कॉल सेण्टर में काम करने वाली एक नई युवा पीढ़ी की खेप की बाढ़ इन दिनों पूरे देश में आई हुई है ....पश्चिम के सुर में सुर मिलाते हुए और अंग्रेजियत का लबादा ओढ़े हुए कुछ ज्यादा ही अंग्रेज, ये नस्ल अपनी पहचान को खोने में कितनी आतुर नज़र आती है, देख कर हैरानी होती है....किसी भी कॉल सेण्टर का माहौल बड़ा ही अजीब सा होता है ...जहाँ अंग्रेजियत की बनावटी हवा में देशी पसीने की गंध सब कुछ गडमड करती हुई लगती है....सीधी सी एक कहावत याद आती है ...न घर के न घाट के...ये कैसी नौकरी है जहाँ हर दिन की शुरुआत ही झूठ और फरेब से होती है....
Hello Sir...my name is Mark or Michell or Suzi or John, calling from New york or Boston or Washington ...you see sir we are a company giving you best rate for .....blah ..blah..blah...
बेशक नेपथ्य में देशी ठहाके चल रहे हों...कॉल सेण्टर की अपनी ही एक संस्कृति बनती जा रही है...नवजवानों का रात भर काम करना..और जो वो नहीं है...खुद को मान लेना, छद्म जीवन जीना..
हैरानी की बात यह है कि कोई इस बात पर ध्यान नहीं दे रहा है, कि ये वेदेशी कंपनियां...अपने बिजनेस के लिए हमारी युवा पीढ़ी को एक ऐसा जीवन दे रही है जिसका कोई भविष्य नहीं है....
इस नौकरी में अच्छे पैसे मिलते हैं...इसलिए बच्चे १०-१२ वीं की पढ़ाई करके पैसा कमाने चले जाते हैं....२०,०००-३०,००० हज़ार रुपैये हर महीने कमाते देख माँ-बाप भी खुश और बच्चे भी खुश...आसान काम, आसान पैसा...
लेकिन सोचने वाली बात ये है कि इस पीढ़ी का भविष्य क्या होगा ...जब इनकी उम्र ४०-५०-६० वर्ष की होगी तो ये क्या करेंगे ? कॉल सेण्टर इनको रखेगा नहीं....qualification इनके पास होगी नहीं ...और दूसरा काम ये कर नहीं पायेंगे...और तब एक दूसरी ही खेप तैयार हो जायेगी...
है न सोचने वाली बात ? तो सोचिये....ये विदेशी कंपनियां और कॉल सेंटर्स तो जम कर पैसा कमा रहीं है ...लेकिन साथ ही लगा रहीं हैं वाट हमारे भविष्य को....इतनी तादाद में बच्चे इस आसान से फरेबी, ग्लैमर और न जाने क्या-क्या से अटे से काम में लगे हुए हैं....कल देश में जब सही लोगों की और सही शिल्प की ज़रुरत होगी तो लोग कम हो जायेंगे... और उससे भी बड़ी बात ये कॉल सेण्टर कर्मी.... कहीं के नहीं रहेंगे......!
वो मारा पापड वाले को... :) यही हालत यहाँ हैं दी पर इस नौकरी को दोयम दर्जे का ही मन जाता है.. एक सार्थक पोस्ट के लिए साधुवाद..
ReplyDeleteअदा जी,
ReplyDeleteबहुत अच्छी पोस्ट।
हो सकता है कि बात कुछ असंबद्ध लगे, लेकिन कहता हूं। जब भारत ने आखिरी बार परमाणु परीक्षण किया था और अमेरिका को इसकी भनक तक नहीं लगी थी, तो अखबार में ही कहीं पढ़ा था कि सी.आई.ए. अपनी अक्षमता से बहुत परेशान है और ये फ़ैसला लिया गया है कि भारत जैसे देश में अपने एजेंट्स की संख्या बढ़ाई जायेगी। आप काल सेंटर्स वगैरह का विकास काल देखें तो लगभग उसी समय के बाद ही कुकुरमुत्तों की तरह इनकी संख्या बहुत बढ़ गई है। क्या ये संयोग मात्र है? हो सकता है कि मैं कुछ ज्यादा ही ग्रे शेड्स में देख रहा हूं, लेकिन पहले ही कह चुका हूं कि हो सकता है............।
आपकी सोच हमें तो पसंद आई।
आभार।
ये सारे कॉल सेंटर और BPO ने मानवता को शर्मसार करने का काम किया है / इनके मालिक इन्सान नहीं हैवान हैं और पैसे के भूखे भेड़ियों से कम नहीं हैं /
ReplyDeleteसार्थक मुद्दा
ReplyDeleteभविष्य क्या होगा पता नही
एक अनोखा मुद्दा उठाया दी आपने आभार
ReplyDeleteचिंताजनक स्थिति है अदा जी ! इन कॉल सेंटर ने सारा माहोल ख़राब कर रखा है.
