Tuesday, November 30, 2010

कर भी लो अब ज़रा, हमसे, खुल कर बातें.....


यूँ हीं होतीं हैं
कभी बेहुनर बातें,
कभी दिल करता है
नगमाग़र बातें,
पलकें झुक जातीं है
बन जातीं है ज़ुबां,
फिर कर ही जातीं हैं
कभी अश्के-तर बातें,
तेरी ख़ामोशी,
जानलेवा होने लगीं है,
कुछ तो करो मुझसे भी
हमसफ़र बातें,
दिल की बात कहीं
दिल में न रह जाए,
कर भी लो अब ज़रा
हमसे, खुल कर बातें.....

अश्के-तर=आँसूओं से तर

आगे भी जाने ना तू.....आवाज़ 'अदा'...
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Monday, November 29, 2010

अकबर से महान कौन?



प्रस्तुत आलेख निम्नलिखित ब्लॉग से साभार लिया गया है...:
http://agniveer.com/hi/3209/akbar-great-hi/
हमारे पाठकों को अपने विद्यालय के दिनों में पढ़े इतिहास में अकबर का नाम और काम बखूबी याद होगा. रियासतों के रूप में टुकड़ों टुकड़ों में टूटे हुए भारत को एक बनाने की बात हो, या हिन्दू मुस्लिम झगडे मिटाने को दीन ए इलाही चलाने की बात, सब मजहब की दीवारें तोड़कर हिन्दू लड़कियों को अपने साथ शादी करने का सम्मान देने की बात हो, या हिन्दुओं के पवित्र स्थानों पर जाकर सजदा करने की, हिन्दुओं पर से जजिया कर हटाने की बात हो या फिर हिन्दुओं को अपने दरबार में जगह देने की, अकबर ही अकबर सब ओर दिखाई देता है. सच है कि हमारे इतिहासकार किसी को महान यूँ ही नहीं कह देते. इस महानता को पाने के लिए विक्रमादित्य, पृथ्वीराज, राणा प्रताप, शिवाजी और न जाने ऐसे कितने ही महापुरुषों के नाम तरसते रहे, पर इनके साथ “महान” शब्द न लग सका.
हमें याद है कि इतिहास की किताबों में अकबर पर पूरे अध्याय के अन्दर दो पंक्तियाँ महाराणा प्रताप पर भी होती थीं. मसलन वो कब पैदा हुए, कब मरे, कैसे विद्रोह किया, और कैसे उनके ही राजपूत उनके खिलाफ थे. इतिहासकार महाराणा प्रताप को कभी महान न कह सके. ठीक ही तो है! अकबर और राणा का मुकाबला क्या है? कहाँ अकबर पूरे भारत का सम्राट, अपने हरम में पांच हज़ार से भी ज्यादा औरतों की जिन्दगी रोशन करने वाला, उनसे दिल्लगी कर उन्हें शान बख्शने वाला, बीसियों राजपूत राजाओं को अपने दरबार में रखने वाला, और कहाँ राणा प्रताप, क्षुद्र क्षत्रिय, अपने राज्य के लिए लड़ने वाला, सत्ता का भूखा, सत्ता के लिए वन वन भटककर पत्तलों पर घास की रोटियाँ खाने वाला, जिसका कोई हरम ही नहीं इस तरह का छोटा और निष्ठुर हृदय, सब राजपूतों से केवल इसलिए लड़ने वाला कि उन्होंने अपनी लड़कियां, पत्नियाँ, बहनें अकबर को भेजीं, अकबर “महान” का संधि प्रस्ताव कई बार ठुकराने वाला घमंडी, और मुसलमान राजाओं से रोटी बेटी का सम्बन्ध भी न रखने वाला दकियानूसी, इत्यादि. कहाँ अकबर जैसा त्यागी जो अपने देश को उसके हाल पर छोड़ कर दूसरे देश भारत का भला करने पूरा जीवन यहीं पर रहा, और कहाँ राणा प्रताप जो अपनी जमीन भी ऐसे त्यागी के लिए खाली न कर पाया और इस आशा में कि एक दिन फिर से अपने राज्य पर कब्ज़ा कर लेगा, वनों में धूल फांकता, पत्नी और बच्चों को जंगलों के कष्ट देता सत्ता का भूखा!
अकबर “महान” की महानता बताने से पहले उसके महान पूर्वजों के बारे में थोड़ा जान लेना जरूरी है. भारत में पिछले तेरह सौ सालों से इस्लाम के मानने वालों ने लगातार आक्रमण किये. मुहम्मद बिन कासिम और उसके बाद आने वाले गाजियों ने एक के बाद एक हमला करके, यहाँ लूटमार, बलात्कार, नरसंहार और इन सबसे बढ़कर यहाँ रहने वाले काफिरों को अल्लाह और उसके रसूल की इच्छानुसार धर्मपरिवर्तन करवाया गया. आज के अफगानिस्तान तक पश्चिम में फैला उस समय का भारत धीरे धीरे इस आपदा के शिकंजे में आने लगा. आज के अफगानिस्तान में उस समय अहिंसक बौद्धों की निष्क्रियता ने बहुत नुकसान पहुंचाया क्योंकि इसी के चलते मुहम्मद के गाजियों के लश्कर भारत के अंदर घुस पाए. जहाँ जहाँ तक बौद्धों का प्रभाव था, वहाँ पूरी की पूरी आबादी या तो मुसलमान बना दी गयी या काट दी गयी. जहां हिंदुओं ने प्रतिरोध किया, वहाँ न तो गाजियों की अधिक नहीं चल पाई. यही कारण है कि सिंध के पूर्व भाग में आज भी हिंदू बहुसंख्यक हैं क्योंकि सिंध के पूर्व में राजपूत, जाट, आदि वीर जातियों ने इस्लाम को उस रूप में बढ़ने से रोक दिया जिस रूप में वह इराक, ईरान, मिस्र, अफगानिस्तान और सिंध के पश्चिम तक फैला था अर्थात वहाँ की पुरानी संस्कृति को मिटा कर केवल इस्लाम में ही रंग दिया गया पर भारत में ऐसा नहीं हो सका.
पर बीच बीच में लुटेरे आते गए और देश को लूटते गए. तैमूरलंग ने कत्लेआम करने के नए आयाम स्थापित किये और अपनी इस पशुता को बड़ी ढिटाई से अपनी डायरी में भी लिखता गया. इसके बाद मुग़ल आये जो हमारे इतिहास में इस देश से प्यार करने वाले लिखे गए हैं! बताते चलें कि ये देशभक्त और प्रेमपुजारी मुग़ल, तैमूर और चंगेज खान के कुलों के आपस के विवाह संबंधों का ही परिणाम थे. इनमें बाबर हुआ जो अकबर “महान” का दादा था. यह वही बाबर है जिसने अपने काल में न जाने कितने मंदिर तोड़े, कितने ही हिंदुओं को मुसलमान बनाया, कितने ही हिंदुओं के सिर उतारे और उनसे मीनारें बनायीं. यह सब पवित्र कर्म करके वह उनको अपनी डायरी में लिखता भी रहता था ताकि आने वाली उसकी नस्ल इमान की पक्की हो और इसी नेक राह पर चले.  वह अपने समय का प्रसिद्ध नशाखोर, शराबी, हत्यारा, समलैंगिक (पुरुषों से भोग करने वाला), छोटे बच्चों के साथ भी ग़लत काम करने वाला था.  खैर यह वो “महान” अकबर का महान दादा था जो अपने पोते के कारनामों से इस्लामी इतिहास में अपना नाम सुनहरे अक्षरों से लिखवा गया.
ऐसे महान दादा के पोते स्वनामधन्य अकबर “महान” के जीवन के कुछ दृश्य आपके सामने रखते हैं.  हम देंगे प्रमाण अबुल फज़ल (अकबर का खास दरबारी) की आइन ए अकबरी और अकबरनामा से. और साथ ही अकबर के जीवन पर सबसे ज्यादा प्रामाणिक इतिहासकार विन्सेंट स्मिथ की अंग्रेजी की किताब “अकबर- द ग्रेट मुग़ल” से. हम दोनों किताबों के प्रमाणों को हिंदी में देंगे ताकि सबको पढ़ने में आसानी रहे.
तो अब नजर डालते हैं अकबर महान से जुडी कुछ बातों पर-

अकबर महान का आगाज़

१. विन्सेंट स्मिथ ने किताब यहाँ से शुरू की है कि “अकबर भारत में एक विदेशी था. उसकी नसों में एक बूँद खून भी भारतीय नहीं था…. अकबर मुग़ल से ज्यादा एक तुर्क था” पर देखिये! हमारे इतिहासकारों और कहानीकारों ने अकबर को एक भारतीय के रूप में पेश किया है. जबकि हकीकत यह है कि अकबर के सभी पूर्वज बाबर, हुमायूं, से लेकर तैमूर तक सब भारत में लूट, बलात्कार, धर्म परिवर्तन, मंदिर विध्वंस, आदि कामों में लगे रहे. वे कभी एक भारतीय नहीं थे और इसी तरह अकबर भी नहीं था. और इस पर भी हम भारतीय अकबर को हिन्दुस्तान की शान समझती रही!

