मसक जातीं हैं,
अस्मतें,
अस्मतें,
किसी के फ़िकरों
की चुभन से,
की चुभन से,
बसते हैं मुझमें भी
हया में सिमटे
हया में सिमटे
आदम और हब्बा,
जो झुकी नज़रों से
देखते हैं,
जो झुकी नज़रों से
देखते हैं,
खुल्द के फल का असर,
दिखाती हैं
सही फ़ितरत,
इन्सानों की,
दिखाती हैं
सही फ़ितरत,
इन्सानों की,
उनकी तहज़ीब-ओ-बोलियाँ,
वर्ना पैरहन के नीचे
सबका सच एक ही होता है ,
वर्ना पैरहन के नीचे
सबका सच एक ही होता है ,
मानों...या न मानों
फ़िकरों की भी, ज़ात होती है,
और हर फिकरा कस की
एक औक़ात होती है.....
हम बोलें क्या तुमसे के क्या बात थी
अजी रहने दो बातें बिन बात की
सहर ने शफ़क़ से ठिठोली करी है
शिकायत अंधेरों को इस बात की
खयालों के तूफाँ तो थमने लगे हैं
लहर कोई डूबी थी जज़्बात की
उजालों से ऊँचें हम उड़ने लगे थे
कहाँ थी ख़बर अपनी औक़ात की
मन सोया जहाँ था वहीँ उठ गया है
शिकन न थी बिस्तर पे कल रात की
मुसलसल वो आया गली में हमारी
नदी बह रही थी इक हालात की
गुबारों से कितने परेशाँ हुए तुम
क्यूँ भूले वो ताज़ी हवा साथ की
मुसलसल= लगातार
गुबारों=धूल भरी आँधी
सहर=सुबह
शफ़क़=सवेरे की लालिमा
..मन सोया जहाँ था वहीँ उठ गया है ..बहुत अच्छी रचना
ReplyDeletepawan dhiman has left a new comment on your post
ReplyDelete"और हर फिकरा कस की एक औक़ात होती है.....":
..मन सोया जहाँ था वहीँ उठ गया है ..बहुत अच्छी रचना
क्षेत्रीय भाषाओँ के शब्दों का बहुत सुन्दर प्रयोग कर एक सन्देश देती कविता.. दी..
ReplyDeleteफ़िकरों की भी, ज़ात होती है,
ReplyDeleteऔर हर फिकरा कस की
एक औक़ात होती है.....
लाजवाब रचना
गज़ल सुनकर लगा सुर, स्वर और शब्द नियामत होती है.
ye comment Dipak ne kiya hai...
ReplyDeleteदीपक 'मशाल' has left a new comment on your post "और हर फिकरा कस की एक औक़ात होती है.....":
क्षेत्रीय भाषाओँ के शब्दों का बहुत सुन्दर प्रयोग कर एक सन्देश देती कविता.. दी..
आंखें भी होती है दिल की ज़ुबां,
ReplyDeleteबिन बोले कर देती हैं हालत ये पल में बयां...
जय हिंद...
ये फिकरे जो न कराएँ!
ReplyDeleteमहाभारत भी तो इन्ही फिकरों की ही देन था!
--
आपकी गजल सुन कर सुकून मिला!
--
सबका सच एक ही होता है ,
ReplyDeleteमानों...या न मानों
फ़िकरों की भी, ज़ात होती है,
और हर फिकरा कस की
एक औक़ात होती है.....
Bahut khoob, adaji
क्या बात है अदा जी...बहुत जबरदस्त!! आनन्द आ गया!
ReplyDeletewaah Ada ji bahutahi badhiya....
ReplyDeleteकोमल भावनाओं की सुरुचिपूर्ण अभिव्यक्ति होती हैं आपकी कवितायें ।
ReplyDelete"अद्भुत और कसी हुई रचना ..."
ReplyDeleteबेहतरीन रचना ......और गज़ल तो लाजवाब और आपके गुनगुनाने से इसमें चार चाँद लग गये .
ReplyDeleteहम बोलें क्या तुमसे के क्या बात थी
ReplyDeleteअजी रहने दो बातें बिन बात की
वाह क्या बात है । अति सुन्दर।
बसते हैं मुझमें भी
ReplyDeleteहया में सिमटे
आदम और हौवा,
जो झुकी नज़रों से
देखते हैं,
खुल्द के फल का असर
laajwaab.....!
kyun ishaq se tu yoon beasar hai...
ki hawwaa jaisi hi bekhabar hai..
wo khuld kaa fal kisi tarah gar chakhe jo teri jubaan to kuchh ho.......
hnm...
"मानों...या न मानों
ReplyDeleteफ़िकरों की भी, ज़ात होती है,
और हर फिकरा कस की
एक औक़ात होती है....."
बहुत सही लिखा है।
किसी ने कहा है, "a picture in room is the picture of mind of the occupant" दूसरे पर तंज कसने वालों की मानसिकता उनकी भाषा से झलकती है।
गज़ल ने एक और गज़ल की याद दिला दी,
"न जी भर के देखा, न कुछ बात की,
बहुत आरजू थी, मुलाकात की।"
और इसे आपकी आवाज में सुनना, जैसे सोने में केसर की सुगन्ध।
बहुत बहुत बहुत आभार।
क्या बात है दीदी , लाजवाब , आपकी आवाज के तो क्या कहनें , बढ़िया लगा सूनना ।
ReplyDeleteफ़िकरों की भी, ज़ात होती है,
ReplyDeleteHow true !
बेहद उम्दा नज़्म !! आभार !
ReplyDeleteफ़िकरों की भी, ज़ात होती है,
ReplyDeleteऔर हर फिकरा कस की
एक औक़ात होती है.....
आजकल ऐसा ही लग रहा है ....
ग़ज़ल तो अच्छी है ही ...आपकी आवाज़ से चार चाँद लग ही जाते हैं ...
शानदार गजल, लाजवाब प्रस्तुति।
ReplyDelete--------
क्या हमें ब्लॉग संरक्षक की ज़रूरत है?
नारीवाद के विरोध में खाप पंचायतों का वैज्ञानिक अस्त्र।
सिर्फ एक शब्द, बेहतरीन!
ReplyDeleteसबका सच एक ही होता है , मानों...या न मानोंफ़िकरों की भी, ज़ात होती है,और हर फिकरा कस की एक औक़ात होती है.....
ReplyDelete...bilkul sahi kaha aapne adaa ji...
Saarthak rachan.
वाह...वाह...वाह....
ReplyDeleteलाजवाब,सिम्पली ग्रेट....सुपर्ब !!!
बेहतरीन गजल और सुर का संगम.
ReplyDeletebehtareen sangam..kavita,gazal aur tumhaari awaaj....simply gr888..
ReplyDeleteare didi wahhhhhhhhhh
ReplyDeleteग़ज़ल तो अच्छी है ही ...आपकी आवाज़ से चार चाँद लग ही जाते हैं ...
बेहतरीन रचना ......और गज़ल तो लाजवाब और आपके गुनगुनाने से इसमें चार चाँद लग गये .
ReplyDeleteहम बोलें क्या तुमसे के क्या बात थी
ReplyDeleteअजी रहने दो बातें बिन बात की
सुंदर रचना, मधुर गायकी, सुरीली आवाज़.
फेसबुक पर Share करना मुमकिन है या नही ?
ReplyDeleteबिलकुल मुमकिन है।
Deleteशौक से आप शेयर कीजिये, बस मुझे ड्यू क्रेडिट देना ना भूलें, यही आग्रह है।