Friday, May 7, 2010

एकादशानन.......रावण का ग्यारहवाँ चेहरा...


(पुनः प्रकाशित)

अक्सर मेरे विचार, बार बार जनक के खेत तक जाते हैं
परन्तु हर बार मेरे विचार, कुछ और उलझ से जाते हैं
जनक अगर सदेह थे, तो विदेह क्योँ कहाते हैं ?
क्योँ हमेशा हर बात पर हम रावण को दोषी पाते हैं ?
मेरे विचार, फिर बार बार जनक के खेत तक जाते हैं

क्योँ दशानन रक्तपूरित कलश जनक के खेत में दबाता है ?
क्योँ जनक के हल का फल उस घड़े से ही जा टकराता है ?
कैसे रावण के पाप का घड़ा कन्या का स्वरुप पाता है ?
क्योँ उस कन्या को जनकपुर सिंहासन बेटी स्वरुप अपनाता है ?
किस रिश्ते से उस बालिका को जनकपुत्री बताते हैं ?
मेरे विचार, फिर बार बार जनक के खेत तक जाते हैं

क्योँ रावण सीता स्वयंवर में बिना बुलाये जाता है ?
क्योँ उस सभा में होकर भी वह स्पर्धा से कतराता है ?
क्योँ उसको ललकार कर प्रतिद्वन्दी बनाया जाता है ?
क्योँ लंकापति शिवभक्त, शिव धनुष तोड़ नहीं पता है ?
क्योँ रावण की अल्पशक्ति पर शंकर स्वयम् चकराते हैं ?
मेरे विचार, फिर बार बार जनक के खेत तक जाते हैं

क्योँ इतना तिरस्कृत होकर भी, वह दंडकवन को जाता है ?
किस प्रेम के वश में वह, सीता को हर ले जाता है ?
कितना पराक्रमी, बलशाली, पर सिया से मुंहकी खाता है ?
क्योँ जानकी को राजभवन नहीं, अशोकवन में ठहराता है ?
क्या छल-छद्म पर चलने वाले इतनी जल्दी झुक जाते हैं ?
मेरे विचार, फिर बार बार जनक के खेत तक जाते हैं

क्योँ इतिहास दशानन को इतना नीच बताता है ?
फिर भी लंकापति मृत्युशैया पर रघुवर को पाठ पढ़ाता है
वह कौन सा ज्ञान था जिसे सुन कर राम नतमस्तक हो जाते हैं ?
चरित्रहीन का वध करके भी रघुवर क्यों पछताते हैं ?
रक्तकलश से कन्या तक का रहस्य समझ नहीं पाते हैं
इसीलिए तो मेरे विचार जनक के खेत तक जाते हैं

27 comments:

  1. kal aapse suna aur aaj padh liya di... bahut sahi sawaal khade kiye ek bar fir..

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  2. यही है वह प्रतिभा स्वप्न ,जो मुझे कायल बनाती है
    जो आपको प्रायः जनक के खेत तक ले जाती है !

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  3. नरेन्द्र कोहली की रामावतार शृंखला पढ़िए। रक्त से भरे घड़े और खेत में पाई गई सीता का रहस्य समझ में आ जाएगा। 'महाज्ञानी' रावण के लिए कोई सहानुभूति भी नहीं बचेगी।
    यह शृंखला सबको पढ़नी चाहिए।

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  4. गहन चिंतन मनन के परिणाम स्वरूप ही ऐसे रचना का जन्म होता है / ऐसे ही सोच से बुराई पर अच्छाई की विजय होती है / एक अदृश्य शक्ति की अदालत भी है ,जहाँ सिर्फ न्याय होता है बाकि किसी प्रकार का अन्याय नहीं /

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  5. अदा जी,
    इतने तो नहीं पर ऐसे ही कुछ सवाल मुझे भी सालते रहे हैं। जवाब नहीं मिलते हैं, क्योंकि लोग या तो एकदम अंधविश्वासी हैं या एकदम अविश्वासी। या तो सिर्फ़ पूजने वाले मिलते हैं या सिर्फ़ गरियाने वाले।
    बनी बनाई लीक पर चलना सरल होता है न।
    और आज की पोस्ट पढ़कर सवाल और भी बढ़ गये है।
    किसी बात को देखने का आप का अनूठा दृष्टिकोण प्रभावित भी करता है और हमारा कॉम्पलेक्स और बढ़ा देता है। क्या कहते हैं - मेस्मिराईज़िंग ही कहते हैं शायद।
    आभार स्वीकार करें।

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  6. ऐसा भारीभरकम पढ़ कर मुझ जैसे कमअक्लों को कमेंट करने में बड़ी दिक्कत हो जाती है...

    क्योंकि अपने विचार तो बस मक्खन के गेराज तक ही जा पाते हैं...

    जय हिंद...