अकबर महान की सुंदरता और अच्छी आदतें

२. बाबर शराब का शौक़ीन था, इतना कि अधिकतर समय धुत रहता था [बाबरनामा]. हुमायूं अफीम का शौक़ीन था और इस वजह से बहुत लाचार भी हो गया. अकबर ने ये दोनों आदतें अपने पिता और दादा से विरासत में लीं. अकबर के दो बच्चे नशाखोरी की आदत के चलते अल्लाह को प्यारे हुए. 
३. कई इतिहासकार अकबर को सबसे सुन्दर आदमी घोषित करते हैं. विन्सेंट स्मिथ इस सुंदरता का वर्णन यूँ करते हैं-
“अकबर एक औसत दर्जे की लम्बाई का था. उसके बाएं पैर में लंगड़ापन था. उसका सिर अपने दायें कंधे की तरफ झुका रहता था. उसकी नाक छोटी थी जिसकी हड्डी बाहर को निकली हुई थी. उसके नाक के नथुने ऐसे दीखते थे जैसे वो गुस्से में हो. आधे मटर के दाने के बराबर एक मस्सा उसके होंठ और नथुनों को मिलाता था. वह गहरे रंग का था”

४. जहाँगीर ने लिखा है कि अकबर उसे सदा शेख ही बुलाता था भले ही वह नशे की हालत में हो या चुस्ती की हालत में. इसका मतलब यह है कि अकबर काफी बार नशे की हालत में रहता था.
५. अकबर का दरबारी लिखता है कि अकबर ने इतनी ज्यादा पीनी शुरू कर दी थी कि वह मेहमानों से बात करता करता भी नींद में गिर पड़ता था. वह अक्सर ताड़ी पीता था. वह जब ज्यादा पी लेता था तो आपे से बाहर हो जाता था और पागलो के जैसे हरकत करने लगता.

अकबर महान की शिक्षा

६. जहाँगीर ने लिखा है कि अकबर कुछ भी लिखना पढ़ना नहीं जानता था पर यह दिखाता था कि वह बड़ा भारी विद्वान है.

अकबर महान का मातृशक्ति (स्त्रियों) के लिए आदर

७. अबुल फज़ल ने लिखा है कि अपने राजा बनने के शुरूआती सालों में अकबर परदे के पीछे ही रहा! 
८. अबुल फज़ल ने अकबर के हरम को इस तरह वर्णित किया है- “अकबर के हरम में पांच हजार औरतें थीं और हर एक का अपना अलग घर था.” ये पांच हजार औरतें उसकी ३६ पत्नियों से अलग थीं.

९. आइन ए अकबरी में अबुल फजल ने लिखा है- “शहंशाह के महल के पास ही एक शराबखाना बनाया गया था. वहाँ इतनी वेश्याएं इकट्ठी हो गयीं कि उनकी गिनती करनी भी मुश्किल हो गयी. दरबारी नर्तकियों को अपने घर ले जाते थे. अगर कोई दरबारी किसी नयी लड़की को घर ले जाना चाहे तो उसको अकबर से आज्ञा लेनी पड़ती थी. कई बार जवान लोगों में लड़ाई झगडा भी हो जाता था. एक बार अकबर ने खुद कुछ वेश्याओं को बुलाया और उनसे पूछा कि उनसे सबसे पहले भोग किसने किया”.
अब यहाँ सवाल पैदा होता है कि ये वेश्याएं इतनी बड़ी संख्या में कहाँ से आयीं और कौन थीं? आप सब जानते ही होंगे कि इस्लाम में स्त्रियाँ परदे में रहती हैं, बाहर नहीं. और फिर अकबर जैसे नेक मुसलमान को इतना तो ख्याल होगा ही कि मुसलमान औरतों से वेश्यावृत्ति कराना गलत है. तो अब यह सोचना कठिन नहीं है कि ये स्त्रियां कौन थीं. ये वो स्त्रियाँ थीं जो लूट के माल में मोमिनों के भोगने के लिए दी जाती हैं, अर्थात काफिरों की हत्या करके उनकी लड़कियां, पत्नियाँ आदि. अकबर की सेनाओं के हाथ युद्ध में जो भी हिंदू स्त्रियाँ लगती थीं, ये उसी की भीड़ मदिरालय में लगती थी.

१०. अबुल फजल ने अकबरनामा में लिखा है- “जब भी कभी कोई रानी, दरबारियों की पत्नियाँ, या नयी लडकियां शहंशाह की सेवा (यह साधारण सेवा नहीं है) में जाना चाहती थी तो पहले उसे अपना आवेदन पत्र हरम प्रबंधक के पास भेजना पड़ता था. फिर यह पत्र महल के अधिकारियों तक पहुँचता था और फिर जाकर उन्हें हरम के अंदर जाने दिया जाता जहां वे एक महीने तक रखी जाती थीं.”
अब यहाँ देखना चाहिए कि चाटुकार अबुल फजल भी इस बात को छुपा नहीं सका कि अकबर अपने हरम में दरबारियों, राजाओं और लड़कियों तक को भी महीने के लिए रख लेता था. पूरी प्रक्रिया को संवैधानिक बनाने के लिए इस धूर्त चाटुकार ने चाल चली है कि स्त्रियाँ खुद अकबर की सेवा में पत्र भेज कर जाती थीं! इस मूर्ख को इतनी बुद्धि भी नहीं थी कि ऐसी कौन सी स्त्री होगी जो पति के सामने ही खुल्लम खुल्ला किसी और पुरुष की सेवा में जाने का आवेदन पत्र दे दे? मतलब यह है कि वास्तव में अकबर महान खुद ही आदेश देकर जबरदस्ती किसी को भी अपने हरम में रख लेता था और उनका सतीत्व नष्ट करता था.

११. रणथंभोर की संधि में अकबर महान की पहली शर्त यह थी कि राजपूत अपनी स्त्रियों की डोलियों को अकबर के शाही हरम के लिए रवाना कर दें यदि वे अपने सिपाही वापस चाहते हैं.
१२. बैरम खान जो अकबर के पिता तुल्य और संरक्षक था, उसकी हत्या करके इसने उसकी पत्नी अर्थात अपनी माता के तुल्य स्त्री से शादी की.
१३. ग्रीमन के अनुसार अकबर अपनी रखैलों को अपने दरबारियों में बाँट देता था. औरतों को एक वस्तु की तरह बांटना और खरीदना अकबर महान बखूबी करता था.
१४. मीना बाजार जो हर नए साल की पहली शाम को लगता था, इसमें सब स्त्रियों को सज धज कर आने के आदेश दिए जाते थे और फिर अकबर महान उनमें से किसी को चुन लेते थे.

