जिस तरह की असभ्य भाषा का प्रयोग किया जा रहा है ..ज्ञानदत्त जी और अनूप शुक्ल जी के लिए...यह बहुत बहुत ग़लत हो रहा है....इसे रोकना होगा समीर जी ....कृपा करके आप कुछ कीजिये....
अपनी असहमति सभ्य भाषा में भी जताई जा सकती है ...ऐसा क्यों नहीं हो रहा है....??
मुझे पता है लोग कहेंगे कि ये हमेशा विवादों में आ जाती है लेकिन....ये सब देखना बहुत मुश्किल हो रहा है...
समीर जी आपसे करवद्ध प्रार्थना है....कृपा करके आप मार्ग दर्शन कीजिये...
विनीत....
'अदा'
ब्लॉग समाचार.
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आप ठीक कह रही हैं : मुद्दा कुछ भी हो भाषा की मर्यादा कभी नहीं छोड़नी चाहिये. पर यहाँ तो ...
ReplyDeleteजिस तरह की असभ्य भाषा का प्रयोग किया जा रहा है ..ज्ञानदत्त जी और अनूप शुक्ल जी के लिए...यह बहुत बहुत ग़लत हो रहा है....इसे रोकना होगा समीर जी ....कृपा करके आप कुछ कीजिये....
ReplyDeleteअपनी असहमति सभ्य भाषा में भी जताई जा सकती है ...ऐसा क्यों नहीं हो रहा है....??
आपकी चिंता एकदम जायज़ है और सुझाव भी. आश्चर्य है कि इस भाषा के प्रयोगकर्ता खाते-पीते घरों से हैं और कामधंधों में लगे हुए शिक्षित वयस्क हैं.
मैं आपसे सहमत हूँ / ब्लॉग जगत के लिए ये शर्म की बात है की ,हम देश और समाज को नरक बनाने वालों को निशाना बनाने के वजाय एक दुसरे ब्लोगर को ही निशाना बनाने पे तुले हुए हैं और दुःख तब और ज्यादा होता है जब इस कार्य में कुछ समझदार और गंभीर ब्लोगर भी शामिल हो जाते हैं /
ReplyDeleteआप की बात से पूरी तरह सहमत हूँ।
ReplyDelete"रहिमन मीठे वचन से सुख उपजत चहूँ ओर!"
ReplyDeleteलगता है ब्लॉग समाचार का लिंक डालना भूल गईं हैं आप...
ReplyDeleteजय हिंद...
सही कह रही हैं, मैं स्वयं चिन्तित एवं व्यथित हूँ. करते हैं कुछ.
ReplyDelete१००% सहमत हूँ di
ReplyDelete....समीर जी की टिप्पणी में दम है !!!
ReplyDeletemujhe to pata bhi nhi..ye kya hua,kaise hua...kab hua...jab hua....tab hua...o chhodo....ye na socho...
ReplyDeleteब्लॉग जगत के लिए ये शर्म की बात है
ReplyDeletekacha ghada kavita ke liye bahut bahut badhai..........
ReplyDeleteप्रणाम दी ................दरअसल इस मसले पर मैं पूरी तरह नावाकिफ़ हूँ ............पर इस तरह के तथाकथित ब्लोग्धारियों को रचनात्मक तकनीकी से ज़बाब दिया जा सकता हैं .................
ReplyDeleteअपनत्व जी की एक कविता याद आ गई
ReplyDeleteजब वातावरण मे
बे बुनियाद
दोषारोपण का
खेल शुरू हो जाता है ।
तब विवेक
सच मानिये
सारे घोड़े बेच कर
सुख की नींद
चैन से सो जाता है
आप से सहमत हूं~।
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ReplyDeleteअदा जी, आप सही कह रही हैं, असभ्य भाषा का प्रयोग ना ही किया जाये तो अच्छा है, वैसे मैं इस जगत का बहुत नया वाशिंदा हूँ, इसलिए किसीके बारे में कोई टिप्पणी नहीं कर रहा हूँ, बस यही चाहता हूँ की शान्ति बनी रहे, आपसी सद्भाव बना रहे ! और गाली देना ही है तो सामाजिक कुरीतियों को दें .... आपका ब्लॉग समाचार लिंक नहीं खुल रहा है ...
ReplyDeleteमेरे विचार से ब्लॉग पर व्यक्तिगत लेख लिखना , जिसमे एक व्यक्ति विशेष पर छीटा कसी की गई हो , उचित नहीं लगता ।
ReplyDeleteआप मुद्दों पर बात कीजिये , कवितायेँ लिखिए , हास्य -मनोरंजन सामग्री लाइए , जानकारी दीजिये , ज्ञान बाँटिये । किसी के बारे अनुचित लिखकर आप क्या साबित करना चाहते हैं ?
