पुरानी प्रविष्टी..
क्या तुमने देखा है ?
एक श्वेतवसना तरुणी को,
जो असंख्य वर्षों की है,
पर लगती है षोडशी
इस रूपबाला को देखे हुए
बहुत दिन हो गए,
मेरे नयन पथराने को आये
परन्तु दर्शन नहीं हो पाए
मैंने सुना है,
उस बाला को कुछ भौतिकवादियों ने
सरेआम ज़लील किया था
अनैतिकता ने भी,
अभद्रता की थी उसके साथ
बाद में भ्रष्टाचार ने उसका चीरहरण
कर लिया था
और ये भी सुना है,
कि कोई बौद्धिकवादी,
कोई विदूषक नहीं आया था
उसे बचाने
सभी सभ्यता की सड़क पर
भ्रष्टाचार का यह अत्याचार
देख रहे थे
कुछ तो इस जघन्य कृत्य पर खुश थे,
और कुछ मूक दर्शक बने खड़े रहे
बहुतों ने तो आँखें ही फेर ले उधर से
और कुछ ने तो इन्कार ही कर दिया
कि ऐसा भी कुछ हुआ था
तब से,
ना मालूम वो युवती कहाँ चली गयी
शायद उसने अपना मुँह
कहीं छुपा लिया है,
या कर ली है आत्महत्या,
कौन जाने ?
अगर तुम्हें कहीं वो मिले,
तो उसे उसके घर छोड़ आना
उसका पता है :
सभ्यता वाली गली,
वो नैतिकता नाम के मकान में रहती है
और उस युवती को हम
"मानवता" कहते हैं
आज फिर एक गीत आपकी नज़र...
सभ्यता वाली गली,
ReplyDeleteवो नैतिकता नाम के मकान में रहती है
और उस युवती को हम
"मानवता" कहते हैं.
बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर रही है आपकी पेशकश!
http://draashu.blogspot.com/2010/10/blog-post_25.html
सुन्दर रचना!
ReplyDelete--
पोस्ट कभी पुरानी नहीं होती!
अभिव्यक्ति का यह अंदाज निराला है. आनंद आया पढ़कर.
ReplyDeleteबहुत अच्छा रचना, हम नये पाठकों के लिये तो नयी ही है।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना ....तब भी पसंद आई थी और अब भी :)
ReplyDeleteबहुत ही ख़ूबसूरत कविता और गीत तो क्या कहूं...
ReplyDeleteकुल मिलाकर बेहतरीन पोस्ट....
मानवता कहीं नहीं गई है, हमारी ही आंखों पर पर्दे हैं भौतिकतावाद के और अनैतिकता के।
ReplyDeleteखूबसूरत पोस्ट। और खूबसूरत चीज वही है जो पुरानी होने पर भी खूबसूरत रहे, बल्कि और बढ़ जाये जिसकी खूबसूरती। जैसे, आप की ये पोस्ट।
गाना हमेशा की तरह शानदार, लेकिन प्लेयर रूक रुक कर चल रहा है, इस पोस्ट पर।
ढूंढते हैं हम भी मानवता को , नैतिकता को ...
ReplyDeleteकही कही मिल भी जाती है ...!
manavtaa jagaane ki bahut achchhi koshish .......achchhi post
ReplyDeleteइस तरुणा को कब तक श्वेत श्याम रंगों की क़ैद मे रखा जायेगा ? और भी कितने रंग है जिनसे मिलकर उसका सौन्दर्य दोगुना हो जायेगा फिर जिसकी आब सारे ज़लील बन्दों के होश उडा देगी !
ReplyDeleteबहरहाल बहुत सुन्दर कविता !
jee...use dhundh to mai bhi rahi hu. par mulakaat nahi ho pai aaj tak...kabhi mile aapko to mera pata bhi de dijiyega...ajeeb baat hai, aaj manaw ke andar manawta ke alawa sab kuch hai.
ReplyDeleteabhi 6 maheene pahle mere iklaute bhai ko kuch paiso ke liye railway stasion par kisi ne poison khila diya.wo 4 ghanto tak lakho ki bheed me tadapta raha par koi use bachane nahi aaya. aur wo...wo chala gaya. sochti hu kaash waha kisi ke andar bhi manavta hoti to shayad aaj humne use khoya nahi hota.
सभी सभ्यता की सड़क पर
ReplyDeleteभ्रष्टाचार का यह अत्याचार
देख रहे थे ..
वाकई मे आज की ताजा परिस्थिति का सच्चा विवरण। मार्मिक लेख ।
sundar rachna !
ReplyDeletehum sab ke andar hi to vidyamaan hai yah...
maanavta!!!
@ अनुप्रिया जी,
ReplyDeleteआपकी आपबीती ने हृदय को आंदोलित कर दिया....बहुत ही दुःख हुआ जान कर...मेरी प्रार्थना आपके परिवार के साथ है...सच इस दुनिए से मनुष्यता दूर हो चुकी है...
आपका बहुत आभार..
adaji bahut hi sundar
ReplyDeletebahut kuchh kahti hai aapki kavita........
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है अदा जी .....
ReplyDeleteएक लड़की लापता है ...
चिंताग्रस्त ...
हड्डियों के ढाँचे सी दुबली ...
सुना है घर से अकेली निकली है ...
कहती है ज़माना बदलेगी ...
दीवारों पर गुमशुदा का ...
"प्रति" जी का इश्तिहार लगा है ...
नाम छपा मानवता ...
कोई कहे यथार्थवादी डाकू ...
कोई कहे भौतिकता का डाकू ...
उठा ले गया उसे ...
लिखा है गुमशुदा के पोस्टर में ...
(पूरी कविता पढ़ने के लिए नीचे वाले लिंक पर जाएँ....))
(मेरी लेखनी.. मेरे विचार..)
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