सबसे पहले एक गीत...आवाज़ 'अदा' की...
अभी न जाओ छोड़ कर के दिल अभी भरा नहीं.....
ज़रा सा एक्सपेरिमेंट किया है इसमें...सुनिए और बताइए कैसा है..??गाना २.४४ sec में ख़त्म हो जाता है...उसके बाद खाली है.....
और अब एक छोटी सी कविता...
सजल आँखों से तुम्हें देखूँ,
तुम अंतहीन नभ हो ना !
खग सी मैं आऊँगी,
अज्ञात स्पर्श का परिचय
साथ लाऊँगी,
क्षितिज में आलिंगनबद्ध
हो जायेंगे युग-कूल
अधरों पर विरह पुलक उठेगा,
बीन लेना तुम,
मेरी प्रतीक्षा को अमर मत होने देना....!!!
दो मिनट ४४ सेकण्ड के बाद नहीं सुनाई दे रहा है जबकि प्लेयर में
ReplyDeleteसमय साढ़े चार मिनट दिखा रहा है ! क्या गाना इतना ही है ? हो सकता
है इधर से ही कोई तकनीकी व्यवधान हो !
सुनने में सुन्दर लगा ... जा रहा हूँ दोनों बकाया गाने भी सुनने ! आभार !
.
' विरह पुलक उठेगा ' , लाक्षणिक प्रयोग है , सुन्दर बनता / बनाता हुआ !
रोज नए-नए विम्बों का आविष्कार कर रही हैं दी.. गायन के साथ प्रयोग जितना मैं समझा अच्छा ही लगा.
ReplyDeleteजी, २ मिनट ४४ सेकेंड पर मौन हो गया.
ReplyDeleteकविता बेहतरीन है:
मेरी प्रतीक्षा को अमर मत होने देना....!!!
nice
ReplyDeleteमेरी प्रतीक्षा को अमर मत होने देना ...
ReplyDeleteक्षितिज में ...अंतहीन नभ में ...
अच्छी पंक्तियाँ ...
और इसके बाद गीत भी ...
अभी ना जाओ छोड़ कर ...
इको अच्छा लगा रहा है गीत में ....
मेरी प्रतीक्षा को अमर मत होने देना....!!!
ReplyDeleteयह तो प्रतीक्षा की तीव्रता पर निर्भर है
सुन्दर और भावपूर्ण रचना
oooooooooooooooFFFFFFFFFFFFFFFFF
ReplyDeleteabhi n jaao chhod kar...
2.44 Sec...
ReplyDeletemagar gaanaa complete.....
aage kaa khaali waqt jaise koi pratikshaa thi....
क्षितिज - स्पेस
ReplyDeleteयुग-कूल - समय
आलिंगनबद्ध - भौतिक मिलन
विरह, पुलक - भाव
कभी कभी इनमें उलझे हुए रह कर भी हम इनसे परे हो जाते हैं ।
कविता इस तरह के अनुभव को साझा करती है।
... बाकी गीत गवनई की अपनी समझ कम ही है। बहुत बार ऑनलाइन सुन भी नहीं पाते।
ओरिजिनल सोंग में एकल वोईस है,आपके इस गीत में दुएत वोईस जैसे कोई साथ गुनगुना रहा है या ........इको/प्रतिध्वनी गुंजित हो रही हो. सही पहचाना मैंने?
ReplyDeleteमधुर गाती हैं,कर्णप्रिय लगता है आपका गाना.गायन की तकनीकि जानकारी मुझे नही पर खुद भी गाती हूँ और खूब मस्त हो कर गाती हूँ,बेसुरी नही होती पर अच्छी गायिका नही.हाँ अच्छी श्रोता हूँ .
कविता की पंक्तियों - 'अज्ञात स्पर्श का परिचयसाथ लाऊँगी,क्षितिज में आलिंगनबद्ध हो जायेंगे युग-कूलअधरों पर विरह पुलक उठेगा, बीन लेना तुम' में क्लिष्ट बिम्बो का प्रयोग किया है आपने.ईमानदारी से कहूँ मुझे समझ में नही आये सिवाय एक पंक्ति के-
'मेरी प्रतीक्षा को अमर मत होने देना' और मुझे सारा दर्द,उसकी गहराई उसमे दिखती है.प्रतीक्षा का मात्र लम्बा होना ही पीड़ादायक होता है वो अगर अमर हो जाये?? ऐसी सजा ईश्वर किसी को न दे.हिल गई समुचि मात्र इस पंक्ति को पढ़ कर.सच'अदा'
तूफ़ान झेल लेती हूँ और एक हल्का सा हवा का झोंका समूचा हिला कर रख देता है मुझे.
क्या करूँ ऐसिच हूँ मैं.
गाना बढिया लगा. कविता हमारे उपर से गुजर गई बहुत से बिंब क्यों प्रयोग हुए हैं समझ में ही नहीं आया. हमें तो लगा कविता को प्रभावशाली बनाने के लिए उपयोग किया गया होगा. कविता के मामले में अमरेन्द्र भाई और गिरिजेश भाई नें सुन्दर कहा है तो सुन्दर ही होगा. ... बाकी कविता की अपनी समझ कम ही है। :)
ReplyDeleteकविता सुन्दर है ...गाने का चयन अच्छा है ......नेट की गति बहुत धीमे आ रही है ...सुन नहीं पा रहा .....जल्द ही सुनूंगा .....पर दावे के साथ कह सकता हूँ इस बार भी आपकी मधुर आवाज ने वही कमाल किया होगा ...लाजवाब गाती हो आप ...बाकी तारीफ़ बचा रहा हूँ ...सुनकर ही करूँगा
ReplyDeleteकोमल कविता ।
ReplyDeleteकोमल कविता ।
ReplyDeletemain to jaungi hi nahi...kyonki khud mera dil abhi bhara nahi...
ReplyDeletekiski mazaal jo aapki pratiksha ko amar kare ...
mann khush
बढिया जी बढिया।
ReplyDeleteजो रोज़ यूँ ही जाओगी , तो किस तरह निभाओगी ---
ReplyDeleteसुभानल्लाह , क्या बात है ।
अति सुन्दर ।
अदा जी आपकी कविता तो सुन्दर है ही
ReplyDeleteसाथ ही आप छँट-छाँटकर बहुत ही बढ़िया फिल्मी गीत भी प्रस्तुत कर रही हो!
आपका आभार!
आज दुविधा में पड़ गये हैं जी।
ReplyDeleteगीत, आवाज और कविता में सबसे ज्यादा पसंद क्या आया? तीनों को बराबर मान लेते हैं।
आज तो आपने भी MNCs की तरह बड़े से लिफ़ाफ़े में थोड़े से वैफ़र्स डाल कर बहला दिया। प्लेयर में बाद के लगभग दो मिनट सस्पेंस में ही बीते।
दोहरी आवाज वाला प्रयोग भी अच्छा लगा।
आभार।
सुंदर आवाज़
ReplyDeleteसुन्दर
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