कई जगहों पर पढ़ रही हूँ...निरुपमा की बातें, यह भी एक 'सम्मान के लिए हत्या' वाली ही बात है, वो एक लड़की थी, गर्भवती थी....इस हत्या से दो जाने गईं हैं....उसे अपने जीवन पर पूरा अधिकार था, उसका जीवन उसका था...किसी को भी उसे लेने का कोई हक़ नहीं था....एक इन्सान होने के नाते उसे पूरा हक़ था अपने जीवन के बारे में फैसला करने का...दुनिया में किसी को भी हक़ नहीं था उससे उसका जीवन छीन लेने का...फिर चाहे वो माँ-बाप ही क्यों न हों...
हैरान हूँ सुनकर-पढ़कर, संस्कृति की दुहाई देते हुए लोगों की बातें, धर्म के नाम पर उठते हुए सवाल...इतने पढ़े-लिखे लोगों के ऐसा विचार...!!!
कमाल है किस युग में लोग रह रहे हैं...
वाह !!!
अगर कुँवारी माँ बनना धर्म और संस्कृति के खिलाफ़ जाना होता है तो, मुझे कोई ये बताये कि कौन सा धर्म या कौन सी संस्कृति कहती है अजन्मे बच्चे की हत्या करना महान काम है, या फिर एक गर्भवती स्त्री की हत्या कर देना पुण्य का काम है...अगर उसके पिता ने ये हत्या की है तो क्या वह धर्म शास्त्र के अनुसार ठीक है...हमारी संस्कृति क्या इसकी आज्ञा देती है ???
धर्म के ठेकेदारों से सुनना चाहूँगी कहाँ पर लिखा गया है ऐसा घिनौना काम पुण्य का भागीदारी है....
है कोई जवाब.....!!!!
हमेशा से सारा क़ुसूर महिला के ही सर मढ़ा जाता रहा है... यह कोई नई बात नहीं है...
ReplyDeleteकाल-पात्र अनुसार ही परिभाषित है धर्म।
ReplyDeleteसबका अपना तर्क है करके कुण्ठित कर्म।।
शुभकामनाएं।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.
धर्म के ठेकेदार जवाब नहीं देते वे कान से बहरे हैं.
ReplyDeleteकौन जवाब देगा?
ठेकेदार कुछ जवाब नहीं देंगे, दे ही नहीं पायेंगे। और अगर देंगे भी तो वही ’हंसुआ की शादी में खुरपा के गीत’ वाले स्टाईल में।
ReplyDeleteदुखद है ये घटना।
काल-पात्र अनुसार ही परिभाषित है धर्म।
ReplyDeleteसबका अपना तर्क है करके कुण्ठित कर्म।।
@श्याम साहब,
वाह!क्या सुन्दर बात कही वाह!
इन्सान के कुकर्म का धर्म का क्या लेना देना,
राम और रावण दोनों ’शिव’ उपासक थे!
Very Bad
ReplyDeletePata nahi aise karmon me dharm ka kitna sahbhag hai! Maine bachpanme apne gaanv me dekha,jise tab nahi ab samajh paa rahi hun..har kunwaree ka bachha 'mara' hua kyon paida hota tha! Use bina kisikee upasthti me gaad diya jata tha..saaree bast janti thi..par 'teri bhi chup.meri bhi chup' ka ravaiyya apnati thi..
ReplyDeleteआपका उस्सा होना वाजिब है. मगर ये असुर यहां आ कर तो जवाब नहीं देंगें.अभी कुछ देर पहले ही यही विचार आया था तो सोचा कानून हाथ में लेकर इन ठेकेदारों को शूट कर दिया जाये.
ReplyDeleteसरासर गलत है ऐसा कृत्य।
ReplyDeleteपहली गलती --दूसरी उससे भी ज्यादा गलती।
मैं भयानकता के स्तर तक कंफ्यूज हूँ।
ReplyDeleteये मामला उस मां से जुड़ा है जिसने अपना खून पिलाकर बेटी को बड़ा किया ।आखिर वो मां इतनी मजबूर क्यों हो गई इस पर एकतरफा कुछ भी कहना गलत है। अगर पड़ाई लिखाई का मतलब अपने शरीर का दुरूपयोग किसी को भी विना किसी जिम्मेदारी से करने देना है तो ऐसी पड़ाई लिखाई वेकार है । हमारे विचार में इस मामले में इस दुष्ट लड़के को चौराहे पर खड़ा करके कुतों से तुड़वाना चाहिए ताकि उसे ऐहसास हो सके कि उसने कितना बढ़ा अपराध किया है एक परिबार को बर्बाद कर
ReplyDeleteयही तो विडम्बना है!
ReplyDeleteकोई धर्म का ठेकेदार नहीं आयेगा इसका जवाब देने ..
