प्रातः जब मैं जगी
मन कोयला बन
धधक उठा
गीत ठिठक गए
और जीवन !
अभिशप्त सा, खिंचा-खिंचा
निश्वास, स्पंदन धीमा,
नैनों में पावस था,
धरा करुण-करुण थी और
गगन में सावन था
जीवन अब मरण था
हर्ष अब कढ़ा था
निष्प्राण तन तरु की
कथा अधूरी रह गई
उम्र बनी,
उम्र बनी,
विषम, दुर्गम, दुरूह,
सुख, यौवन सब अंतर्ध्यान,
मन कोकिला मूक थी,
मन कोकिला मूक थी,
था बस
विरह, संदेह, अविश्वास में तर,
विरह, संदेह, अविश्वास में तर,
फैला हुआ
जीर्ण सा आँचल मेरा
प्रश्न लिए
जीर्ण सा आँचल मेरा
प्रश्न लिए
बोलो न !
क्यों, कैसे, कब ?
हृदय फटा है, परन्तु डटा है
क्यों, कैसे, कब ?
हृदय फटा है, परन्तु डटा है
मैं जीवन समर लड़ी हूँ
आज भी खड़ी हूँ
नहीं किया पलायन,
माँ थी मैं,
परन्तु तुम, विश्वासघाती !!
हारे तुम हो सिद्धार्थ !!
कैसे मोक्ष पाओगे ?
ऋणी हो तुम मेरे
नहीं मुक्त करुँगी तुम्हें, कभी भी,
याद रखना
मैं हूँ यशोधरा
तुम्हारे राहुल की माँ....
adbhut atulneey sach kaha...maan kabhi apne putr ko tyaag nahi sakti...uske liye sansaar ke sabhi ran ladne ko hamesha tatpar rehti hai...bahut hi vicharottejak prastuti...aur haan...maatr divas ki hardik shubhkaamnayein...
ReplyDeleteमोक्ष प्राप्ति के लिए पत्नी को बिना बताये अचानक उसे सोता छोड़ कर निकल जाना सिद्धार्थ को बुद्ध तो बना देता है ...मगर अपनी पत्नी और बच्चे के प्रति उनकी जवाबदेही पर प्रश्न भी खड़े करता है ...मुझे भी यह प्रश्न बहुत सताता है कि सिद्धार्थ ने एक बार यशोधरा को कहा तो होता ...क्यों नहीं कहा कि वह बुद्ध बनना चाहते हैं ...इस तरह बिना कहे उसे अकेला कर जाना .....!!
ReplyDeleteअच्छी कविता ...
dunia ko bahut kuchh dene ke liye Siddharth ko apna sarvasva to lutana hi tha.. aur uski sahchari ka sukh-dukh unse alag kaise ho sakta tha di?
ReplyDeleteMaithili sharan ji gupt ki ye panktiyaan yaad aatee hain-
ReplyDelete'siddhi hetu swami gaye
yah gaurav ki baat
kintu chori-chori gaye
yahi bada vyaghaat'
Hi
Deletecould you please type out the entire poem that has these lines.......
'siddhi hetu swami gaye
yah gaurav ki baat
kintu chori-chori gaye
yahi bada vyaghaat'
would really appreciate it if you could email them to me @ gomesjoshua@gmail.com....
thanks
अभी तक जिन उपेक्षित पौराणिक ऐतिहासिक चरित्रों की बात आप उठाती रही हैं, यशोधरा की बात उनमें सबसे ज्यादा अपेक्षित थी, ये मेरी व्यक्तिगत राय है।
ReplyDeleteआज अपने मनपसंद विषय पर पढ़कर बहुत अच्छा लग रहा है।
अगर अपने स्वजनों की जिम्मेदारियों को त्याग सकने की हिम्मत कर सकें, तो शायद हम सब भी गौतम के मार्ग पर चल सकें, लेकिन क्या यह ठीक होगा?
यदि गौतम एक राजपुरुष न होकर साधारण परिवार से संबद्ध होते तो क्या यह ग्रह त्याग उनके लिये और यशोधरा के लिये ज्यादा आसान होता?
