Wednesday, October 6, 2010

सरकारी नौकर नहीं,.... दामाद/बहू इस तरह से काम करते हैं....


सरकारी नौकर नहीं,  दामाद/बहू इस तरह से काम करते हैं..
कुल मिला कर ३६५ दिन होते हैं साल में ...ये रहा काम करने का लेखा जोखा.....
५२ दिन -Sunday
५२ दिन -Saturday
६५.५ दिन -एक घंटा देर से आना और एक घंटा पहले जाना
४० दिन -लंच
१६ दिन-चाय
८ दिन-सिगरेट/गप्प
२० दिन-त्यौहार
१५ दिन-ऑफिस के टाइम में पर्सनल काम करने में
१२ दिन-Casual Leave
३० दिन-मेडिकल
१० दिन भारत/प्रदेश बन्द...
पूरे साल में हम सिर्फ ४४.५ दिन सही मायने में काम करते हैं...
शायद कुछ रह भी गया हो...बताइयेगा ज़रा...

हाँ नहीं तो...!!

22 comments:

  1. 44.5 दिन...आप तो बच्चे के प्राण हर लेंगी..इतना भी काम कराता है क्या कोई..कुछ तो आराम का समय दिजिये.

    ReplyDelete
  2. बिलकुल सही कहा आपने ,देश और समाज की हालत इन निकम्मों ने बर्बाद कर दी है इनके काम की निगरानी और इनकी जिम्मेवारी तय करने की व्यवस्था पूरी तरह ख़त्म हो चुकी है इसलिए अनुशासन हीनता बढती ही जा रही है ...सरकारी नौकरी आज मुफ्त की रोटी का दूसरा नाम बन गया है ,हालाँकि कुछ अपवाद हैं जिनकी ईमानदारी और कर्तव्य के प्रति समर्पण भाव की वजह से व्यवस्था बर्बाद होने के बाद भी चल रही है ....

    ReplyDelete
  3. आपने तो कई दिन नहीं जोड़े "खेल" की वजह से दो दिन का अवकाश भी तो है, और बारिश भी और रोज दो घंटे तक गप शप

    इसे पढ़े और अपने विचार दे :-
    कुछ अनसुलझे रहस्य ...१

    ReplyDelete
  4. अगर दफ्तर में कैमरे लगे हो तो क्लाइंट ( मुर्गा ) से घूस लेने के लिए, ऑफिस के गेट के बाहर अथवा पान की दूकान तक आना =४४.५० दिन :)

    ReplyDelete
  5. फिर भी कहते हैं --भई क्या करें समय ही नहीं मिलता ।

    ReplyDelete
  6. सही पोल खोली जी हमारी।
    इतने ठाठ की नौकरी हो रही थी, अब किसी न किसी की नजर जरूर लगेगी।
    कार्यसमय में ब्लॉगिंग में लगने वाला वक्त नहीं शामिल किया आपने, अगर वो भी कर लेती तो शायद घंटे ऋणात्मक संख्या में पहुंच जाते।

    ReplyDelete
  7. बहुत ही सही हिसाब किताब सामने रखा है आपने.......साथ ही
    गोदीयाल जी और दराल जी की बातों से पूरी तरह सहमत...........

    ReplyDelete
  8. यह हिसाब भी खूब रहा ....

    ReplyDelete
  9. यह बहू वाला विशेषण तो पहली बार सुना । हाँ माफ कीजियेगा , बहू वाले समय मे से 8 दिन सिग्रेट वाले हटा दें । और बाकी तो आप खुद समझदार है और हम भी ... हाहाहा ।

    ReplyDelete
  10. @ शरद जी...
    तभी तो ...
    ८ दिन-सिगरेट/गप्प
    लिखा है...आम के आम गुठलियों के दाम
    जिनको बीड़ी सिगरेट पीना है वो, वो पीते हैं और जिनको गप्प मारना है वो गप्प मारते हैं..
    हाँ नहीं तो..!

    ReplyDelete
  11. @ शायद कुछ रह भी गया हो...बताइयेगा ज़रा.

    @दीदी,
    हाँ कहने को रहा गया है ....

    "हा हा हा हा हा हा हा हा
    हा हा हा हा हा हा हा हा
    हा हा हा हा हा हा हा हा
    हा हा हा हा हा हा हा हा "

    बस कह दिया :) अब इसके अलावा कहने को बचा ही क्या है ? :)

    आपने तो छोटी सी पोस्ट में पूरी पोल खोल दी , ऐसा गजब क्यों किया ?? :)))

    ReplyDelete
  12. @ संजय जी...
    मैं ब्लॉग्गिंग की बात लिखने लगी थी ...लेकिन हिसाब में (-)३६५ आने लगा ...

    सच में..

    ReplyDelete
  13. क्षमा करें अदा जी !

    आप ये तो भूल ही गईं कि

    * कम से कम ४० दिन क्रिकेट देखने में भी खर्च होते हैं
    * ४ दिन ऑफिस में आँख मटक्का भी खा जाता है

    ReplyDelete
  14. दामाद और बहुओं को क्यों बदनाम कर रही हैं, वो तो इससे कहीं अधिक कार्य करते हैं।

    ReplyDelete
  15. हर दिन के 24 घंटे में से 2/3 तो आप निकालना ही भूल गईं :)
    (जब बाबू लोग काम पर नहीं होते)

    ReplyDelete
  16. अब क्या बच्चे की जान लेंगी इतना काम काफी नहीं है क्या पूरा देश सिर्फ इसी काम के भरोसे चल रहा है |

    ReplyDelete
  17. सही मायने में काम करते हैं...

    कहाँ?
    कब?
    कैसे?

    ReplyDelete
  18. वाट लगा दी आपनें बेचारे दामाद बहुओं की :)

    ReplyDelete
  19. सरकारी दफ्तरों की खूब पोल खोली आपने ...!

    ReplyDelete
  20. @अदा जी,
    आप तो वाकई बच्चों की जान लेंगी...

    @पाबला जी,
    दस्सो भला, राति दो-दो वजे तक जागकर देश-विदेश कॉल मिलाओ तां ऐ अदा जी चाहंदे ने दिण विच आफिस वी आराम न करिए...(बड़े दिनां बाद पंगा)

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  21. uri baba...a rakam bolo na....bahi hoye gaye chhe..

    apnar lekha jokha khoob bhalo...

    pranam

    ReplyDelete
  22. सरकारी नौकर हूँ इसलिए यह ज़रूर कहूँगा की कुछ विभाग ऐसे भी होते हैं जहाँ काम बहुत अधिक और बहुत कठिन होता है. जिन विभागों में पब्लिक डीलिंग ज्यादा होती है वहां वाकई बुरे हाल हैं पर उनसे इतर विभागों में ख़ामोशी से अधिकांश लोग काम करते मिलते हैं.

    ReplyDelete