कल एक समाचार पर नज़र पड़ी..जहाँ 'शाही इमाम' अपना कुछ मंतव्य रख रहे थे...समाचार जो भी था वो तो जाने दीजिये, लेकिन इस नाम पर ही मेरी आँखें ठहर गई और मेरी सोच की चक्की चल पड़ी... हमारी समझ में ये बात नहीं आ रही थी कि ये 'शाही इमाम' कौन हैं भला...भारत एक लोकतंत्र देश है...अब न तो यहाँ बादशाह हैं, न शाह, न शाहज़ादे और न ही राजा-रजवाड़े ...फिर ये 'शाही' शब्द का तात्पर्य क्या हुआ ? आदरणीय 'शाही' इमाम अहमद शाह बुखारी, सिर्फ़ जनता के इमाम हैं और लोकतंत्र में रहते हैं ...'शाही' शब्द ही अटपटा लगा था मुझे ...जब बादशाह नहीं रहे, फिर 'शाही' जैसी उपाधि का क्या अवचित्य है भला... और इससे भी बड़ी बात यह उपाधि उन्हें मिली कहाँ से ? किस शाह ने दी है ?
इस नाम में तबदीली होनी ही चाहिए...वो जनता के द्वारा और जनता के लिए हैं ...जनता के साथ जुड़े रहने के लिए 'शाही' नाम छोड़ना चाहिए उन्हें....'शाही' नाम ही राजतन्त्र का बोध कराता है और प्रजातंत्र में इसकी कोई आवश्यकता नहीं है....भारत जैसे लोकतंत्र में 'शाही इमाम' 'राज पुरोहित' जैसे नामों की क़तई भी ज़रुरत नहीं है...
हाँ नहीं तो..!
राजस्थान की सरकार ने पूर्व राजा महाराजाओं के वर्तमान वंशजों पर अपने नाम के साथ राजा ,महाराजा ,राजकुमार आदि शाही नाम को इंगित करने वाले शब्दों के उपयोग पर रोक लगादी है |
ReplyDeleteपर इमाम के बारे में एसा फैसला शायद ही हो आखिर शाही इमाम को शाही शब्द इस्तेमाल करने से रोकने की मांग करना मतलब अपने आप को साम्रदायिक घोषित करवाना !!!
very nice post
ReplyDeleteसही लिखा है आपने ...
ReplyDeleteइसलिए मैं आपसे सहमत हूँ .
इस सार्थक लेख के लिए .
आपको बधाई ......
इस ब्लॉग जगत में Ifs और Buts वाले हमारे कुछ मुस्लिम बुद्धिजीवी इस पर कुछ नहीं कहेंगे !
ReplyDeleteविचारणीय...
ReplyDeleteसांच को आंच नहीं.. आपने कहा तो सच है दी.. देखते हैं आपकी इस सच्ची मांग को बाकी लोग कैसे लेते हैं.
ReplyDelete5.5/10
ReplyDeleteयह सवाल जवाब तो चाहता है.
आश्चर्य ये भी है कि अब तक ये मुद्दा क्यों न उठा ?
आपकी बात सही है,और वैसे भी नाम में रखा क्या है? काम होना चाहिये शाही....
ReplyDeleteसवाल ज्वलंत है
ReplyDeleteसही प्रश्न और समाधान।
ReplyDeleteबात तो उचित कही.
ReplyDeleteUCHIT SAWAL...
ReplyDeleteआप भी किस चक्कर में पड गईं :)
ReplyDeleteअरे भाई लोकशाही उर्फ लोकराज में इतना भी ना चलने दीजियेगा :)
शाही पनीर / राज मा ...कुछ और व्यंजन बताऊं :)
शाही तो ऐसे नहीं होते ना :)
ReplyDeleteईश्वर इस सारे ब्रह्माण्ड का राजा है। इन्सानों को उसी ने पैदा किया और उन्हें राज्य भी दिया और शक्ति भी दी। सत्य और न्याय की चेतना उनके अंतःकरण में पैवस्त कर दी। किसी को उसने थोड़ी ज़मीन पर अधिकार दिया और किसी को ज़्यादा ज़मीन पर। एक परिवार भी एक पूरा राज्य होता है और सारा राज्य भी एक ही परिवार होता है। ‘रामनीति‘ यही है। जब तक राजनीति रामनीति के अधीन रहती है, राज्य रामराज्य बना रहता है और जब वह रामनीति से अपना दामन छुड़ा लेती है तो वह रावणनीति बन जाती है।
ReplyDeleteशाही इमाम इसलिए क्यों की के बादशाहों (नेताओं) के इमाम (नेता) हैं. धर्म के नेता नहीं.