ReplyDeleteअंध-आस्था से जिनका व्यवसाय चलता हो वे तर्क
की प्रक्रिया में नहीं आयेंगे ..
''आधुनिक'' सा दिखता समय कितना निराश करता है !
दरअसल इस समाज में कुछ ऐसे लोग है जिनकी शर्मनाक हरकतों और गन्दी साजिशों से ही किसी हस्ते खेलते परिवार पर साडी विप्पतियाँ आ गिरती है / मेरे ख्याल में यह मामला भी ऐसे ही दुश्चक्रों का नतीजा है /
ReplyDeleteकोई नहीं है यहाँ जो जवाब दे क्यों कि जो हुआ या जो होता रहा है गलत ही होता रहा है ........कभी कोई भी आगे आ कर आवाज नहीं उठता क्यों कि "हम सब आखिर है तो भले लोग ............यह अपना काम थोड़े ही ना है !!" इसी सोच के शिकार है हम चाहे कोई माने या ना माने !!
ReplyDeleteदुर्घटना के बाद ठेकेदार नजर आता है कहीं?
ReplyDeleteअब क्या कहे.....
ReplyDeleteकिताबों में धर्म को खोजने वाले हकीकत को क्या जानते हैं !!
ReplyDeleteऔर...
ReplyDeleteकरके कुंठित कर्म जो, करते तर्क-वितर्क
मानवता का आज है, उनसे बेड़ा गर्क..
सम्मान के लिए ह्त्या कुछ नहीं होती है...ह्त्या बस...ह्त्या है...
एकदम बेक़सूर दो लोगों की निर्मम ह्त्या
पढ़ी लिखी और आधुनिक परिवेश में रह रही नीरू के साथ ये हो सकता है तो दूर दराज, खाप पंचायतों के साये में रहने वाली लड़कियों को अपनी पसंद का कोई कदम उठाने पर किस यातना से गुज़रना पड़ता होगा इसका बस अंदाज़ ही लगाया जा सकता है...फिर भी हम कहते हैं हम विकसित देश बनने की दिशा में अग्रसर हैं...
ReplyDeleteजय हिंद...
अधर्म जब अपनी हदे पार कर जाए तो धर्म के ठेकेदार तो क्या उनका बाप भी कुछ नहीं कर सकता ! आदि मानव और आज के मान में कोई फर्क रह गया है क्या ?
ReplyDelete"मैं भयानकता के स्तर तक कंफ्यूज हूँ।"
ReplyDeletemai bhi...
महान पोस्ट
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें और मुझे कृतार्थ करें
kaun dega aapke swal ka jwab
ReplyDeletejo galat h wo to h hi
ye bahut hi bhayanak h
ऐसी मानसिकता वाले लोगों को सिर्फ जानवर कहा जा सकता है ..और जहाँ यह जानवर रहते हैं उस पूरी कौम को शर्मसार करते रहेंगे !
ReplyDeleteमुझे पूरे मामले का ज्ञान नहीं है इसलिए टिप्पणी करना गलत होगा. मगर मैं इस बात को मानता हूँ कि किससे सम्बन्ध बनाना और कब बच्चा पैदा करना यह महिला का मौलिक अधिकार है. साथ ही स्वतंत्रता एक जिम्मेदारी भी लाती है अतः अपने और अपने बच्चे के शारीरिक व अन्य मामलों के प्रति भी सजग रहे कोई आपका गैर-लाभ न उठा जाए.
ReplyDeleteअगर लड़की की गलती हुई भी हो,मोत की सजा तो नहीं दे सकते|माता कुंती भी कुँआरी गर्भवती हुई थी,किसीने मार नहीं दिया था|भई हमारी संस्कृति तो महान है,इसीलिए ऐसा हो रहा है|ये तो सरासर गलत बात है|यहाँ तो गलत बाते पर धार्मिकता का आंचल पहेना दो,सही हो जाती है|
ReplyDeleteअव्वल तो टिपण्णी करना नहीं चाहता था क्यूंकि आपने सांकल (मोडरेशन) लगा रखा है... दुसरी वजह है कि आप इसे प्रकाशित ही नहीं करे शायद... फिर भी गर्व है मुझे ब्लॉगवाणी पर जो कि इसका सोलिड थम्बशोट दे देता है... तो आप प्रकाशित करें या न करें मेरा काम हो गया और मुझे उतने मार्क्स भी मिल जायेंगे जितना मुझे चाहिए...
ReplyDeleteअब जवाब सुनिए "इस तरह की घटनाएँ यदि हम भारत देश के अन्दर होती हैं तो मुसलामानों में यह नहीं पाई जाती क्यूंकि एक आम अथवा ख़ास मुसलमान भी यह सोचता है कि बच्चे अल्लाह की देन हैं..."
