(ईमेल से प्राप्त हुआ है यह आलेख..)
बी.बी.सी. कहता है...........
ताजमहल...........
एक छुपा हुआ सत्य..........
कभी मत कहो कि.........
यह एक मकबरा है..........
प्रो.पी. एन. ओक. को छोड़ कर किसी ने कभी भी इस कथन को चुनौती नही दी कि........
"ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था"
प्रो.ओक. अपनी पुस्तक "TAJ MAHAL - THE TRUE STORY" द्वारा इस
बात में विश्वास रखते हैं कि,--
सारा विश्व इस धोखे में है कि खूबसूरत इमारत ताजमहल को मुग़ल बादशाह
शाहजहाँ ने बनवाया था.....
ओक कहते हैं कि......
ताजमहल प्रारम्भ से ही बेगम मुमताज का मकबरा न होकर,एक हिंदू प्राचीन शिव
मन्दिर है जिसे तब तेजो महालय कहा जाता था.
अपने अनुसंधान के दौरान ओक ने खोजा कि इस शिव मन्दिर को शाहजहाँ ने जयपुर
के महाराज जयसिंह से अवैध तरीके से छीन लिया था और इस पर अपना कब्ज़ा कर
लिया था,,
=> शाहजहाँ के दरबारी लेखक "मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी "ने अपने
"बादशाहनामा" में मुग़ल शासक बादशाह का सम्पूर्ण वृतांत 1000 से ज़्यादा
पृष्ठों मे लिखा है,,जिसके खंड एक के पृष्ठ 402 और 403 पर इस बात का
उल्लेख है कि, शाहजहाँ की बेगम मुमताज-उल-ज़मानी जिसे मृत्यु के बाद,
बुरहानपुर मध्य प्रदेश में अस्थाई तौर पर दफना दिया गया था और इसके ०६
माह बाद,तारीख़ 15 ज़मदी-उल- अउवल दिन शुक्रवार,को अकबराबाद आगरा लाया
गया फ़िर उसे महाराजा जयसिंह से लिए गए,आगरा में स्थित एक असाधारण रूप से
सुंदर और शानदार भवन (इमारते आलीशान) मे पुनः दफनाया गया,लाहौरी के
अनुसार राजा जयसिंह अपने पुरखों कि इस आली मंजिल से बेहद प्यार करते थे
,पर बादशाह के दबाव मे वह इसे देने के लिए तैयार हो गए थे.
इस बात कि पुष्टि के लिए यहाँ ये बताना अत्यन्त आवश्यक है कि जयपुर के
पूर्व महाराज के गुप्त संग्रह में वे दोनो आदेश अभी तक रक्खे हुए हैं जो
शाहजहाँ द्वारा ताज भवन समर्पित करने के लिए राजा
जयसिंह को दिए गए थे.......
=> यह सभी जानते हैं कि मुस्लिम शासकों के समय प्रायः मृत दरबारियों और
राजघरानों के लोगों को दफनाने के लिए, छीनकर कब्जे में लिए गए मंदिरों और
भवनों का प्रयोग किया जाता था ,
उदाहरनार्थ हुमायूँ, अकबर, एतमाउददौला और सफदर जंग ऐसे ही भवनों मे
दफनाये गए हैं ....
=> प्रो. ओक कि खोज ताजमहल के नाम से प्रारम्भ होती है---------
=> "महल" शब्द, अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में
भवनों के लिए प्रयोग नही किया जाता...
यहाँ यह व्याख्या करना कि महल शब्द मुमताज महल से लिया गया है......वह कम
से कम दो प्रकार से तर्कहीन है---------
पहला -----शाहजहाँ कि पत्नी का नाम मुमताज महल कभी नही था,,,बल्कि उसका
नाम मुमताज-उल-ज़मानी था ...
और दूसरा-----किसी भवन का नामकरण किसी महिला के नाम के आधार पर रखने के
लिए केवल अन्तिम आधे भाग (ताज)का ही प्रयोग किया जाए और प्रथम अर्ध भाग
(मुम) को छोड़ दिया जाए,,,यह समझ से परे है...
प्रो.ओक दावा करते हैं कि,ताजमहल नाम तेजो महालय (भगवान शिव का महल) का
बिगड़ा हुआ संस्करण है, साथ ही साथ ओक कहते हैं कि----
मुमताज और शाहजहाँ कि प्रेम कहानी,चापलूस इतिहासकारों की भयंकर भूल और
लापरवाह पुरातत्वविदों की सफ़ाई से स्वयं गढ़ी गई कोरी अफवाह मात्र है
क्योंकि शाहजहाँ के समय का कम से कम एक शासकीय अभिलेख इस प्रेम कहानी की
पुष्टि नही करता है.....
