वही कंस जो देवकी का प्रिय भाई है
इतिहास ने जिसे बहुत क्रूर और कपटी बताया है
बुराई का अवतार बना, अच्छाइयों को नकारा है
बुराई का अवतार बना, अच्छाइयों को नकारा है
कहते हैं वो दुष्ट था, मैं भी यही समझ पायी हूँ
पर कुछ तो अच्छाई थी उसमें यही कहने आई हूँ
वो प्यारी बहन देवकी को सासुरे छोड़ने जाता था
आकाशवाणी हुई थी तभी और कोई उसे बताता था
देवकी का आठवां पुत्र उसका काल बन जाएगा
रे दुष्ट उसके जन्मते ही तू जीवित नहीं रह पायेगा
ऐसी बात कहकर नियति ने पहाड़ तोड़ा था
तभी तो उसने अपना रथ उसी जगह से मोड़ा था
कारागाह में अपनी बहन और जीजा को छोड़ा था
बहन-जीजा को जीवित रखना उसके राह का रोड़ा था
वह राजा था बलशाली था कुछ भी कर सकता था
पलक झपकते देवकी-वासुदेव के प्राण ले सकता था
वह राजा था बलशाली था कुछ भी कर सकता था
पलक झपकते देवकी-वासुदेव के प्राण ले सकता था
लेकिन धैर्य से बैठा वह काल की प्रतीक्षा करता रहा
भगिनी के प्रेम में घात पर घात सहता रहा
देवकी कंस के लिए बस मौत ही जनती रही
भाई के लिए पाप के कई कारण बुनती रही
जानती थी देवकी बच्चों की मौत हो जायेगी
फिर भला क्यों कोई माँ बच्चे ही जनती जायेगी ?
जानती थी देवकी बच्चों की मौत हो जायेगी
फिर भला क्यों कोई माँ बच्चे ही जनती जायेगी ?
देवकी की हर प्रसूति उसे हिला कर जाती थी
हर बच्चे में मृत्यु-भय घोर पाप करवाती थी
देवकी भी कंस के संग पाप की भागी बनी है
ये न सोचे वो कि उसके पाप में कोई कमी है
देवकी भी कंस के संग पाप की भागी बनी है
ये न सोचे वो कि उसके पाप में कोई कमी है
क्या बहन को भाई के लिए काल जनना चाहिए ?
या बहन को भाई का कल्याण सोचना चाहिए
कंस का भगिनी प्रेम किसी ने नहीं स्वीकारा है
और मैं कहती हूँ कुछ भी कहिये कंस भगिनी प्रेम से हारा है..
आकाशवाणी देवकी के आठवे पुत्र के लिए हुई थी ....अपनी जान बचाने के उसके सात पुत्रों की एक एक कर हत्या करने की आवश्यकता क्या पड़ी ....अपने जीवन से इतना प्रेम की उसके लिए सभी रिश्तो को ताक पर रख दिया जाए ... कंस ने एक बार तो मानव जीवन के लिए कलायन के लिए खुद को प्रस्तुत करने कि ठान ली होती ....क्या पता आकाशवाणी अनहोनी की दिशा को बदल कर रख देती ...
ReplyDeleteमासूमों का नृशंस हत्यारा कभी प्यारा भाई नहीं हो सकता ...हर बहन हर जन्म में यही प्रार्थना करेगी कि कंस जैसा भाई होने से अच्छा उसका कोई भाई ही ना हो ...बर्बरता की सराहना करने वाली यह कविता मुझे जरा भी नहीं भाई ...क्यूंकि यही घटनाएँ है जो वर्तमान पर हावी होती हैं और स्वच्छ समाज की स्थापना में रोड़ा बनती हैं ...कंस हर युग में भर्त्सनीय और भाई के नाम पर कलंक था ...रहेगा ....
न कोई एक्दम बुरा है, न कोई एकदम अच्छा है। हम सभी अच्छाई और बुराई के मिश्रण हैं। ये अलग बात है कि हम दूसरों को या तो बुरा ही समझते हैं और या सिर्फ़ अच्छा। रावण के बाद कंस की जनमानस के बीच छवि को लेकर आपकी दुविधा आपकी अनूठी विचारधारा को प्रदर्शित करती है। आंखें मूंदकर किसी बात का समर्थन करना आपको नहीं भाता है और ये एक सराहनीय गुण है। कविता में लय भी बनी हुई है।
ReplyDeleteआभार स्वीकार करें
Devki ne 8 santaan kyon paida kee ye ati nindneeya kritya hai.. jabki use pata tha ki uski aathveen santaan uske bhai ka kaal hogi..