ReplyDelete@ ये कैसी नौकरी है जहाँ हर दिन की शुरुआत ही झूठ और फरेब से होती है,,,,,,
ReplyDelete---------- मजबूरी है , स्टेट जॉब नहीं दे पा रही है , घर - दुआर का
प्रेशर है , मरता क्या न करता , आखों में महत्वाकांक्षा और बड़े सपने
नहीं बन रहे हैं ! कटु - यथार्थ है यह ! आप का कहना सच है पर विकल्प
क्या है ? कौन स्वेच्छा से बिकना चाहता है ?
बहुत सार्थक और ज़रूरी पोस्ट. साधुवाद.
ReplyDeletesahi kaha Ada ji par berojgaari itni badh gayi hai aur saath hi living stabdarads itne high ho gaye hain...paisa chahiye yuvaon ko...bas jab tak ye chaah hai ye dhandha yunhi chalta rahega...
ReplyDeleteअच्छा टोपिक लिया है आपने और जिस तरह से विस्तार से समझाया है ...स्थिति तो सोचने लायक है. अपने दूसरी साइड दिखा दी :)
ReplyDeleteकाल सेण्टर संस्कृति को गुडगाँव में रहने की वजह से काफी करीब से जानने का मौक़ा मिला है ... आप भविष्य की बात कर रही है वर्तमान और ज्यादा खराब है, घर से दूर रहने वाले ये एम्प्लोयी किस कदर "धूम्रपान ,शराब, फ्री सेक्स और तो और ड्रग्स में लिप्त हो रहे है इसके नज़ारे आम है यहाँ
ReplyDeleteविचारणीय जानकारी
ReplyDeleteआप सही कह रही हैं ..ये कहीं के नहीं रहेंगे......!
ReplyDeleteविचारोत्तेजक लेख।पर हल है कोई सिवाय बज़ारवाद से बचने के सामाजिक प्रयास के!
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteसार्थक पोस्ट है....लेकिन इतने वर्षों में आगे बढने के लिए कुछ ना कुछ तो जुगाड कर ही लेते हैं लोग....हाँ जो बिलकुल ही अपनी योग्यता को आगे ना बढ़ाएं और किसी प्रकार की डिग्री हासिल ना करें तो उनके लिए ज़रूर चिन्ता का विषय है...
ReplyDeleteचिंतनीय पोस्ट..
आप की एक एक बात से सहमत है, लेकिन जब भारत मै जा कर किसी से बात करो तो वो उलटा कहते है कि आप जलते है, यह लोग १२, से २० घंटे काम करते है, यह भी खुश इन के मां बाप भी खुश, पता नही हमारी सरकार कहां सोई है जिसे यह सब नही दिख रहा, बहुत ही अच्छी लगी यह पोस्ट. धन्यवाद
ReplyDeletechintajanak mudda hai...
ReplyDeletehamare desh ka bhavishy aaj bhi videshiyo dwara u barbaad kiya ja raha hai...paise ka lalach dikha kar kam shiksha me acchha paisa mil jata hai..iske sath sath ek ghutan, ek heenbhaawna un logo me badhti ja rahi hai jo higly educated ho kar bhi itna paisa nahi kama pate...ek varg aisa bhi hai...aur na jane ye videshi bhuchaal kitne tufan layega..aur us par hairani ye ki hamara yuva varg apne bhawishy ka kuchh nahi soch raha...????
बहुत ही चिंतनीय विषय पर लिखा है आपने!
ReplyDeleteएक बेहद सार्थक पोस्ट ..............बहुत बहुत आभार !!
ReplyDeleteआपने एकदम सही मुदा उठाया है और ये काल सेंटर बच्चो को कम उम्र में ही सारे सुख भोगने के लिए देकर उनके चिर जीवन की अभिलाषा को छीन रही है ,,, आप का कहना एकदम सही है क्या १२ वी पास काल सेंटर के अलावा कोई कम कर पायेगा और काल सेंटर की नौकरी का कोई भरोषा नहीं होता है
ReplyDeleteइसीलिए मन लगाकर पढ़ाई और पढ़ाई पुरी होने पर कोई अच्छा सा नौकरी जिसमे सच्चाई और मेहनत हो तभी हम आप और भारत विकाश कर सकता है ....
bahut achcha mudda uthaya hai aapne.