कब तक समाज से डरेंगे ..........जब तक डरेंगे ये समाज डराता रहेगा और जब आप इस समाज के मुंह पर थप्पड़ लगाना जान जायेंगे ये चुप हो जायेगा क्यूंकि इसे पता है कि यहाँ इसकी दाल नहीं गलेगी...........आज के युग में जब इंसान अन्तरिक्ष को भी लांघ चुकने का दावा कर रहा है कब तक ये सदी गली मान्यताएं टिकेंगी....................अब इस तरह के प्रश्न उठाने बेमानी हैं अगर कोई कुछ कर सके तब तो बात है ............अब देखिये कितनी ही लड़कियों या औरतों ने लीक से हटकर कदम बढाया तो आगे बढ़ पायीं और जब हमारे देश के कानून में समलैंगिकता को भी मान्यता मिलने लगी है तो ये कोई बड़ी बात नहीं रही कि बेटी कुंवारी ही गर्भवती हो गयी और दूसरी बात जब नीना गुप्ता जैसी अदाकारा ने बिन ब्याही होकर बेटी को जन्म दिया था तो ये ही समाज कुछ दिन बोलकर चुप हो गया था और अब भी उसी समाज ने उसे भी मान्यता दी ना तो इस बार ऐसा क्यूँ ना होता दूसरी बात अगर बच्चा नहीं चाहिए था तो दूसरे रास्ते थे मगर वो नहीं अपनाये गए .............जब विज्ञानं ने इतनी तरक्की कर ली है तब ऐसा कदम उठाना कहाँ तक न्यायसंगत है ?आज के वक़्त में इस मुद्दे को चुपचाप दबाया भी जा सकता था मगर उसकी हत्या करना या आत्महत्या करने जैसा जघन्य अपराध करने कि क्या आवश्यकता था ..........एक ज़िन्दगी से खेलना कहाँ तक वाजिब है ?
ReplyDeleteआज भी लड़की की ज़िन्दगी से खेलना चाहता है हर कोई मगर जहाँ तक मैं समझती हूँ जब वो एक पत्रकार थी तो कम से कम वो खुद तो ऐसा कदम नहीं उठा सकती थी इतनी तो समझदार होगी ही क्यूंकि ये पेशा वो ही अपना सकता है जो निर्भीक हो , जिसमें समाज को आइना दिखाने की हिम्मत हो फिर ऐसा इंसान ऐसा कदम क्यूँ उठाएगा ?
बहुत प्रश्न हैं मगर उत्तर किसी के पास नहीं है क्यूंकि हम सब सिर्फ कुछ दिन बोलकर चुप होने वाले लोग हैं उसके बाद सब अपने अपने कामो में व्यस्त हो जाते हैं क्या फर्क पड़ता है कोई अपना थोड़े ही मारा है या किसी अपने के साथ ऐसा थोड़े हुआ है आज जरूरत है समाज को दिशा देने की और इसके लिए नारी जाती को ही आगे आना पड़ेगा और अपने सम्मान की खुद रक्षा करनी पड़ेगी तभी अपना हक़ वो पा सकती है नहीं तो ये समाज उसे यूँ ही मारता रहेगा .
मुझे इस मामले के बारे में जानकरी नहीं है , बस आपकी पोस्ट को पढ़कर कुछ कहना गलत होगा ।
ReplyDelete@सलीम तो आप प्रकाशित करें या न करें मेरा काम हो गया और मुझे उतने मार्क्स भी मिल जायेंगे जितना मुझे चाहिए...
ReplyDeleteजनाब सलीम,
ये कौन से मार्क्स का ज़िक्र किये हैं आप मियाँ ? कौन दे रहा है....??
मुझे भी चाहिए....!!
अदा जी ,मै आपसे एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ की उस गर्भ वती लड़की को क्या किसी साधू सन्यासी ने मारने के लिए कहा था. और अगर नहीं तो इसमें धरम कहाँ से आ गया. उस लड़की के साथ जो भी हुआ वह वास्तव में समाज का घिनोना रूप है ,इस बात से मै पूरी तरह से सहमत हूँ. आप के लेख का शीर्षक एकदम गलत है. और देखो कितनी जल्दी जल्दी सारे तिप्पनिबाज धरम को गली देने लगे. ये गलत काम समाज के ठेकेदारों ने किया था. आज कल धर्म को गाली देना एक फैशन बन गया है. और देखो आपके कारन एक मुल्ला हिन्दू धरम को गली भी दे गया.