ReplyDeleteDunia ko aapke nazariye se dekhne.. sochne aur samajhne ke nazariye se hatprabh hoon aur khush hoon di.. bahut sundar kavita..
ReplyDeleteये तो कंस के कृत्य को जस्टीफाई करने वाली बात सी हो गई.
ReplyDeleteकंस का भगिनी प्रेम-यूँ तो हर निन्दनीय कृत्य के पीछे एक कारण किसी और दृष्टिकोण से खोजा जा सकता है जो उसे जस्टीफाई कर दे, वरना तो कृत्य होता ही क्यूँ...
खैर, यह भी एक नज़रिया ही कहलाया.
मैं सहमत हूं ,
ReplyDeleteमुझे भी ऐसा कई बार लगता है
सबसे बड़ी बात तो ये है कि जहाँ महिला ब्लोगेर्स समाधान निकालने के स्थान पर बेवजह पुरुष समाज को कोसने मे तल्लीन है ...
...वहीं ये पोस्ट विचारों की गहनता, सकारात्मकता, स्वतंत्रता का सच्चा प्रतीक है
अलग सा दृष्टिकोण लिए बढ़िया रचना!
ReplyDeleteकंस का भगिनी प्रेम किसी ने नहीं स्वीकारा है
ReplyDeleteऔर मैं कहती हूँ कुछ भी कहिये कंस भगिनी प्रेम से हारा है..
...... wahi Itihaas kaaljaye aur anukarniya hai jisne vikat prasthitiyon mein bhi sach ka saath n chhoda ho...
Aapne kans ke madhayam se vartaman ke liye ek naya sandesh diya hai...
Bahut shubhkamnayne
कंस को हमारे राजनेताओं से पाठ लेना चाहिए ...
ReplyDeleteअदा जी,
ReplyDeleteक्या बात है, पहले रावण, अब कंस...कल क्या दुर्योधन की बारी आएगी...
वैसे भी आजकल फिल्मों में हीरो से ज़्यादा एंटी हीरो या विलेन के कारनामों पर तालियां बजती हैं...मसलन डर में शाहरुख ख़ान, धूम वन में जॉन अब्राहम और धूम टू में रितिक रोशन...
जय हिंद...
सबका अपना -अपना मत हो सकता है । मेरे यहाँ आने का शुक्रिया ।
ReplyDeleteसंसार में न कोई भला है न बुरा, केवल विचार ही उसे भला-बुरा बना देते हैं।
ReplyDeleteअधर्म की ठेकेदारी का अच्छा तरीका ढूंढा है आपने
ReplyDeleteachhi baat likhi
ReplyDeleteye bas apne apne dekhne ka nazariya hai.yaa shayad kanha ki lila,wahi tho racheta baseta hai,aisa kehta hai.
ReplyDeletebada badhiya nazariya hai cheezo ko dekhne ka aapka...aapse sehmat hua main bhi...
ReplyDeleteवैसे एक घटना और है , जिसपर गौर किया जा सकता है !
ReplyDeleteआकाशवाणी सुनने के बाद कंस की पहली प्रतिक्रया तो
देवकी को मारने की हुई थी , मैं कहूंगा कि वहाँ वासुदेव का
प्रिया-प्रेम विजयी हुआ था कंस के भगिनी-प्रेम पर ! नहीं तो
वहीं गला काट देता कंस अपनी इस प्यारी-बेचारी बहना का !
............
फिर भी कविता में एक अलग नजरिया है , जो कि अच्छा लगा ! आभार !