ReplyDeletemain yahaan delhi mein rahataa hoon call center mein job karne waale kaafi logo ko janta hoon. jin logo ne kareeb 4 ya 5 saal pahale call center join kiya tha, aaj halaat ye hai ki jyadatar ko smoking , drinking , drugs ki lat pad gayi hai.
bahvishya ka to nahi pata par vartmaan mein hi haalat kafi chintajanak ho gaye hai.
jahan tak vikalpo ki baat hai to mujhe nahi lagta is desh mein job ki kamin hai jo log seriously padhai kiye hain unke paas achchi job hai.govt sector mein har mahine job nikal rahi hai, phir bahut sare semi govt aur private sector hai.
12th paas karke bhi aap defense mein NDA ke through ja sakte hai ya phir aap merchant navy join kar sakte hai .
option hai,call center join karna majboori nahi hai.haan ye alag baat hai ki call center mein job milna thoda asaan hota hai.
subah uthate hi fikr mein daal diyaa aapne...
ReplyDeletejaane kaisaa gujregaa apna aaj kaa din...!!!
आपकी बात तो सही है ...ये कॉल सेंटर कमाई के अच्छे साधन बन गए हैं युवा पीढ़ी के लिए ...मगर इसके नकारात्मक परिणामों को भी नाकारा नहीं जा सकता ...
ReplyDeleteअमरेन्द्र की टिपण्णी भी बहुत कुछ बयान कर रही है ...करे भी क्या ये युवा ...??
ओबामा अमेरिकी बच्चों से कहते हैं मैथ्स और साइंस पर ध्यान दो नहीं तो भारत के बच्चे तुम्हें कहीं का नहीं छोड़ेंगे...
ReplyDeleteशायद कॉल सेंटर्स या आउटसोर्सिंग के ज़रिए हमारे नौनिहालों को पंगु बनाने का अच्छा तरीका ढ़ूंढ निकाला है अंकल सैम ने...
मुझे भी ताज्जुब होता है जब बच्चे ग्रेजुएशन पूरा भी नहीं होता कि इन कॉल सेंटर्स के चक्कर में फंस जाते हैं...बीस तीस हज़ार रुपये, लंच और कैब से घर आना जाना...लेकिन इस चक्कर में पढ़ाई की जो वाट लगती है, पूछो नहीं...इनसान वाकई फिर और कुछ करने लायक नहीं रहता...
बड़ा सही मुद्दा उठाया आपने अदा जी...
जय हिंद...
बहुत सही मुद्दा उठाया आपने .....आज के युवा पीढ़ी पैसा कमाने के चक्कर में ऐसे रोजगार तुरंत अपना लेते है .
ReplyDeleteएक मज़ेदार बात और बताऊं...
ReplyDeleteयहां नोएडा में एक महिला हैं...गांव की ज़मीन बेचकर करोड़ों का मुआवज़ा मिला है...बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ाया लिखाया...उनकी बिटिया ने बारहवीं करने के बाद ग्रेजुएशन के साथ ही शौकिया तौर पर अपनी सहेलियों की देखादेखी कॉल सेंटर में नौकरी कर ली...वही महिला एक दिन बड़ी शान से बखार रही थीं...अब तो हमारी टीना भी कॉलगर्ल हो गई है...
जय हिंद...
सकारात्मक पहलू भी देखा जा सकता है...युवा वर्ग का एक हिस्सा ऐसा भी है जो रातों को नौकरी करके अपनी ऊँची शिक्षा के लिए पैसा इक्ट्ठा करते हैं..18साल के होते ही अपराध भावना घेर लेती है कि अपने माता पिता पर बोझ न बनकर अपने पैरों पर खड़ा हुआ जाए.. पढे लिखे बेरोज़गार किसी काम में तो हैं ... हाँ पैसा देख कर युवा भटक जाएँ तो यह अपनी खुद की पसन्द है और अभिवावकों के पालन पोषण का....सारे युवा वर्ग को दोष नहीं दिया जा सकता..
ReplyDeleteविचारणीय मुद्दा- चिन्तन मांगता है!!
ReplyDeleteबहुत सार्थक पोस्ट. साधुवाद
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