ब्लाग दुआरे सकारे गई उहाँ पोस्टन देखि के मन हुलसे
अवलोकत हूँ कभी सोंचत हूँ अब कौन सा पोस्ट पढूँ झट से
घूंघरारी लटें समरूप दिखें कविता ग़ज़लें लगि झूलन सी
कहीं नज़्म दिखे कुछ मुक्तक हैं कई पोस्ट पे स्निग्ध कपोलन सी
परदन्त की पंगति कथ्य दिखे व धड़ाधड़ पल्लव खोलन सी
चपला सम कछु संस्मरण लगे जैसे मोतिन माल अमोलन सी
कभी गीत दिखे संगीत दिखे कभी हास्य कभी खटरागन भी
कभी राग दिखे, अनुराग दिखे, कभी आग लगाव बुझावन भी
कभी व्याध लगे, कभी स्वाद लगे, ई अगाध सुधारस पावन भी
कभी मीत मिला, कभी जीत मिली, कभी खोवन है कभी पावन भी
धाई आओ सखी अब छको जरा कुछ ईद पे कुछ फगुनावन पर
न्योछावरी प्राण करे है 'अदा' बलि जाऊं लला इन ब्लागन परएक और गीत....
इन ब्लॉग-प्यारों की कहानी ही निराली है।
ReplyDeleteहाथ में दस्ताना पहनाइए। ठुड्डी भी दिख रही है। उसे ढक दीजिए।
ReplyDeleteबहुते कमाल लिखा है
ReplyDeleteअबके तो....
ये भी खूब कही !
ReplyDeleteoori baba anek bhalo......
ReplyDeletepranam.
wah wah wah...
ReplyDelete7/10
ReplyDeleteब्लॉग दुनिया जैसे अनोखे विषय पर सुन्दर रचना.
मुझे तो यह दोषरहित छंद लग रहा है.
बहुत ज्यादा इस बारे में ज्ञान नहीं है)
5/10
गाना सुना जा सकता है. गाने में सही तरह दर्द का मूड नहीं आ पाया. स्टार्ट से ही लोरी का टच प्रतीत हुआ.
kya lajvab chhand hai badhai
ReplyDeleteadaji aapki yah ada bahut achchhi lagi
ReplyDeleteछंद का रंग उम्दा...और वो भी ब्लॉगरर्स पर होने के बावजूद. :)
ReplyDeleteगाने तो सुन ही रहे हैं.
--विषय चयन व -भावोअदा तो अच्छे हैं, बधाई , पर उस्ताद जी-- छंद तो दोषपूर्ण ही है, भाषा भी ब्रजभाषा, खडी बोली,का मिश्रण है, गण-मात्रा दोष व लयात्मक दो्ष तो है ही।
ReplyDelete@Dr.shyam gupta जी जैसे मैंने पहले ही स्पष्ट किया की छंद का बहुत ज्यादा ज्ञान नहीं है. हो सकता है आप सही हों. लेकिन जब मैंने इस रचना को छंद की तरह पढ़ा बहुत अच्छा लगा. ब्लॉग-दुनिया में कहाँ छंद पढने को मिलते हैं. ऊपर से इस अनूठे विषय पर छंद पढ़कर मैं तो मुग्ध था.
ReplyDeleteबेहतर होता अगर आपने उदाहरण देकर छंद के दोष भी बताये होते.
WAH..!! ADA JI BAHUT KHOOB....BADHAYEE
ReplyDeleteustaad ji se sahamat hain...
ReplyDeletelikhaa kaafi sahi hai..
par utnaa sahi gaa nahin rakhaa hai...
chhand ki baat karein to kayi bhaashaaon ke mishran ki samasyaa hai ye...
sab ke apne kaayde kaanoon hote hain chhand mein...