जाने क्यों हर थोड़े दिनों बाद एक विवाद उठकर सारा माहौल ख़राब कर देता है।
जिसको जो अच्छा लगे वो लिखे । जिसे पढना हो पढ़े , वर्ना पढने के लिए ब्लोग्स तो बहुत से हैं । फिर काहे का विवाद।
ऐसे में शांति बनाये रखना ज़रूरी है । जल्दी ही लोग भूल जायेंगे ।
आगे बढ़ना भी ज़रूरी है।
'अदा' जी जैसे विचार रखने वालों नए/ पुराने ब्लॉगरों के लिए:
ReplyDelete> क्या 'किसी' ने यह सोचने की जहमत उठाई है कि मिथिलेश जैसा युवक ऐसी भाषा का प्रयोग क्यों कर रहा?
> क्या 'किसी' ने यह सोचने की जहमत उठाई है कि आशीष खंडेलवाल जैसे लोकप्रिय ब्लॉगर ने अपने ब्लॉग पर ट्रिक्स-टिप्स लिखना क्यों छोड़ दिया?
> क्या 'किसी' ने यह सोचने की जहमत उठाई है कि मुझ जैसे स्वभाव वाले की जबान पर कड़वाहट क्यों आ जाती है?
> क्या 'किसी' ने यह सोचने की जहमत उठाई है कि पिछले दिनों से समीर लाल की 'हिन्दी सेवा' पर कटाक्ष, लगातार क्यों तीव्र होते जा रहे हैं?
> क्या 'किसी' ने यह सोचने की जहमत उठाई है कि विवाद की शुरूआत कौन करता है?
> क्या 'किसी' ने यह सोचने की जहमत उठाई है कि किसी भी विवाद को खड़ा करने वाला ब्लॉगरी में कितना समय बिता चुका?
> क्या 'किसी' ने यह सोचने की जहमत उठाई है कि परिणामों के बारे में सोचना भी चाहिए
> क्या 'किसी' ने यह सोचने की जहमत उठाई है कि क्यों कुछ करने का ठेका वही ले जिसे निशाना बनाया गया
> क्या 'किसी' ने यह सोचने की जहमत उठाई है कि ...
वैसे मैंने पूरा मसला नहीं पढ़ा है कि क्या हुआ था ? लेकिन भाषा अगर असभ्य इस्तेमाल हुई है तो ये बहुत शर्मनाक है. वो साहित्यकार ही क्या जो अपनी भाषा को असभ्य कर डे. वो इंसान ही क्या जो शब्दों से अपनी पकड़ खो दे. आदर पाने के लिए आदर करना पड़ता है.छोटी सी बात है मगर पता नहीं क्यूँ लोगों को समझ में नहीं आती. अच्छा लिखें , अच्छा पढ़ें और अच्छा सुनें,
ReplyDeleteइश्क इबादत है खुदा की बस इश्क ही इश्क कीजै
"नाशाद" ता उम्र बस इश्क ही लीजै इश्क ही दीजै
विज्ञापन देखा है? "नेताजी के लिए पार्टी हिला देंगे"
ReplyDeleteबस वही हो रहा है. :) हम सच्चे अर्थों में भारतीय हैं :)
lagata hai bahut hi gambhir mudda hai magar main poori tarah wakif nahi hun aur yahan blogs par to roj kisi na kisi ke sath ye hota rahta hai shayad isliye dhyan na gaya ho..........magar phir bhi yahi kahungi ki jo bhi insaan is tarah ki harkat kar raha hai ye ashobhniya hai aur uske khilaf sabko aawaz uthani chahiye.
ReplyDeleteसुनिए, समीर लाल, द साउंड ऑफ साइलेंस...
ReplyDeleteजय हिंद...
एक कहावत नया-नया ड्राईवर ज्यादा भौंपू बजाता है।
ReplyDeleteकिसी को भी कुछ भी कह रहे हैं।
लगता है कि झगडने के लिये ही आते हैं और टिप्पणी करते हैं।
प्रणाम
पाबला जी से सहमत हूँ !!
ReplyDeleteसाथ साथ यह भी कहना चाहूँगा ......... जब समीर भाई एक 'विनती' करते है सब से तब भी तो यही कहा जाता है कि वह ही पूरे ब्लॉग जगत पर राज करना चाहते है और फिर समीर भाई ही क्यों ........... बाकीयो की कोई ज़िम्मेदारी नहीं है क्या ??
एक साहब है जो अपने ब्लॉग पर पोस्ट लिखते है दुसरे ब्लॉगर के ऊपर और दुनिया भर की गंद फैलाते है जब मेरे, पाबला जी और अजय कुमार झा जैसे ब्लॉगर उनको उनके ही ब्लॉग पर सुना के आते है तो जनाब पोस्ट ही मिटा देते है .........सब से मज़े की बात यह कि जनाब खुद दूसरो को ज्ञान देते है अच्छा लिखने का, अब आप ही बताएं यह कहाँ का तरीका है ब्लॉगिंग का कि अगर आपकी पोस्ट पर मन माफिक टिपण्णी नहीं आई तो पोस्ट ही हटा दो ! हम सब यही चाहते है कि ब्लॉग जगत में शांति बनी रहे पर इसका यह मतलब तो नहीं कि बिना वजह किसी पर भी कुछ भी आरोप लगा दिए जाए !!