मेरे प्रश्न बढ़ते ही जा रहे हैं और दिमाग उतना ही उलझता जा रहा है।
शानदार प्रस्तुति पर आभार
और मयंक क्या ज्यादा व्यस्त है जो उसकी चित्रकारी देखने को नहीं मिल रही है?
बहुत सुन्दर प्रस्तुति है
ReplyDeleteअपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़कर अगर आप मोक्ष भी प्राप्त कर लिए तो क्या किये !
सुन्दर रचना!
ReplyDeleteमातृ-दिवस की बहुत-बहुत बधाई!
ममतामयी माँ को प्रणाम!
hnm...
ReplyDeleteढूंढता हूँ क्यूँ अंधेरों में रूह-ऐ-ताबानी
दर्द से में भी तो घबरा के भाग सकता हूँ..
पर में घर-बार को ठुकरा के जी नहीं सकता..
में भी गौतम हूँ, मगर और ही तरह का हूँ...
hnm...
ReplyDeleteढूंढता हूँ क्यूँ अंधेरों में रूह-ऐ-ताबानी
दर्द से में भी तो घबरा के भाग सकता हूँ..
पर में घर-बार को ठुकरा के जी नहीं सकता..
में भी गौतम हूँ, मगर और ही तरह का हूँ...
हूँ, सखि वे मुझसे कह कर जाते ... दद्दा (मैथिली शरण गुप्त) की अमर रचना
ReplyDelete@ कैसे मोक्ष पाओगे ? - सिद्धार्थ के मोक्ष के लिए नहीं, दु:ख मुक्ति के लिए प्रयाण किया। दु:ख मुक्ति की स्थिति जिसे उन्हों ने निर्वाण कहा।
एक होमवर्क (मैं मास्साब की भूमिका में :)) :
राहुल का हाथ तथागत को सौंपते हुए यशोधरा ने क्या कहा ?
उस समय की सामाजिक संरचना (अब भी कमोबेश)में यशोधरा को वे वृहत्तर प्रश्न नहीं सताते। गौतम भी कितने होते हैं ? यशोधराएँ गृह त्याग कर बुद्धत्त्व की खोज में नहीं जा सकतीं। कई कारण हैं। ...बुद्ध ने पलायन नहीं, वृहत्तर समर को स्वयं के लिए चुना। वे तो जीवन पर्यंत चलते रहे, लोगों को दु:ख निरोध के उपाय बताते रहे। पलायन तो तब होता जब किसी गुफा में धूनी जमाए रहते। कुछ लोग समय वृत्त की परिधि पर नहीं चलते, स्पर्शक रेखा की तरह उसे छूते, अपनी छाप छोड़ते चले जाते हैं। वे विलक्षण सामान्य नियमों बातों में नहीं बाँधे जा सकते। ...
यशोधरा की पीड़ा घर छोड़ जिनके पति संन्यासी हुए, ऐसी कितनी ही नारियों की व्यथा है। हाँ, सिद्धार्थ गौतम तथागत हमेशा यशोधरा का ऋणी रहेगा। ... कंस प्रकरण के बाद यह प्रकरण अच्छा लगा - कंट्रास्ट ।
सुबह सुबह धधकना! वाह!
ReplyDeleteगिरिजेश राव की टिप्पणी अच्छी लगी।
उचित शब्दों के चयन के साथ एक बहुत ही सुंदर रचना ,
ReplyDeleteये सही है कि गौतम ने जो किया वो पलायन नहीं था,फिर भी कुछ ज़िम्मेदारियां उन से छूट गईं ,
प्रश्न ये है कि क्या यशोधरा ऐसा कर सकती थी ?
क्या उस को मोक्ष की इच्छा नहीं रही होगी?
लेकिन वो मां थी ,अपने उत्तरदायित्वों को कैसे छोड़
सकती थी,
इस भावाभिव्यक्ति के लिए बधाई हो
सुंदर चित्र और रचना...मातृ-दिवस की बहुत-बहुत बधाई!