नेक दिल अकबर महान

१५. ६ नवम्बर १५५६ को १४ साल की आयु में अकबर महान पानीपत की लड़ाई में भाग ले रहा था. हिंदू राजा हेमू की सेना मुग़ल सेना को खदेड़ रही थी कि अचानक हेमू को आँख में तीर लगा और वह बेहोश हो गया. उसे मरा सोचकर उसकी सेना में भगदड़ मच गयी. तब हेमू को बेहोशी की हालत में अकबर महान के सामने लाया गया और इसने बहादुरी से हेमू का सिर काट लिया और तब इसे गाजी के खिताब से नवाजा गया. (गाजी की पदवी इस्लाम में उसे मिलती है जिसने किसी काफिर को कतल किया हो. ऐसे गाजी को जन्नत नसीब होती है और वहाँ सबसे सुन्दर हूरें इनके लिए बुक होती हैं). हेमू के सिर को काबुल भिजा दिया गया एवं उसके धड को दिल्ली के दरवाजे से लटका दिया गया ताकि नए आतंकवादी बादशाह की रहमदिली सब को पता चल सके.
१६. इसके तुरंत बाद जब अकबर महान की सेना दिल्ली आई तो कटे हुए काफिरों के सिरों से मीनार बनायी गयी जो जीत के जश्न का प्रतीक है और यह तरीका अकबर महान के पूर्वजों से ही चला आ रहा है.
१७. हेमू के बूढ़े पिता को भी अकबर महान ने कटवा डाला. और औरतों को उनकी सही जगह अर्थात शाही हरम में भिजवा दिया गया.
१८. अबुल फजल लिखता है कि खान जमन के विद्रोह को दबाने के लिए उसके साथी मोहम्मद मिराक को हथकडियां लगा कर हाथी के सामने छोड़ दिया गया. हाथी ने उसे सूंड से उठाकर फैंक दिया. ऐसा पांच दिनों तक चला और उसके बाद उसको मार डाला गया.
१९. चित्तौड़ पर कब्ज़ा करने के बाद अकबर महान ने तीस हजार नागरिकों का क़त्ल करवाया.
२०. अकबर ने मुजफ्फर शाह को हाथी से कुचलवाया. हमजबान की जबान ही कटवा डाली. मसूद हुसैन मिर्ज़ा की आँखें सीकर बंद कर दी गयीं. उसके ३०० साथी उसके सामने लाये गए और उनके चेहरे पर गधों, भेड़ों और कुत्तों की खालें डाल कर काट डाला गया. विन्सेंट स्मिथ ने यह लिखा है कि अकबर महान फांसी देना, सिर कटवाना, शरीर के अंग कटवाना, आदि सजाएं भी देते थे.
२१. २ सितम्बर १५७३ के दिन अहमदाबाद में उसने २००० दुश्मनों के सिर काटकर अब तक की सबसे ऊंची सिरों की मीनार बनायी. वैसे इसके पहले सबसे ऊंची मीनार बनाने का सौभाग्य भी अकबर महान के दादा बाबर का ही था. अर्थात कीर्तिमान घर के घर में ही रहा!
२२. अकबरनामा के अनुसार जब बंगाल का दाउद खान हारा, तो कटे सिरों के आठ मीनार बनाए गए थे. यह फिर से एक नया कीर्तिमान था. जब दाउद खान ने मरते समय पानी माँगा तो उसे जूतों में पानी पीने को दिया गया.

न्यायकारी अकबर महान

२३. थानेश्वर में दो संप्रदायों कुरु और पुरी के बीच पूजा की जगह को लेकर विवाद चल रहा था. अकबर ने आदेश दिया कि दोनों आपस में लड़ें और जीतने वाला जगह पर कब्ज़ा कर ले. उन मूर्ख आत्मघाती लोगों ने आपस में ही अस्त्र शस्त्रों से लड़ाई शुरू कर दी. जब पुरी पक्ष जीतने लगा तो अकबर ने अपने सैनकों को कुरु पक्ष की तरफ से लड़ने का आदेश दिया. और अंत में इसने दोनों तरफ के लोगों को ही अपने सैनिकों से मरवा डाला. और फिर अकबर महान जोर से हंसा.
२४. हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर की नीति यही थी कि राजपूत ही राजपूतों के विरोध में लड़ें. बादायुनी ने अकबर के सेनापति से बीच युद्ध में पूछा कि प्रताप के राजपूतों को हमारी तरफ से लड़ रहे राजपूतों से कैसे अलग पहचानेंगे? तब उसने कहा कि इसकी जरूरत नहीं है क्योंकि किसी भी हालत में मरेंगे तो राजपूत ही और फायदा इस्लाम का होगा.
२५. कर्नल टोड लिखते हैं कि अकबर ने एकलिंग की मूर्ति तोड़ी और उस स्थान पर नमाज पढ़ी.
२६. एक बार अकबर शाम के समय जल्दी सोकर उठ गया तो उसने देखा कि एक नौकर उसके बिस्तर के पास सो रहा है. इससे उसको इतना गुस्सा आया कि नौकर को इस बात के लिए एक मीनार से नीचे फिंकवा दिया.
२७. अगस्त १६०० में अकबर की सेना ने असीरगढ़ का किला घेर लिया पर मामला बराबरी का था. न तो वह किला तोड़ पाया और न ही किले की सेना अकबर को हरा सकी. विन्सेंट स्मिथ ने लिखा है कि अकबर ने एक अद्भुत तरीका सोचा. उसने किले के राजा मीरां बहादुर को आमंत्रित किया और अपने सिर की कसम खाई कि उसे सुरक्षित वापस जाने देगा. तब मीरां शान्ति के नाम पर बाहर आया और अकबर के सामने सम्मान दिखाने के लिए तीन बार झुका. पर अचानक उसे जमीन पर धक्का दिया गया ताकि वह पूरा सजदा कर सके क्योंकि अकबर महान को यही पसंद था.
उसको अब पकड़ लिया गया और आज्ञा दी गयी कि अपने सेनापति को कहकर आत्मसमर्पण करवा दे. सेनापति ने मानने से मना कर दिया और अपने लड़के को अकबर के पास यह पूछने भेजा कि उसने अपनी प्रतिज्ञा क्यों तोड़ी? अकबर ने बच्चे से पूछा कि क्या तेरा पिता आत्मसमर्पण के लिए तैयार है? तब बालक ने कहा कि उसका पिता समर्पण नहीं करेगा चाहे राजा को मार ही क्यों न डाला जाए. यह सुनकर अकबर महान ने उस बालक को मार डालने का आदेश दिया. इस तरह झूठ के बल पर अकबर महान ने यह किला जीता.
यहाँ ध्यान देना चाहिए कि यह घटना अकबर की मृत्यु से पांच साल पहले की ही है. अतः कई लोगों का यह कहना कि अकबर बाद में बदल गया था, एक झूठ बात है.
२८. इसी तरह अपने ताकत के नशे में चूर अकबर ने बुंदेलखंड की प्रतिष्ठित रानी दुर्गावती से लड़ाई की और लोगों का क़त्ल किया.

अकबर महान और महाराणा प्रताप

२९. ऐसे इतिहासकार जिनका अकबर दुलारा और चहेता है, एक बात नहीं बताते कि कैसे एक ही समय पर राणा प्रताप और अकबर महान हो सकते थे जबकि दोनों एक दूसरे के घोर विरोधी थे?
३०. यहाँ तक कि विन्सेंट स्मिथ जैसे अकबर प्रेमी को भी यह बात माननी पड़ी कि चित्तौड़ पर हमले के पीछे केवल उसकी सब कुछ जीतने की हवस ही काम कर रही थी. वहीँ दूसरी तरफ महाराणा प्रताप अपने देश के लिए लड़ रहे थे और कोशिश की कि राजपूतों की इज्जत उनकी स्त्रियां मुगलों के हरम में न जा सकें. शायद इसी लिए अकबर प्रेमी इतिहासकारों ने राणा को लड़ाकू और अकबर को देश निर्माता के खिताब से नवाजा है!

अकबर और इस्लाम

३१. हिन्दुस्तानी मुसलमानों को यह कह कर बेवकूफ बनाया जाता है कि अकबर ने इस्लाम की अच्छाइयों को पेश किया. असलियत यह है कि कुरआन के खिलाफ जाकर ३६ शादियाँ करना, शराब पीना, नशा करना, दूसरों से अपने आगे सजदा करवाना आदि करके भी इस्लाम को अपने दामन से बाँधे रखा ताकि राजनैतिक फायदा मिल सके. और सबसे मजेदार बात यह है कि वंदे मातरम में शिर्क दिखाने वाले मुल्ला मौलवी अकबर की शराब, अफीम, ३६ बीवियों, और अपने लिए करवाए सजदों में भी इस्लाम को महफूज़ पाते हैं! किसी मौलवी ने आज तक यह फतवा नहीं दिया कि अकबर या बाबर जैसे शराबी और समलैंगिक मुसलमान नहीं हैं और इनके नाम की मस्जिद हराम है.
३२. अकबर ने खुद को दिव्य आदमी के रूप में पेश किया. उसने लोगों को आदेश दिए कि आपस में “अल्लाह ओ अकबर” कह कर अभिवादन किया जाए. भोले भाले मुसलमान सोचते हैं कि वे यह कह कर अल्लाह को बड़ा बता रहे हैं पर अकबर ने अल्लाह के साथ अपना नाम जोड़कर अपनी दिव्यता फैलानी चाही. अबुल फज़ल के अनुसार अकबर खुद को सर्वज्ञ (सब कुछ जानने वाला) की तरह पेश करता था. ऐसा ही इसके लड़के जहांगीर ने लिखा है.
३३. अकबर ने अपना नया पंथ दीन ए इलाही चलाया जिसका केवल एक मकसद खुद की बडाई करवाना था. उसके चाटुकारों ने इस धूर्तता को भी उसकी उदारता की तरह पेश किया!
३४. अकबर को इतना महान बताए जाने का एक कारण ईसाई इतिहासकारों का यह था कि क्योंकि इसने हिंदू धर्म और इस्लाम दोनों का ही जम कर अपमान किया और इस तरह भारत में अंग्रेजों के इसाईयत फैलाने के उद्देश्य में बड़ा कारण बना. विन्सेंट स्मिथ ने भी इस विषय पर अपनी राय दी है.
३५. अकबर भाषा बोलने में बड़ा चतुर था. विन्सेंट स्मिथ लिखता है कि मीठी भाषा के अलावा उसकी सबसे बड़ी खूबी अपने जीवन में दिखाई बर्बरता है!
३६. अकबर ने अपने को रूहानी ताकतों से भरपूर साबित करने के लिए कितने ही झूठ बोले. जैसे कि उसके पैरों की धुलाई करने से निकले गंदे पानी में अद्भुत ताकत है जो रोगों का इलाज कर सकता है. ये वैसे ही दावे हैं जैसे मुहम्मद साहब के बारे में हदीसों में किये गए हैं. अकबर के पैरों का पानी लेने के लिए लोगों की भीड़ लगवाई जाती थी. उसके दरबारियों को तो यह अकबर के नापाक पैर का चरणामृत पीना पड़ता था ताकि वह नाराज न हो जाए.