बहुत आनंददायक रचना। फ़िर फ़िर पढ़नी पड़ रही है।
ReplyDeleteगाना तो शानदार है ही, शायद संयोग ही है कि दो दिन पहले ही पूर्णिमा की रात थी। तो, चांदनी रातों का असर इस गीत के माधुर्य को और बढ़ा रहा है।
वैसे उस्ताद जी हैं स्पष्टवादी, शुरू में भी स्पष्ट कर दिया अपना पक्ष और फ़िर डा. श्याम गुप्त को जवाब देने में भी।
उस्ताद जी तक हमारा आभार पहुंचे। और भी बेहतर होता अगर गाकर गाने के दोष बताते। उस्तादजी माहिर आदमी हैं, जानता हूँ अन्यथा नहीं लेंगे।
एक और अच्छी बात हुई कि गिरिजेश जी पहले अपना कमेंट देकर निकल लिये, नहीं तो आज वर्तनी के चक्कर में वो भी उस्ताद जी के नंबर काट सकते थे - , । की जैसी गलती के लिये।
अदा जी, छंद और गीत बहुत अच्छा लगा, लेकिन आज आभार नहीं दे पायेंगे आपको। आज उस्ताद जी को आभार दे दिया है।
mazaa aa gaya padhkar ..........chhand aur shabdo ka adbhut mishran dekhne ko mila
ReplyDeleteधन्यवाद उस्ताद जी, वास्तव में तो यह एक गीत है। जैसा मनु ने कहा-छंद बहुत प्रकार के होते हैं, हर काव्य खंड एक छंद होता है और सबके भिन्न भिन्न मात्रा, गण, यति आदि होते हैं,सामान्यतःजिसे काव्य में छंद कहा जाता है वह सवैया या घनाक्षरी छंद होता है --सवैया चार पन्क्तियों का वार्णिक या मात्रिक छंद है व घनाक्षरी-आठ पदों का वार्णिक छंद। उदाहरनार्थ--
ReplyDelete---सवैया--
कविता तो वही कविता है जो सत्यं हो शिवं हो सुन्दर हो ।
मन भाव भरें तन हर्षित हो,सुर लय का पावन मन्दिर हो ।
दर्पण समाज हो लेकिन शिव भाव का निर्मल निर्झर हो ।
सुन्दर हो और शिवं भी हो,पग पग सत्यं पर निर्भर हो ॥
घनाक्षरी--
भूरे भूरे मतवारे गरज़ि गरजि घन,
जिया तौ डरावैं पर तन ्सरसावैं ना।
गरजि तरजि डोलैं इत उत सारे नभ,
आस तौ बधावैं पर जल बरसावैं ना ।
शरद में तेज धूप तन झुलसाये सखि!,
बरसा बुढानी अब मन हरसावै ना ।
कहुं कहुं कबहुं जलद बरसावैं नीर,
हरि की भगति हर कोई नर पाबै ना ॥
घनाक्षरी--
अदा आंटी जी,
ReplyDeleteचरण स्पर्श...
बहुत ही मजेदार पोस्ट है| हमेशा की तरह फिर इस बार भी...गीत और चित्र दोनों ही लाजवाब है|
धन्यवाद|
ब्लॉग और ब्लॉगर्स पर सुन्दर गीत ...
ReplyDeleteअब आजकल सकारे ब्लॉग दर्शन छूट गया है , इसलिए कई पोस्ट भी छूट जाती है ...!
आपकी पोस्ट पढ़ के बहुत कुछ याद आ जाता है , इस बार तुलसी दास याद आये . उनकी कवितावली की निम्न पंक्तिया .
ReplyDeleteवर दन्त की पंगति कुंद काली , अधराधर पल्लव खोलन की
चपला चमके घन बीच जागें छवि मोती ना मॉल अमोलन की
घुघुरारी लटे लटके मुख ऊपर , कुंडल लाल कपोलन की
न्योछवर प्राण करे तुलसी बलि जावो लाला इन बोलन की
अच्छी परोडी