Saturday, October 16, 2010

बहार ख़ुदकुशी कर गई, लोग उसे दफ़्न कर आए ....



मौसम फिर से बदला है, हमसफ़र लौट ही आए 
खुशियों का अब सिलसिला, देखें फिर कहाँ जाए

शजर सब्ज़ सा लागे, नज़ारे फिर से मुस्काये  
मगर जो उड़ गए पंछी, कहाँ वो लौट कर आए

अभी कल का मसला है, ये शाखें गुँचा-गुँचा थीं 
बहार ख़ुदकुशी कर गई, लोग उसे दफ़्न कर आए

आँधियाँ भी धमकतीं थीं, उठ रहे थे वो ज़लज़ले
इस संगीन मौसम में, शुक्र है तुम चले आए 

मेरे ख़्वाबों में रातों को, बिजलियाँ कौन्धतीं जातीं  
उतर कर दिल के आँगन में, हज़ारों चाँद गहनाए 

ग़मों की तेज़ धूप हो, और जल जाने का ख़तरा हो 
ख़ुदाया ऐसे में तुझको, मेरी ज़ुल्फों की याद आए  

हमारा क्या, मुसाफ़िर हैं, कहीं भी ठौर पा लेंगे
फ़िक्र अब रास्ता कर ले, कहाँ रुकना, कहाँ जाए 

12 comments:

  1. @
    आँधियाँ भी धमकतीं थीं, उठ रहे थे वो ज़लज़ले
    इस संगीन मौसम में, शुक्र है तुम चले आए

    ग़मों की तेज़ धूप हो, और जल जाने का ख़तरा हो
    ख़ुदाया ऐसे में तुझको, मेरी ज़ुल्फों की याद आए

    इनसे जुड़ाव सा अनुभव कर रहा हूँ। आभार।

    @ उतर कर दिल के आँगन में, हज़ारों चाँद गहनाए
    'गहनाए' प्रयोग पर थम सा गया हूँ। बहुत दिनों के बाद वह दिखा जिसकी तलाश रहती है।

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  2. आँधियाँ भी धमकतीं थीं, उठ रहे थे वो ज़लज़ले
    इस संगीन मौसम में, शुक्र है तुम चले आए
    बहुत ही ख़ूबसूरत रचना..आपकी कलम का यही तो जादू है..
    आपको दशहरा की ढेर सारी बधाई...
    मेरे ब्लॉग में इस बार...ऐसा क्यूँ मेरे मन में आता है....

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  3. 5/10


    कमियों के बावजूद भी रचना अपना असर छोड़ने में कामयाब है
    सुन्दर पोस्ट

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  4. बेहतरीन, दुर्गा नवमी एवम दशहरा पर्व की हार्दिक बधाई एवम शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  5. आँधियाँ भी धमकतीं थीं, उठ रहे थे वो ज़लज़ले
    इस संगीन मौसम में, शुक्र है तुम चले आए

    baht hi khubsurat rachna

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  6. अभी कल का मसला है, ये शाखें गुँचा-गुँचा थीं
    बहार ख़ुदकुशी कर गई, लोग उसे दफ़्न कर आए
    bahut khoob.... sabhi panktiyan kammal ban padi hain....

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  7. ओह बहारें भी खुदकुशी पर उतारु हो गईं :)

    हमारी बोली आखिरी शेर पर !

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  8. बहुत ही दिल को छूने वाली भावनापूर्ण प्रस्तुति..बहुत सुन्दर..आभार

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  9. खुशियों का सिलसिला बना रहे।

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  10. ankit chawla:


    "रिस्पैक्टैड मैम,
    आपकी पोस्ट पढ़ने में ही बहुत अच्छी है और जब सुर में सुनने को मिलेगी तो फ़िर तो कहने ही क्या होंगे।
    धीरे धीरे आपकी पिछली सारी पोस्ट्स पढ़ रहा हूँ, हर पोस्ट के साथ तस्वीर का सैलेक्शन बहुत अच्छा है।
    किसी भी ब्लॉग पर मेरा पहला कमेंट है(वैसे कल भी यही लिखा था लेकिन कुछ एरर के कारण शायद आपतक पहुंचा नहीं)।
    आपसे बहुत छोटा हूँ, कोई गलती दिखे तो टोक जरूर दीजियेगा।
    धन्यवाद।"

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  11. "शजर सब्ज़ सा लागे, नज़ारे फिर से मुस्काये
    मगर जो उड़ गए पंछी, कहाँ वो लौट कर आए"

    सारी गज़ल ही खूबसूरत है, लेकिन ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं। बहारें लौटनी चाहियें, ये बड़ी बात हैं।

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