Wednesday, October 27, 2010

नारी चरित्र और गाली, सिगरेट, शराब....


'गाली' शब्द से परिचय सबको है.....मन में जब भी गुस्से का धुआं भर जाता है तो वह 'गाली' के रूप में बाहर निकलता है.....कुछ लोग इस frustration को 'बेवकूफ' 'गधा' बोल कर निकाल देते हैं और कुछ लोग अपनी इस कला में शब्द कोष के अनेकोअनेक शब्दों के अलावा, उपमा-उपमेय, छंद, अलंकार, अन्योक्ति, यहाँ तक कि भौतिकी और जीव-विज्ञानं का भी भरपूर उपयोग करते हैं..... किसी भी तरह की गाली देना...बिलकुल व्यक्तिगत बात है.....व्यक्ति के व्यक्तित्व की बात है....वह इस बात पर पूर्णतः निर्भर करता है कि उसका पालन पोषण कैसा हुआ है...या फिर वो कैसे लोगों के साथ रहता है..अगर परिवार में गाली देना आम बात है ...बच्चे ने माता-पिता को गाली देते हुआ सुना है तो वह भी कभी न कभी दे ही देगा....बच्चों को नक़ल करने की आदत जो है....(मेरे भाई मुझे दीदी कहते थे...तो मेरे बच्चे भी मुझे दीदी ही कहने लगे.....बड़ी मुश्किल से 'मम्मी' कह पाए थे).....हमारे घर में मैंने आज तक अपने पिता को एक भी अपशब्द कहते नहीं सुना....इसलिए हमने कभी भी गाली नहीं दी...न ही मेरे भाइयों ने...ठीक वैसे ही मेरे बच्चों ने कभी हमें नहीं सुना तो वो भी इससे दूर हैं.....

महिलाएं भी गालियाँ देतीं हैं...लेकिन ज्यादातर....या तो वो बहुत हाई क्लास औरतें होतीं हैं जो हाई क्लास गलियाँ देतीं हैं....अंग्रेजी में......या फिर निम्नवर्गीय परिवारों की महिलाओं को सुना है चीख-पुकार मचाते....मध्यमवर्ग की महिलाएं यहाँ भी मार खा जातीं हैं....न तो वो उगल पातीं हैं न हीं निगल पातीं हैं फलस्वरुप...idiot , गधे से काम चला लेतीं हैं....हाँ idiot , गधे का प्रयोग ही हम भी करते हैं....और बाकि जो भी 'अभीष्ट' गालियाँ हैं....उनमें कोई रूचि नहीं है...

महिलाओं का शराब पीना, सिगरेट पीना ...चरित्रहीनता के लक्षण बताये गए हैं .....
यहाँ इसपर कुछ कहना चाहूंगी...

महिलाओं का मदिरापान और धुम्रपान...समय, परिस्थिति और परिवेश कर निर्भर करता है.....
यहाँ कनाडा में वाइन (मैं हार्ड ड्रिंक्स की बात नहीं कर रही हूँ ) बच्चे तक पीते है और बुरा नहीं माना जाता है...आप चर्च में जाएँ तो वहां वाइन प्रसाद के रूप में दिया जाता है....कोई आपके घर आये तो वो उपहार में वाइन ही लेकर आता है...फलस्वरूप हिन्दुस्तानी घरों में भी इसका उपयोग होने लगा है....औरतें भी अब इसका स्वाद लेती हैं...इसका अर्थ यह नहीं की वो चरित्रहीन हैं...in rome do as the romans do

मैं रांची की रहने वाली हूँ...यहाँ का आदिवासी समुदाय हर ख़ुशी या गम में, अर्थात हर मौके पर 'हंडिया' (चावल से बना पेय) बनाता है और छक कर इसे आदमी, औरतें बच्चे सभी पीते हैं....तो आप उन औरतों को क्या कहेंगे ?? चरित्रहीन ..?? यह तो इनकी संस्कृति का हिस्सा है....एक रिवाज़ है ..
यहाँ मैं स्पष्ट कर देना चाहती हूँ कि मैं इस आदत का समर्थन नहीं कर रही हूँ ...यह बहुत बुरी आदत है.....परन्तु चरित्रहीनता नहीं....
जब मैं मरिशिअस में थी तो वहां भारतीय मूल के हिन्दू हर महीने की पहली तारिख को अपने पूर्वजो को कुछ अर्पित रहते हैं... इस अर्पण में ..सार्डीन मछली सिगरेट और वाइन होती है ..यह अर्पण पूर्वजों के लिए होता है और पूर्वजों में तो दादी, माँ, या चाची की आत्मा भी शामिल होती है ....अब आप बताइए उनके पुरखों ने कब वाइन पी थी या सार्डीन खाया था......लेकिन यहाँ यही उबलब्ध है ...और इसे ही वो अपना अर्पण मानते हैं.....और श्रद्धा से समर्पित करते हैं....और मुझे इसमें कोई बुराई नज़र नहीं आती है...

आज समय बदल रहा है....महिलाएं multinational companies में काम करती हैं...और नौकरी का परिवेश भी बदल रहा है...कभी अगर हाथ में ग्लास ले भी लिया तो उससे उसके चरित्र को आंकना गलत बात होगी....

अब बात कीजिये सिगरेट-बीडी की ...
कुछ समय पहले मैं एक फिल्म बना रही थी.....'नूर-ए-जहां', यह फिल्म हिन्दुस्तानी मुस्लिम महिलाओं की उपलब्धियों पर थी...इसी फिल्म के research के सिलसिले में ..कई म्यूजियम्स में जाना हुआ...वहाँ कुछ miniature तस्वीरों को भी देखने का मौका मिला.....मुझे याद है कुछ मुग़ल कालीन पेंटिंग में महिलाओं को हुक्का पीते हुए दिखाया गया है....इसका अर्थ यह हुआ की धुम्रपान महिलायें बहुत पहले से कर रहीं है....यह एक आदत हो सकती है...जिसे आप बुरी आदत कह सकते हैं लेकिन चरित्र का certificate नहीं....

