लफ्ज़-लफ्ज़ जो भी पढ़ाइक जज़्बे से भरपूर थाजाते जाते फिर चले आयेकुछ कहना भी ज़रूर था..बहुत अच्छी और रोचक रचना !
aise kadraan jo jindgee me aaeto fir gurur peeche kyo rah jae .
यह छंद भी बढ़िया रहा!
अहा, प्रेमपगी।
दीदी,अभी मैं इस रचना को गहनता से समझ रहा हूँ ..... :)इस में ये "तश्नगी" क्या होता है? और ये चित्र क्या है ?[पेंटिंग करता ब्रश है क्या ]
आँखों में गज़ब सुरूर था,लगता वो नशे में चूर था,ye nashe me nahi wo pyar me madhhosh tha
चाहत ने उसकी / मुझे चांद बना डाला "बेद खूबसूरत पंक्तियाँ
गौरव..तश्नगी=प्यासऔर हाँ ये पेंटिंग करता हुआ ब्रुश ही है...
बहुत खूब । हुस्न पे इतना न गरूर करो ----
दीदी , वाह वाह हैं चंद लाइने पर हैं बड़ी असरदार :)फोटो मस्त है :)अब जा के गहराई में डूब पाया , एक शब्द भी मुझे तो उलझा देता है :), और ये उर्दू शब्द होते भी बड़े जानदार हैं वाकई
वफ़ा के कारण उपजी मगरूरी अच्छी ही है और ऐसी मगरूर चाहत मिले तो पाने वाले का गुरूर भी स्वाभाविक है।’गागर में सागर’ भर दिया है आपने, सच में।
ये जो हल्का हल्का सुरूर था !वो तेरी नज़र का कुसूर था !!पता नहीं ये लाइनें कहां पढ़ी थी और क्यों याद आ गईं ! बहरहाल हमेशा की तरह बेहतर पेशकश !
वाह 'चाँद' क्या बात है फिर तो सुरूर होना वाजिब है भाई.
चाहत ने उसकी,मुझे चाँद बना डालाइस बात का मुझे भी,थोड़ा गुरुर था ....बहुत रोचक रचना
kadrdaan ka D mis ho gaya thaa..... :-)
bahut sundar likha hai ki kuch is baat kaa bhi garoor hai.. chaaht ne unki chaand bana diya.
लफ्ज़-लफ्ज़ जो भी पढ़ा
ReplyDeleteइक जज़्बे से भरपूर था
जाते जाते फिर चले आये
कुछ कहना भी ज़रूर था..
बहुत अच्छी और रोचक रचना !
aise kadraan jo jindgee me aae
ReplyDeleteto fir gurur peeche kyo rah jae .
यह छंद भी बढ़िया रहा!
ReplyDeleteअहा, प्रेमपगी।
ReplyDeleteदीदी,
ReplyDeleteअभी मैं इस रचना को गहनता से समझ रहा हूँ ..... :)
इस में ये "तश्नगी" क्या होता है? और ये चित्र क्या है ?[पेंटिंग करता ब्रश है क्या ]
आँखों में गज़ब सुरूर था,
ReplyDeleteलगता वो नशे में चूर था,
ye nashe me nahi wo pyar me madhhosh tha
चाहत ने उसकी / मुझे चांद बना डाला "
ReplyDeleteबेद खूबसूरत पंक्तियाँ
गौरव..
ReplyDeleteतश्नगी=प्यास
और हाँ ये पेंटिंग करता हुआ ब्रुश ही है...
बहुत खूब । हुस्न पे इतना न गरूर करो ----
ReplyDeleteदीदी ,
ReplyDeleteवाह वाह
हैं चंद लाइने पर हैं बड़ी असरदार :)
फोटो मस्त है :)
अब जा के गहराई में डूब पाया , एक शब्द भी मुझे तो उलझा देता है :), और ये उर्दू शब्द होते भी बड़े जानदार हैं वाकई
वफ़ा के कारण उपजी मगरूरी अच्छी ही है और ऐसी मगरूर चाहत मिले तो पाने वाले का गुरूर भी स्वाभाविक है।
ReplyDelete’गागर में सागर’ भर दिया है आपने, सच में।
ये जो हल्का हल्का सुरूर था !
ReplyDeleteवो तेरी नज़र का कुसूर था !!
पता नहीं ये लाइनें कहां पढ़ी थी और क्यों याद आ गईं ! बहरहाल हमेशा की तरह बेहतर पेशकश !
वाह 'चाँद' क्या बात है फिर तो सुरूर होना वाजिब है भाई.
ReplyDeleteचाहत ने उसकी,
ReplyDeleteमुझे चाँद बना डाला
इस बात का मुझे भी,
थोड़ा गुरुर था ....
बहुत रोचक रचना
kadrdaan ka D mis ho gaya thaa..... :-)
ReplyDeletebahut sundar likha hai ki kuch is baat kaa bhi garoor hai.. chaaht ne unki chaand bana diya.
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