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  7. @ गिरिजेश राव:

    गिरिजेश सर, मैं शायद नौंवी कक्षा में था जब नरेन्द्र कोहली लिखित सीरिज़ की ’दीक्षा’ कहीं से पुरस्कार में मिली थी। उसके बाद ’अवसर, संघर्ष की ओर, युद्ध’ सभी भाग ढूंढ कर पढ़े थे और उसके बाद भी कई बार लाईब्रेरी से लाकर पढ़ता रहा हूं। आपसे सहमत हूं कि इस विषय पर शायद सबसे व्याव्हारिक लेखन इसी सीरिज़ में है। पर सवाल तो यहीं से खड़े होने शुरू हुये थे, शायद तर्क के लिये उम्र बहुत कम थी उस समय। दोबारा तलाश शुरू करते हैं। आपका कमेंट अभी दिखा, इसीलिये दुबारा आया हूं।

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  8. महाज्ञानी रावण मेरे लिए तो सहानुभूति का पात्र नहीं बन सकता ...!!
    वैसे आपकी कविता बहुत ही अच्छी लगी ....

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  9. hnm...


    bahut sunder..

    kaafi pahle suni thi.

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  10. पुनः प्रकाशन पर भी धमक वही..आनन्द आया

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  11. ये रचना बहुत दम रखती है

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  12. बहुत सुन्दर रचना है ... सवाल करना ज़रूरी है ... अंधा विश्वास हर जगह काम नहीं आता है !
    रामायण मिथक भी है और इतिहास भी ... इतिहास कोई आदमी ही लिखता है ... इसमें उसका अपना दृष्टिकोण भी होता है ... जो बाद में कई सवाल खड़ा कर सकता है!

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  13. क्या छल-छद्म पर चलने वाले इतनी जल्दी झुक जाते हैं ?
    मेरे विचार, फिर बार बार जनक के खेत तक जाते हैं
    बहुत सुन्दर !

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  14. जी मैंने तो ये पहली बार ही पढ़ी है!यदि सोचे तो .........

    हर बात 'क्यों' पर ही अटक जाती है!क्यों का जवाब नहीं है कोई!मै सोचता हूँ....

    कुंवर जी,

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  15. व्यवहारिक प्रश्न, जनक के खेत तक जाने के प्रयत्न को निष्फल नहीं होने देंगे ।

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  16. @-महाज्ञानी रावण मेरे लिए तो सहानुभूति का पात्र नहीं बन सकता ...!!

    Vani ji se sehmat hun !

    Beautiful creation !

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  17. बहुत बढ़िया रचना !! आभार !

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  18. charcha manch ke thrugh yahaan tak pahuncha...achhi lagi rachna..charcha yogya hai .. is rachna ka kathya bahut mahtvapurn hai ..aur sabhi ko ispe sochna chahiye.. shuqriya ki apne likha

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  19. बहुत सही सवाल, लेकिन गिरिजेश जी के जवाब से इत्तेफ़ाक रखती हूं मैं भी. नरेन्द्र कोहली की रामावतार और महासमर दोनों ऐसी श्रृंखलाएं हैं, जिन्होंने रामायण और महाभारत काल से जुड़े कई अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर दिये हैं.

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  20. accha likha hain ,bahut sundar ,kya likha hain aapne ,par main ye hi kehna chahunga ke saari baate suni hui hain kisi ne dekha nahi hain kuch bhi ,kuch baate agar sahi hain to kuch galat bhi hogi hi ,aur agar sab kuch sahi hoga to dono pahlu barabar kaise honge
    baise is bat par ek acchi argument ho sakti hain ,kaafi bada mudda uthaya hain aapne
    bahut khub

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  21. पता नही जी मै कभी इतने गहरे इन धर्म ग्रंथो को कभी पढा नही, वेसे कोई भी शक्ति शाली आदमी किसी से बिना लडए हार मान ले तो....वो मर्द नही होगा

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  22. सम्पूर्ण रामायण को एक नए रूप में पढ़कर अच्छा लगा । लेकिन हर क्यों का क्या ज़वाब है ?

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  23. बहुत ही बढ़िया प्रवाह.......उत्तम रचना......

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  24. एक पंडित जी हैं, रामचरित मानस के बहुत अच्छे वक्ता हैं......मैंने उनसे प्रश्न किया कि महाराज जब रावण इतना विद्वान् था, महान शिवभक्त था फिर भी उसने ऐसे दुष्कर्म करें , क्यूँ???
    वो बोले --- रावण के कुल के लोग अर्थात असुर रावण का नाम लेकर पृथ्वी पर आतंक मचाने लग गये थे, रावण ने सोचा इस तरह तो पृथ्वी मैया का नाश हो जायेगा, इसलिए वो सीता माँ का अपरहण कर लाया और अपने कुल के विनाश का मार्ग खोल दिया

    अब चाहे जो भी हो, मुझे तो तर्क भा गया

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