काव्य के बारे मैं अज्ञानी हूं।
ReplyDeleteमगर इस रचना को पढकर एक विचार आता है कि यह कंस का बहन प्रेम नही था।
बहन को एक बार मारने के बजाय उसने 7 बार अपनी बहन और एक मां की हत्या की थी। कैसे जी रही होगी देवकी ये देख और सह कर।
इससे तो बढिया ये रहता कि देवकी को गर्भवती होने की सुविधा ही ना देता।
प्रणाम
कुछ अलग हटकर है ये रचना, रचना तो सुन्दर है लेकिन हर इंसान का अपना नजरिया होता है, और ज़रूरी नहीं है की हर कोई आपके नजरिये से सहमत हो, कंश का भगिनी प्रेम तो समझ आता है पर महिमामंडन नहीं!
ReplyDeletedevki k pass burai ko mitane ka uske paas yahi ek tarika tha
ReplyDeletemanta hun kans ki mritu k liye saat bachhon ki maut ho gyi lekin
ravan k pap k samne ye kuch masum jane koi mtlab nahi rakhti aur sach riston se bada hota hai
किसी ने कंस से नहीं पूछा वर्ना वह बताता कि वह कैसे ठीक था.
ReplyDeleteआजकल विलेन वरशिप चल रही है अदा जी ।
ReplyDeleteवैसे जन्म से कोई दुष्ट नहीं होता ।
ये तो इंसान के कर्म हैं , जो उसे अच्छा या बुरा बनाते हैं।
बुरा भला है - भला बुरा है, खोटे पर सब खरा भला है !!
ReplyDeletebahut khub didi
ReplyDeleteमहाकाव्यात्मक पात्रों का चरित्र चित्रण समय की मांग के अनुसार होता है । किसी महाकाव्य में सम्भव भी नही होता उसकी चरित्रगत सपूर्ण विशेषताओं को प्रदर्शित करना । आपने इस दिशा में कलम उठाई है अच्छा लगा ।
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteइसे 09.05.10 की चर्चा मंच (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
http://charchamanch.blogspot.com/
hamesha ki trahn sandaar...rawan ab kans aage kon..intzaar hai.
ReplyDeleteदेवकी कंस के लिए बस मौत ही जनती रहीभाई के लिए पाप के कई कारण बुनती रही
ReplyDeleteजानती थी देवकी बच्चों की मौत हो जायेगी
फिर भला क्यों कोई माँ बच्चे ही जनती जायेगी ? देवकी की हर प्रसूति उसे हिला कर जाती थी हर बच्चे में मृत्यु-भय घोर पाप करवाती थी
देवकी भी कंस के संग पाप की भागी बनी है
ये न सोचे वो कि उसके पाप में कोई कमी है
मैं यहाँ आपकी बात से सहमत नहीं हूँ.
जब बहन को भाई के कृत्य पता थे..
सारी प्रजा उस से दुखी थी ये
हाल भी तो सब सुने थे...
त्राहि त्राहि कर रहे थे जब सब लोग..
बढ़ने लगे थे जब सब तरफ से
कंस के अत्याचार और जोर
चाहते थे सब बस कंस की मौत
आकाशवाणी हुई जब
देवकी गयी जान
तो क्यों ना करती उस धरती को
कंस से आजाद
जिसके लिए देवता भी थे
सब तैयार
और प्रजा भी परेशान
बेशक देवकी को सहना पड़ा था
सात बार बच्चो की मृत्यु का दुःख
लेकिन समष्टि हित व्यष्टि हित से बड़ा है..
और यही इन्सान का परम धरम है..
और बेशक कंस बलशाली था
मार सकता था अपनी बहन को
पर कहते हैं ना मारने वाले से
बचाने वाला बड़ा है..
तो...
हो सकता है की ये भी
देवताओं की चाल हो..
और सरस्वती ने किया
कुछ कमाल हो...
फेर दी उसकी बुद्धि
और कंस के हाथो
ना होने दिया ये पाप हो.
एक अलग अंदाज़ अपनी सोच को अभिव्यक्त करने का.....
ReplyDeleteकंस के प्रति जो सोच है उससे सहमत ना होते हुए भी आपके नज़रिए पर विचार कर रही हूँ....
अमरेन्द्र जी की बात सही है की कंस तो देवकी को मारना ही चाहता था ...वासुदेव की प्रार्थना पर ही उनको कारावास में रखा गया...
क्या आप जानती हैं कि कंस के माता -पिता कौन थे और उनका क्या इतिहास था? कंस इतना अत्य्चारी क्यों था?