हमने जिसको समझा है शहर, जंगल है वो मकानों का
और हुजूम यहाँ भी देखा है, इंसान बने शैतानों का
मयखाने में साक़ी को, अब क्या है ज़रुरत रहने की
रिन्दों की है पाँत लगी, और दौर चला पैमानों का
रात जगी है रात भर और शम्मा भी अब सोने चली
ऐसे में अब फ़िक्र किसे, क्या हाल हुआ परवानों का
मन का पाखी उड़ चला, और दिल भी है खोया खोया
प्रीत का बाजा ढोल बजा, और शोर हुआ अरमानों का
धज्जी-धज्जी पैरहन है, आँखों में भी ख़ुमारी सी
मजनूँ जैसी सूरत लेकर, क्या होगा तुम दीवानों का
हम तेरे ख्यालों में यूँ डूबे, कि मंजिल अपनी रूठ गई
न क़ाबे का ही ज़िक्र किया, न नाम लिया बुतखानों का
हम तेरे ख्यालों में यूँ डूबे, कि मंजिल अपनी रूठ गई
न क़ाबे का ही ज़िक्र किया, न नाम लिया बुतखानों का
कोई राम नाम पर फौत हुआ, कोई अल्लाह पर कुर्बान हुआ
पर मुर्दों को दरकार कहाँ, इस जहाँ के इबादतखानों का ?
अच्छी रचना ...वाकई शानदार प्रस्तुति .....बहुत खूब
ReplyDeleteवाकई अच्छी रचना! इस रतजगे मेँ सकून दे गई आपकी पंक्तियां।बधाई हो!
ReplyDeleteहमने जिसको समझा है शहर, जंगल है वो मकानों का
ReplyDeleteऔर हुजूम यहाँ भी देखा है, इंसान बने शैतानों का
Bahut khoob....
हुजूम यहाँ भी देखा है, इंसान बने शैतानों का...
ReplyDeleteदिखते ही रहते हैं ...
रात जगी है रात भर और शम्मा भी अब सोने चली
ऐसे में अब फ़िक्र किसे, क्या हाल हुआ परवानों का...
आह ...!!
हम तेरे ख्यालों में यूँ डूबे, कि मंजिल अपनी रूठ गई
न क़ाबे का ही ज़िक्र किया, न नाम लिया बुतखानों का..
वाह ...!!
मुर्दों को दरकार कहाँ, इस जहाँ के इबादतखानों का ?
सब अपने -अपने नरक में खुश हैं ...
बहुत अच्छी ग़ज़ल ...बहुत ही बढ़िया ...!!
"धज्जी-धज्जी पैरहन है, आँखों में भी ख़ुमारी सी मजनूँ जैसी सूरत लेकर, क्या होगा तुम दीवानों का
ReplyDeleteहम ख्यालों तेरे में यूँ डूबे, कि मंजिल अपनी रूठ गई
न क़ाबे का ही ज़िक्र किया, न नाम लिया बुतखानों का"
क्या बात है जी, बड़ा नशीला माहौल चल रहा है?
काश ये शाम का समय होता!
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति।
सदैव आभारी।
रात जगी है रात भर और शम्मा भी अब सोने चली
ReplyDeleteऐसे में अब फ़िक्र किसे, क्या हाल हुआ परवानों का
वाह -- बहुत सुन्दर
कोई दोस्त है न रकीब है,
ReplyDeleteतेरा शहर कितना अजीब है,
मैं किसे कहूं के मेरे साथ चल,
यहां हर सर पे सलीब है,
यहां हर सर पे सलीब है,
तेरा सहर कितना अजीब है,
कोई दोस्त है न रकीब है...
जय हिंद...
हमने जिसको समझा है शहर, जंगल है वो मकानों का
ReplyDeleteऔर हुजूम यहाँ भी देखा है, इंसान बने शैतानों का
Vaah!
"रिन्दों की है पाँत लगी और दौर चला पैमानों का!"
ReplyDeleteरचना का बहुत ही सुन्दर मुखड़ा है!
बार-बार पढ़ने को मन करता है
और मुझे भी लिखने की प्रेरणा देता है!
Yahaa aanaa safal ho gayaa........
ReplyDeleteअपनी माटी
माणिकनामा
आज के सामाजिक हालात की दुखद स्थितियों का चित्रण और ब्लॉग की सार्थकता को निभाती हुई कविता के लिए आपका धन्यवाद /
ReplyDeleteअच्छी विचारणीय प्रस्तुती /
मन का पाखी उड़ चला, और दिल भी है खोया खोया
ReplyDeleteप्रीत का बाजा ढोल बजा, और शोर हुआ अरमानों का
वाह ! क्या बात है ! ये पंक्ति तो सच में गजब की है ....
बहुत शानदार ग़ज़ल है ...बधाई !
bahut khub
ReplyDelete"हमने जिसको समझा है शहर, जंगल है वो मकानों का
ReplyDeleteऔर हुजूम यहाँ भी देखा है, इंसान बने शैतानों का"
वाह! वाह!!
इन्सान अब नजर ही कहाँ आते हैं?
हमने जिसको समझा है शहर, जंगल है वो मकानों का
ReplyDeleteऔर हुजूम यहाँ भी देखा है, इंसान बने शैतानों का
वाह , कितनी सच्ची बात कह दी , अदा जी।
कोई राम नाम पर फौत हुआ, कोई अल्लाह पर कुर्बान हुआ
ReplyDeleteपर मुर्दों को दरकार कहाँ, इस जहाँ के इबादतखानों का ?
सत्य है।
एक सुंदर
ReplyDeleteएक सुंदर कविता... भाव सुंदर...वास्तविकता और रूमानी द्वंद्व को प्रकट करती बेहद उम्दा प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर गज़ल...हर आशार दिल की गहराइयो से निकलता...एक कसमसाहट से भरा.
ReplyDeleteबहुत सुंदर अदा जी, जबाब नही
ReplyDelete'हमने जिसको समझा है शहर, जंगल है वो मकानों का
ReplyDeleteऔर हुजूम यहाँ भी देखा है, इंसान बने शैतानों का '
- इस मकानों के जंगल में रहने वाले हम शैतानों को इंसान बनने के लिए कैसे प्रेरित किया जाए ?
धज्जी-धज्जी पैरहन है, आँखों में भी ख़ुमारी सी
ReplyDeleteमजनूँ जैसी सूरत लेकर, क्या होगा तुम दीवानों का
-बहुत सुन्दर!!
hnm...
ReplyDeletevery nice...
..
.
Adaa ji...
ReplyDeleteKamaal kar diya aapne
"हम तेरे ख्यालों में यूँ डूबे, कि मंजिल अपनी रूठ गई
न क़ाबे का ही ज़िक्र किया, न नाम लिया बुतखानों का"
Bahut hi umdaaaaah!
Regards,
Dimple
http://poemshub.blogspot.com
@ हम तेरे ख्यालों में यूँ डूबे, कि मंजिल अपनी रूठ गई
ReplyDeleteन क़ाबे का ही ज़िक्र किया, न नाम लिया बुतखानों का..
--------------- सुदर लगीं ये पंक्तियाँ !
"मन का पाखी उड़ चला, और दिल भी है खोया खोया प्रीत का बाजा ढोल बजा, और शोर हुआ अरमानों का "..
ReplyDeleteकुछ कठिनाई हुई इसे समझने में !
प्रविष्टि का आभार ।