शोक हर अशोक विटप हो
मरू में जीवन घट हो
तेज़ धूप में छत हो
पूजा में अक्षत हो
सरोवर नील कमल हो
भरी जेठ, बादल हो
मैं !
ढलती शाम एकाकी
बैरंग आई इक पाती
आह छोड़ती छाती
गुमी हुई कोई थाती
देह तेरे उकरी हूँ
अमर बेल टहनी हूँ,
तुम देवत्व के हस्ताक्षर
पर मैं जीवन से भरी हूँ ....
गीत दिल लगा लिए तुमसे प्यार करके .....आवाज़ 'अदा'
तुम देवत्व के हस्ताक्षर
ReplyDeleteऔर मैं जीवन से भरी हूँ ....
उम्दा रचना
देवत्व में भी जीवन भरना होगा
गीत मधुर
ReplyDeleteढलती शाम एकाकी
बैरंग आई इक पाती
................
................
और मैं जीवन से भरी हूँ
क्या यह चुभता सा एक विरोधाभास नहीं ?
देख लीजियेगा, या शायद मैं ही गलती पर हूँ ।
डाक्टर साहेब,
ReplyDeleteआपकी बात सोलह आने सच....ये विरोधाभास तो है ज़रूर ..चुभ भी रहा है...
इसलिए ज़रा सा बदल दिया है...सारी कमियाँ हैं मुझमें, फिर भी.... मैं जीवन से भरी हूँ......
क्या करूँ...!!
आपका बहुत बहुत आभार...
समझ नहीं आरहा दी कहाँ से इतनी सुन्दर नयी उपमाएं खोज लाती हैं.. आशु कवि/शायर भी हो गयीं हैं आप, हर दिन एक ताज़ातरीन रचना वाह.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteतुम देवत्व के हस्ताक्षर
और मैं जीवन से भरी हूँ....
हर शब्द अनुपम और अर्थपूर्ण ! बहुत खूब !
सुन्दर रचना,,,
ReplyDeleteतुम देवत्व के हस्ताक्षर
पर मैं जीवन से भरी हूँ .
बहुत खूब!!
गायन तो मेरा पसंदीदा गीत लेंगी तो अच्छा लगना ही है, :)
क्या कहूं , बस लाजवाब ।
ReplyDelete...मिठास है !!!
ReplyDeleteतुम देवत्व के हस्ताक्षर ...मैं जीवन से भरी ...
ReplyDeleteबहुत जबरदस्त... चुन -चुन कर शब्दों का प्रयोग किया है आपने .....
ढलती शाम , बेरंग पाती फिर भी जीवन से भरी...
जहाँ तक मैं समझ रही हूँ ...यह विरोधाभास नहीं, दिया तले अँधेरा जैसा ही है ...हम खुद अंधेरों में दुबे हूँ मगर दूसरों के लिए रौशनी बनकर उन्हें राह दीखते हों ...अपनी तकलीफ भुलाकर दूसरों को खुश रखने की चाह .... यह सच्ची मानवता है ...इंसानियत है ...देव और दानव दोनों ही प्रवृतियों से जुदा ...
आपकी उत्कृष्ट कविताओं में से एक लगी है मुझे ....
मन को छू लेने वाली कविता /
ReplyDeleteaapki rachnaayen parhta rahta hun. bahut pasand aatee hain.
ReplyDeletewah Ada ji lajawaab...kya upmaayein chun kar laayi hai....awaaz ka to aapki jawaab nahi...atyant madhur geet
ReplyDeleteकविता पढ़ने में बहुत अच्छी लगी, पर अमरबेल तो जिससे जीवनरस प्राप्त करती है, उसी को सुखा देती है, इसलिये हमारी असहमति(of course, पसंद के साथ) दर्ज की जाये।
ReplyDeleteचित्र भी खूबसूरत है और आपकी आवाज में गाना सुनना एक आलौकिक आनंद देता है।
सदैव आभारी।
saari kamiyaan mujh mein hain...
ReplyDeletefir bhi main jeewan se bhari hoon....
kyaa karoon...?
bahut umdaa khayaal....
वाह बहुत खूब , क्या आवाज , क्या अंदाज़ , सुंदर अति सुंदर ।
ReplyDeleteअब तो बात एन डी टी वी तक पहुंच गई है देखें कब हिंदुस्तान में परचम फ़हराता है ? नहीं समझीं क्या , ? समझ गईं न ..छो नाईछ औफ़ यू ...।
जवाब नहीं ....इस रचना का .
