाँ हैं ...उनका जवाब था जी हम तो ऑफिस में हैं...मैंने कहा अभी कितने बज रहे हैं ...उन्होंने कहा जी १२.३० ...मैंने कहा आप ऑफिस में क्यों हैं...आपको तो घर पर होना चाहिए था...वो बन्दा कुछ उलझा-उलझा सा हो गया...कहने लगा क्यों मैम घर पर क्यों, मैंने कहा कि मुझे लगा आप भी वेले ही बैठे हो.. तो घर में रहो...क्योंकि अगर आप ११ बजे एड्रेस वेरिफिकेशन के लिए किसी के घर जाते हो...और ये उम्मीद करते हो कि वो घर में ही पलंग पर बैठा हो...तो बंदा तो वेल्ला ही होगा न...वर्ना शरीफ लोग जो नौकरी-चाकरी करते हैं, वो तो ९ बजे ही दफ़्तर पहुँच जाते हैं न ! बन्दा समझदार था...समझ गया था कि ग़लत जगह पंगा ले रहा है...कहने लगा मैम आपकी बात सही है...लेकिन मैं तो बस एक मुलाजिम हूँ...आप क्यों नहीं हमारे मैनेजर से बात करती हैं...मैंने कहा, बच्चे, अब मैं मनेजर नहीं मैनेजिंग डाइरेक्टर से बात करुँगी...अब मुझे उनका फ़ोन नम्बर दो...ख़ैर उसने मुझे एम्.डी. का नंबर दिया, मैंने फ़ोन किया और जब तक मैं हिंदी में बात करती रही, एम्. डी. साहेब मुझे टहलाते रहे, उनकी बन्दर गुलाटी देख मैंने भी अपना रंग बदलने की सोची....और जैसे ही मैंने अपना रंग बदला, वो मुझे सिरिअसली लेने लगे, फिर मैंने वो अंग्रेजी झाड़ी कि उन्हें भी लगने लगा ...I can leave angrej behind ...मेरा इन्टरनेट कनेक्शन १५ मिनट में लगा ..बिना तथाकथित एड्रेस वेरिफिकेशन के, यही नहीं एम्.डी. साहब ने पूरे समय मेरा इंतज़ार किया फ़ोन पर, जब तक मेरा इंटरनेट कनेक्शन...ऊ का कहते हैं कि कनेक्टेड नहीं हो गया....और तो और दूसरे दिन, फिर तीसरे दिन भी फ़ोन करके पूछा कि सब ठीक-ठाक चल रहा है न...!
तो ई है जी अंग्रेजी मईया की किरपा....
हाँ नहीं तो..!
बड़ी कृपा रही अंग्रेजी मैय्या की..तब तो जय ही न बोलना पड़ेगा.
ReplyDeleteमजेदार प्रसंग है.
ReplyDeleteमान गये अंगरेजी मईया को
हाँ ...झाड़ने में तो आप नंबर वन हैं ही ...:):
ReplyDeleteअंग्रेजी क्या संस्कृत में भी झाड दें ...!
असल में अंग्रेजी गए जमाने के गोरे और आज के जमाने के काले अंग्रेज शासकों की भाषा है। जहाँ भी भारत की तरह लोकभाषा और शासन की भाषा में अंतर रहेगा, इस तरह की धौंस चलेगी।
ReplyDeleteऐसा ही होता है जी, अक्सर ना चाहते हुए भी अंग्रेजी की धप्पी देनी ही पड़ती है.
ReplyDeleteऔर तो और, शुद्ध और संस्कृतनिष्ठ हिंदी में बात करने पर लोग पिछड़ा हुआ और रिफाइंड अंगरेजी में बात करने पर लोग अति-उच्च शिक्षित समझते हैं.
