चित्रकार 'मयंक शैल'
हो सकता है...
तथाकथित बुद्धिजीवी सोचें,
ये क्यों करती है राजनीतिक बातें
ये क्यों करती है राजनीतिक बातें
सांस्कृतिक व् मानवीय
मूल्यों को लेकर ?
मूल्यों को लेकर ?
क्या राजनीति से इतर इसे कुछ
और दिखाई नहीं देता ?
लेकिन प्रश्न तो यही है...
हर समस्या और बिखराव के
मूल में व्यवस्था ही आड़े हाथ आती है !
और इस व्यवस्था के मूल में
ही तो होता है....राजनेता !
वर्तमान राजनीति
पर शाब्दिक आघात-प्रतिघात
करना ही होगा
लगातार ...
जब तक वो
अनुकूल न हो जाए,
जहाँ व्यवस्था में अव्यवस्था हो
वहाँ साहित्य का क्या औचित्य भला ?
हमें अभी ज़रुरत है
एक और गांधी की ...
एक और गांधी की ...
bilkul sahee
ReplyDeleteaapkee shailee me hee......
AUR NAHEE TO
यही तो हम भी कहते हैं कि वर्तमान युग को गाँधी की जरुरत है ... बस गाँधी की ...जिन्हें अपनी मातृभूमि से प्रेम था ...जो लाख अव्यवस्थाओं के बीच उनके होकर स्वयं आगे खड़े होकर लड़े ..!
ReplyDeleteअच्छी कविता ..!
सुन्दर प्रस्तुति .आभार
ReplyDeleteवाह बेहतरीन लिखा है आपने, एकदम सत्य!
ReplyDeleteगाँधी स्वर्ग प्रसन्न रहें,
ReplyDeleteक्यों आप बुलाती हैं?
छीछालेदर कर डालेगें,
जो उनकी थाती हैं।
साहित्य का अर्थ केवल कला नही है । साहित्य व्यक्ति मे राजनीतिक समझ उत्पन्न करता है । गान्धी जी ने बहुत सारा साहित्य लिखा है । उनका हिन्द स्वराज व सत्य के प्रयोग भी साहित्य ही है ।
ReplyDeletebahut hi sundar... nishchay hi hame ek aur Gaandhi ki awashyaktaa hai. Parntu milte hame Gandhi ji ke bandar hain, jo bura dekh kar munh, aankh aur kaan band kar lete hain.
ReplyDeleteRegards
Fani Raj
जी हाँ अभी कश्मीर मुसलमानों को मिलना बाकि है.
ReplyDeleteदो अक्टूबर को जन्मे,
ReplyDeleteदो भारत भाग्य विधाता।
लालबहादुर-गांधी जी से,
था जन-गण का नाता।।
इनके चरणों में श्रद्धा से,
मेरा मस्तक झुक जाता।।
ले जाओ जी जितने गांधी चाहिए:) यहां तो किसिम किसिम के गांधी बिकते हैं .. ये इतालवी गांधी है ... और ये दलित सिपाही गांधी है .. और ये हिंदूवादी गांधी है :)
ReplyDeleteगाँधी-जयंती पर सुन्दर प्रस्तुति....गाँधी बाबा की जय हो.
ReplyDeleteवे आकर क्या करेंगे जब हम अपने आस पास उनके विचारों की मौजूदगी को भी महसूस नहीं कर पा रहे हैं !
ReplyDeleteसच कहा...सिर्फ उस कोरे साहित्य का क्या...जो समाज की तस्वीर ना बदल सके.फूल,चाँद ,तारों के साथ...रोटी,कपड़ा मकान की बातें भी होनी चाहियें.
ReplyDeleteज़रूरत तो है पर .... आज कौन उन्हे जीने देगा .... बहुत अच्छा लिखा है ...
ReplyDeleteआज हमारा ’नो कमेंट’ माना जाये जी।
ReplyDeleteबहुत.... बहुत अच्छा लिखा है ...
ReplyDeleteगाँधी-जयंती पर सुन्दर प्रस्तुति....
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteतुम मांसहीन, तुम रक्त हीन, हे अस्थिशेष! तुम अस्थिहीऩ,
तुम शुद्ध बुद्ध आत्मा केवल, हे चिर पुरान हे चिर नवीन!
तुम पूर्ण इकाई जीवन की, जिसमें असार भव-शून्य लीन,
आधार अमर, होगी जिस पर, भावी संस्कृति समासीन।
कोटि-कोटि नमन बापू, ‘मनोज’ पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
गांधी कैनवास पर एक पेंटिंग की तरह है...जिसका हर कोई अपने हिसाब से मतलब निकालता है...गांधी को जितना
ReplyDeleteपढ़ोगे, हर बार कुछ नए मायने नज़र आएंगे...
गांधी को बुतों में मत ढूंढो, अपने दिल में जगह दो...
जय हिंद...
सार्थक लेखन के लिए आभार
ब्लॉग4वार्ता पर आपकी पोस्ट की चर्चा है।
गाँधी केवल नाम नहीं है एक व्यक्ति का ...है पूरी एक विचार धारा ...अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteजहाँ व्यवस्था में अव्यवस्था हो
ReplyDeleteवहाँ साहित्य का क्या औचित्य भला ?- मेरे ख़याल से आपका यह सवाल औचित्यहीन है , क्योंकि साहित्य में सबके हित की बात होती है और साहित्य हमेशा अव्यवस्था के खिलाफ आवाज़ उठाता है. लेकिन आपका यह कहना बिल्कुल सच है कि अभी हमें एक और गांधी की ज़रूरत है . मै इसमें यह भी जोड़ना चाहूँगा कि गांधियों की भीड़ में हमें आज सिर्फ एक असली गांधी की ज़रूरत है याने कि सिर्फ और सिर्फ महात्मा गांधी की .
बेहतरीन पोस्ट.
ReplyDeleteहमें अभी ज़रुरत है
ReplyDeleteएक और गांधी की ...
बस...!
पर गांधी जी हमारे सामने आ भी जाएं तो क्या हम पहचान पाएंगे उन्हें !!
हमें अभी ज़रुरत है
ReplyDeleteएक और गांधी की ...
बस...!
पर गांधी जी हमारे सामने हों भी तो क्या हम पहचान पाएंगे उन्हें !!
बहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति
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