वो !
चाँद ढला सागर में,
सितारे टूटते रहे
लेकर अंगडाई,
वो ख़ुशी की रात
जो जगी है साथ,
ख़्वाबों की बजी शहनाई,
हर चेहरे पर लगे हैं
वफ़ा के उपटन,
है कौन अपना
और पराया कौन ?
ख़ुशी की महफ़िल में
थिरकते हैं बदन,
ग़म का है दरिया
पार उतरेगा कौन ?
यूँ लिख रही हूँ
बरक़-बरक़ मैं
मसरूफ़ियत के आलम में
इसे पढ़ेगा कौन.....?
बेकरार दिल तू गाये जा खुशियों से भरे वो तराने
आवाज़ ....स्वप्न मंजूषा 'अदा'
मसरूफ़ियत के आलम में
ReplyDeleteइसे पढ़ेगा कौन.....?
इतने भी मसरूफ नहीं कि इतनी खूबसूरत रचना भी पढने से वंचित रह जायें.
जब सुनने की सुविधा है तो पढ़ें भी क्यों ?
ReplyDeleteहम तो पढ़ चुके औरों का क्या पता?
ReplyDeleteहम पढ़ेंगे और दुनिया पढ़ेगी।
ReplyDeleteऐसे खूबसूरत जज़्बात कौन छोड़ना चाहेगा जी?
आप बस लिखती रहे, गाती रहें।
सदैव आभारी।
हमने तो पढ़ ली, अब!! :) सुन भी लिए...
ReplyDeleteबेहतरीन रचना .....पढ़ने वाले तो पढ़ने के लिए मचलते रहते है .
ReplyDelete@हर चेहरे पर लगे हैं
ReplyDeleteवफ़ा के उपटन,
है कौन अपना
और पराया कौन ?...
बहुत ही मुश्किल है इस दौर में जान पाना ..मगर किसी पर तो भरोसा करना ही पड़ता है ...
waah hame to fursat hi fursat hai so padh hi li :) geet bhi sun liya...:)
ReplyDeleteरचना के साथ-साथ आपने गीत को भी मधुर स्रों में गाया है!
ReplyDeleteबधाई!
आज इस मुर्दा संसार में बफा की आशा करना बहुत ही मुश्किल है ,लेकिन हम खुद तो किसी अच्छे और सच्चे के साथ बफा कर ही सकते हैं /
ReplyDeleteखुशी की वो रात आ गई,
ReplyDeleteकोई गीत जगने दो,
गाओ....रे झूम-झूम...
गाओ....रे झूम-झूम...
कहीं कोई कांटा लगे जो पग में,
तो लगने दो,
नाचो...रे झूम-झूम...
गाओ....रे झूम-झूम...
जय हिंद...
बहुत बढि्या-अच्छी रचना
ReplyDeleteआभार
मन को लिखा,
ReplyDeleteदर्द न गया,
वो तो तब जायेगा,
जिसके लिये लिखा,
जब वह पढ़ पायेगा ।
अदा जी ...सुप्रभात ...
ReplyDeleteकरते धरते कुछ नहीं फिर भी मसरूफ तो हम बचपन से ही है ,,,,,पर खुदा ना करे की इतने मसरूफ हो जाए की आपका लिखा , गाया.....पढ़ ,सुन ना सके .....भोर का हसीं आलम और आपकी ये मधुर आवाज दोनों मिलकर हमें बड़ा आनंदित करते है ....एक तो सुन्दर रचना और उस पर ये आपका गाया गीत ,,,सोने पे सुहागा ....बस इसे जारी रखे ,,,हम आपके हर गीत को दिल से सुनने और हर रचना को मन से पढने का वादा करते है ...रोज़ कमाल करना तो कोई आपसे सीखे ....बहुत खूब , लाजवाब
हर चेहरे पर लगे हैं
ReplyDeleteवफ़ा के उपटन,
है कौन अपना
और पराया कौन ?
ख़ुशी की महफ़िल में
थिरकते हैं बदन,
ग़म का है दरिया
पार उतरेगा कौन ?
बेहतरीन !
फिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई
ReplyDeletewaah waah.........
ReplyDeleteअनुपम रचना.........
बेहतरीन रचना....... बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ|
ReplyDeleteहम आपके हर गीत को दिल से सुनने और हर रचना को मन से पढने का वादा करते है ..
ReplyDelete.........ढेर सारी शुभकामनायें.
ReplyDeleteमसरूफ़ियत के आलम में
ReplyDeleteइसे पढ़ेगा कौन.....?
Katal-e-aam kar dia :) Bahut achha likha hai and climax is beautiful!
Regards,
Dimple
हर चेहरे पर लगे हैं
ReplyDeleteवफ़ा के उपटन,
है कौन अपना
और पराया कौन ?
aap bahut achha likhti h.....vaisebaahuto ne kahaa hoga....lekin, ek baar aur kahne me burai hi kya hai!