मैंने अपनी नानी सास को बीडी पीते देखा है...वो सिगरेट भी पीती थी और हमलोग बहुत मज़े लेते थे....मैं खुद खरीद कर लाती थी, उनके लिए...क्यूंकि बीडी सिगरेट हमारे घर में कोई नहीं पीता था.....अब नानी सास को ये आदत कहाँ से लगी ये मत पूछियेगा...क्यूंकि मुझे नहीं मालूम...
मैंने अपनी नानी को हुक्का पीते देखा है...मेरी नानी के घर कई बार दूसरी नानियाँ आतीं (नानी की सहेलियां ) मिलने....तो हुक्का जलाया जाता था....नानी और उनकी सहेलियां...बारी बारी से हुक्का पीती थी....तो क्या मेरी नानी चरित्रहीन थी...???
हाँ... मेरी माँ ने कभी भी हुक्का, बीडी, सिगरेट, को हाथ नहीं लगाया .....
मेरी दादी को मैंने पान खाते हुए भी देखा है....उनके पास तो पान-दान ही हुआ करता था...हर वक्त कचर-कचर पान ही खाती थी......और विश्वास कीजिये ..इन सभी महिलाओं के चरित्र की ऊँचाइयों तक पहुँच पाने के बारे में आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं....
आज जब अपने आस पास देखती हूँ तो पाती हूँ...पहले की अपेक्षा बहुत कम महिलाएं पान, बीडी, सिगरेट का उपयोग करती हैं....महिलाएं अब अपने स्वास्थ्य के प्रति ज्यादा जागरूक हैं....

फिर भी, किसी महिला का सिगरेट पीना, शराब पीना या गाली देना बहुत बुरी आदत मानी जायेगी लेकिन इस कारण से उसे चरित्रहीन नहीं कहा सकता .....इन आदतों और चरित्र में कोई सम्बन्ध नहीं है....हाँ, इन आदतों से उसके मनोबल/आत्मबल को आँका जा सकता है....लेकिन सम्मान को नहीं.....


9 comments:

  1. आज के समाज में बदलती हुई परिस्थितियों में चरित्र के नवीन मानदंडों का बहुत विषद और निष्पक्ष विश्लेषण..बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

    ReplyDelete
  2. "कुछ लोग इस frustration को 'बेवकूफ' 'गधा' बोल कर निकाल देते हैं और कुछ लोग अपनी इस कला में शब्द कोष के अनेकोअनेक शब्दों के अलावा, उपमा-उपमेय, छंद, अलंकार, अन्योक्ति, यहाँ तक कि भौतिकी और जीव-विज्ञानं का भी भरपूर उपयोग करते हैं....."
    गज़ब का हास्यबोध है आपका। गालियों का भी अपना ही विज्ञान है, वैसे गाली देना एक कला है। यह सही है कि गाली देने वाले के पीछे उसके परिवार, परिवेश, संस्कार वगैरह का बहुत योगदान रहता है।

    रही बात मध्यमवर्गीय महिलाओं के ईडियट, गधे कहने की तो आजकल एक sms चल रहा है कि बात बात में ऐ जी कहने के पीछे
    का असली लोजिक ये है कि सीधे से ’Abe Gadhe' कहें तो अच्छा नहीं लगेगा, इसलिये A G कहकर काम चलाती हैं बेचारी नारियाँ:))

    अंतिम पैरा में आपका निष्कर्ष एकदम सही लगता है। क्रांतिकारी प्रस्तुति। बधाई।

    ReplyDelete
  3. बाकि सब बातें सही हैं अदा जी ।
    लेकिन एक बात में शंका है ।
    हाई सोसायटी में चरित्र होता है ?

    ReplyDelete
  4. 2/10

    यह बात सभी जानते हैं ... ख़ास क्या है इसमें ?
    पोस्ट का मंतव्य व सार स्पष्ट नहीं है
    खान-पान अथवा बोल-चाल से चरित्र का क्या लेना देना ?

    ReplyDelete
  5. हंडिया का सेवन बहुत पास से देखा है, वहाँ की परम्परा का हिस्सा है वह। चरित्रहीनता से नहीं जोड़ा जा सकता है उसे। पर उस हल्की स्थिति में कुछ ऐसा न हो जाये जिससे शर्मिन्दा होना पड़े।

    ReplyDelete
  6. आज जब अपने आस पास देखती हूँ तो पाती हूँ...पहले की अपेक्षा बहुत कम महिलाएं पान, बीडी, सिगरेट का उपयोग करती हैं....महिलाएं अब अपने स्वास्थ्य के प्रति ज्यादा जागरूक हैं....
    ...jab jaago tabhi savera... yah to bahut achhi baat hai...
    Bahut hi saargarbhit aalekh... aabhar

    ReplyDelete
  7. दलदल में पहला कदम ही हिचकिचाहट से रखा जाता है और फिर पैर गंदे हो गए तो पीछे मुड़ कर देखना क्या?:(

    ReplyDelete
  8. परम्परा /माहौल में गालियां अपशब्द नही रह जातीं सो धूम्रपान वगैरह भी हम आपकी विवेचना से सहमत हैं !

    अच्छी पोस्ट / कुछ भ्रम तोडती हुई !

    ReplyDelete