जुल्फें सियाह खोल दूँ मौसम हो बिजलियों के
देखूं तेरी तकदीर में हैं साए कितने रकीबों के
मेरा देर से आना और तेरे रुख़ की वो शिकन
फिर खुलेगा दफ़्तर वही हज़ार शिकायतों के
तुम्हें जाँ बना लिया मगर अभी सोचना होगा मुझे
मेरी तक़दीर में हो जाने कितने अज़ाब क़यामतों के
आँखे तो बस पत्थर हुई तेरा इंतज़ार लिपट गया
थिरक उठे हसीं लम्हें ज्यूँ हुज़ूम हो जुगनुओं के
रिमझिम गिरे सावन ...आवाज़ 'अदा' की...
लाजवाब कर दिया आपने...
ReplyDeleteअभी एक मित्र की दिलजलों वाली सैडी कविता पढ़ी...मन भारी हो गया था...ऐसे ही कुछ फुहारों की दरकार थी...सो आपने पूरी कर दी...शुक्रिया
आलोक साहिल
तुम्हें जाँ बना लिया मगर अभी सोचना होगा मुझे
ReplyDeleteमेरी तक़दीर में हो जाने कितने अज़ाब क़यामतों के ...
तकदीर की डोर अनजानी ...
जाने क्या हो कहानी ....
आँखे तो बस पत्थर हुई तेरा इंतज़ार लिपट गया
थिरक उठे हसीं लम्हें ज्यूँ हुज़ूम हो जुगनुओं के ...
पत्थर हुई आँखों में जुगनुओं के हुजूम ...उकेरे गए होंगे दर्द की लकीरों से ...
मेरा देर से आना औ तेरे रुख़ की वो उलझी शिकन
ReplyDeleteफिर खुलेगा दफ़्तर वही हज़ार शिकायतों के
-बहुत सुन्दर!
न झटको ज़ुल्फ से पानी,
ReplyDeleteये मोती छूट जाएंगे,
तुम्हारा कुछ न बिगड़ेगा,
मगर कई दिल टूट जाएंगे...
बारिश का मेरा सबसे पसंदीदा गीत सुनवाने के लिए शुक्रिया...
जय हिंद...
सुन्दर रचना।
ReplyDeletehnm...
ReplyDeletedaftar "KHULENGE" aaj fir kitni shikaayton ke...
mahfil mein kaise kah dein kisi se...
dil bandh rahaa hai ik ajnabi se...
bhagjogni...
ReplyDeleteshabd kaa arth shaayad ham sahi se nahin jaante..
bataaiyegaa....
तुम्हें जाँ बना लिया मगर अभी सोचना होगा मुझे
ReplyDeleteमेरी तक़दीर में हो जाने कितने अज़ाब क़यामतों के
लाजवाब पंक्ति .......पूर्ण रचना बहुत बेहतरीन
भीषण गर्मी के मौसम में आपका सावन का गीत सुनकर ठंडक सी पड़ गई अदा जी ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ।
@ Manu ji...Bhagjogni ka arth JUGNU ho ta hai....
ReplyDeletebahut hi sundar rachna....
ReplyDeletewaah kya baat hai...
regards..
aur haan meri kavitaon ko bhi aapki pratikriya ka intzaar hai.......
nayi jaankaari dene ke liye aapkaa hraday se aabhaar...
ReplyDeleteबड़ी सुन्दर
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeleteमीठी आवाज़ से सजा सुन्दर गीत. आभार.
ReplyDeleteसुन्दर रचना।
ReplyDeleteबहुत लाजवाब, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
मेरा देर से आना औ तेरे रुख़ की वो उलझी शिकन
ReplyDeleteफिर खुलेगा दफ़्तर वही हज़ार शिकायतों के
बहुत सुन्दर भाव लिए हुए शानदार रचना!
उम्दा ........बेहद उम्दा !!
ReplyDeleteलाजवाब।
ReplyDeleteआभार
"फिर खुलेगा दफ़्तर वही हज़ार शिकायतों के"
ReplyDeleteKhoobsurat!
And U sing very well :)
Regards,
Dimple
bahut khoob likha aapne
ReplyDeletehttp://sanjaykuamr.blogspot.com/