अकबर महान और जजिया कर

३७. इस्लामिक शरीयत के अनुसार किसी भी इस्लामी राज्य में रहने वाले गैर मुस्लिमों को अगर अपनी संपत्ति और स्त्रियों को छिनने से सुरक्षित रखना होता था तो उनको इसकी कीमत देनी पड़ती थी जिसे जजिया कहते थे. यानी इसे देकर फिर कोई अल्लाह व रसूल का गाजी आपकी संपत्ति, बेटी, बहन, पत्नी आदि को नहीं उठाएगा. कुछ अकबर प्रेमी कहते हैं कि अकबर ने जजिया खत्म कर दिया था. लेकिन इस बात का इतिहास में एक जगह भी उल्लेख नहीं! केवल इतना है कि यह जजिया रणथम्भौर के लिए माफ करने की शर्त राखी गयी थी जिसके बदले वहाँ के हिंदुओं को अपनी स्त्रियों को अकबर के हरम में भिजवाना था! यही कारण बना की इन मुस्लिम सुल्तानों के काल में हिन्दू स्त्रियाँ जौहर में जलना अधिक पसंद करती थी.
३८. यह एक सफ़ेद झूठ है कि उसने जजिया खत्म कर दिया. इतिहास में कोई प्रमाण नहीं की उसने अपने राज्य में कभी जजिया बंद करवाया हो.

अकबर महान और उसका सपूत

३९. भारत में महान इस्लामिक शासन की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि बादशाह के अपने बच्चे ही उसके खिलाफ बगावत कर बैठते थे! हुमायूं बाबर से दुखी था और जहांगीर अकबर से, शाहजहां जहांगीर से दुखी था तो औरंगजेब शाहजहाँ से. जहांगीर (सलीम) ने १६०२ में खुद को बादशाह घोषित कर दिया और अपना दरबार इलाहबाद में लगाया. कुछ इतिहासकार कहते हैं की जोधा अकबर की पत्नी थी या जहाँगीर की, इस पर विवाद है. संभवतः यही इनकी दुश्मनी का कारण बना, क्योंकि सल्तनत के तख़्त के लिए तो जहाँगीर के आलावा कोई और दावेदार था ही नहीं!
४०. ध्यान रहे कि इतिहासकारों के लाडले और सबसे उदारवादी राजा अकबर ने ही सबसे पहले “प्रयागराज” जैसे शब्द को बदल कर इलाहबाद कर दिया था.
४१. जहांगीर अपने अब्बूजान अकबर महान की मौत की ही दुआएं करने लगा. स्मिथ लिखता है कि अगर जहांगीर का विद्रोह कामयाब हो जाता तो वह अकबर को मार डालता. बाप को मारने की यह कोशिश यहाँ तो परवान न चढी लेकिन आगे जाकर आखिरकार यह सफलता औरंगजेब को मिली जिसने अपने अब्बू को कष्ट दे दे कर मारा. वैसे कई इतिहासकार यह कहते हैं कि अकबर को जहांगीर ने ही जहर देकर मारा.

अकबर महान और उसका शक्की दिमाग

४२. अकबर ने एक आदमी को केवल इसी काम पर रखा था कि वह उनको जहर दे सके जो लोग अकबर को पसंद नहीं!
४३. अकबर महान ने न केवल कम भरोसेमंद लोगों का कतल कराया बल्कि उनका भी कराया जो उसके भरोसे के आदमी थे जैसे- बैरम खान (अकबर का गुरु जिसे मारकर अकबर ने उसकी बीवी से निकाह कर लिया), जमन, असफ खान (इसका वित्त मंत्री), शाह मंसूर, मानसिंह, कामरान का बेटा, शेख अब्दुरनबी, मुइजुल मुल्क, हाजी इब्राहिम और बाकी सब मुल्ला जो इसे नापसंद थे. पूरी सूची स्मिथ की किताब में दी हुई है. और फिर जयमल जिसे मारने के बाद उसकी पत्नी को अपने हरम के लिए खींच लाया और लोगों से कहा कि उसने इसे सती होने से बचा लिया!

समाज सेवक अकबर महान

४४. अकबर के शासन में मरने वाले की संपत्ति बादशाह के नाम पर जब्त कर ली जाती थी और मृतक के घर वालों का उस पर कोई अधिकार नहीं होता था.
४५. अपनी माँ के मरने पर उसकी भी संपत्ति अपने कब्जे में ले ली जबकि उसकी माँ उसे सब परिवार में बांटना चाहती थी.

अकबर महान और उसके नवरत्न

४६. अकबर के चाटुकारों ने राजा विक्रमादित्य के दरबार की कहानियों के आधार पर उसके दरबार और नौ रत्नों की कहानी घड़ी है. असलियत यह है कि अकबर अपने सब दरबारियों को मूर्ख समझता था. उसने कहा था कि वह अल्लाह का शुक्रगुजार है कि इसको योग्य दरबारी नहीं मिले वरना लोग सोचते कि अकबर का राज उसके दरबारी चलाते हैं वह खुद नहीं.
४७. प्रसिद्ध नवरत्न टोडरमल अकबर की लूट का हिसाब करता था. इसका काम था जजिया न देने वालों की औरतों को हरम का रास्ता दिखाना.
४८. एक और नवरत्न अबुल फजल अकबर का अव्वल दर्जे का चाटुकार था. बाद में जहाँगीर ने इसे मार डाला.
४९. फैजी नामक रत्न असल में एक साधारण सा कवि था जिसकी कलम अपने शहंशाह को प्रसन्न करने के लिए ही चलती थी. कुछ इतिहासकार कहते हैं कि वह अपने समय का भारत का सबसे बड़ा कवि था. आश्चर्य इस बात का है कि यह सर्वश्रेष्ठ कवि एक अनपढ़ और जाहिल शहंशाह की प्रशंसा का पात्र था! यह ऐसी ही बात है जैसे कोई अरब का मनुष्य किसी संस्कृत के कवि के भाषा सौंदर्य का गुणगान करता हो!
५०. बुद्धिमान बीरबल शर्मनाक तरीके से एक लड़ाई में मारा गया. बीरबल अकबर के किस्से असल में मन बहलाव की बातें हैं जिनका वास्तविकता से कोई सम्बन्ध नहीं. ध्यान रहे कि ऐसी कहानियाँ दक्षिण भारत में तेनालीराम के नाम से भी प्रचलित हैं.
५१. अगले रत्न शाह मंसूर दूसरे रत्न अबुल फजल के हाथों सबसे बड़े रत्न अकबर के आदेश पर मार डाले गए!
५२. मान सिंह जो देश में पैदा हुआ सबसे नीच गद्दार था, ने अपनी बहन जहांगीर को दी. और बाद में इसी जहांगीर ने मान सिंह की पोती को भी अपने हरम में खींच लिया. यही मानसिंह अकबर के आदेश पर जहर देकर मार डाला गया और इसके पिता भगवान दास ने आत्महत्या कर ली.
५३. इन नवरत्नों को अपनी बीवियां, लडकियां, बहनें तो अकबर की खिदमत में भेजनी पड़ती ही थीं ताकि बादशाह सलामत उनको भी सलामत रखें. और साथ ही अकबर महान के पैरों पर डाला गया पानी भी इनको पीना पड़ता था जैसा कि ऊपर बताया गया है.
५४. रत्न टोडरमल अकबर का वफादार था तो भी उसकी पूजा की मूर्तियां अकबर ने तुडवा दीं. इससे टोडरमल को दुःख हुआ और इसने इस्तीफ़ा दे दिया और वाराणसी चला गया.

