लीला और शीला दो बहनें ..लेकिन दोनों में ज़मीन आसमान का फर्क था...लीला रूपवती, चंचल और मुखर जबकि शीला बहुत सीधी-सादी और चुप रहने वाली....दोनों धीरे धीरे बड़ी हो गईं..माँ-बाप को उनकी शादी की बहुत फ़िक्र हुई... रिश्तों की तलाश की गयी..परन्तु जो भी आता लीला को ही पसंद करता...आखिरकार लीला की शादी हो गई और शीला अकेली रह गई घर में....लेकिन उसने अपने अन्दर हीन भावना को नहीं आने दिया, वह एकाग्र होकर पढाई में अपना ध्यान लगाने लगी...उसकी कोशिश रंग लायी...अच्छी तालीम पाकर वह अच्छी नौकरी करने लगी....मन में उसके भी विवाह का ख़याल तो आता लेकिन वो उसे झटक देती....
एक बार किसी की शादी में ही वो शामिल होने गई हुई थी...शादी की गहगह-महमह में उसको कोई रूचि तो थी नहीं ..ना ही उसे बनने-सँवारने का शौक़ था...इसलिए उसने शादी के काम में हाथ बंटाना ज्यादा श्रेयष्कर समझा ....वो झुकी हुई अपना काम करती जाती थी...लेकिन न जाने क्यों, उसे ऐसा लग रहा था जैसे कोई उसे निहार रहा है....उसने इसे अपना भ्रम समझा और अपने काम में जुट गई....'आप मुझसे शादी करेंगी ?' ऐसे बेतुके प्रश्न ने उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया...उसने देखा कि एक सुन्दर-सजीला नौजवान उससे यही सवाल कर रहा है....शीला ने अचकचाते हुए कहा कि 'मुझे ऐसा मज़ाक बिल्कुल पसंद नहीं है'...लड़के ने कहा 'मैं तो मज़ाक नहीं कर रहा हूँ...हाँ अगर आप मना करना चाहती हैं तो कर सकती हैं.....मैं प्रशांत अवस्थी, इस इलाके का नया एस.पी. हूँ....' भौंचकी सी शीला देखती रही....प्रशांत ने आगे कहा 'जी हाँ नया-नया हूँ शहर में ....और आज का दूल्हा मेरा दोस्त है....' शीला के चेहरे पर घोर असमंजस के बादल थे उसने कहा 'आपको एक से एक सुन्दर लडकियाँ इसी शादी वाले घर में मिल जायेंगी...फिर मैं क्यूँ...? '
प्रशांत ने कहा 'हाँ मुझे तन से सुन्दर बहुत लड़कियाँ मिल जायेंगी लेकिन मन से सुन्दर आप ही मिली हैं....तो फिर कहिये क्या ख़याल है ? ' शीला के कपोल लाल हो गए और उसने गर्दन झुका दी.....!
और अब एक गीत हो जाए....
गाना : आगे भी जाने न तू -
चित्रपट : वक्त
संगीतकार : रवि
गीतकार : साहिर
गायिका : आशा भोसले
लेकिन यहाँ आवाज़ 'अदा' की है...
आगे भी जाने न तू, पीछे भी जाने न तू
जो भी है, बस यही एक पल है
अन्जाने सायों का राहों में डेरा है
अन्देखी बाहों ने हम सबको घेरा है
ये पल उजाला है बाक़ी अंधेरा है
ये पल गँवाना न ये पल ही तेरा है
जीनेवाले सोच ले यही वक़्त है कर ले पूरी आरज़ू
आगे भी ...
इस पल की जलवों ने महफ़िल संवारी है
इस पल की गर्मी ने धड़कन उभारी है
इस पल के होने से दुनिया हमारी है
ये पल जो देखो तो सदियों पे वारि है
जीनेवाले सोच ले यही वक़्त है कर ले पूरी आरज़ू
आगे भी ...
इस पल के साए में अपना ठिकाना है
इस पल की आगे की हर शय फ़साना है
कल किसने देखा है कल किसने जाना है
इस पल से पाएगा जो तुझको पाना है
जीनेवाले सोच ले यही वक़्त है कर ले पूरी आरज़ू
आगे भी ...
सच कहा दी 'मन की सुन्दरता ही असली सुन्दरता है'
ReplyDeleteलघुकथा बहुत बढ़िया लगी और फ़िल्मी गीत तो मेरी पसंद का है . प्रस्तुति के लिए आभार.
ReplyDeleteमन से सुन्दर कुछ भी नहीं परखने वाला चाहिये
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लघुकथा
कमाल की प्रस्तुति ....जितनी तारीफ़ करो मुझे तो कम ही लगेगी
ReplyDeleteमन की सुन्दरता को जो चाहे, वो ही असली प्रेमी है..बढ़िया कथा.
ReplyDeleteआपकी लघुकथा है तो अच्छी ...मगर...
ReplyDeleteकई बार ऐसा होता है अच्छे मन वाली घर के लिए ...और चंचल शोख बाहर के लिए ...:):)
ये गीत तो मुझे बहुत ही पसंद है ...
आगे भी जाने ना तू ...जो भी है बस यही एक पल है ....अब कितने लोग होंगे जो इसका सही अर्थ समझ कर जीवन को दूसरों की भलाई के लिए जीने की सीख लेते होंगे ...कंस सरीखे ही ज्यादा होंगे जो जीवन के "इस पल" का लुत्फ़ लेने के लिए दूसरों के "इस पल" को बर्बाद करते हैं....
aaj ganaa download nahin huaa...