ReplyDeleteab kya karein....
ReplyDeleteiska wirodh kaun kare bhala...
danga hi ho jayega..
आपकी बात में दम है.....ये सवाल मेरे मन में भी था..। आपने पुछ लिया..
ReplyDelete================
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रतन सिंह जी..
ReplyDeleteइसमें कोई शक नहीं इस तरह के संबोधनों पर अंकुश होना ही चाहिए....और इस दिशा में यह एक बहुत अच्छा प्रयास है..
आपका आभार..
गोदियाल जी,
ReplyDeleteकमेन्ट करना नहीं करना उनकी मर्ज़ी है..लेकिन यह एक विचार करनेवाली बात तो है ही..
शुक्रिया..
वीरेंद्र सिंह जी..
ReplyDeleteधन्यवाद...
फिरदौस जी..
ReplyDeleteधन्यवाद...
उस्ताद जी..
ReplyDeleteआप तो नंबर काटने में भी उस्ताद हैं...
शुक्रिया आपका...
दीपक,
ReplyDeleteयह छोटा सा ही सही लेकिन एक सवाल है...अभी तक मुझे सही जवाब नहीं मिला है...फिर भी उम्मीद बाक़ी है..
प्रजातंत्र में इसकी कोई आवश्यकता नहीं है.
ReplyDeleteप्रजातंत्र? प्रजा भी राजा/बादशाह की ही होती है। जब तक प्रजातंत्र रहेगा शाही/राजशाही अपने आप ही रहेगी। कितने शब्द बदलेंगी आप? कुछ लोग सिख धर्म के "राज करेगा खालसा..." पर भी आपत्ति करेंगे शायद। वैसे सच्चाई यह है कि इस प्रकार के शब्दों से लोकतंत्र की गरिमा को उतना खतरा नहीं है जितना सही शब्दों का उपयोग करते हुए भी लोकतंत्र की गरिमा के विरुद्ध आचरण, चाहे राष्ट्रीय/अंतर्रष्ट्रीय/पार्टी स्तर पर हो चाहे घर/ब्लॉग/चौपाल आदि में हो।
शाही.......विचारणीय बात कही.
ReplyDeleteअरे नाम में क्या रखा है? कोई शाही छोडो बादशाही भी रखले तो क्या बादशाह हो जाएगा? वैसे भी इन साहब की मुस्लिम समाज में ना तो धार्मिक नेता के रूप में और ना ही राजनैतिक नेता के रूप में कोई हैसियत है...
ReplyDeleteवैसे अधिकतर जमा मस्जिद के इमामों को शाही इमाम कहा जाता है, इसमें बादशाह वाले शाही से कोई ताल्लुक मुझे नज़र नहीं आता है. लेकिन यह मेरा ख्याल भर है, हो सकता है हकीक़त कुछ और हो...
आपसे बस एक ही अनुरोध है, मेरे नाम के "शाह" शब्द का विरोध मत करिएगा प्लीज़ :-)
शेखावत जी, मासूम भाई, अली साहब और अनुराग शर्मा जी के कमेंट बहुत कुछ कहते हैं। और भी बहुत सी पदवियाँ, संबोधन हैं जो लोगों ने खुद को या चाहने वालों ने अता कर रखी हैं। वैसे हमारे यहाँ एक दुकान है, साड़ी वाले ’गरीब’ की दुकान - दुकान की शानौशौकत देखकर लगता है कि सभी अगर ऐसे गरीब हो जायें तो बस मजा ही आ जाये।
ReplyDeleteजिन नामों या पदवियों को किसी मकसद विशेष के लिये अपनाया जाता है, उनका औचित्य उस परिक्षेत्र से बाहर क्या मायने रखता है?
विचारणीय बात कही
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