अकबर और उसके गुलाम

५५. अकबर ने एक ईसाई पुजारी को एक रूसी गुलाम का पूरा परिवार भेंट में दिया. इससे पता चलता है कि अकबर गुलाम रखता था और उन्हें वस्तु की तरह भेंट में दिया और लिया करता था.
५६. कंधार में एक बार अकबर ने बहुत से लोगों को गुलाम बनाया क्योंकि उन्होंने १५८१-८२ में इसकी किसी नीति का विरोध किया था. बाद में इन गुलामों को मंडी में बेच कर घोड़े खरीदे गए.
५७. जब शाही दस्ते शहर से बाहर जाते थे तो अकबर के हरम की औरतें जानवरों की तरह सोने के पिंजरों में बंद कर दी जाती थीं.
५८. वैसे भी इस्लाम के नियमों के अनुसार युद्ध में पकडे गए लोग और उनके बीवी बच्चे गुलाम समझे जाते हैं जिनको अपनी हवस मिटाने के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है.
५९. अकबर बहुत नए तरीकों से गुलाम बनाता था. उसके आदमी किसी भी घोड़े के सिर पर एक फूल रख देते थे. फिर बादशाह की आज्ञा से उस घोड़े के मालिक के सामने दो विकल्प रखे जाते थे, या तो वह अपने घोड़े को भूल जाये, या अकबर की वित्तीय गुलामी क़ुबूल करे.

कुछ और तथ्य

६०. जब अकबर मरा था तो उसके पास दो करोड़ से ज्यादा अशर्फियाँ केवल आगरे के किले में थीं. इसी तरह के और खजाने छह और जगह पर भी थे. इसके बावजूद भी उसने १५९५-१५९९ की भयानक भुखमरी के समय एक सिक्का भी देश की सहायता में खर्च नहीं किया.
६१. अकबर ने प्रयागराज (जिसे बाद में इलाहबाद नाम दिया था) में गंगा के तटों पर रहने वाली सारी आबादी का क़त्ल करवा दिया और सब इमारतें गिरा दीं क्योंकि जब उसने इस शहर को जीता तो लोग उसके इस्तकबाल करने की जगह घरों में छिप गए. यही कारण है कि प्रयागराज के तटों पर कोई पुरानी इमारत नहीं है.
६२. एक बहुत बड़ा झूठ यह है कि फतेहपुर सीकरी अकबर ने बनवाया था. इसका कोई विश्वसनीय प्रमाण नहीं है. बाकी दरिंदे लुटेरों की तरह इसने भी पहले सीकरी पर आक्रमण किया और फिर प्रचारित कर दिया कि यह मेरा है.
तो ये कुछ उदाहरण थे अकबर “महान” के जीवन से ताकि आपको पता चले कि हमारे नपुंसक इतिहासकारों की नजरों में महान बनना क्यों हर किसी के बस की बात नहीं. क्या इतिहासकार और क्या फिल्मकार और क्या कलाकार, सब एक से एक मक्कार, देशद्रोही, कुल कलंक, नपुंसक हैं जिन्हें फिल्म बनाते हुए अकबर तो दीखता है पर महाराणा प्रताप कहीं नहीं दीखता. अब देखिये कि अकबर पर बनी फिल्मों में इस शराबी, नशाखोर, बलात्कारी, और लाखों हिंदुओं के हत्यारे अकबर के बारे में क्या दिखाया गया है और क्या छुपाया. बैरम खान की पत्नी, जो इसकी माता के सामान थी, से इसकी शादी का जिक्र किसी ने नहीं किया. इस जानवर को इस तरह पेश किया गया है कि जैसे फरिश्ता! जोधाबाई से इसकी शादी की कहानी दिखा दी पर यह नहीं बताया कि जोधा असल में जहांगीर की पत्नी थी और शायद दोनों उसका उपभोग कर रहे थे. दिखाया यह गया कि इसने हिंदू लड़की से शादी करके उसका धर्म नहीं बदला, यहाँ तक कि उसके लिए उसके महल में मंदिर बनवाया! असलियत यह है कि बरसों पुराने वफादार टोडरमल की पूजा की मूर्ति भी जिस अकबर से सहन न हो सकी और उसे झट तोड़ दिया, ऐसे अकबर ने लाचार लड़की के लिए मंदिर बनवाया, यह दिखाना धूर्तता की पराकाष्ठा है. पूरी की पूरी कहानियाँ जैसे मुगलों ने हिन्दुस्तान को अपना घर समझा और इसे प्यार दिया, हेमू का सिर काटने से अकबर का इनकार, देश की शान्ति और सलामती के लिए जोधा से शादी, उसका धर्म परिवर्तन न करना, हिंदू रीति से शादी में आग के चारों तरफ फेरे लेना, राज महल में जोधा का कृष्ण मंदिर और अकबर का उसके साथ पूजा में खड़े होकर तिलक लगवाना, आदि ऐसी हैं जो असलियत से कोसों दूर हैं जैसा कि अब आपको पता चल गयी होंगी. “हिन्दुस्तान मेरी जान तू जान ए हिन्दोस्तां” जैसे गाने अकबर जैसे बलात्कारी, और हत्यारे के लिए लिखने वालों और उन्हें दिखाने वालों को उसी के सामान झूठा और दरिंदा समझा जाना चाहिए.
चित्तौड़ में तीस हजार लोगों का कत्लेआम करने वाला, हिंदू स्त्रियों को एक के बाद एक अपनी पत्नी या रखैल बनने पर विवश करने वाला, नगरों और गाँवों में जाकर नरसंहार कराकर लोगों के कटे सिरों से मीनार बनाने वाला, जिस देश के इतिहास में महान, सम्राट, “शान ए हिन्दोस्तां” लिखा जाए और उसे देश का निर्माता कहा जाए कि भारत को एक छत्र के नीचे उसने खड़ा कर दिया, उस देश का विनाश ही होना चाहिए. वहीं दूसरी तरफ जो ऐसे दरिंदे, नपुंसक के विरुद्ध धर्म और देश की रक्षा करता हुआ अपने से कई गुना अधिक सेनाओं से लड़ा, जंगल जंगल मारा मारा फिरता रहा, अपना राज्य छोड़ा, सब साथियों को छोड़ा, पत्तल पर घास की रोटी खाकर भी जिसने वैदिक धर्म की अग्नि को तुर्की आंधी से कभी बुझने नहीं दिया, वह महाराणा प्रताप इन इतिहासकारों और फिल्मकारों की दृष्टि में “जान ए हिन्दुस्तान” तो दूर “जान ए राजस्थान” भी नहीं था! उसे सदा अपने राज्य मेवाड़ की सत्ता के  लिए लड़ने वाला एक लड़ाका ही बताया गया जिसके लिए इतिहास की किताबों में चार पंक्तियाँ ही पर्याप्त हैं. ऐसी मानसिकता और विचारधारा, जिसने हमें अपने असली गौरवशाली इतिहास को आज तक नहीं पढ़ने दिया, हमारे कातिलों और लुटेरों को महापुरुष बताया और शिवाजी और राणा प्रताप जैसे धर्म रक्षकों को लुटेरा और स्वार्थी बताया, को आज अपने पैरों तले रौंदना है. संकल्प कीजिये कि अब आपके घर में अकबर की जगह राणा प्रताप की चर्चा होगी. क्योंकि इतना सब पता होने पर यदि अब भी कोई अकबर के गीत गाना चाहता है तो उस देशद्रोही और धर्मद्रोही को कम से कम इस देश में रहने का अधिकार नहीं होना चाहिए.


उपरलिखित तथ्यों का विस्तार जानने के लिए पढ़ें:
1. Akbar – the Great Mogul by Vincent Smith
2. Akbarnama by Abul Fazl
3. Ain-e-Akbari by Abul Fazl
4. Who says Akbar is Great by PN Oak


Sunday, November 28, 2010

फूलों से मार डालो, हम पत्थर से जम गए हैं....