हा हा हा हा ये बात सौ प्रतिशत सच है ..बेसाख्ता हंसी इसलिए निकल गई क्योंकि अपने इंग्रेजी ऑनर्स का फ़ेदा कई बार ऐसे ही उठा चुके हैं ..हालांकि जब अमिताभ बच्चन और मनोज बाजपेयी या आशुतोष राणा को हिंदी बोलते वो भी सार्वजनिक मंच से , और उस पर लोगों को उनसे प्रभावित होते हुए देखता हूं तो वो भी एक अलग सुखद अनुभूति होती है मेरे लिए । वैसे बात फ़िर भी यही सच है जो आपने कही है
ReplyDeleteन माने हिन्दी में बात,
ReplyDeleteतब खायें अंग्रेजी लात।
आपका कहना सही है !
ReplyDelete...कभी कभी सोचता हूं कि अगर अंग्रेज़ हमें जुतियाने नहीं आए होते तो हमारे इंटरनेट कनेक्श कैसे लगते....!!!
ReplyDeleteअंग्रेज़ी को साष्टांग (विशुद्ध दक्षिण भारतीय शैली में).
जय हो अंग्रेज़ी मैया की ।
ReplyDeleteयेस नो सो ( हाँ नहीं तो )।
आज से ही सीखना शुरू ।
baat to aapki bilkul sahi hai. gairon se kya shikayat karna jub apne hi use nanga karne par lage ho.
ReplyDeleteangreji maiya ke saath ek aur kripa thi........aap ek Lady thi.......:D
ReplyDeleteagar ham jaiso ne angreji peelayee hoti, to sayad ulti pad chuki hoti........:P
सचमुच हिंदी से काम निकलवाना कठिन लगता है । हमारे समाज में अंग्रेजी भाषा को उच्च वर्ग की निशानी मान लिया गया है ।
ReplyDelete6.5/10
ReplyDeleteरोचक पोस्ट
मजेदार भी---मौलिकता भी
राष्ट्रीयता की भावना बाकी बची हो तो पोस्ट बहुत कुछ कह जाती है.
हिंदुस्तान के अंदर होनेवाले ऐसे वाकयों पर हंसा ही तो जा सकता है !!
ReplyDeleteमैं आपसे पुर्णतः सहमत हूँ. अंग्रेजी को बेहतर मानने कि मानसिकता भारतीय लोगों में गहरी है. मैं खुद अपने साधारण अंग्रेजी के ज्ञान और अति साधारण व्यक्तित्व के बावजूद कई जगहों पर सिर्फ इसलिए प्रभावी रहता हूँ क्योंकि मैं अंग्रेजों के उच्चारण कि हु बहु नक़ल कर लेता हूँ और इसका बखूबी प्रयोग भी करता हूँ. .
ReplyDeleteजय हों अंग्रेजी मईया की ...
ReplyDeletekabhi kabhi yeh angreji se bada raub padta hai...
ReplyDeleteha ha ha..
जब भी मेरी सधी हुई धारा-प्रवाह हिन्दी पर कोई आपत्ति करता है तो उससे केवल इतना ही पूछता हूँ कि जब अनजाने अंग्रेजी शब्दों के लिए डिक्शनरी देखते हो तो अनजाने हिन्दी शब्दों के लिए शब्दकोष क्यों नहीं टटोले जाते?
ReplyDeleteफिर भी जब उस पर कोई असर नहीं होता तो इतनी शुद्ध अंग्रेजी फेंकी जाती है कि अगला मिन्नतों पर उतर आता है कि तू हिन्दी ही बोल ले :-)
जिस दिन बाज़ार की भाषा हिन्दी होगी उस दिन अंग्रेजी बोल कर देखिएगा
achhi sansmarn ..... sacchi bat.......
ReplyDeleteन माने हिन्दी में बात,
तब खायें अंग्रेजी लात।
pranam.
I can leave angrej behind. ha ha ha
ReplyDeleteसही कहा ऐसा ही होता है |
ReplyDeleteसही कहा ऐसा ही होता है |
ReplyDeleteग़ुलामी की अददत जाती नहीं आज भी. आज भी उनका ही ज़ोर चलता है. अंग्रेजी माता का मंदिर शायद इसी कारण से बनाया गया है.
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