Thursday, October 7, 2010

रोजनामचे में मेरा दिल, हलाल हुआ है ....


जीतने का हुनर हम,  भूलने लगे
हारने का न कोई, मलाल हुआ है

अफ़वाह सुनी थी कहीं, के क़त्ल हुआ था
रोजनामचे में मेरा दिल, हलाल हुआ है

बस लग गए थे ढेर, पत्थरों के, भीड़ में
काँच के दिलों से, कुछ ज़लाल हुआ है

जाँ निकल गयी वो, आँखों के रास्ते
तेरे इंतज़ार में ये, क़माल हुआ है

ज़लाल=गुस्ताखी,ग़लती,भूल
रोजनामचे=रिपोर्ट 

17 comments:

  1. वाह वाह ... क्या बात है..यूँ ही लिखते रहे...
    मेरे ब्लॉग इस बार मेरी रचना ...
    स्त्री

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  2. बढ़िया ग़ज़ल !

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  3. बुरा मत मानियेगा पिछली कविता के बाद इसे पढकर ऐसा लगा जैसे तेंदुलकर शानदार सेंचुरी मार पारी खेलनें के बाद अगली ही पारी में जीवनदान पा पाकर खेल रहा हो !

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  4. गरचे पी तो उसने रखी थी
    बदनाम नामे-कलाल हुआ:)

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  5. लगता है कि ग़ज़ल की पहली दो लाइनें missing हैं...

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  6. जीतने का हुनर हम, भूलने लगे
    हारने का न कोई, मलाल हुआ है

    ऐसी ही पंक्तियाँ शायद जांनिसार अख्तर साहब की या कैफ़ी आज़मी(not sure) जी की पढ़ी थीं -
    ये बाजी इश्क की बाजी है,
    गर हार गये तो गम कैसा...

    ज़लाल का ये अर्थ पहले नहीं मालूम था।

    चित्र भी हमेशा की तरह लाजवाब।

    आभार स्वीकार करें।

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  7. जाँ निकल गयी वो, आँखों के रास्ते
    तेरे इंतज़ार में ये, क़माल हुआ है

    बड़े गहरे भाव हैं

    बाद में देखा तो पता चला
    सिर्फ आठ लाइने थी ??
    लेकिन काफी अन्दर तक डूब गया था मैं तो ??:)

    फोटो भी अच्छा लगा :)

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  8. आप की रचना 08 अक्टूबर, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपनी टिप्पणियाँ और सुझाव देकर हमें अनुगृहीत करें.
    http://charchamanch.blogspot.com/2010/10/300.html



    आभार

    अनामिका

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  9. " badhiya gazal "


    --- eksacchai { AAWAZ }

    http://eksacchai.blogspot.com/2010/10/blog-post_07.html#links

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  10. वाह सुंदर गज़ल । पर जीतने का हौसला भी रखते हैं हम में से कुछ लोग । शूटर्स, रेसलर्स और तैराक और भी होंगे । उनके लिये जय हो ।

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