तुम्हारी हर दगाबाज़ी हमें जी भर रुलाती है
सबेरा जब भी होता है तो हम सब भूल जाते हैं
यहाँ ये कैसी दुनिया है जिसे आभासी कहते हैं
अगर पत्थर वो झूठे हैं, क्यूँ सच्चे चोट खाते हैं ?
ज़रा रहने दो मुझमें भी अभी इतनी सी ग़ैरत तो
कि अंगडाई जब भी लेते हैं नज़रें चुराते हैं
अभी उतना ही गिरने दो हमें ख़ुद की निगाहों में
कभी झुक करके सोचें, आओ अब ख़ुद को उठाते हैं
ये माना हम कभी कुछ भी कहाँ तुम्हें दे ही पाए हैं
मगर हम रूह की हद से तुम्हें मेरी जाँ बुलाते हैं ये दिल इस दर्द के जज़्बात से जब भी लरजता है
पकड़ कर डाल हम ख़ामोशियों के झूल जाते हैं
बड़ा है कौन यां ग़र तुम, कभी इस बात को सोचो
हरिजन के छुए पर ये बिरहमन क्यूँ नहाते हैं..?
कभी सोचा 'अदा' तुमने, गरीबों की ही बीवी को
सभी देवर से क्यूँ बनकर के भाभी जाँ बुलाते हैं ?
और अब गीत......
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या हैफिल्म : चिराग
संगीतकार : मदन मोहन
गीतकार : मजरूह सुल्तानपुरी
आवाज़ : लता
आवाज़ इस पोस्ट पर....स्वप्न मंजूषा शैल 'अदा'
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है
ये उठें सुबह चले, ये झुकें शाम ढले
मेरा जीना मेरा मरना इन्हीं पलकों के तले
तेरी आँखों के सिवा ...
ये हों कहीं इनका साया मेरे दिल से जाता नहीं
इनके सिवा अब तो कुछ भी नज़र मुझको आता नहीं
ये उठें सुबह चले ...
ठोकर जहाँ मैने खाई इन्होंने पुकारा मुझे
ये हमसफ़र हैं तो काफ़ी है इनका सहारा मुझे
ये उठें सुबह चले ...
बड़ा है कौन यां ग़र तुम, कभी इस बात को सोचो
ReplyDeleteहरिजन के छुए पर ये बिरहमन क्यूँ नहाते हैं
बहुत बेहतरीन
@ हरिजन के छुए पर ये बिरहमन क्यूँ नहाते हैं..
ReplyDeleteमुझे नहीं लगता की आजके इस भारतीय समाज में इस तरह कि कोई व्यवस्था है ...अब सब बराबर हैं ...और होने ही चाहिए ...
सौहार्द्र की उम्मीद और अपील समाज के हर अंग से की जानी चाहिए ...
कविता पहले पढ़ी हुई है और कमेन्ट भी किया है इसलिए अब ज्यादा कुछ नहीं ...!!
यहाँ ये कैसी दुनिया है जिसे आभासी कहते हैं
ReplyDeleteअगर पत्थर वो झूठे हैं, क्यूँ सच्चे चोट खाते हैं ?
रोचक उम्दा प्रस्तुति...आभार
हरिजन के छुए पर ये बिरहमन क्यूँ नहाते हैं..?
ReplyDeleteसवाल जायज है
सुन्दर रचना
"अभी उतना ही गिरने दो, हमें ख़ुद की निगाहों में कभी झुक करके सोचें,आओ अब ख़ुद को उठाते हैं"
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत जज़बात।
और गाना तो बस्स पूछो ही मत।
कल वाली पोस्ट कहां गई?
तुम्हारी हर दगाबाज़ी हमें जी भर रुलाती है
ReplyDeleteसबेरा जब भी होता है तो हम सब भूल जाते हैं
यहाँ ये कैसी दुनिया है जिसे आभासी कहते हैं
अगर पत्थर वो झूठे हैं, क्यूँ सच्चे चोट खाते हैं ? ..