इसके अतिरिक्त बहुत से प्रमाण ओक के कथन का प्रत्यक्षतः समर्थन कर रहे हैं......
तेजो महालय (ताजमहल) मुग़ल बादशाह के युग से पहले बना था और यह भगवान्
शिव को समर्पित था तथा आगरा के राजपूतों द्वारा पूजा जाता था-----
==> न्यूयार्क के पुरातत्वविद प्रो. मर्विन मिलर ने ताज के यमुना की तरफ़
के दरवाजे की लकड़ी की कार्बन डेटिंग के आधार पर 1985 में यह सिद्ध किया
कि यह दरवाजा सन् 1359 के आसपास अर्थात् शाहजहाँ के काल से लगभग 300 वर्ष
पुराना है...
==> मुमताज कि मृत्यु जिस वर्ष (1631) में हुई थी उसी वर्ष के अंग्रेज
भ्रमण कर्ता पीटर मुंडी का लेख भी इसका समर्थन करता है कि ताजमहल मुग़ल
बादशाह के पहले का एक अति महत्वपूर्ण भवन था......
==>यूरोपियन यात्री जॉन अल्बर्ट मैनडेल्स्लो ने सन् 1638 (मुमताज कि
मृत्यु के 07 साल बाद) में आगरा भ्रमण किया और इस शहर के सम्पूर्ण जीवन
वृत्तांत का वर्णन किया,,परन्तु उसने ताज के बनने का कोई भी सन्दर्भ नही
प्रस्तुत किया,जबकि भ्रांतियों मे यह कहा जाता है कि ताज का निर्माण
कार्य 1631 से 1651 तक जोर शोर से चल रहा था......
==> फ्रांसीसी यात्री फविक्स बर्निअर एम.डी. जो औरंगजेब द्वारा गद्दीनशीन
होने के समय भारत आया था और लगभग दस साल यहाँ रहा,के लिखित विवरण से पता
चलता है कि,औरंगजेब के शासन के समय यह झूठ फैलाया जाना शुरू किया गया कि
ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था.......
प्रो. ओक. बहुत सी आकृतियों और शिल्प सम्बन्धी असंगताओं को इंगित करते
हैं जो इस विश्वास का समर्थन करते हैं कि,ताजमहल विशाल मकबरा न होकर
विशेषतः हिंदू शिव मन्दिर है.......
आज भी ताजमहल के बहुत से कमरे शाहजहाँ के काल से बंद पड़े हैं,जो आम जनता
की पहुँच से परे हैं
प्रो. ओक., जोर देकर कहते हैं कि हिंदू मंदिरों में ही पूजा एवं धार्मिक
संस्कारों के लिए भगवान् शिव की मूर्ति,त्रिशूल,कलश और ॐ आदि वस्तुएं
प्रयोग की जाती हैं.......
==> ताज महल के सम्बन्ध में यह आम किवदंत्ती प्रचलित है कि ताजमहल के
अन्दर मुमताज की कब्र पर सदैव बूँद बूँद कर पानी टपकता रहता है,, यदि यह
सत्य है तो पूरे विश्व मे किसी किभी कब्र पर बूँद बूँद कर पानी नही
टपकाया जाता,जबकि
प्रत्येक हिंदू शिव मन्दिर में ही शिवलिंग पर बूँद बूँद कर पानी टपकाने की
व्यवस्था की जाती है,फ़िर ताजमहल (मकबरे) में बूँद बूँद कर पानी टपकाने का क्या
मतलब....????
==> राजनीतिक भर्त्सना के डर से इंदिरा सरकार ने ओक की सभी पुस्तकें स्टोर्स से
वापस ले लीं थीं और इन पुस्तकों के प्रथम संस्करण को छापने वाले संपादकों को
भयंकर परिणाम भुगत लेने की धमकियां भी दी गईं थीं....
