Thursday, May 20, 2010

वाह !! मर्दानगी...जिंदाबाद....


जानते हो !!
वह घोषित चरित्रहीन है,
क्योंकि : 
वो किसी को अपने पास फटकने नहीं देती,
ईट का जवाब पत्थर से देती,
तुम्हें आईना दिखा देती है,
हर बार तुम हार जाते हो,
अपनी ही नज़र में गिर जाते हो,
फिर ऊपर उठने की जुगत लगाते हो,
उसके नाम पर चढ़कर तुम;
ऊपर पहुँच जाते हो,
भूल जाते हो कि
वो उंचाई जो तुमने पाई है
उसका ही काँधा काम आया था,
एक बार फिर, उसे तुम नीचे पाते हो;
और ढिंढोरा पीट,  उसे गिरी हुई बताते हो,
वाह !! 
मर्दानगी...जिंदाबाद....!!

31 comments:

  1. क्यों शर्मिंदा कर रहे हो जी....

    एक बेबाकी से आईना दिखाती रचना.....


    कुंवर जी,

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  2. samaaj ka kachcha chittha hai aapki kavita...bahut khoob...

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  3. उम्दा विचारणीय प्रस्तुती / आज इसी तरह की झूठी मर्दानगी को ही मर्दानगी कहा जाता है ,सत्य और न्याय के एक शब्द बोलने वक्त पूरा का पूरा मोहल्ला डर से मुर्दा हो जाता है / हम तो रोज ऐसे घटनाओं से रूबरू होते हैं / अदा जी आज हमें आपसे सहयोग की अपेक्षा है और हम चाहते हैं की इंसानियत की मुहीम में आप भी अपना योगदान दें / पढ़ें इस पोस्ट को और हर संभव अपनी तरफ से प्रयास करें ------ http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/05/blog-post_20.html

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  4. .... जोर का झटका, धीरे से लगे ...!!!

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  5. तुम्हें आईना दिखा देती है,
    हर बार तुम हार जाते हो

    -सच! सच!!

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  6. Adaa ji...

    What a masterpiece!
    Bahut hi badiya likha hai aapne...
    Sachh likha hai!!

    Mujhe bahut achha lagaa...

    Regards,
    Dimple

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  7. कौन दी????? कविता सुन्दर है... :)

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  8. और ढिंढोरा पीट, उसे गिरी हुई बताते हो,
    वाह !!
    मर्दानगी...जिंदाबाद....!!


    इतनी सच्ची रचना , अपने आप में पूर्ण है

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  9. बहुत बढ़िया विवेचना!
    अच्छा चित्र खींचा है!

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  10. अब क्या कहूं?
    बस इतना ही पर्याप्त है;बेहतरीन !
    बधाई हो!

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  11. वाह अदाजी! बहुत सुन्दर और जोशीला कविता है ... अक्सर इंसान को बस स्वार्थ ही याद रहता है ... भूल जाता है कि कभी वो भी वहाँ था, जिस जगह को वो आज हेय दृष्टि से देखता है ...

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  12. GR8....Superb....
    adbhut ....
    bemisaal ....
    shabd kam ho gaye hain ...!!

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  13. ji ada ji,


    aise mardon se aaye din samnaa hotaa hai idhar....




    saale gadhe ke bachche...!!!

    sorry....

    aur zyadaa sahi shabd istemaal nahin kar paa rahe hain abhi ham...

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  14. और ढिंढोरा पीट, उसे गिरी हुई बताते हो,
    वाह !!
    मर्दानगी...जिंदाबाद....!!


    इतनी सच्ची रचना , अपने आप में पूर्ण है

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  15. शीर्षक से ही भावनाओं की गहराई का एह्सास होता है।

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  16. बहुत सुन्दर रचना! मर्दों के मुह पर तमाचा!

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  17. बस ये कहूँगी............ वाह रे लेखनी वाह

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  18. बेहद उम्दा और सटीक रचना !!

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  19. और ढिंढोरा पीट, उसे गिरी हुई बताते हो,
    वाह !!
    मर्दानगी...जिंदाबाद....!!
    sach ekdam sach

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  20. कौन कहता है मर्द को दर्द नहीं होता...आज बड़ा हो रहा है जी...

    जय हिंद...

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  21. कटु सच्चाई को रौशन करती सार्थक रचना

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  22. आशा है इस पोस्ट पर आपका प्यार मिलेगा, 'ब्लोगवाणी' से गलती से ये गायब हो गई..
    http://swarnimpal.blogspot.com/2010/05/blog-post_20.html

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  23. उम्दा विचारणीय प्रस्तुती... आज इसी तरह की झूठी मर्दानगी को ही मर्दानगी कहा जाता है ,सत्य और न्याय के एक शब्द बोलने वक्त पूरा का पूरा मोहल्ला डर से मुर्दा हो जाता है...

    agree with honesty project democracy

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  24. क्या अदा जी, एकदम डायरेक्ट अटैक । पर है एक दम सटीक ।

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  25. एक दम सटीक
    अदा जी आभार वैचारिक क्रांति के सूत्र के लिये

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  26. हम तो जी फ़िल्मों से ही प्रेरणा पाते रहे हैं, ’रोटी’ का गाना याद आ गया, "जिसने पाप न किया हो, जो पापी न हो।"
    और फ़िर हम किसी को जज करने वाले कहां से हो गये? क्या हम अपने आप में आल परफ़ेक्ट हैं?
    आभार।

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  27. विचारणीय प्रस्तुती

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