ReplyDeleteनिरुपमा की नृशंस हत्या के बारे में तो कई जगह निन्दा कर चुका हूं, बस दो बातें कहना चाहता हूं कि इस विषय में हिन्दूवादी और मुसलमान कट्टरतावादी एक साथ दिख रहे हैं [वैसे भी एक सिक्के के दो पहलू होते ही हैं} जो लोग हिन्दूवादी ब्लागों पर आंख मून्द के ढोल पीटते हैं वे उसकी हत्या का समर्थन कर रहे हैं और उसके गर्भवती होने की कहानी ज्यादा जोर से उछाल रहे हैं दूसरी ओर मुस्लिम कट्टरतावादी जब कहते हैं कि मुसलमानों में मान्यता है कि बच्चे अल्लाह देता है तो क्या व्यक्ति की नसबन्दी होने पर अल्लाह की भी नसबन्दी हो जाती है?
ReplyDelete@ Bharat Swabhimaan Manch
ReplyDeleteधर्म.....का अर्थ है धारण करना और यह सिर्फ साधू, सन्यासी, मौलवी, पंडित, पादरी तक सिमित नहीं होता है...अधिकतर लोग इसे अपनाते हैं और अपने जीवन को उसी अनुसार ढालते हैं...आपने शायद मेरे आलेख को ठीक से नहीं पढ़ा है...मैंने किसी भी धर्म को गाली नहीं दी है....मेरा एक सीधा सा प्रश्न है ..किस धर्म, संस्कृति में इस तरह के कृत्य की आज्ञा है...
जहाँ तक सलीम जी का जवाब है....उन्होंने अपना नज़रिया पेश किया है कि "इस तरह की घटनाएँ यदि हम भारत देश के अन्दर होती हैं तो मुसलामानों में यह नहीं पाई जाती क्यूंकि एक आम अथवा ख़ास मुसलमान भी यह सोचता है कि बच्चे अल्लाह की देन हैं..." इसमें मुझे नहीं लगता कि किसी भी धर्म विशेष को उन्होंने गाली दी है....
मैं उनको दाद देती हूँ कि बड़ी सतर्कता से बात भारत कि कही है ...विदेश की बात कहते तो मैं २-४ उदाहरण अभी ही दे देती....
मैंने बात धर्म और संस्कृति दोनों की है....और सवाल पूछा है.....
इसमें कोई शक नहीं कि यह एक सामाजिक समस्या है ...यहाँ मैं आपकी बात से पूर्णतः सहमत हूँ....
इक्कीसवीं सदी आ गई है लेकिन हमारे समाज में आज तक सोच नहीं बदली है. अशिक्षित लोगों कि क्या बात करें आजकल तो शिक्षित लोग भी ऐसा ही व्यवहार कर रहे हैं. सैकड़ों उदहारण मिल जायेंगे. पुरुष का कोई अनैतिक काम नहीं होता. महिला का हर ऐसा कदम अनैतिक कहलाता है. ऐसे कृत्यों में पुरुष भी बराबर की सजा का हकदार होना चाहिये / उसे बराबर की सजा देनी चाहिये. समाज दोनों को मिलकर बनता है तो फिर जिम्मेदारी भी बराबर की होनी चाहिये. महिला संघटन भी और अधिक मुखर और आक्रामक बनें. इनकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है. राजनीति में उच्च पदों पर आसीन महिलायें भी निर्णायक भूमिका निभा सकती है.
ReplyDelete@ सलीम(पुन: परिवर्तित हृदय:)
ReplyDeleteसलीम, हर बात में हिन्दू और मुसलमान वाली बात लाने के मार्क्स मिलते हों तो भैया सारे मार्क्स तुम्हारे।
इस पोस्ट में कहां तुम्हें लग रहा है कि मुसलमानों को दोषी ठहराया जा रहा है।
बस करो यार।
मान जाओ।
@ भारत स्वाभिमान मंच:
ReplyDeleteक्या धर्म सिर्फ़ मंदिर मस्जिद के मुद्दों तक ही सीमित है? और क्या जब धर्म के नाम पर आंदोलन चलाये जाते हैं, लोगों को जागृत किया जाता है तो क्या सिर्फ़ साधू सन्यासियों या मौलवियों का ही आह्वान किया जाता है?
समाज में धर्म के रोल को सकारात्मक तरीके से बढ़ाना चाहिये ताकि कुरीतियां दूर हो सकें।
जान किसी की भी जाये और
ReplyDeleteकोई भी ले
अपराध तो अपराध है
अगर यह 'सम्मान के लिए हत्या' है तो इसका दोषी हमारा समाज है, जो दोहरे माप दंड रखता है. कुँवारी माँ हमारे समाज मैं बुरी नज़रों से देखी जाती है. लोग बातें बड़ी बड़ी करते हैं लेकिन ऐसी कुंवारी माँ को कोई अपने घर की बहु नहीं बनाता. हाँ हत्या एक बड़ा अपराध है, इसका हक किसी को नहीं, . लेकिन इस हत्या का दोषी हमारा समाज है ...
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