Wednesday, October 20, 2010

रिश्तों की एलास्टिक ...

पुरानी प्रविष्टी आपकी नज़र ...


तुम बार-बार मुझे,
ऐसे ही सताते हो,
पहले क़रीब लाते हो,
फिर दूर हटाते हो,
जानती हूँ ,
तुम्हें अच्छा लगता है,
मुझे रुलाना,
और बाद में
मनाना,
अपनी मर्ज़ी के
इल्ज़ाम लगाना,
इल्ज़ामों के वज़ूद को
जबरन पुख्ता बनाना,
ये अच्छा नहीं है
कहे देती हूँ,
इस तरह बार-बार
खींचोगे तो,
रिश्तों की एलास्टिक
ख़राब हो जायेगी,
फिर बाद में वो,
ज़रबंद के भी
काम नहीं आएगी....

11 comments:

  1. bilkul sahi. rishto ki dor bahut kachchi hoti hai. ek baar toot jane par dobara nahi judti hai.

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  2. जानती हूँ ,
    तुम्हें अच्छा लगता है,
    मुझे रुलाना,
    और बाद में
    मनाना,
    अपनी मर्ज़ी के
    इल्ज़ाम लगाना,
    इल्ज़ामों के वज़ूद को
    जबरन पुख्ता बनाना,
    ये अच्छा नहीं है
    कहे देती हूँ,

    ...रुठना, मनाना कभी अच्छा भी लगता है
    पर अधिक खिंचने से रिश्तों की एलास्टिक
    ख़राब हो जायेगी,
    बाद में वो,
    ज़रबंद के भी
    काम नहीं आएगी....

    बहुत बढ़िया ...

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  3. प्यार मनुहार की डांट बहुत अच्छी लगी.

    सुंदर. अति सुंदर.

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  4. 00/10

    बेतुकी / व्यर्थ

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  5. रिश्ते नाजुक होते हैं ..

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  6. रिश्तों में माइनस प्लस के प्रतीक बतौर एलास्टिक का प्रयोग भा गया हमें ! क़ाबिले तारीफ ख्याल !

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  7. रिश्ते भी तो इलास्टिक की तरह ही हैं ...
    ज्यादा खींचे -छोड़े जाएँ तो ढीले होकर नष्ट , बेकार हो जाते हैं ...
    अच्छी कविता ...

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  8. sahi kaha aapne.........reeshto ki khattas meetane me bahut takleef hoti hai......:)

    isliiye aise rakho ki garmahat bani rahe....:)

    bahut shandar rachna!!

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  9. कितना अजीब लगता है न कि इतने तगड़े रिश्तों को जोड़ने वाली डोर कितनी पतली होती है. मगर हाँ, पतली डोर में गिट्ठे उतने पता नहीं चलते, फिर क्यूँ ऐसा होता है कि रिश्तों की डोर में गिट्ठे इतने उजागर हो जाते हैं!
    खैर, बहुत सुन्दर प्रस्तुति है! धन्यवाद!
    http://draashu.blogspot.com/2010/10/blog-post_20.html

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  10. एक बात बताईये, आपके यहाँ कमेंट माडरेशन है। ये क्या चीज होती है और किसलिये होती है?

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