सरकारी नौकर नहीं, दामाद/बहू इस तरह से काम करते हैं..
कुल मिला कर ३६५ दिन होते हैं साल में ...ये रहा काम करने का लेखा जोखा.....
५२ दिन -Sunday
५२ दिन -Saturday
६५.५ दिन -एक घंटा देर से आना और एक घंटा पहले जाना
४० दिन -लंच
१६ दिन-चाय
८ दिन-सिगरेट/गप्प
२० दिन-त्यौहार
१५ दिन-ऑफिस के टाइम में पर्सनल काम करने में
१२ दिन-Casual Leave
३० दिन-मेडिकल
१० दिन भारत/प्रदेश बन्द...
पूरे साल में हम सिर्फ ४४.५ दिन सही मायने में काम करते हैं...
शायद कुछ रह भी गया हो...बताइयेगा ज़रा...
हाँ नहीं तो...!!
44.5 दिन...आप तो बच्चे के प्राण हर लेंगी..इतना भी काम कराता है क्या कोई..कुछ तो आराम का समय दिजिये.
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने ,देश और समाज की हालत इन निकम्मों ने बर्बाद कर दी है इनके काम की निगरानी और इनकी जिम्मेवारी तय करने की व्यवस्था पूरी तरह ख़त्म हो चुकी है इसलिए अनुशासन हीनता बढती ही जा रही है ...सरकारी नौकरी आज मुफ्त की रोटी का दूसरा नाम बन गया है ,हालाँकि कुछ अपवाद हैं जिनकी ईमानदारी और कर्तव्य के प्रति समर्पण भाव की वजह से व्यवस्था बर्बाद होने के बाद भी चल रही है ....
ReplyDeleteआपने तो कई दिन नहीं जोड़े "खेल" की वजह से दो दिन का अवकाश भी तो है, और बारिश भी और रोज दो घंटे तक गप शप
ReplyDeleteइसे पढ़े और अपने विचार दे :-
कुछ अनसुलझे रहस्य ...१
अगर दफ्तर में कैमरे लगे हो तो क्लाइंट ( मुर्गा ) से घूस लेने के लिए, ऑफिस के गेट के बाहर अथवा पान की दूकान तक आना =४४.५० दिन :)
ReplyDeleteफिर भी कहते हैं --भई क्या करें समय ही नहीं मिलता ।
ReplyDeleteसही पोल खोली जी हमारी।
ReplyDeleteइतने ठाठ की नौकरी हो रही थी, अब किसी न किसी की नजर जरूर लगेगी।
कार्यसमय में ब्लॉगिंग में लगने वाला वक्त नहीं शामिल किया आपने, अगर वो भी कर लेती तो शायद घंटे ऋणात्मक संख्या में पहुंच जाते।
बहुत ही सही हिसाब किताब सामने रखा है आपने.......साथ ही
ReplyDeleteगोदीयाल जी और दराल जी की बातों से पूरी तरह सहमत...........
यह हिसाब भी खूब रहा ....
ReplyDeleteयह बहू वाला विशेषण तो पहली बार सुना । हाँ माफ कीजियेगा , बहू वाले समय मे से 8 दिन सिग्रेट वाले हटा दें । और बाकी तो आप खुद समझदार है और हम भी ... हाहाहा ।
ReplyDelete@ शरद जी...
ReplyDeleteतभी तो ...
८ दिन-सिगरेट/गप्प
लिखा है...आम के आम गुठलियों के दाम
जिनको बीड़ी सिगरेट पीना है वो, वो पीते हैं और जिनको गप्प मारना है वो गप्प मारते हैं..
हाँ नहीं तो..!
@ शायद कुछ रह भी गया हो...बताइयेगा ज़रा.
ReplyDelete@दीदी,
हाँ कहने को रहा गया है ....
"हा हा हा हा हा हा हा हा
हा हा हा हा हा हा हा हा
हा हा हा हा हा हा हा हा
हा हा हा हा हा हा हा हा "
बस कह दिया :) अब इसके अलावा कहने को बचा ही क्या है ? :)
आपने तो छोटी सी पोस्ट में पूरी पोल खोल दी , ऐसा गजब क्यों किया ?? :)))
@ संजय जी...
ReplyDeleteमैं ब्लॉग्गिंग की बात लिखने लगी थी ...लेकिन हिसाब में (-)३६५ आने लगा ...
सच में..
क्षमा करें अदा जी !
ReplyDeleteआप ये तो भूल ही गईं कि
* कम से कम ४० दिन क्रिकेट देखने में भी खर्च होते हैं
* ४ दिन ऑफिस में आँख मटक्का भी खा जाता है
दामाद और बहुओं को क्यों बदनाम कर रही हैं, वो तो इससे कहीं अधिक कार्य करते हैं।
ReplyDeleteहर दिन के 24 घंटे में से 2/3 तो आप निकालना ही भूल गईं :)
ReplyDelete(जब बाबू लोग काम पर नहीं होते)
अब क्या बच्चे की जान लेंगी इतना काम काफी नहीं है क्या पूरा देश सिर्फ इसी काम के भरोसे चल रहा है |
ReplyDeleteसही मायने में काम करते हैं...
ReplyDeleteकहाँ?
कब?
कैसे?
वाट लगा दी आपनें बेचारे दामाद बहुओं की :)
ReplyDeleteसरकारी दफ्तरों की खूब पोल खोली आपने ...!
ReplyDelete@अदा जी,
ReplyDeleteआप तो वाकई बच्चों की जान लेंगी...
@पाबला जी,
दस्सो भला, राति दो-दो वजे तक जागकर देश-विदेश कॉल मिलाओ तां ऐ अदा जी चाहंदे ने दिण विच आफिस वी आराम न करिए...(बड़े दिनां बाद पंगा)
जय हिंद...
uri baba...a rakam bolo na....bahi hoye gaye chhe..
ReplyDeleteapnar lekha jokha khoob bhalo...
pranam
सरकारी नौकर हूँ इसलिए यह ज़रूर कहूँगा की कुछ विभाग ऐसे भी होते हैं जहाँ काम बहुत अधिक और बहुत कठिन होता है. जिन विभागों में पब्लिक डीलिंग ज्यादा होती है वहां वाकई बुरे हाल हैं पर उनसे इतर विभागों में ख़ामोशी से अधिकांश लोग काम करते मिलते हैं.
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