ReplyDeleteतुम देवत्व के हस्ताक्षर
ReplyDeleteऔर मैं जीवन से भरी हूँ ....
Sundar bhavpurn prastuti
Bahut shubhkamnayen
रचना बहुत सुन्दर है ... शब्दों से चित्रांकन बहुत सुन्दर किया गया है ...
ReplyDeleteरचना और कविता से हटकर एक बात कहता हूँ ...
वैसे तो अमरबेल को बहुत अच्छी नज़रों से नहीं देखी जाती है क्यूंकि ये अक्सर दुसरे पौधों पर पनपती है और उस पौधे को सुखा देती है ... पर आजकल नया वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि अमरबेल कर्कट रोग जैसे भयानक बीमारी के इलाज में उपयोगी सिद्ध हो सकती है ...
ताजातरीन शोध से ये भी पता चला है कि अमरबेल भले ही उस पौधे के लिए क्षतिकारक हो जिसपर वो पनप रही है, पर जैव विविधता के लिए लाभदायक है ... वैसे कर्कट रोग वाली बात अभी तक सिद्ध नहीं हुई है ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया अदा जी
ReplyDeleteआपका जवाब नही
ऐसे ही हमेशा लिखती रहे
ReplyDeleteमैं !
ReplyDeleteढलती शाम एकाकी
बैरंग आई इक पाती
आह छोड़ती छाती
गुमी हुई कोई थाती
देह तेरे उकरी हूँ
अमर बेल टहनी हूँ,
तुम देवत्व के हस्ताक्षर
पर मैं जीवन से भरी हूँ ....
बेहतरीन भावो का समन्वय अदा जी !
तुम देवत्व के हस्ताक्षर
ReplyDeleteपर मैं जीवन से भरी हूँ ....
संजो कर रखने वाली पंक्तियाँ ।
अच्छी प्रस्तुति। बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteमेरे जन्मदिन पर अपनी शुभकामनाएं देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !!
आपकी इस रचना का जवाब नहीं ..और ये हम शीर्षक पढ़कर ही अंदाजा लगा चुके थे ...और अब रहा सवाल आपकी आवाज का उसके तो हम कायल है ही ...और आज गाना सुना तो लगा हम सही ही है ....बस एक विनती है ..कभी समय मिले तो लता जी का गाये किसी पुरानी फिल्म के क्लासिकल सोंग पर आपकी आवाज का जादू बिखरे तो ....हमें मज़ा ही आ जाए ...बाकी जो अब है वो भी लाजवाब ही है .....एक बात और आपका हर नया प्रयोग काबिले तारीफ़ ही होता है ... इसे जारी रखे
ReplyDeleteगिरिजेश जी ने कहा है...
ReplyDeleteसुना है अमरबेल जिस पौधे पर पसरती है उसके जीवन रस को चूस लेती है। बेचारा देवता !
.. कविता वर्षा के बाद की समीर सी लगी। शीतल , नई बयार।
अमर बेल की बात कई पाठकों ने कही है....मुझे इसका थोड़ा सा ही भान था...इसलिए 'देवत्व' का प्रयोग किया....
ReplyDeleteक्या अमर बेल देवताओं के भी जीवन रस छीन लेने में समर्थ होगी...?
खैर यह एक प्रयोग था मेरा..आपलोगों ने सराहा...आभारी हूँ...
धन्यवाद..
'तुम देवत्व के हस्ताक्षर
ReplyDeleteपर मैं जीवन से भरी हूँ ....'
-सुन्दर
बहुत खूब।
ReplyDeleteकैसे लिखेगें प्रेमपत्र 72 साल के भूखे प्रहलाद जानी।
वाह! कमाल की पंक्तियाँ और भाव है!
ReplyDelete@ क्या अमर बेल देवताओं के भी जीवन रस छीन लेने में समर्थ होगी...?
ReplyDelete'अमर'बेल है, साधारण बेल नहीं।
देवताओं को 'अमर' भी कहा जाता है।
मरू में जीवन घट हो
ReplyDeleteतेज़ धूप में छत हो
lagata hai pahla vote ab aap ko hi dena padega...
सुंदर, पढ़कर दिल खुश हो गया
ReplyDeleteरचना आनन्द प्रदायक ।
ReplyDeletenice................................
ReplyDeleteसुन्दर................
ReplyDeleteअमर बेल जीवन से भरी थी तभी न दिल लगा लिया...
अनु