ReplyDeleteबात गहरी है पर सिद्धार्थ तो बुद्ध हो गये ।
ReplyDeleteसिद्दार्थ के इस कदम पर बहुत से मन में द्वन्द उठना स्वाभाविक है...और बहुत सुन्दर शब्दों का चयन कर यशोधरा की ओर से ये रचना रही है...बहुत से सवाल करती हुई सी...
ReplyDeleteसिद्धार्थ जो सत्य की खोज में निकले तो बुद्ध तो बन गए....पर ये सोच कर नहीं निकले थे कि उनको सत्य या मोक्ष मिल ही जायेगा...बस जो बातें उनको परेशां कर रहीं थीं उनके निराकरण के लिए ही निकले थे...पर फिर भी अपनी जिम्मेदारियों से तो पलायन ही था...
ये रचना बहुत अच्छी लगी .
बहुत ही सुन्दर कविता है एक अलग अंदाज़ में,मातृ दिवस की शुभकामना!
ReplyDeleteसुंदर रचना.
ReplyDeleteमुझे बस यशोधरा के सवाल के ज़बाब दे दो ..................................
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत रचना.
ReplyDeleteरामराम.
कब बंद होगी सीताओं, उर्मिलाओं, यशोधराओं की अग्नि परीक्षा...
ReplyDeleteजय हिंद...
सिद्धार्थ के गौतम से बुद्ध होने की वेदी पर बलि होना यशोधरा को, और महिमामण्डन बोधिवृक्ष का!
ReplyDeleteयशोधरा की कसक जायज़ है, और ख़ूब व्यक्त हुई है आपकी रचना में।
बढ़िया प्रस्तुति....बधाई मातृ दिवस की हार्दिक बधाई
ReplyDeleteबेहद भावुक रचना, बेहतरीन...
ReplyDeletehttp://rohitler.wordpress.com
मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ !!
ReplyDeleteवन्दे मातरम !!
महाकवि मैथली शरण गुप्त के प्रशन उठाने वाली कविता के बाद दूसरी कविता जिसमें यशोधरा तथागत को फिर से सिदार्थ बना देती है.....पर यह बात भी सच है कि बुद्ध समय से परे हैं. इसलिए बुद्ध हैं....मेरे ख्याल से घर त्याग करते समय सिदार्थ सधारण इंसान थे. सो कह कर न जा सके....पर लौटे तो बुद्ध थे....
ReplyDeleteएक औऱ चरित्र हैं जिसपर नजर पड़ी महाकवि विकट की.
मैथिली शरण गुप्त जी की यशोधरा कहती हैं -
ReplyDelete'' सिद्धि हेतु जंगल गए यह गौरव की बात
लेकिन वे चोरी गए , यही बड़ा व्याघात ! ''
पर आपकी यशोधरा ज्यादा 'बोल्ड' है , आखिर
इक्कीसवीं सदी की है तभी , पर देखिये न ईसा पूर्व की
यशोधरा का कमाल कि इस यशोधरा को बात कहने के
लिए आश्रय वहीं का चुनना पड़ रहा है !
aapka tahe dil se dhanyawad mam
ReplyDeleteaapne maa k liye mera samman aur bhi badha diya hai .....adhbhut
..... एक अच्छी प्रस्तुति ....सुन्दर रचना ../माँ पर कुछ भी लिखो कम ही लगता है ..फिर भी आपने बहुत सुन्दर लिखा है ...बस इसे पढ़ कर इतना ही कहूँगा की दुनिया की हर माँ को शत-शत नमन ....
ReplyDeleteहृदय फटा है, परन्तु डटा है
ReplyDeleteमैं जीवन समर लड़ी हूँ
आज भी खड़ी हूँ
नहीं किया पलायन,
माँ थी मैं,
परन्तु तुम, विश्वासघाती !!
हारे तुम हो
सिद्धार्थ !!
निशब्द कर दिया आपने.....
अप्रतिम रचना....
nahi karungi rinmukt ... nahi arth de saka jab mera kis sidhi hetu siddharth gaya ....
ReplyDeletecan anyone please share me the Lyrics of "Sidhi hetu swami gaye": to mahanteshart@gmail.com
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