माफ़ कीजियेगा अगर आपको कोई बात बुरी लगी हो तो पर सत्य यही है !!
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ReplyDeleteबेहद प्रासंगिक पोस्ट...
ReplyDeleteयह मामला क्या है...? हम नहीं जानते...
क्योंकि अब ब्लॉगवाणी पर आना कम हो गया है, न के बराबर...
जब हमने ब्लोगिंग शुरू की थी, उस वक़्त माहौल बहुत अच्छा था...
लेकिन, अफ़सोस है कि 'कुछ लोगों' ने ब्लॉग जगत रूपी पावन गंगा में 'गंदगी' घोल दी है...और यह दिनोदिन बढ़ रही है...
लोग ज़बरदस्ती अपने 'मज़हब' को दूसरों पर थोप देना चाहते हैं...
गाली-गलौच करते हैं... असभ्य और अश्लील भाषा का इस्तेमाल करते हैं...
किसी विशेष ब्लोगर कि निशाना बनाकर पोस्टें लिखी जाती हैं...
फ़र्ज़ी कमेंट्स किए जाते हैं...
दरअसल, 'इन लोगों' का लेखन से दूर-दूर तक का कोई रिश्ता नहीं है... जब ब्लॉग लेखन का पता चला तो सीख लिया और फिर उतर आए अपनी 'नीचता' पर... और करने लगे व्यक्तिगत 'छींटाकशी'...
'इन लोगों' की तरह हम 'असभ्य' लेखन नहीं कर सकते... क्योंकि यह हमारी फ़ितरत में शामिल नहीं है और हमारे संस्कार भी इसकी इजाज़त नहीं देते... एक बार समीर लाल जी ने कहा था... अगर सड़क पर गंदगी पड़ी हो तो उससे बचकर निकलना ही बेहतर होता है...
आज ब्लॉग जगत में जो हो रहा है, हमने सिर्फ़ वही कहा है...
Chintniya....saare mil chintan karo...
ReplyDeleteआपसे पूरी तरह से सहमत हू जी
ReplyDeleteढपोरशंख जी आपकी बात मैंने बहुत गौर से पढ़ी है....और सारी बातें समझ में भी आ गयी हैं....
ReplyDeleteसच पूछिए तो ये बातें बहुत बार बताई जा चुकी हैं... आपने भी बताई....आपकी टिपण्णी प्रकाशित भी करना चाहती हूँ ..लेकिन फिर वही बात आ जाती है भाषा की...और इस समय माहौल को शांत करने की आवश्यकता है न कि भड़काने की ...इसलिए आपकी टिप्पणी डिलीट कर रही हूँ...
दूसरी बात आपके नाम में ही समस्या है 'ढपोरशंख' नाम पढ़ते ही आपकी बातों की अहमियत आधी हो जाती है....क्योंकि बचपन से यही सुनते आये हैं ....ढपोरशंख विश्वास करने योग्य नहीं होते.....हो सके तो अपना नाम बदलिए....
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ReplyDeleteआपसे अक्षरश" सहमत, हरेक से सहमति रखना आवश्यक नहीं है लेकिन विरोध की या असहमति की भी मर्यादा रहनी चाहिये।
ReplyDeleteदेखिये, आपकी ब्लॉग समाचार वाली पोस्ट भी इस विवाद के चलते दब गई है। आपसे निवेदन है कि उसे रीपोस्ट करिये ताकि अच्छी चीजें हाईलाईट हो सकें।
आभार।
Mera maana hain ki Asobhniya bhasa ka prayog uski mansikta ki parichayak hai..... kintu jab budhijiviyon dwara es tarah kee harkat ki jaati hai to uska pratikaar sabko karne hi chahiye.....
ReplyDeleteSaarthak prasuti ke liye dhayavaad...
@ कूप कृष्ण जी आपने भी टिप्पणी में भी भाषा का ख्याल रखा होता ...
ReplyDeleteतो मैं बहुत कृतज्ञं होती...
मैं क्षमा याचना सहित आपकी टिप्पणी हटा रही हूँ...
जनाब समीर साहब ने तो अपील कर ही दी है अब आप लोग अपना काम करिए और पगलट की बातों को दिल पर मत लगाइए। मेरे ख्याल से किसी को पागल कहना असंसदीय नहीं है।
ReplyDeleteदरअसल हम हिन्दुस्तानियों में ये एक बहुत बडी जन्मजात कमी है कि हम लोगों में जीवन में आगे बडने की कोई इच्छाशक्ति ही नहीं है...हमेशा पीछे चलकर सिर्फ "जिन्दाबाद-जिन्दाबाद" कहने में ही फख्र महसूस करते हैं...यहाँ भी वही सब कुछ देखने को मिल रहा है....कोरी अन्धभक्ति!
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