लिया इक हर्फ़ हाथों में, फ़साना ही बना डाला
पत्थर से पड़े थे वो, दीवाना ही बना डाला
निभाई दुश्मनी हमने, बड़ी शिद्दत से दुनिया में
संजोया दुश्मनों को भी, खज़ाना ही बना डाला
रखा था इक दीया हमने, हमारे घर की चौखट पर
लगी जब आग, शोलों से, तराना ही बना डाला
कई मजबूरियाँ आईं, जफ़ाओं को निभाने में
कहाँ तक उनको समझाते, बहाना ही बना डाला
छुप कर वार करना भी, सबका काम नहीं होता
अंधेरों में छुपे थे वो, निशाना ही बना डाला
आज मैं अपनी पसंद का बहुत ही शानदार गीत भी डाल रही हूँ...
ये गीत मुझे कितना पसंद है बता नहीं पाऊँगी....आप भी देखिये और सुनिए...
आज मैं अपनी पसंद का बहुत ही शानदार गीत भी डाल रही हूँ...
ये गीत मुझे कितना पसंद है बता नहीं पाऊँगी....आप भी देखिये और सुनिए...
रखा था इक दीया हमने, हमारे घर की चौखट पर
ReplyDeleteलगी जब आग, शोलों से, तराना ही बना दिया
दीयों से भी तो आग लगती है.
गीत मुझे भी बहुत पसंद आया.
आप इतना कुछ बयान कर जाती हैं, और इतनी खूबसूरती से, हम कमेंट करने के लिये भी शब्द ढूंढते रह जाते हैं। सारी ही गज़ल मास्टर पीस है, हमारी नजर में। किसी एक शेर की तारीफ़ करना बाकी शेरों के साथ नाइंसाफ़ी करना हो जायेगा।
ReplyDeleteकई दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर आवाज सुनाई दी है। आपकी न सही, आपके पसंदीदा गाने की ही सही, मौन टूटा तो सही। और ये गाना हमें भी बहुत पसंद है। बाहर भी पानी बरस रहा है(मैं चांदनी का गाना सुन रहा था कुछ देर पहले - लगी आज सावन की फ़िर वो झड़ी है) कन्फ़्यूज़ हो रहा हूं कि बारिश की वजह ये गीत हैं या गीतों की वजह से बारिश है?
धन्यवाद आपका इतनी खूबसूरत गज़ल और इतने खूबसूरत गीत से रूबरू करवाने के लिये।
ye geet to mujhe bhi pasand hai di waah
ReplyDeletenice
ReplyDeleteसुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।
ReplyDeleteअभी ज़िंदा हूं तो जी लेने दो,
ReplyDeleteआई बरसात तो पी लेने दो...
मुझे टुकड़ों में नहीं जीना है,
कतरा कतरा तो नहीं पीना है,
आज की शाम बड़ी बोझिल है,
आज की रात बड़ी कातिल है.
आज की शाम ढलेगी कैसे,
आज की रात कटेगी कैसे,
आग से आग बुझेगी दिल की,
मुझे ये आग भी पी लेने दो,
अभी ज़िंदा हूं तो जी लेने दो,
आई बरसात तो पी लेने दो...
बड़ा ही पानी में भी आग़ लगा देने वाला गाना है...
चिंगारी कोई भड़के तो सावन उसे बुझाए,
सावन जो अग्न लगाए, उसे कौन बुझाए...
जय हिंद...
आखिरी शे'र ज्यादा प्रभावित नहीं कर रहा..
ReplyDeleteबाकी सब कमाल के हैं..एकाध तो समझो...जान लेने पे तुला है...
मसलन...
कई मजबूरियाँ आईं, जफ़ाओं को निभाने में
कहाँ तक उनको समझाते, बहाना ही बना डाला
वाह नहीं....आह निकल रही है...
और हाँ,
इस ग़ज़ल के रदीफ़ को 'बना दिया' के स्थान पर 'बना डाला' करके पढ़ रहे हैं...
इतनी इजाजत तो है ना जी...?
गीत अभी सुन पाना मुश्किल है...
@Manu ji,
ReplyDeleteaapka bahut shukriya manu ji..
aapki baat sahi lagi mujhe 'bana idya' se bahtar hai 'bana daala' isi liye maine badal diya..
ek baar fir aapka dhnywaad..is or dhyan dilaane ke liye..
कई मजबूरियाँ आईं, जफ़ाओं को निभाने में
ReplyDeleteकहाँ तक उनको समझाते, बहाना ही बना डाला
छुप कर वार करना भी, सबका काम नहीं होता
अंधेरों में छुपे थे वो, निशाना ही बना डाला
Wah, Bahut khoob !
गीत इतना पसंद नहीं आया ...मगर जब आपने सिचुअशन बताई तब ठीक -ठाक सा लग रहा है ...आपकी आवाज़ सूने बहुत दिन हुए ...कोई नया गीत कब सुनाएंगी ...!!
ReplyDeleteरखा था इक दीया हमने, हमारे घर की चौखट पर
ReplyDeleteलगी जब आग, शोलों से, तराना ही बना दिया
-बहुत उम्दा/// गीत ठीक है. जाने क्यूँ छूता नहीं..