बहुत सुंदर,यथार्थ परक,धन्यवाद.
वाह! अच्छी गज़ल.
ReplyDeleteइस शेर में ..
तुम्हारी हर दगाबाज़ी हमें जी भर रुलाती है
सबेरा जब भी होता है तो हम सब भूल जाते हैं
..मुझे 'जी भर' को 'शब भर' पढ़ने का मन हो रहा है.
वाह! अच्छी गज़ल.
ReplyDeleteइस शेर में ..
तुम्हारी हर दगाबाज़ी हमें जी भर रुलाती है
सबेरा जब भी होता है तो हम सब भूल जाते हैं
..मुझे 'जी भर' को 'शब भर' पढ़ने का मन हो रहा है.
उम्दा सोच और प्रस्तुती /
ReplyDeleteGreat expression of some heart touching thoughts!Nice!
ReplyDeleteहमारी जिंदगी में भी कई बे-नाम रिश्ते हैं
ReplyDeleteउन्हें हम इतनी शिद्दत से न जाने क्यूँ निभाते हैं
तुम्हारी हर दगाबाज़ी हमें जी भर रुलाती है
सबेरा जब भी होता है तो हम सब भूल जाते हैं
bahut khoob kaha ....
aur geet ke baare me kya kahun ,... jitna sundar geet untni sundar aawaaj ...
तुम्हारी हर दगाबाज़ी हमें जी भर रुलाती है
ReplyDeleteसबेरा जब भी होता है तो हम सब भूल जाते हैं
बहुत ही लाजवाब पंक्तियाँ ......अति उत्तम रचना .
यहाँ ये कैसी दुनिया है जिसे आभासी कहते हैं
ReplyDeleteअगर पत्थर वो झूठे हैं, क्यूँ सच्चे चोट खाते हैं ?
ये झूठे पत्थर भी चोट सच्ची लगाते हैं ।
बढ़िया रचना , अदा जी । और गीत भी अपनी पसंद का । आभार ।
हमेशा की तरह बढिया।
ReplyDeleteबड़ा है कौन यां ग़र तुम, कभी इस बात को सोचो
ReplyDeleteहरिजन के छुए पर ये बिरहमन क्यूँ नहाते हैं..?
कभी सोचा 'अदा' तुमने, गरीबों की ही बीवी को सभी देवर से क्यूँ बनकर के भाभी जाँ बुलाते हैं ?
....Gahri baat kahi hai aapni... ek aisa sawal jo man ko kachotta hai... Samajik bidambana ka bhavpurn prastutikaran ke liye aabhar..
बड़ा है कौन यां ग़र तुम, कभी इस बात को सोचो
ReplyDeleteहरिजन के छुए पर ये बिरहमन क्यूँ नहाते हैं..?
कभी सोचा 'अदा' तुमने, गरीबों की ही बीवी को सभी देवर से क्यूँ बनकर के भाभी जाँ बुलाते हैं ?
....Gahri baat kahi hai aapni... ek aisa sawal jo man ko kachotta hai... Samajik bidambana ka bhavpurn prastutikaran ke liye aabhar..
waah Ada ji bahut khoobsoorat ghazal...kuch apni tasveer dikhati...geet bhi bahut madhur har baar ki tarah...
ReplyDeleteये माना हम कभी कुछ भी कहाँ तुम्हें दे ही पाए हैं
ReplyDeleteमगर हम रूह की हद से तुम्हें मेरी जाँ बुलाते हैं
sacche pyar ka aayina he ye sher.
ये दिल इस दर्द के जज़्बात से जब भी लरजता है
पकड़ कर डाल हम ख़ामोशियों के झूल जाते हैं
sach khamoshiya hi sath deti hai chaahe dil ke bheeter shor ho.
बड़ा है कौन यां ग़र तुम, कभी इस बात को सोचो
हरिजन के छुए पर ये बिरहमन क्यूँ नहाते हैं..?
