माना कि...
दरिया में कई क़तरे होते हैं,
पर दरिया को मालूम कहाँ,
कितने क़तरे होते हैं,
दरिया के बग़ैर क़तरे की,
न कोई हकीक़त, न ही वज़ूद
फिर भी तेवर लिए हुए,
ये क़तरे होते हैं,
मिटने का ग़ुरूर कहें
या कहें किस्मत इनकी,
बस ज़ज्ब-दरिया में
फ़ना क़तरे होते है,
क़तरे से दरिया का
रिश्ता है अजीब,
नाचीज़ क़तरे होते हैं,
जब दरिया से जुदा होते हैं
बेताबी दरिया की,
अब क्या बताये 'अदा'
दरिया का अंजाम भी तो
आख़िर क़तरे होते हैं !!
kise bhulun kise yaad rakhun...
ReplyDeletein katron ko bhi sametna chahti hun, bhej dijiye mujh tak
दरिया के कतरों में बसा है हर एक दरिया।
ReplyDeleteसच है कतरे कतरे से ही तो झरना है...
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति...सुन्दर रचना...
कतरे कतरे ही जिन्दगी बन जाती है मुकम्मल
ReplyDeleteऐसा लगा जैसे...आप कह रही हों...लम्हा लम्हा जिंदगी...धडकन धडकन जिंदगी...सांस सांस जिंदगी...अक्षर अक्षर शब्द और शब्द शब्द कविता ! खूब...बहुत खूब !
ReplyDeleteकतरा कतरा ही तो दरिया बनता है
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता
शब्दों से बहुत अच्छे से खेल जाती हैं आप। वाकई अजीब रिश्ता है, दोनों का। दरिया कतरों से है और कतरे का वजूद ही दरिया। बहुत अच्छी रचना लगी आपकी।
ReplyDeleteचित्र संयोजन की तो हम पहले से ही तारीफ़ करते हैं, आज और जीवंत कर दिया है आपने।
आभार।
बहुत ही सुन्दर कविता.. अभिव्यक्तियों को अच्छे शब्द दिए हैं ....
ReplyDeleteमिटने का ग़ुरूर कहें
ReplyDeleteया कहें किस्मत इनकी,
बस ज़ज्ब-दरिया में
फ़ना क़तरे होते है
...bahut sundar bhavpurn rachna
bahot hi sundar...bas kamal...
ReplyDeletenice...
ReplyDeleteकतरा कतरा ही जी रहे हैं जिंदगी सब...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteक्षण और जीवन,रश्मि और प्रकाश बूँद और सागर - कैसा अभिन्न और विचित्र संबंध !
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