मेरे दिल में अब कोई हाजत नहीं रही
तुम्हें बाँधने की अब आदत नहीं रही
जिस्म तो खड़ा हुआ है बस यहीं कहीं
रूह से मगर कोई निस्बत नहीं रही
मैं बंद गली का हूँ वो आखिरी मकाँ
रास्तों को जिसकी जरूरत नहीं रही
निस्बत=रिश्ता
गीत तो आप सुन चुके हैं लेकिन फिर सुन लीजिये...
चंदा ओ चंदा....
आवाज़ 'अदा'
बेहतरीन, कमाल,सुन्दर,गज़ब सच कहूं तो’गज़न्टाप’(हमारे लखनऊ में that is the most superlative expression equal to 'BESTEST')
ReplyDeleteगली के मोड़ पे सूना सा एक दरवाज़ा,
ReplyDeleteतरसती आंखों से रस्ता किसी का देखेगा,
निगाह दूर तलक तक जा के लौट आएगी,
करोगे याद तो याद बहुत आएगी,
गुज़रते वक्त की हर मौज ठहर जाएगी,
करोगे याद तो...
जय हिंद...
वाह वाह!! और शेर जोड़े..
ReplyDeleteबढ़िया है.
तुम्हें बाँधने की अब आदत नहीं रही
ReplyDeleteकिसी को कितना बांधयेगा.
लजबाब.
खुशदीप के कमेन्ट के लिये और तुम्हारी इस अदा के लिये भी वाह वाह । आज कल इतनी अच्छी पोस्ट पढने के लिये भी समय नही निकाल पा रही। आशा है नाराज़ नही होगी। शुभकामनायें
ReplyDeleteOOOOOOOOFFFFFFFFFFFFFFFFF...........!!!!!!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteतहरीर न मिट जाये कहीं देख कर चलिए
ReplyDeleteहर मौज ने साहिल पे कोई गीत लिखा है...
मैं बंद गली का हूँ वो आखिरी मकाँ रास्तों को जिसकी जरूरत नहीं रही
ReplyDeleteवाह अदा जी वाह
मकां चाहे आखरी हो
ReplyDeleteपर मुकां कभी आखरी नहीं होना चाहिए
और ऐसा मकां नहीं मिला हमें
जिसमें दरवाजा बना न हो
भीतर क्या छत से घुसेंगे
हां नहीं तो
वाह वाह!! और शेर जोड़े..
ReplyDeleteवाह वाह!! और शेर जोड़े..
जवाब नहीं आपके इस रचना का ........बेहतरीन
ReplyDeleteबात कहने को यूँ तो एक शैर ही बहुत होता है। मगर इन तीन शैरों ने मिल कर जो बात कही है उस का वजन कुछ और ही है।
ReplyDelete@ तुम्हे बाँधने की अब कोई आदत ना रही ...
ReplyDeleteअपनी कविता की पंक्ति लिख दू ...
प्रेम आखिर कहाँ पलता है
स्वतंत्र तो कर दिया है तुम्हे
मगर
लौट ही आओगे
यह यकीन रखने में ....
इसलिए बाँधने की जरुरत नहीं होनी चाहिए ...बंधन स्थाई वही होते हैं जो बिन बंधे बांध जाते हैं ....
ग़ज़ल/कविता में और गुन्जायिश थी पंक्तियाँ बढाने की ...
और जो आपको6०% समझ नहीं आया था...देवनागरी में लिख दिया है ....
raaston ki jisko zarurat nahi rahi...waah Ada ji...chand sher...par babbar sher se bhi khatarnaak..
ReplyDeleteBehtareen !
ReplyDelete"जिस्म तो खड़ा हुआ है बस यहीं कहीं,
ReplyDeleteरूह से मगर कोई निस्बत नहीं रही"
निशब्द कर दिया है इन पंक्तियों ने।
गीत तो हम सुन ही चुके हैं, फ़िर सुन लेते हैं और सुनते रहेंगे, लेकिन आप हमारी सब की फ़रमाईश कब पूरी करेंगी - आपकी गज़ल आपकी ही आवाज में।
सुंदर शेर...बढ़िया रचना..बधाई
ReplyDeleteमैं बंद गली का हूँ वो आखिरी मकाँ
ReplyDeleteरास्तों को जिसकी जरूरत नहीं रही
मकाँ से आगे ना जाता हो रास्ता कोई
पर ये गली पहुंचती है उस मकाँ तक....
बहुत अच्छी प्रस्तुति....दो शेर और जोड़ें तो अच्छी ग़ज़ल बन जायेगी
Adaa ji...
ReplyDeleteAapne itna achha likha hai!
Kaise laate ho itne achhe thoughts :)
It is really innovative, every composition of urs is wonderful...
And I mean it from the bottom of my heart that you are a good writer with fantastic thought process :)
Regards,
Dimple
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteआभार
स्थिति विशेष की विलक्षण रचना ।
ReplyDeleteबहुत ही शानदार-जानदार शेर है!
ReplyDeleteचन्दा वाला गीत भी बहुत बढ़िया रहा!
सुनकर मन मुदित हो गया!
बहुत सुन्दर गीत और शेर।
ReplyDeleteसमीर भाई से सहमत कुछ और शेर जरूर जोड़े |
ReplyDeleteबाकी बेहद उम्दा शेर है !!
आप बहुत अच्छी कविता लिखते हैं दिल को छने वाली
ReplyDeleteहम आपसे दोवारा निवेदन कर रहे हैं कि आप ज्याद देशभक्ति पर लिखें तो देश का बहुत फायदा होगा
@ तुम्हे बाँधने की अब कोई आदत ना रही ...
ReplyDeleteBonds in any relationship strengthens with freedom only. People realize it after a certain age and experience.
Happens !
बेहतरीन शेर ।
ReplyDeleteगीत तो पहले सुना है , फिर सुनकर फिर उतना ही आनंद आया।
आभार।
अतिसुन्दर...आपकी इस तरह की कविता से हमें बहुत प्रेरणा मिलती है....लाजवाब
ReplyDeleteविकास पाण्डेय
www.vicharokadarpan.blogspot.com
मैं बंद गली का हूँ वो आखिरी मकाँ
ReplyDeleteरास्तों को जिसकी जरूरत नहीं रही ..
बहुत खूबसूरत ... लाजवाब शेर ...
मैं बंद गली का हूँ वो आखिरी मकाँ रास्तों को जिसकी जरूरत नहीं रही
ReplyDelete.......बहुत सुन्दर
sundar lekh ke saath sundar awaaj bhi
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