बहुत सुन्दर ग़ज़ल है ... एक से बढ़कर एक शेर है ... कोई किसी से कम नहीं ... पर मुझे इसमें से भी एक शेर बहुत पसंद आया -
ReplyDeleteकई मजबूरियाँ आईं, जफ़ाओं को निभाने में
कहाँ तक उनको समझाते, बहाना ही बना डाला
गीत और गज़ल का डैडली कौंबो पैक ...........हमे तो खूब भाया जी । मुझे तो ये गाना भी बहुत पसंद है , एकदम अलग से आपकी तरह ही
ReplyDeletedushmano ka khajana sanjoya...bahut khoob Ada ji
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeletenice creation !
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
कहीं कहीं लय टूटी है ..
ReplyDeleteभाव सधे हैं ..
गाने ने तो मूड फ्रेश कर दिया .. दो बार सुना .. आभार !
बहुत खूब !
ReplyDeleteनिभाई दुश्मनी हमने, बड़ी शिद्दत से दुनिया में
ReplyDeleteसंजोया दुश्मनों को भी, खज़ाना ही बना डाला
बहुत ज़बरदस्त बात कह दी है इस शेर में.....अच्छी ग़ज़ल
कई मजबूरियाँ आईं, जफ़ाओं को निभाने में
ReplyDeleteकहाँ तक उनको समझाते, बहाना ही बना डाला
कमाल है ...हम तो सोच बैठे थे कि वफ़ा निभानी मुश्किल होती है...
छुप कर वार करना भी, सबका काम नहीं होता
अंधेरों में छुपे थे वो, निशाना ही बना डाला ...
मुझे अपना शेर याद आ रहा है ...
"दोस्त छिप कर वार किया करते हैं "...कुछ ऐसा मामला तो नहीं था ना ...:):)
अच्छी लगी ग़ज़ल ...
मेरा कमेन्ट पहले क्यों नहीं पोस्ट किया ...:(
कई मजबूरियाँ आईं, जफ़ाओं को निभाने में
ReplyDeleteकहाँ तक उनको समझाते, बहाना ही बना डाला
बहुत सुन्दर गज़ल. बधाई.
रखा था इक दीया हमने, हमारे घर की चौखट पर
ReplyDeleteलगी जब आग, शोलों से, तराना ही बना डाला
बेहतरीन, लजवाब!!
VAH.....
ReplyDeleteVAH......
प्रशंसनीय ।
vani,
ReplyDeletetumhaara pahla comment mujhe mila hi nahi tha isliye nahi chhapa...
aur agar dost chup kar waar karein to fir dost kaahe ke hain..
main to seedha gala dabane mein yakeen karti hun apne dost ka..
sameer ji,
ReplyDeleteshayad yah geet bina prasang ke wo prabhav nahi daal paaya jo hona chahiye tha...film mein is gaane ki situation bahut hridaysparshi hain...shayad yahi karan hai ki peene-pilaane ki baat hote hue bhi mere man ke kareeb hai...
film NAJAYAZ ka geet hai ye , kabhi dekhiyega is film ko...
ग़ज़ल भी सुन्दर और गीत भी ।
ReplyDeleteआज यहाँ भी बरसात हो रही है बाहर।
निभाई दुश्मनी हमने, बड़ी शिद्दत से दुनिया में
ReplyDeleteसंजोया दुश्मनों को भी, खज़ाना ही बना डाला
waah waah..kya baat hai...bahut khoob
इतने सुन्दर चित्र के साथ
ReplyDeleteशानदार रचना तो सिर्फ
अदा ही कर सकती है!
रचना अच्छी है .. गीत सुन रही हूं .. आभार !!
ReplyDeleteरखा था इक दीया हमने, हमारे घर की चौखट पर
ReplyDeleteलगी जब आग, शोलों से, तराना ही बना डाला --- मन को भा गया...आप की मन:स्थिति में होने पर ही वह गीत भा सकता है...या गीत जैसा ही माहौल हो तो...
लिया इक हर्फ़ हाथों में, फ़साना ही बना डाला
ReplyDeleteपत्थर से पड़े थे वो, दीवाना ही बना डाला
निभाई दुश्मनी हमने, बड़ी शिद्दत से दुनिया में
संजोया दुश्मनों को भी, खज़ाना ही बना डाला
रखा था इक दीया हमने, हमारे घर की चौखट पर
लगी जब आग, शोलों से, तराना ही बना डाला
कई मजबूरियाँ आईं, जफ़ाओं को निभाने में
कहाँ तक उनको समझाते, बहाना ही बना डाला
छुप कर वार करना भी, सबका काम नहीं होता
अंधेरों में छुपे थे वो, निशाना ही बना डाला
kuch diljale se malum hote hai
shandar kuch sabd nahi kahunga ye to aap ko pta hai ki ye kitni sundr rachna hai
खूब जम गयी यह प्रविष्टि !
ReplyDeleteदिनों-दिन बाद पढ़ता हूँ आजकल ..इकट्ठा ! अनगिन आयाम समेटता हूँ आपकी लेखनी के !
इन दो पंक्तियों की तो बात ही क्या -
"निभाई दुश्मनी हमने, बड़ी शिद्दत से दुनिया में
संजोया दुश्मनों को भी, खज़ाना ही बना डाला"..