क्यूँ अश्क बहते-बहते, यूँ आज थम गए हैं
इतने ग़म मिले कि, हम ग़म में ही रम गए हैं

तुम बोल दो हमें वो, जो बोलना है तुमको 
फूलों से मार डालो, हम पत्थर से जम गए हैं

रंगीनियाँ लिए हैं, ग़मगीन कितने चेहरे
अफ़सोस के रंगों में, वो सारे रंग गए हैं

तकतीं रहेंगी तुमको, ये बे-हया सी आँखें
जीवन भी रुक रहा है, कुछ लम्हें थम गए हैं

हम थे ऐसे-वैसे तुम सोचोगे कभी तो
जब सोचने लगे तो हम खुद ही नम गए हैं

जीने का हौसला तो, पहले भी 'अदा' कहाँ था
मरने के हौसले भी, मेरे यार कम गए हैं

आपके हसीन रुख़ पर आज नया नूर है.....आवाज़ 'अदा' की....

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Saturday, November 27, 2010

ये दिल मेरा मेरे ख़ुदा, ना दर्द की किताब हो....


सितारों में पनाह लूँ
बेशक़ मेरा ये ख़्वाब हो,  
मगर ये ज़मीं मेरी 
पैकरे-शबाब  हो,
तेरी रहमतों पे तुझे
शायद बहुत नाज़ हो,
मगर इतना करम करो 
गुनाहों का बज़ा हिसाब हो,
मिटी-मिटी हैं इबारतें
यहाँ-वहाँ इधर-उधर,
मैं भी परेशान हूँ
भला अब क्या जवाब हो,
चेहरे क्यूँ जले-जले
हैं आँखें भी धंसीं-धसीं,
कम ख़ुशी ही हो ज़िन्दगी
हर साँस न अज़ाब हो,
सुकून के हुज़ूम बस
झूम जाएँ कभी-कभी,
ये दिल मेरा, मेरे ख़ुदा
ना दर्द की किताब हो....

पैकरे-शबाब = यौवन की मूर्ति
इबारतें = लिखावट
 
जो हमने दास्ताँ अपनी सुनाई....आवाज़ 'अदा' की....


Friday, November 26, 2010

उफ़क से ये ज़मीन क्यूँ रूबरू नज़र आए...


तेरा जमाल क्यूँ मुझे, हर सू नज़र आए
इन बंद आँखों में भी, बस तू नज़र आए

सजदा करूँ मैं तेरी, कलम को बार-बार
हर हर्फ़ से लिपटी मेरी, आरज़ू नज़र आए

गुज़र रही हूँ देखो, इक ऐसी कैफ़ियत से
ख़ामोशियों का मौसम, गुफ़्तगू नज़र आए

फासलों में क़ैद हुए हैं, ये दो बदन हमारे 
उफ़क से ये ज़मीन क्यूँ, रूबरू नज़र आए

उफ़क= क्षितिज
जमाल=खूबसूरती
कैफ़ियत= मानसिक दशा
गुफ़्तगू=बातचीत
रूबरू=आमने-सामने 

अजनबी तुम जाने पहचाने से लगते हो...आवाज़ 'अदा' की...

बेतलेहेम से बनारस तक....


आस्था और अध्यात्म का शहर 'बनारस'..!!
कहते हैं दुनिया के किसी भी कोने में हम रहें ...मुक्ति 'बनारस' में ही मिलती है....शायद यही वजह है कि ईसा मसीह को भी 'बेतलेहेम से बनारस' आना पड़ा.....मुक्ति के लिए..

ईसा मसीह ने १३ साल से ३० साल तक क्या किया, यह रहस्य की बात है..
इस अन्तराल ईसा मसीह का जीवन कहाँ बीता यह लोगों को मालूम नहीं है..
क्या ईसा मसीह ही सेंट ईसा (Saint Issa) थे और भारत आये थे?
निकोलस नोतोविच (Nicolas Notovitch) एक रूसी अन्वेषक था, उसने कुछ साल भारत में बिताये,  बाद में, उन्होने फ्रेंच भाषा में 'द अननोन लाइफ ऑफ जीज़स क्राइस्ट' (The unknown life of Jesus Christ) नामक पुस्तक लिखी है।
निकोलस के मुताबिक यह पुस्तक हेमिस बौद्घ आश्रम (Hemis Monastery) में रखी पुस्तक (The life of saint Issa) पर आधारित है।
उस समय हेमिस बौद्घ आश्रम लद्दाख  के उस भाग में था जो भारत का हिस्सा था, हांलाकि इस समय यह जगह तिब्बत का हिस्सा है।
१३ से १४ वर्ष की उम्र के दरमियान नाज़रेथ के जीज़स आध्यात्म की तलाश में तीर्थ पर निकल गए और आ पहुंचे भारत जहाँ नाजरेथ के जीज़स 'ईसा', धर्मगुरु और इस्रायल के मसीहा या रक्षक बन गए...
ईसा मसीह सिल्क रूट से भारत आये थे और यह आश्रम इसी तरह के सिल्क रूट पर था
उन्होंने यहां अपना समय बौद्घ धर्म से प्रेरित होकर इसके बारे में पढ़ने में बिताया, और उसके बाद बौद्घ धर्म की शिक्षा दी।

हिमालय की वादियों में जीज़स को योग की दीक्षा मिली और सर्वोच्च अध्यात्मिक जीवन भी, .यही उन्हें 'ईशा' नाम भी मिला जिसका अर्थ है, 'मालिक' या स्वामी...हालाँकि ईश्वर के लिए भी इन शब्दों का विस्तृत रूप उपयोग में लाया जाता है ...जैसे कि 'ईश उपनिषद' ......में 'ईश', 'शिव' के लिए भी कहा गया है....

अगले कुछ वर्षों तक हिमालय की वादियाँ जीज़स के लिए दूसरा घर बन गईं ....इस दौरान उन्होंने आज के शहर ऋषिकेश की गुफाओं में आराधना की.....गंगा के तट, हरिद्वार में भी उन्होंने कई वर्ष व्यतीत किये....

फिर ....जीज़स ने बनारस की यात्रा की...... वही 'बनारस' जो भारत के अध्यात्म का हृदय है...जो शिव की नगरी और गहन वैदिक अध्ययन का केंद्र है.....यहाँ जीज़स ने स्वयं को सर्वोच्च योग साधना में डूबो दिया..और उपनिषदों जैसे महान ग्रंथों के तत्व-विचार में लीन हो गए....

जीज़स ने पवित्र जगन्नाथपुरी की यात्रा भी की, जो उस समय बनारस के बाद शिव की दूसरी नगरी थी...जहाँ उन्होंने गोवर्धन मठ की सदस्यता ग्रहण कर मठ के जीवन को आत्मसात किया ......
यहाँ उन्हें योग औए दर्शनशास्त्र पूर्णरूप से संलग्न मिले.....और अंततोगत्वा सार्वजनिक रूप से वो सनातन ज्ञान का विस्तार करने लगे......

बहुत जल्द ही जीज़स लोगों में लोकप्रिय हो गए ....वो विचारक और उपदेशक के रूप में बहुत सफल रहे...लेकिन कुख्याति ने बहुत जल्द उनको कोपभाजन बना लिया.....इसका मुख्य कारण था, वो वेदों का ज्ञान हर सतह के लोगों को देने में विश्वास करते थे ...जिनमें निम्न वर्ग के लोग भी आते थे.....जो अन्य मठाधीशों को मंज़ूर नहीं था...फलतः उनकी हत्या की साजिश रची जाने लगी.....

जीज़स को अपनी हत्या की साजिश का भान हो गया था इसलिए उन्होंने जगन्नाथपुरी छोड़ना श्रेयष्कर समझा ...और पुनः हिमालय की ओर रवाना हुए....इस्रायल लौटने से पूर्व उन्होंने बहुत सारा समय, एक बौद्ध मठ में बिताया, जहाँ उन्होंने गौतम बुद्ध के निर्वाण पर अध्ययन किया..

पश्चिम की ओर यात्रा शुरू करने से पहले भारत के गुरुओं ने जीसस को कुछ स्पष्ट निर्देश दिए थे .....जीसस को मालूम था कि इस्रायल पहुँच कर, कुछ दिनों में उनकी मृत्यु अवश्यम्भावी है, इसलिए भारत में उनका भला चाहनेवालों गुरुओं ने उनसे करार किया था कि हिमालय से चंगा करने वाला द्रव्य उनको दिया जाएगा और ....यह द्रव्य उनको भेज कर स्पष्ट निर्देश दिया गया था कि जब भी ...ऐसा प्रतीत हो उनकी मृत्यु अब निश्चित है.....कोई भी उनका शिष्य जो बहुत ही विश्वासपात्र हो यह द्रव्य उनके शीश पर डालता रहे.......और अगर आप बाईबल पढें तो क्रूस से उनके पार्थिव शरीर को  उतारने के बाद मेरी मग्दलेन ने लगातार तीन दिनों तक इसी द्रव्य को प्रयोग ईसा मसीह के शरीर पर किया, तब, जब उन्हें 'टूम्ब' में रखा गया था.....और वहीं से वो तीसरे दिन जी उठे थे ....