ReplyDelete:(
मन की सुंदरता ही असली सुंदरता है..वाह!
ReplyDeleteउस एस पी को तो मानना पड़ेगा..क्या पारखी नजर है !
अब गीत सुनता हूँ.
मन की सुन्दरता को जो चाहे, वो ही असली प्रेमी है..बहुत ही अच्छी लघुकथा। कहानी का उद्देश्य बहुत समर्थ भाषा में संप्रेषित हुआ है।
ReplyDeleteमन की सुन्दरता को सिर्फ शब्दों से नहीं बल्कि किसी के समयानुकूल व्यवहार और उसके क्रिया कलापों की ईमानदारी और सच्ची जाँच से ही परखा जा सकता है, आज के इस मुखौटावादी युग में हर व्यक्ति के एक नहीं अनेक चेहरें हैं /
ReplyDeleteमन की सुन्दरता ही तो असली सुन्दरता है! लघुकथा पसन्द आई!
ReplyDeleteगीत सुनकर अपना जमाना याद आ गया जब हम फिल्में देखने के लिये दीवाने हुआ करते थे।
बड़ी गहरी बात कह दी ,,,,अदा जी ,,,,आपकी लघुकथा पढ़कर एक फिल्म का एक गीत याद आया 'मत कर इतना गुरुर सूरत पे ऐसे हसीना ,,,तेरी सूरत पे नहीं हम तो तेरी सादगी पे मरते है ' ऐसे लोगो की कमी नहीं है जो आज भी ऐसा सोचते है ,,,शारीरिक आकर्षण भले ही शुरुआत में प्रभावी हो ,,,,व्यक्ति का व्यवहार ,,,आचार-विचार, चरित्र , कार्य -कुशलता का प्रभाव चिर स्थायी होता है ,,,वक़्त के साथ तन का रूप धुंधला पड़ सकता है मन का नहीं ,,,,और अगर कुदरत ने हमें खुबसूरत बनाया है इसमे हमर क्या योगदान है .....सोचिये ???? रत्ती भर भी नहीं ,,,हां व्यवहार में हम अवश्य निखार ला सकते है ,,,प्रथम सोच सूरत से ही बनती है ,,,पर अंतिम चाल-चलन और व्यक्तित्व से ,,,,बाकी मुझे अधिक कहना उचित नहीं लगा रहा ,,,आपकी पोस्ट अपने आप में बहुत कुछ कह चुकी है /////////////////////गीत का चयन भी अच्छा है और आवाज के जादू से और निखर गया ,,,कभी कोई क्लास्सिकल सोंग भो गाओ ,,,{ पोस्ट में चित्र बड़ा मन मोहक है }
ReplyDeleteसच कहा दी 'मन की सुन्दरता ही असली सुन्दरता है'
ReplyDeleteपुरानी फिल्मो की याद दिला दी आज तो...ये दृश्य आज भी......क्या बस कल्पनाये ही रह गयी है...?
ReplyDeleteकुंवर जी,
"तोरा मन दर्पण कहलाये
ReplyDeleteभले बुरे सारे कर्मो को देखे और दिखाए "
हम तो आपकी आवाज़ में ही खो जाते हैं उसके बाद कुछ लिखा दिखाई ही नहीं देता :)
ReplyDeleteबहुत सुंदर कथा .
ReplyDeleteधन्यवाद
कमाल की प्रस्तुति ...
ReplyDeleteमन की सुन्दरता ही तो असली सुन्दरता है! लघुकथा पसन्द आई!.
एक शायद यही विधा रह रही थी बाकी, लघुकथा वाली, पहले कभी ध्यान नहीं कि आपके ब्लॉग पर कोई लघुकथा देखी हो। गाड़ दिये झंडे यहां भी आपने। सुखद अंत होने से और भी अच्छी लगी।
ReplyDeleteये पुराने गाने अपनी आवाज में सुनाकर हमारी पसंद परिष्कृत कर रही हैं आप। आप को सुनने के चक्कर में पुराने दैर में पहुंच जाते हैं।
बहुत बहुत आभार।
और हां, सबसे ज्यादा आकर्षित तो उसने किया जो न पढ़ने में है और न सुनने कहने में।
चित्र बहुत ही खूबसूरत है। उसके लिये अलग से आभार(इस्पेसल वाला)।
बहुत सुन्दर लघुकथा
ReplyDeletestory and song both are good!
ReplyDeleteन कजरे की धार,
ReplyDeleteन मोतियों के हार,
न कोई किया सिंगार.
फिर भी कितनी सुंदर हो...
तन में प्यार भरा,
मन में प्यार भरा,
जीवन में प्यार भरा,
तुम ही तो मेरे प्रियवर हो...
जय हिंद...
गीत सुनकर हमें भी गुजरा जमाना और "राजा न करे तौ" याद आ गया.
ReplyDeleteकुछ आपके लिए ,,,सुझाव चाहिए ..नूतन प्रयास है
ReplyDeletehttp://athaah.blogspot.com/2010/05/blog-post_28.html
कमाल की प्रस्तुति ...
ReplyDeleteमन की सुन्दरता ही असली सुन्दरता है
ReplyDelete