मेरा दिल है इक जज़ीरा इल्म और अहसास का
रूह लिए बेरंग शक्ल तेरी आरज़ू की प्यास का
दर्द का आसमान कितना ख़ाली ख़ाली लग रहा
दिखता नहीं है इक परिन्दा भी कहीं पर आस का
तुम हमारी ज़िन्दगी में अब आ ही जाओ मेहरबाँ
एक अरसा काट डाला हमने तो बनवास का
ज़िन्दगी सँवरेगी एक दिन घर बनेगा इक नया
जोड़ लेंगे साथ मिलके तिनका-तिनका घास का
ज़िन्दगी सँवरेगी इक दिन घर बनेगा इक नया
ReplyDeleteजोड़ लेंगे साथ मिलके तिनका-तिनका घास का
शायद ज़िन्दगी का फलसफा भी यही है
बहुत सुन्दर गजल
एक बार फिर से शानदार ग़ज़ल दी.. अब तो एक किताब निकालने की बनती है..
ReplyDeleteजोड़ लेंगे साथ मिलके तिनका-तिनका घास का.. पारस्परिक साहचर्य, जीवन की हर समस्या का समाधान. An awesome composition.
ReplyDeleteदीपक की बात पर ध्यान दिजिये..कब से कह रहा हूँ. :)
ReplyDeleteबेहतरीन गज़ल!
nice
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteपरिंदे भी नहीं रहते पराए आशियानों में,
ReplyDeleteअपनी तो उम्र गुज़री किराये के मकानों में...
शेर सिंह के साथ दो-दो हाथ में उलझा होने की वजह से पिछली कुछ पोस्टों पर टिप्पणी के लिए नहीं आ सका...उसके लिए गाना...
अच्छा कहो, बुरा कहो,
बुरा कहो, अच्छा कहो,
बात पे डालो धूल,
हमसे भूल हो गई,
हमका माफ़ी देई दो...
जय हिंद...
ज़िन्दगी सँवरेगी इक दिन घर बनेगा इक नया
ReplyDeleteजोड़ लेंगे साथ मिलके तिनका-तिनका घास का
बेहतरीन पंक्तियाँ और भाव बहन मंजूषा।
आशियां बनते हजारों एक नये अरमान से
पर सुमन का घर जहाँ पर डोर हो विश्वास का
शुभकामनाएं।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
बहुत खूबसूरत जज़्बातों से भरी गज़ल पेश की है आपने आज। आशा बनी रहे तो जीने का मजा कुछ और ही होता है।
ReplyDeleteकिताब छपवा ही लो अदा जी।
कहें तो हस्ताक्षर अभियान शुरू करवायें?
अग्रिम बुकिंग पर कोई डिस्काऊंट हो तो हम भी अपनी प्रति रिज़र्व करवाना चाह्ते हैं :)
आभारी।
ज़िन्दगी सँवरेगी इक दिन घर बनेगा इक नया
ReplyDeleteजोड़ लेंगे साथ मिलके तिनका-तिनका घास का
वाह ....लाजवाब ...बहुत खूब लिखा है अदा जी ,,,,सुन्दर ग़ज़ल,,,सुन्दर कल्पना से सजी हुई
बेहतरीन गज़ल के लिए ढेर सारी बधाई.
ReplyDeleteमक्ते का यह शेर तो लाजवाब है..
ज़िन्दगी सँवरेगी इक दिन घर बनेगा इक नया
जोड़ लेंगे साथ मिलके तिनका-तिनका घास का
..सार्थक सोच से ही जिंदगी संवरती है.
जी बहुत बढ़िया....
ReplyDelete"ज़िन्दगी सँवरेगी इक दिन घर बनेगा इक नया
जोड़ लेंगे साथ मिलके तिनका-तिनका घास का"
एक फलसफा जिंदगी का दिखाती ये रचना.....
निराशा क्या करेगी भला कहा जायेगी
जब तुम छोड़ोगे ही नहीं हाथ आस का...
कुंवर जी,
सुंदर...उम्मीद पर ही तो दुनिया कायम है
ReplyDeleteज़िन्दगी सँवरेगी इक दिन घर बनेगा इक नया
ReplyDeleteजोड़ लेंगे साथ मिलके तिनका-तिनका घास का
बहुत आशावादी ।
तिनके जुड़े रहें , यह भी ज़रूरी है ।
अंडे बड़े सुन्दर हैं । क्या असली हैं ?
ज़िन्दगी सँवरेगी इक दिन घर बनेगा इक नया
ReplyDeleteजोड़ लेंगे साथ मिलके तिनका-तिनका घास का
जोड़ लेंगे साथ मिलके तिनका-तिनका घास का
ReplyDeleteदिल को छू रही है यह कविता .......... सत्य की बेहद करीब है ..........
ReplyDeleteऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना हमेशा की तरह.
ReplyDeleteधन्यवाद
behtareen rachna hai ada ji !
ReplyDeletepar ek sher or hona chahiye shayad.
har ek sher par wah wah nikalti hai...is se jyada gazel ki umdaygi kya bayaan karu. badhayi.
ReplyDeleteज़िन्दगी सँवरेगी एक दिन घर बनेगा इक नया
ReplyDeleteजोड़ लेंगे साथ मिलके तिनका-तिनका घास का
वाह! बहुत सुन्दर!
बेहतरीन गज़ल के लिए ढेर सारी बधाई.
ReplyDeleteग़ज़ल तो नहीं है पर बढ़िया रचना है, भवसागर के भाव सँजोए -कुछ पाए - जाने क्या खोए।
ReplyDeleteबधाई अच्छी रचना के लिए।