ऐसा मानना है कि अपने जीवन  के अंत में ईसा मसीह स-शरीर स्वर्ग चले गए थे ...लेकिन संत मैथ्यू और संत जोन,  दोनों जो कि ईसाई मत के प्रचारक थे,  साथ ही प्रत्यक्षदर्शी भी थे, ने कभी भी ऐसी कोई बात नहीं कही......क्योंकि उन्हें मालूम था,  उनसे अलग होकर ईसा मसीह स्वर्ग नहीं......भारत आये थे....
ईसा मसीह के स्वर्गारोहण की बात सिर्फ संत मार्क और संत लुके ने ही कही है......जबकि दोनों ही उस समय वहाँ उपस्थित नहीं थे.......

और सच्ची बात भी यही है कि ......वो भारत ही आये थे...हाँ यह हो सकता है कि उन्होंने अपने योग का प्रयोग किया हो ...ऊपर उठ कर यहाँ तक आने के लिए जो कोई नयी बात नहीं थी.....तब योगी ऐसा किया भी करते थे.......

२ री शताब्दी के लिओन के संत इरेनौस द्वारा भी इस बात की पुष्टि की गई है कि ईसा मसीह ने ३३ वर्ष कि आयु में अपना शरीर नहीं त्यागा था ...उनका कहना है कि ईसा मसीह ने पचास से ऊपर अपनी ज़िन्दगी जी थी दुनिया छोड़ने से पहले......जब कि उनको सलीब पर ३३ साल की उम्र में टांगा गया था...इसका अर्थ यह होता है कि .....क्रुसिफिक्शन के बाद २० वर्षों तक वो जीवित रहे ...हालाँकि संत इरेनौस की  इस दलील ने कई ईसाई मठाधीशों को बहुत परेशान किया है.....आज भी वेटिकन ने धर्म की राजनीति का खेल खेलते हुए ......ईसा से सम्बंधित न जाने कितने तथ्यों को छुपाया हुआ है, फिर भी मानने वाले मानते हैं कि  वो अपनी माता और पत्नी 'मेरी मग्द्लेन' के साथ भारत ही आये....बाद में उनकी एक पुत्री भी हुई थी 'सारा' ........कहा जाता है उनकी माता मरियम की कब्र आज भी कश्मीर में है......

सच्चाई भी यही है कि चाहे वो किसी भी धर्म के हों.........धर्म गुरुओं तक तो अपनी मुक्ति कि लिए 'बनारस' की शरण में आना ही पड़ता है...और कोई रास्ता नहीं है ...!!!


Thursday, November 25, 2010

हर फिकराकस की एक औक़ात होती है....!!



एक सूचना Quepasa.com से कई लोगों को मेरी ताफ से यानी 'अदा' से दोस्ती के पैगाम जा रहे हैं..आप सबसे ये कहना चाहती हूँ कि मैंने किसी को भी ऐसा कोई सन्देश नहीं भेजा है, अगर आपके पास ऐसा कोई भी ईमेल आया हो तो कृपा करके उसे तुरंत डिलीट कर दें, वो मैंने नहीं भेजा है...धन्यवाद ..!!

मसक जातीं हैं,
अस्मतें,
किसी के फ़िकरों
की चुभन से,
बसते हैं मुझमें भी
हया में सिमटे
आदम और हव्वा,
जो झुकी नज़रों से

देखते हैं,

खुल्द के फल का असर,
दिखाती हैं

सही फ़ितरत, 

इन्सानों की,
उनकी तहज़ीब-ओ-बोलियाँ,
वर्ना पैरहन के नीचे 

सबका सच एक ही होता है ,
मानों...या न मानों
फ़िकरों की भी, ज़ात होती है,
और हर फिकराकस की 
एक औक़ात होती है.....



इतना तो याद है मुझे.....'अदा' की आवाज़...

Tuesday, November 23, 2010

पेज ३ का अपना ही सच होता है....!


एक ही घर में,
एक ही कमरे में,
एक ही बिस्तर पर,
अलग अलग खामोशियाँ,
हज़ारों मील के फासले पर होतीं हैं,
सालों गुत्थम-गुत्था होने के बावज़ूद 
कहाँ एक हो पातीं हैं,
बनावटी रौशनी के झालरों से 
रौनकों की भीड़ लगा कर,
भ्रम की ज़मीन पर 
कितने एहतियात से,
खिलाये जाते हैं,
खुशियों के
कागज़ी फूल,
जिन्हें बतकही की ख़ुशबू 
से सराबोर करके,
छुपाई जाती है, 
रिश्तों की सड़ांध
और जताया जाता है कि 
सब कुछ ठीक-ठाक है,
इसीलिए तो कहा जाता है,
पेज ३ का अपना 
ही सच होता है....!


Monday, November 22, 2010

हिंदी ब्लॉग जगत के स्वर्णिम दिन काहे को उकताए हैं ?


बहुते दिन बाद हम तो, आज ईहाँ पर आयें हैं
मगर देख हैरान हम हूँ, सब धुरंधर ठंढाए हैं 
न कहीं गर्जन-तर्ज़न, न कोई चिल्लाये है 
आरोप-प्रत्यारोप भी, एकदम दुम दबाये हैं 
फिर काहे सार्थक लेखन पर, असार्थक बदली छाये हैं, 
ग़ज़ल-कविता घिसट रही है, कहनी-कथा घिघियाये हैं 
का सब पोलिटेकली करेक्ट होने का भारी कसम उठाये हैं ?
या वक़्त ने सबकी लेखनी को, जम कर जंग लगाए है
अथवा कल्पना की उड़ान छोटे ब्रेक पर जाए है
ब्लॉग जगत के शूर-वीर काहे को मुरझाये हैं
हिंदी ब्लॉग जगत के स्वर्णिम दिन अभी काहे उकताए हैं ? 





Sunday, November 21, 2010

तिनका ही था कमज़ोर सा, उसका मुक़द्दर, देखना ...


किस्मत की वीरानियों का, मेरा वो मंजर, देखना 
हैराँ हूँ घर की दीवार के, उतरे हैं सब रंग, देखना 

उड़ता रहा आँधियों में वो, जाने कितना दर-ब-दर 
तिनका ही था कमज़ोर सा, उसका मुक़द्दर, देखना

पोशीदा है ज़मीन के, हर ज़र्रे पर दिलकश बहार 
उतरो ज़रा आसमान से, आएगी नज़र वो, देखना

सोया किया क़रीब ही, फ़रिश्ता दश्त-ए-दिल का 
ख़ुशबू सी उसकी बस गई, महका है शजर, देखना

वादियाँ मेरा दामन, रास्ते मेरी बाहें ...आवाज़ 'अदा' की ..

Saturday, November 20, 2010

हमारी कुप्रथाएं ...


आज कल जीव हत्या पर काफ़ी बातें हो रहीं है...मैं भी जीव हत्या की भरपूर भर्त्सना करती हूँ और खुल कर इसका विरोध भी करना चाहूँगी.....
बलि की प्रथा आज की नहीं है ..यह सदियों पुरानी है और यह प्रथा हर धर्म में है...चाहे हिन्दू धर्म हो, इस्लाम या ईसाई...हर धर्म में इस कुप्रथा को अपने ईष्ट को प्रसन्न करने के लिए अपनाया गया है..बाईबल में अब्राहम का ही उदाहरण लें ..उसने ईश्वर को ख़ुश करने के लिए अपने छोटे बेटे की बलि देनी चाही...बलि देने से पहले ही ईश्वर प्रसन्न तो हुए लेकिन उनको बलि चाहिए ही थी इसलिए झाड़ियों के बीच फंसा हुआ एक नीरीह मेमना नज़र आया..जिसे झाड़ियों से निकाला गया और अंततोगत्वा उसकी बलि देकर अब्राहम ने ईश्वर के आदेश से अपना प्रण पूरा किया....
अब सोचने वाली बात ये है कि उस मेमने का क्या कसूर था ?

आज भी आप किसी भी गिरजा घर में प्रार्थना में सम्मिलित हों तो ...ईसा मसीह की देह और उनका रक्त ही सांकेतिक प्रसाद स्वरुप लोग ग्रहण करते हैं...ये चीज़ें बेशक सांकेतिक रूप में रोटी और रेड वाईन के रूप में ली जाती है ...परन्तु बात तो माँस और रक्त की ही होती है...

