ज़िन्दगी की तह अब उतरने लगी है
अश्कों की तासीर बदलने लगी है
वो जो हरारत सी हमको हुई थी
उन्हें देख तबियत सम्हलने लगी है
उन्हें देख तबियत सम्हलने लगी है
ना झाँका करो झरोखे से बाहर
शहर की हवा अब बदलने लगी है
नज़र में तुम्हारी हया की बाती
लबों की छुअन से मचलने लगी है
अदा से देखो 'अदा' बन गए हम
अदाएं 'अदा' की अब चलने लगी है
ना झाँका करो झरोखे से बाहर
ReplyDeleteशहर की हवाएँ बदलने लगी हैं
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आजकल मेरे आंगन में सूरज उतरता है
इन बदली हुई हवाओ से कौन डरता है
थोड़ी सी हमको हरारत हुई थी
ReplyDeleteउन्हें देख तबियत सम्हलने लगी है.
ऐसा नहीं कर सकते क्या दी? अच्छी बनी ग़ज़ल सारी.
अदा जी,
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत जज़्बात हैं इस रचना के।
'change in flavour' is a permanent component of your blog, and it should never change, it is a request.
पसंद का पहला चटका आज मेरी तरफ़ से।
बहुत बहुत आभार।
Dipak,
ReplyDeletetimhaare hisaab se badal diye hain bas zara sa apna rehne diye hain...
accha hua jo tum bata diye hamko..'hai' aur 'hain' waali baat koshish to kiye hain ..dekh kar batana ab theek hai ya nahi..
..didi
बहुत सुन्दर रचना है ... हर पंक्ति में भावनाएं भर दिए हैं आप ...
ReplyDeleteनज़र में तुम्हारी हया की बाती
लबों की छुअन से मचलने लगी है
गजब की नजाकत है इन पंक्तियों में ...
बहुत खूबसूरत जज़्बात ............
ReplyDeleteवाह! आनन्द आया रचना पढकर!
ReplyDeleteवो जो हरारत सी हमको हुई थी
ReplyDeleteउन्हें देख तबियत सम्हलने लगी है ...
मौसम का मिजाज़ बदलने लगा है ...
ना झाँका करो झरोखे से बाहर
शहर की हवा अब बदलने लगी है..
हमारा शहर झरोखों से झाँकने वालों के लिए मशहूर /बदनाम है
अदा से देखो 'अदा' बन गए हम
अदाएं 'अदा' की अब चलने लगी है...
ह्म्म्म...चल नहीं दौड़ रही है ...:):)
ज़िन्दगी की तह अब उतरने लगी है,
ReplyDeleteअश्कों की तासीर बदलने लगी है
बढ़िया ग़ज़ल...बधाई
उनके आने से चेहरे पर आ जाती है रौनक,
ReplyDeleteवो समझते हैं बीमार का हाल अच्छा है...
जय हिंद...
बहुत सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteसुंदर शब्दों में सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteअदा से देखो 'अदा' बन गए हम अदाएं 'अदा' की अब चलने लगी है
ReplyDeleteनिःसन्देह ।
परिवर्तन संसार का नियम है!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है!
बहुत सुंदर रचना
ReplyDelete@अदा से देखो 'अदा' बन गए हम
ReplyDeleteअदाएं 'अदा' की अब चलने लगी है !
---------- अछ्छा लगा ! यमक अलंकार का भी दर्शन कभी कभी हो जाता है !
ना झाँका करो झरोखे से बाहर
ReplyDeleteशहर की हवा अब बदलने लगी है
behtareen sher..
aur maqta bhi khub kaha hai aapne..
laali mere laal ki . jitt dekhun tit laal
laali dekhan main gayi , main bhi ho gayi laal
ना झाँका करो झरोखे से बाहर
ReplyDeleteशहर की हवा अब बदलने लगी है
गज़ल बहुत बढ़िया बन पड़ी हैं
जरा इसे अपने स्वर और संगीत में पिरो दीजिये
"अदाएं 'अदा' की अब चलने लगी है"
ReplyDeleteयह अदाएं युही चलती रहे यही दुआ है !!
शुभकामनाएं !!
वाकई बहुत सुन्दर अदा है!
ReplyDeleteना झाँका करो झरोखे से बाहर
ReplyDeleteशहर की हवा अब बदलने लगी है
kamaal kaha hai Ada ji
ना झाँका करो झरोखे से बाहर
ReplyDeleteशहर की हवा अब बदलने लगी है
kamaal kaha hai Ada ji
ना झाँका करो झरोखे से बाहर शहर की हवा अब बदलने लगी है
ReplyDeleteशानदार ग़ज़ल बन पड़ी है .....लाजवाब ..बस ..पढ़ते ही निकला ..वाह ...!
अदा से देखो 'अदा' बन गए हम अदाएं 'अदा' की अब चलने लगी है
ReplyDeleteवाह । बहुत खूब ।
वो जो हरारत सी हमको हुई थी
ReplyDeleteउन्हें देख तबियत सम्हलने लगी है
waah....ye behut achcha laga.
khoobsurat gazel...aaj kal kya ho gaya hai kisi galib se mil baithi ho kya? gazel pe gazel likhi ja rahi hai...kamal pe dhamal?????mazra kya hai????milo to puchhuu.....
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ....मीठे अहसास से लबरेज़
ReplyDeletegazab .kya likhti hain aap ada ji
ReplyDeleteadaye ab ada ki chalne lagi hain ..................
isse pata chalta hain aapke atmvisbas ka
kabhi hamare blog pe aake hume bhi bataye ke kahan par sudhar ki gunzaiesh hain
वो जो हरारत सी हमको हुई थी
ReplyDeleteउन्हें देख तबियत सम्हलने लगी है
इस पर कुछ याद आया....
उनको देख कर आ जाती है चेहरे पर रौनक
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है ..
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है....बहुत खूब