वह घोषित चरित्रहीन है,
क्योंकि :
वो किसी को अपने पास फटकने नहीं देती,
ईट का जवाब पत्थर से देती,
तुम्हें आईना दिखा देती है,
हर बार तुम हार जाते हो,
अपनी ही नज़र में गिर जाते हो,
फिर ऊपर उठने की जुगत लगाते हो,
उसके नाम पर चढ़कर तुम;
ऊपर पहुँच जाते हो,
भूल जाते हो कि
वो उंचाई जो तुमने पाई है
उसका ही काँधा काम आया था,
एक बार फिर, उसे तुम नीचे पाते हो;
और ढिंढोरा पीट, उसे गिरी हुई बताते हो,
वाह !!
मर्दानगी...जिंदाबाद....!!
क्यों शर्मिंदा कर रहे हो जी....
ReplyDeleteएक बेबाकी से आईना दिखाती रचना.....
कुंवर जी,
samaaj ka kachcha chittha hai aapki kavita...bahut khoob...
ReplyDeleteउम्दा विचारणीय प्रस्तुती / आज इसी तरह की झूठी मर्दानगी को ही मर्दानगी कहा जाता है ,सत्य और न्याय के एक शब्द बोलने वक्त पूरा का पूरा मोहल्ला डर से मुर्दा हो जाता है / हम तो रोज ऐसे घटनाओं से रूबरू होते हैं / अदा जी आज हमें आपसे सहयोग की अपेक्षा है और हम चाहते हैं की इंसानियत की मुहीम में आप भी अपना योगदान दें / पढ़ें इस पोस्ट को और हर संभव अपनी तरफ से प्रयास करें ------ http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/05/blog-post_20.html
ReplyDelete.... जोर का झटका, धीरे से लगे ...!!!
ReplyDeleteतुम्हें आईना दिखा देती है,
ReplyDeleteहर बार तुम हार जाते हो
-सच! सच!!
excellent poem ada
ReplyDeleteregds
rachna
Adaa ji...
ReplyDeleteWhat a masterpiece!
Bahut hi badiya likha hai aapne...
Sachh likha hai!!
Mujhe bahut achha lagaa...
Regards,
Dimple
कौन दी????? कविता सुन्दर है... :)
ReplyDeleteऔर ढिंढोरा पीट, उसे गिरी हुई बताते हो,
ReplyDeleteवाह !!
मर्दानगी...जिंदाबाद....!!
इतनी सच्ची रचना , अपने आप में पूर्ण है
बहुत बढ़िया विवेचना!
ReplyDeleteअच्छा चित्र खींचा है!
अब क्या कहूं?
ReplyDeleteबस इतना ही पर्याप्त है;बेहतरीन !
बधाई हो!
वाह अदाजी! बहुत सुन्दर और जोशीला कविता है ... अक्सर इंसान को बस स्वार्थ ही याद रहता है ... भूल जाता है कि कभी वो भी वहाँ था, जिस जगह को वो आज हेय दृष्टि से देखता है ...
ReplyDeleteGR8....Superb....
ReplyDeleteadbhut ....
bemisaal ....
shabd kam ho gaye hain ...!!
ji ada ji,
ReplyDeleteaise mardon se aaye din samnaa hotaa hai idhar....
saale gadhe ke bachche...!!!
sorry....
aur zyadaa sahi shabd istemaal nahin kar paa rahe hain abhi ham...
बहुत दमदार कविता!
ReplyDeleteऔर ढिंढोरा पीट, उसे गिरी हुई बताते हो,
ReplyDeleteवाह !!
मर्दानगी...जिंदाबाद....!!
इतनी सच्ची रचना , अपने आप में पूर्ण है
शीर्षक से ही भावनाओं की गहराई का एह्सास होता है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना! मर्दों के मुह पर तमाचा!
ReplyDeleteबस ये कहूँगी............ वाह रे लेखनी वाह
ReplyDeleteबेहद उम्दा और सटीक रचना !!
ReplyDeleteऔर ढिंढोरा पीट, उसे गिरी हुई बताते हो,
ReplyDeleteवाह !!
मर्दानगी...जिंदाबाद....!!
sach ekdam sach
कौन कहता है मर्द को दर्द नहीं होता...आज बड़ा हो रहा है जी...
ReplyDeleteजय हिंद...
कटु सच्चाई को रौशन करती सार्थक रचना
ReplyDeleteआशा है इस पोस्ट पर आपका प्यार मिलेगा, 'ब्लोगवाणी' से गलती से ये गायब हो गई..
ReplyDeletehttp://swarnimpal.blogspot.com/2010/05/blog-post_20.html
उम्दा विचारणीय प्रस्तुती... आज इसी तरह की झूठी मर्दानगी को ही मर्दानगी कहा जाता है ,सत्य और न्याय के एक शब्द बोलने वक्त पूरा का पूरा मोहल्ला डर से मुर्दा हो जाता है...
ReplyDeleteagree with honesty project democracy
क्या अदा जी, एकदम डायरेक्ट अटैक । पर है एक दम सटीक ।
ReplyDeleteएक दम सटीक
ReplyDeleteअदा जी आभार वैचारिक क्रांति के सूत्र के लिये
हम तो जी फ़िल्मों से ही प्रेरणा पाते रहे हैं, ’रोटी’ का गाना याद आ गया, "जिसने पाप न किया हो, जो पापी न हो।"
ReplyDeleteऔर फ़िर हम किसी को जज करने वाले कहां से हो गये? क्या हम अपने आप में आल परफ़ेक्ट हैं?
आभार।
sidha parhar kiya hai......
ReplyDeleteविचारणीय प्रस्तुती
ReplyDeleteवाह! और शब्द नहीं !
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