==> प्रो. पी. एन. ओक के अनुसंधान को ग़लत या सिद्ध करने का केवल एक ही रास्ता है
कि वर्तमान केन्द्र सरकार बंद कमरों को संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षण में
खुलवाए, और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों को छानबीन करने दे .... ज़रा सोचिये....!!!!!! कि यदि ओक का अनुसंधान पूर्णतयः सत्य है तो किसी देशी राजा के बनवाए गए
संगमरमरी आकर्षण वाले खूबसूरत, शानदार एवं विश्व के महान आश्चर्यों में से
एक भवन, "तेजो महालय" को बनवाने का श्रेय बाहर से आए मुग़ल बादशाह शाहजहाँ
को क्यों......????? तथा......
इससे जुड़ी तमाम यादों का सम्बन्ध मुमताज-उल-ज़मानी से क्यों........???????
""""आंसू टपक रहे हैं, हवेली के बाम से.......
रूहें लिपट के रोती हैं हर खासों आम से.......
अपनों ने बुना था हमें, कुदरत के काम से......
फ़िर भी यहाँ जिंदा हैं हम गैरों के नाम से......""""""""कृपया इस संदेश को सभी को भेजें""""
Girish Kamble
Research Associate
Mahyco Life Science Research Centre
Jalna-431203(MS)
India
***ताजमहल प्रारम्भ से ही बेगम मुमताज का मकबरा न होकर,एक हिंदू प्राचीन शिव
ReplyDeleteमन्दिर है जिसे तब तेजो महालय कहा जाता था.
***प्रत्येक हिंदू शिव मन्दिर में ही शिवलिंग पर बूँद बूँद कर पानी टपकाने की
व्यवस्था की जाती है,फ़िर ताजमहल (मकबरे) में बूँद बूँद कर पानी टपकाने का क्या
मतलब....????
__________विश्वाश नहीं होता ...../// इतनी महत्वपूर्ण,रोचक और ज्ञानवर्धक जानकरी दी है ....सभी की तरह हम भी भ्रम में ही जी रहे थे .....इस लेख में लिखा अगर ६०% भी ठीक है तो ..विचारणीय बिंदु है ,,,,,आज तक इसकी जानकारी हमें नहीं है इसे अज्ञान कहे या विडम्बना -------जो भी हो हमें यह बात सही ही लग रही है .... बहुत-बहुत धन्यवाद एक जानदार पोस्ट के इए लिए
P N Oak ki kai kitaabein padhi hain unke tathyon me dam hai...par raajneeti ka khel khelne waale is par shodh bhi nahi karwana chahate...vote bank chala jaayega...christianity par bhi unhone kaafi vichaar diye hain....lal kila, fatehpur seekri...jaama masjid...sabhi kuch hinsu mahal ya hindu mandir hi the...
ReplyDeleteउत्तम पोष्ट
ReplyDeletewhat a post sir jee !
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ReplyDeleteओक साहब की पुस्तकें विवादित रही हैं और एकडेमिक वर्ल्ड में उनकी खोजों को न तो कोई महत्ता मिली और न ही सत्यापन.. यहाँ तक की उनके नाम के साथ प्रोफेसर लगना भी विवादित ही रहा.
ReplyDeleteमैने यह पुस्तक पढ़ी है और आपने पुस्तक की समीक्षा ही की है, ऐसा ही मैं मान कर चल रहा हूँ.
@ समीर जी और जनाब महफूज़ साहब,
ReplyDeleteमैंने स्पष्ट रूप में ऊपर लिखा है कि यह आलेख ईमेल से प्राप्त हुआ है...मेराइस आलेख में कोई लेना देना नहीं है...हाँ यह भी एक नजरिया है और interesting है इसलिए लगा दिया पोस्ट बना कर....
ओक जी विवादित हैं इसमें कोई संदेह नहीं....उनके दावे भी विवादित हैं....लेकिन सीधे-सीधे नकारने की आदत नहीं है मुझे......यह तो तय है ही कि हमारे देश के इतिहास के साथ जी भर कर खिलवाड़ किया है अंग्रेजी हुकूमत ने....इसलिए थोड़ा सोचने में कोई हर्ज़ नहीं है यही मैंने सोचा और बस इतनी सी ही ग़लती है मेरी....
बस इतनी सी ही ग़लती है मेरी....इसमें गलती कैसी. :)
ReplyDeleteबस इतनी सी ही ग़लती है मेरी....इसमें गलती कैसी. :)
ReplyDeleteमुझे भी आई थी यह मेल
ReplyDeleteइस बारे मै सुरेश जी ने एक पोस्ट बहुत पहले लिखी थी, हो भी सकता है, क्योकि इस नेहरु परिवार ने देश कॊ १०० साल पीछे ही धकेला है, मन बहलाने को हम कुछ भी कहे
ReplyDeleteGood Morning !!!