कभी सोचा 'अदा' तुमने, गरीबों की ही बीवी को
सभी देवर से क्यूँ बनकर के भाभी जाँ बुलाते हैं ?
ab ye baat samajh me nahi aayi ek nizi jazbaat likhte likhte samajik dard pe kaise ja pahuche??????
वाह अदा जी, क्या ख़ूब कहा-
ReplyDeleteबड़ा है कौन यां ग़र तुम, कभी इस बात को सोचो
हरिजन के छुए पर ये बिरहमन क्यूँ नहाते हैं..?
हमारी जानिब से यह शेर अर्ज़ है जी :-
कभी सच्चे बिरहमन से, भी पूछो एक दफ़ा खुलकर
सबब इसका वो कैसे क्या औ’कां कां तक बताते हैं ?
आप सबको अक्षय तृतीया महापर्व की शुभकामनाएँ
सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteयहाँ ये कैसी दुनिया है जिसे आभासी कहते हैं
अगर पत्थर वो झूठे हैं, क्यूँ सच्चे चोट खाते हैं
बहुत खूबसूरत और सच्ची पंक्तियाँ हैं ...
गीत भा गया ।
ReplyDeleteअदा जी आपकी रचना तो सुन्दर है ही!
ReplyDeleteइसके साथ मेरा पसन्दीदा नगमा
सुनवाने के लिए भी आभार!
आपकी रचना पर टिपण्णी करना ..किसी कविता के लिखने से कम नहीं और ये मैं ही जानता हूँ ......समझ लो की आपकी ही ग़ज़ल को कॉपी कर टिपण्णी में डाल दिया ..//.aur अब बात आती है आपके गायन की ,,,,,,,, एक तो गीतों का चयन लाजवाब और उस पर आपकी मखमली आवाज ....दोनों मिलकर हम पर बड़ा जुल्म ढाती है ...संगीत के रोगी तो हम बचपन से ही है ,,,आपका गाया ये गाना हमने अपने संग्रहालय के बोरे में रख दिया ,,,मतलब रिकॉर्ड कर लिया ./...अब कल के गाने का इन्तजार है ,,,,पर एक बात कहे आप अपना ही नुकसान कर रही है ,,,अब कविता पर ध्यान कम और गाने पर ज्यादा जा रहा है ,,,,,दुविधा में फंस गए ...{ अगर आप अनुमति दे तो मैं अपनी पसंद का गीत गाने की फरमाइश करूं ...नहीं तो लता जी का कोई क्लास्सिकल सोंग ही चुन लीजिये }
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत जज़बातओ से लबालब आप की यह कविता. धन्यवाद
ReplyDeletekhubsurat jajbaat, sanvedansheel rachna Ada ji
ReplyDeleteइक तो महफ़िल हसीं कम न थी आपकी,
ReplyDeleteऊपर से आपका नज़रें गिरा कर उठाना गजब ढा गया...
जय हिंद...
कई सारी बुराइयों की तरफ इशारा किया है आपने दी.. ऐसी ही गज़लें सार्थक और सुन्दर कहलाती हैं..
ReplyDeleteगीत का क्या कहें!!!! बस सुने जा रहा हूँ...
बहुत बढ़िया रचना
ReplyDeleteItna badiya likha hai aapne!!
ReplyDeleteFantastic...
"यहाँ ये कैसी दुनिया है जिसे आभासी कहते हैं
अगर पत्थर वो झूठे हैं, क्यूँ सच्चे चोट खाते हैं?"
Mujhe bahut hi achha lagaa... maine baar baar paddi aur harr baar itna enjoy kia inn words ko... beautiful!
Regards,
Dimple
वाह! अच्छी गज़ल.
ReplyDeletehttp://madhavrai.blogspot.com/
http://qsba.blogspot.com/
Waah-Waah! Kya baat hai! Bahut achche! :-))
ReplyDeleteAapki adaaon se paripoorna yeh blog waakai kaafi pasand aaya, Manjusha! Aise hi likhti rahein aur sunaati rahein. Shubhkaamnaayen! :-)