पुराना है...
इक दिन में हम कई बार, देखो ना ! मर जाते हैं
क़ब्र के अन्दर, कफ़न ओढ़ कर, काहे को डर जाते हैं
राह में तेरे संग चलते हैं, पर दामन भी बचाते हैं
फ़िर आँखों में धूल झोंक कर, आ अपने घर जाते हैं
साजों की हिम्मत तो देखो, बिन पूछे बज जाते हैं
जब उनपर कोई थाप पड़े तो, गुम-सुम से हो जाते हैं
चुल्लू चुल्लू पानी लेकर, कश्ती से हम हटाते हैं
वो पलक झपकते सागर बन, और इसे भर जाते हैं
देखें तुझको या ना देखें, फर्क हमें क्या पड़ता है
साया भी ग़र छू कर गुज़रे, हम वहीं तर जाते हैं
अब गीत... पुराना है...का कहें अब....गाये तो हमहीं हैं न...!
वाह!! वो पलक झपकते सागर बन फिर इसमें भर जाते है...
ReplyDeleteक्या बात है..बहुत खूब!
चुल्लू चुल्लू पानी लेकर, कश्ती से हम हटाते हैं
ReplyDeleteवो पलक झपकते सागर बन, और इसे भर जाते हैं
सुन्दर रचना
और गीत के क्या कहने
बहुत सुंदर !
ReplyDeleteकविता को एक नए अंदाज़ में परिभाषित किया है आप ने !
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ, क्षमा चाहूँगा,
रचना और चित्र दोनों लाजवाब। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
ReplyDeleteबेटी .......प्यारी सी धुन
मृत्यु का नवअर्थी प्रयोग भा रहा है ! दामन बचाकर, आँखों में धूल झोंकने की हिमाकत करने वाले के साये से भी तर जाने का ख्याल मुहब्बत में समर्पण की पराकाष्ठा सी लगती है !
ReplyDeleteपता नहीं कैसे मुझे तो बस यही ख्याल आये ! पर लिखते वक़्त आपनें क्या तसव्वुर किया अब आप जानिये ! हां नहीं तो :)
पता नहीं किस बात से डर जाते हैं।
ReplyDeletebahut hi pyaari si kavita, aur is geet ka to main sada se fan raha hoon....dubara sunane ke liye dhanyawaad.....
ReplyDeleteidhar ka bhi rukh karein...
http://i555.blogspot.com/2010/10/blog-post_17.html
जीवन्त अनुभव ।
ReplyDeleteऔर गीत की जितनी तारीफ हो, कम है ..!
आवाज का कायल होना कौन न चाहेगा !
आभार !
2.5/10 कविता के लिए
ReplyDelete6.5/10 गाने के लिए
मर मर कर जीना....... अमर बन जाते हैं :)
ReplyDeleteहम वहीं तर जाते हैं.....
ReplyDelete--
भय के कारण पन्नों पर कुछ शब्द उभर आते हैं!
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इस सुन्दर गीत के साथ तुक तो मिला ही दी!
adaji very nice post badhai
ReplyDeleteयाद आ गई पुरानी कविता की दो लाइनें --
ReplyDelete`ऐ मौत मेरी आजा मुझ को गले लगा ले
सौ बार मर चुका हूँ इस बार तो उठा ले'
--बहुत अच्छी अभिव्यक्ति !!
khubsurat rachna
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण रचना...
ReplyDelete"साजों की हिम्मत तो देखो, बिन पूछे बज जाते हैं
ReplyDeleteजब उनपर कोई थाप पड़े तो, गुम-सुम से हो जाते हैं"
उलटबांसी शायद इसी को कहा जायेगा, बिन पूछे बज जाना और थाप पड़ने पर गुमसुम हो जाना।
और गीत? ... पुराना है...का कहें अब....गाये तो आपहीं हैं न...!वही दिव्य आवाज है, अच्छा तो लगना ही था।
और ये उस्ताद जी के दरबार में रिवैल्यूऐशन की गुंजाईश नहीं है क्या? बहुत टाईट मार्किंग करते हैं उस्ताद जी।