ReplyDeleteyh desh sachchai ko pta nhi kb swikar krega
ReplyDeletegulami me jine ki aadt itne sal bad bhi nhi chhot rhi hai
koi bhi p.n oak ke tathyon ka to jbab dene ki himmt nhi rkhta apitu shor mcha kr sty ko jhuthlane ki koshish krte rhte hain
is ka ek aur bda karn tushti krn ki rajniti bhi hai
dr. ved vyathit
.
ReplyDelete.
.
आदरणीय अदा जी,
यह क्या ?
'महाशक्ति' ब्लॉग पर १९ दिसम्बर २००९ को यह पोस्ट आई थी, बहुत मेहनत की थी ब्लॉगलेखक ने पोस्ट बनाने में, काफी लम्बी और बिन्दुवार बहस भी हुई, आप तब सक्रिय भी थीं... तब तो आपने कोई राय नहीं दी...न ही आपने वह पोस्ट पढ़ी... आज यह पोस्ट ???...ऐसा क्यों ?
आदरणीय समीर जी और मित्र महफूज से सहमत!
आभार!
जिन्हें बौद्धिक गुलामी का सिकार होकर झूट फैलाने व मानने की आदत हो गई है भला वो किसी सत्य को क्यों सवीकार करें।
ReplyDeleteआपने सत्य को लिखने का साहस दिखाया इसके लिए आप बधाई की पात्र हैं।
. बहुत-बहुत धन्यवाद एक जानदार पोस्ट के इए लिए
ReplyDeletepyar ki nishani par post....
ReplyDeletemajedaar...
thanks didi
इसी विषय पर संजीव राणा जी कि पोस्ट भी आई थी अभी कुछ दिन पहले.....
ReplyDeleteपर उसमे सामग्री अंग्रेजी में थी.....
आज हिंदी में पढ़ कर अच्छा लगा......
कुछ प्रशन है जिनका उत्तर वर्तमान में सत्यापित इतिहास पर "?" लगाता है.....
रही खुद शोध करने कि बात तो.....हम अभी किस आधार पर शोध करेंगे....जो भी आधार होंगे....उनमे 'ऑक' की किताब क्या शोध की सामग्री नहीं मानी जायेगी...यदि नहीं तो क्यों...?
और जब एक गैर हिन्दू की बात को गलत बताया जा रहा है तो कोई हिन्दू इसे सही बताये(या सिद्ध करे) तो क्या ये एक शोध से प्रतिशोधी कार्यवाही या साम्पर्दायिक चाल घोषित नहीं की जायेगी.....
कुंवर जी,
भाटिया जी ने सही कहा, मैं इस विषय पर दो पोस्टें काफ़ी पहले लिख चुका हूं और उस पर जमकर बहस भी हुई थी…
ReplyDeleteबहरहाल… हर उस तथ्य-कथ्य और सबूत इत्यादि को तुरत-फ़ुरत सिरे से खारिज कर दिया जाता है, जिसमें या तो हिन्दू धर्म के समर्थन में कुछ हो या मुस्लिम आक्रांताओं के खिलाफ़ कुछ लिखा गया हो। यह प्रगतिशीलता और सेकुलरिज़्म का पैमाना भी माना जाता है, उदाहरण के लिये यदि औरंगजेब को मन्दिर तोड़ने वाला, दारुकुट्टा आदि साबित करने के सबूत दिये जायें तो "साम्प्रदायिक", लेकिन अकबर को दयालु, विद्वान, हिन्दुओं का रखवाला आदि साबित करने पर "प्रगतिशील"।
तात्पर्य यह है कि पुरस्कार-पद्मश्री वगैरह पाना हो तो प्रगतिशील और सेकुलर बनो…… उपेक्षा-अपमान आदि सहना हो तो "साम्प्रदायिक" बनो।
ओक साहब के निष्कर्ष विवादित हैं, कहीं-कहीं अतिरेकपूर्ण भी हैं लेकिन उनकी बातों/तथ्यों पर कोई गौर नहीं, ताजमहल के बन्द कमरों को खोलने, ईंटों से चिनवाई गई दीवारों को फ़ोड़कर जाँच करने, उनकी कार्बन डेटिंग आदि की माँग को तत्काल सिरे से खारिज किया जाना चाहिये क्योंकि वह "शाहजहाँ" को प्रश्नों के दायरे में लाती हैं, इसे कहते हैं "खालिस प्रगतिशीलता" :)
जी क्षमा करना....