मंदिरों में आज भी लोग बलि तो देते ही हैं...अब चाहे वो किसी पशु की बलि हो या फिर नारियल तोड़ कर ...नारियल तोड़ना बेशक एक सांकेतिक प्रकिया है परन्तु उसका आशय बलि देना ही है...हाँ अच्छी बात कह लें इसे कि इस काम में किसी की जान जाती हुई नज़र नहीं आती है...

हत्या हम सभी हर दिन, हर पल करते हैं...हमारा भोजन ही ले लें ...चावल-दाल, सब्जियां, पनीर, दूध, दही, मक्खन, ये सभी खाद्य पदार्थ जीते-जागते पौधों से ही आते हैं...बस उनका खून लाल नहीं होता....हाँ, इनकी हत्या से हृदय आंदोलित नहीं होता क्योंकि ये हमारी तरह, ना तो चलायमान हैं, नहीं ही रुधिर का ह्रास  दिखता है, ना ही इनकी आँखों में वो दर्द छलकता है...परन्तु जीवित रहने के लिए कुछ खाना तो है ही...साथ ही श्रृष्टि को भी चलना है....और एक सीमा भी तय किया जाना चाहिए कि आख़िर 'हत्या' किसे कहा जाए..?

हमारा परिवेश, हमारी समझ और हमारा समय बदल रहा है...हम पहले जैसे अब नहीं रहे...वैसे जितनी भी प्रथाएं आज तक प्रचलित रहीं हैं...वो सभी किसी न किसी घटना से शुरू हुई हैं...और हम ये ना भूलें, हर घटना के पीछे कई कारण होते हैं, मसलन काल, परिवेश और व्यक्ति विशेष....उस समय जो उबलब्ध था और जैसी समाज की प्रवृति थी वही किया गया...बहुत पुरानी बात भी नहीं है, जब नर-बलि तक की प्रथा थी, सती-प्रथा थी...इन सबके पीछे हमारे समाज की प्रवृति और उस समय का माहौल ने ही काम किया होगा...हाँ, अब हमारा समाज ज्यादा सभ्य, मुखर और संवेदनशील है...इसलिए हम अपनी संवेदना व्यक्त कर पाते हैं...साथ ही अपने अनुसार अपना जीवन चलाने के योग्य हैं...हम अब धर्मभीरु नहीं हैं...लेकिन आज से कुछ साल पहले तक, हमारे अपने जीवन की बागडोर वस्तुतः दूसरों के हाथों में होती थी...अक्सर सारे काम अपने लिए कम हम दूसरों के लिया ज्यादा करते थे...अब वो हमारे बुज़ुर्ग हों या हमारे धर्माधिकारी ....

ख़ुशी की बात यह है कि अब समाज का हर व्यक्ति मानसिक रूप से ज्यादा सशक्त, विचारों से व्यापक और समझदार हो रहा है...अच्छे -बुरे की न सिर्फ़ पहचान कर पाने में हम सक्षम हैं अपितु उसे अपने जीवन में लागू करने में भी समर्थ हैं...
इस तरह की बलि प्रथा हमने तो देखा है लेकिन हमारे बच्चे उतना नहीं देख रहे हैं इसलिए ...आगे आने वाली पीढ़ी इनको नहीं ही अपनाएगी...जिस तरह, नर-बलि, सती-प्रथा का अंत हो चुका है उसी तरह पशु-बलि की प्रथा भी अब लुप्तप्राय ही है इसलिए यह कुप्रथा बहुत ज्यादा चिंता का विषय भी नहीं है...मेरा ऐसा मानना है...आप क्या सोचते हैं..?



ब्लॉग जगत रूपी भवसागर में....


पुरानी है जी...

ब्लॉग जगत रूपी भवसागर में,
छद्म नाम फाड़ कर
कोई तो 
रूप गर्विता सच्चाई 
को सामने ले आओ,
कोई तो प्रेम के दर्शन कराओ !
परन्तु तुम्हें क्या !
तुम तो ...
पोस्ट को अदाओं से गरिष्ठ 
और चिटठा जगत में वरिष्ठ बनाओ,
जो कमसुख़न हों 
उन्हें सुख़नवर दिखाओ,
यहाँ बिना कृति के कीर्ति 
और बिना प्रतिभा के प्रतिष्ठा
मिलती है,
कभी-कभी तो
आयु और मेधा 
एक दूसरे से बतियाते तक नहीं,
उच्च पदासीन रहते हैं 
हंगामे और बवाल,
कुछ...
पुरखे ताज़ा-तरीन हैं,
और कुछ बस नीम जिंदा,
कुछ...
खिलाड़ी निर्विवाद हैं,
लेकिन... 
ज्यादा देदीप्यमान हैं
उन्मादी और लफंगे,
ये तो अच्छा है कि 
कनिष्ठों की बहार है,
और...
कुछ वरिष्ठ तारनहार हैं,
बस... 
एक हम जैसे 
दरमियान में आ जाते हैं ,
कहाँ समझ पाते हैं !
हवाओं की खुसुर-फुसुर,
फिलहाल जाने क्यूँ 
दिशाएं सुन्न लग रहीं हैं...!



Thursday, November 18, 2010

गुलाबी मौसम....



पहलू में मौसम गुलाबी हुआ है
साँसों में सुर्ख़ी सी छाने लगी है

पतझड़ की पाती सावन की केहुनी
इशारों की दुनिया बुलाने लगी है

वो बूटों में सजता है तारों में रचता
शै अनजानी शक्ल जानी लगी है

बातों की पायल किस्सों के झूमर
गीतों की दुनिया गुनगुनाने लगी है

क़समों का तकिया है वादों की रातें
लगावट  कमरा अब सजाने लगी है

जीना है तुझ संग मरना भी तुझ संग
'अदा' तू रिश्ता निभाने लगी है

मैंने इसे गाने की कोशिश की  है ..बिलकुल rough है..मक़सद सिर्फ़; ये बताना है कि इसे गाया जा सकता है..

ग़म का है दरिया सही, पर तर जाओगे तुम ....


ग़म का है दरिया सही, पर तर जाओगे तुम
तस्वीर-ए-जाना बन दिल में, उतर आओगे तुम 

भँवर साज़िश रचते रहे, डूबोने की तुम्हें 
सागर की तहों से मगर, उभर आओगे तुम

ढूँढा किये तुम्हें हम, कहाँ-कहाँ हर जगह 
कभी, कहीं, किसी जगह, नज़र आओगे तुम 

बिछ गईं हज़ार आँखें, तेरी ही रहगुज़र में 
मिलूँगी मैं वहीं तुम्हें, जिधर जाओगे तुम 

लिए फ़िरते हो पहलू में, रक़ीब हर जगह 
कहो न कब अकेलेमेरे घर आओगे तुम 




Wednesday, November 17, 2010

और हो जाएगा नव-निर्माण, हमारे मन के वृन्दावन का...


विष वृक्ष की तरह फैलते 
इस डाह में,
भर दो अणुशस्त्रों की आग,
जिसकी लपट से 
झुलसे चेहरों को,
अपनी असलियत पर आने दो,
गलाने पर जो तुले हैं
हमारी अस्मिता-तरु को,
उन सांप्रदायिक डालियों को काट डालो ,
ख़ूब लड़ें हम आओ मिलकर,
मगर टूटने की बात न करें,
हो जाने दो हाहाकार,
बस एक बार,
कर लो हर फसाद,
बह जाने दो हर मवाद,
द्वेष की काली काई निकल जाने दो,
उज्जवल स्फटिक पथ बन जाने दो,
आलोकित हो जाएगा
रास्ता उत्थान का,
फिर हो जाएगा नव-निर्माण 
हमारे मन के वृन्दावन का...

Tuesday, November 16, 2010

खुशियों का ये चश्मा है, अब दीदार तुझसे है ....


मेरे ख़यालों की वादी, गुलज़ार तुझसे है
दिल के मेरे अंजुमन में, बहार तुझसे है

तेरे होंठों पे चटक गए, हज़ारों गुँचे 
मेरी ग़ज़ल का हर इक, अशआर तुझसे है

नर्गिस कहूँ तुझे, या कहूँ रूह-ए-चमन
गुलों में रंग, गुलिस्ताँ का सिंगार तुझसे है 

मयगुसार तेरी आखें, हमें बेसुध कर गईं 
खुशियों का ये चश्मा है, अब दीदार तुझसे है