ReplyDeleteअभी पता चला कि ऑक साहब तो हिन्दू ही है.....अब समझा इसीलिए उनके शोध को क्यों अमान्य घोषित किया जाता रहा है......बहुत बढ़िया...
कुंवर जी
agree with mahfooz
ReplyDelete@प्रवीण जी...आपका सवाल ही अटपटा है....पहली बात मैं ब्लॉग जगत के सारे पोस्ट्स नहीं पढ़ सकती...और सच्ची बात यह है कि मैंने इन पोस्ट्स को नहीं पढ़ा...ऊपर स्पष्ट रूप से लिख दिया यह मेरा आलेख नहीं है....यह मुझे कल ही ईमेल से प्राप्त हुआ था ....इसलिए डाल दिया....और ऐसा भी नहीं कि किसी ने इस बारे में बात कि है तो दोबारा बात करना वर्जित है.....किसी भी मुद्दे को कोई भी कभी भी कहीं भी उठा सकता है...इतनी स्वतंत्रता होनी चाहिए...
ReplyDeleteऔर ऐसा भी नहीं कि जिन्होंने इसे उठाया उसके पहले उसे किसी ने नहीं उठाया हो....इसलिए आपके इस सवाल का कोई अवचित्य नहीं....
बीसियों लोगों नें इसे आग्ल भाला में मेला था, हिन्दी में पढकर अच्छा लगा. 'महाशक्ति' पर हम इसे पढनें से चूक गए थे. अब पढ लेते हैं.
ReplyDeleteसही बात सही ही रहेगी, न समीर जी प्रो0 लगवा सकते है और न ही हटवा, प्रो0 ओक के महत्व को सिरे से नकारा नही जा सकता है, जो जो इस्लामिक भवन आदि है उनकी सही से तहकीकात की जाये तो पूरे भारत मे नये पहलू सामने आयेगे। :)
ReplyDeleteशुभ रात्रि
मैं अपना कमेन्ट डिलीट करता हूँ...... मेरे और आपके रिश्ते अलग हैं.... मैं नहीं चाहता की कोई मेरे कमेन्ट का समर्थन करे.... सब समझ का फेर है.... कोई समझ नहीं पाता.... कि कमेन्ट देने का पर्पज़ क्या है....?
ReplyDeleteअदा जी ये विवाद बहुत लम्बे समय से चल रहा है, और ये एक शोध का विषय है, इसमें सच्चाई भी हो सकती है!
ReplyDeleteमान लीजिये यह सत्य है भी तो ...................??
ReplyDeleteजिस भारत में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और लाल बहादुर शाष्त्री जैसे लोकप्रिय नेताओ की मौतों से पर्दा नहीं उठाया गया वहाँ आप ताजमहल की बात कर रही है !
हो सके तो ज़रा इन पोस्टो पर गौर कीजियेगा :-
http://burabhala.blogspot.com/2009/08/blog-post_18.html
और
http://burabhala.blogspot.com/2009/08/blog-post_20.html
अदा जी
ReplyDeleteमैंने अपने एक लेख "110 सबूत, झगडा नही पर इसपर विचार तो किया जाना ही चाहिए ......ताजमहल की सच्चाई,"
मैं बोला तो धमाका होगा ब्लॉग पे लिखा था .
अब आप ही बताये अगर ऐसा नही हैं तो शाहजहाँ ने ताज की निर्माण के खर्च में इतना अंतर क्यों बताया ?
क्योंकि उसने इसे बनवाया ही नही था
--हम आगरा के रहने वाले ६० वर्षों, और पहले से यह सुनते- जानते रहे हैं कि ताजमहल राजा जैसिन्ह का बनवाया हिन्दू मन्दिर था, उसमें फ़र्श पर सन्गमरमर का कमल का पुष्प भी मौजूद है ।
ReplyDeleteनयी जानकारी है ...
ReplyDeleteइतिहास जो हो चूका , वह अलग बात है ...अब हम अपनी भावी पीढ़ी को देने के लिए कैसा इतिहास बना रहे हैं , मुझे लगता है अब इस पर ध्यान देना चाहिए ...
tajmahal ki prachinta ki janch honi chahiye
ReplyDelete