कल लेकर हाज़िर होऊँगी....माफ़ी चाहती हूँ...
मंज़िल पर पहुँच कर
फिर मैं राह भटकी हूँ
मेरा शक मुझसे ही
मेरा सबूत माँग रहा है
इक तसल्ली कर लूँ ज़रा
कि मैं साँस लेती हूँ
वर्ना हर गोशे में
तेरे नाम के अलफ़ाज़
मुझसे उलझते हैं
सब नाराज़ दिखते हैं
कि मैं साँस लेती हूँ
वर्ना हर गोशे में
तेरे नाम के अलफ़ाज़
मुझसे उलझते हैं
सब नाराज़ दिखते हैं
यहाँ तक कि
मेरी शिनाख्स्त से कतराते हैं
मेरी शिनाख्स्त से कतराते हैं
सबूत कहाँ से लाऊँगी अब ??
मेरे भीगे पाँव की निशानियाँ
जब से तेरे नैना मेरे | |
फिल्म : सांवरिया | |
गायक : शान | |
गीतकार : समीर | |
संगीतकार : मोंटी शर्मा | |
यहाँ आवाज़ है 'अदा' की ... | |
[लागे रे लागे रे लागे रे नैननवालागे रे लागे रे] - 2 जब से तेरे नैना मेरे नैनों से लागे रे जब से तेरे नैना मेरे नैनों से लागे रे तब से दीवाना हुआ आ...हा... सब से बेगाना हुआ रब भी दीवाना लगे रे ओये ओये रब भी दीवाना लगे रे हो होहोहो जब से तेरे नैना मेरे नैनों से लागे रे तब से दीवाना हुआ आ...हा... तब से दीवाना हुआ आ...हा... सब से बेगाना हुआ रब भी दीवाना लगे रे ओये ओये रब भी दीवाना लगे रे हो होहोहो जब से तेरे नैना मेरे नैनों से लागे रे धिन ताक धिन ताक धिन ताक धिन दीवाना ये तो दीवाना लगे रे हो... जब से मिला तेरा इशारा तब से जगीं हैं बेचैनियाँ जब से हुई सरगोशियाँ तब से बढ़ी है मदहोशियाँ जब से जुड़े यारा तेरे मेरे मन के धागे तब से दीवाना हुआ आ...हा... सब से बेगाना हुआ रब भी दीवाना लगे रे ओये ओये रब भी दीवाना लगे रे हो होहोहो हो जब से हुई है तुझसे शरारत तब से गया चैनों करार हो हो जब से तेरा आँचल ढला तब से कोई जादू चला जब से तुझे पाया ये जिया धक धक भागे रे तब से दीवाना हुआ आ...हा... तब से दीवाना हुआ आ...हा... सब से बेगाना हुआ रब भी दीवाना लगे रे ओये ओये रब भी दीवाना लगे रे हो होहोहो जब से तेरे नैना मेरे नैनों से लागे रे |
मेरे भीगे पाँव की निशानियाँ
ReplyDeleteबहते पानी में अब नज़र नहीं आ रहीं हैं ......
कौन कहता है पाँव के निशान नहीं थे
आज ही एक नमी को मुस्कुराते देखा है
और फिर
आपकी आवाज को सुनना भी तो बहते पानी में पाँव रखने सा है.. नमी दे गई है.
पर शायद साथ में जगजीत सिंह भी रिमिक्स का एहसास दे गये.
मेरे भीगे पाँव की निशानियाँ
ReplyDeleteबहते पानी में अब नज़र नहीं आ रहीं हैं ......
--------- पांवों को अपनी निशानियाँ स्थल पर
रखनी होंगी , पानी का स्वभाव की हर क्षण आकार
बदलने का है !
.............
गाना अच्छा लगा , हर बार की तरह , पिछली कई प्रविष्टियों
में इसका अभाव दिखा था , गीत-प्रस्तुति आपके ब्लॉग का अनिवार्य हिस्सा
बन गया है !
कल समाचार का इन्तजार रहेगा ! आभार !
बहुत बढ़िया प्रस्तुति.....आभार.
ReplyDeleteमुझे अमृता प्रीतम के उपन्यास की एक पंक्ति याद आ रही है ....पानी में लकीर नहीं खिंची जा सकती ...
ReplyDeleteसब नाराज़ दिखते हैं यहाँ तक कि
मेरी शिनाख्स्त से कतराते हैं सबूत कहाँ से लाऊँगी अब ??
हम्म्म्म.....
गीत पहले सुना हुआ है ...दुबारा सुनना भी अच्छा लगा .. इस गीत को बहुत मस्ती के मूड में गया है आपने ...
बेहतरीन रचना, सुन्दर गीत और कल समाचार का इन्तजार रहेगा.
ReplyDeleteएक विनम्र अपील:
कृपया किसी के प्रति कोई गलत धारणा न बनायें.
शायद लेखक की कुछ मजबूरियाँ होंगी, उन्हें क्षमा करते हुए अपने आसपास इस वजह से उठ रहे विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.
हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.
-समीर लाल ’समीर’
मंज़िल पर पहुँच कर
ReplyDeleteफिर मैं राह भटकी हूँ
मेरा शक मुझसे ही
मेरा सबूत माँग रहा है
सुन्दर !
रचना बहुत सुन्दर है!
ReplyDeleteगीत सुनकर तो आनन्द आ गया!
लाजवाब रचना ........
ReplyDeleteबहुत खूब रचना है दी..
ReplyDeleteमेरे भीगे पाँव की निशानियाँ
ReplyDeleteबहते पानी में अब नज़र नहीं आ रहीं हैं ..
बहुत ही ख़ूबसूरत बिम्ब और अभिव्यक्ति ! बेहतरीन रचना के लिए आभार !
एकदम सटीक संदेह ,हमारे हिसाब से लोगों को इस संदेह को दूसरो के विचारों और सुझावों को सुनकर सुधारना और तर्कसंगतता की और ले जाने का प्रयास जरूर करना चाहिए /
ReplyDeleteसुंदर भाव को समेटे एक बढ़िया प्रस्तुति...
ReplyDeleteगाना अच्छा लगा , हर बार की तरह
ReplyDeleteसचमुच में एफ एम है
ReplyDeleteएफ एम बोले तो फेमिली म्यूजिक
रेडियो एक और नेक कार्यक्रम अनेक
उनमें से यह गीत भी है एक
सुन ब्लॉगर सुन
हिन्दी में हैं गुण ही गुण
इन्हें गुन उन्हें गुन
सकारात्मक विचारों के
सपने अपने बुन।
Ada Didi aaj to Kmaal hi gar diya...
ReplyDeleteraj ki baat...
My Favorite song hai
मेरे भीगे पाँव की निशानियाँ
ReplyDeleteबहते पानी में अब नज़र नहीं आ रहीं हैं ......
अद्भुत!
उत्तम अभिव्यक्ति!!
जब से तेरे नैना मेरे नैनों से लागे रे जब से तेरे नैना मेरे नैनों से लागे रे तब से दीवाना हुआ आ.
ReplyDeleteAda didi
sanjay bhaskar to diwana ho gya..
aasrniy behn ji aadaab aapne mnzil pr raah bhul kr kthin kaam kiyaa he achchaa likhaa he. bdhaai. akhtar khan akela kota rajathan
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है, और उसपर ये पंक्तियाँ तो गजब के हैं -
ReplyDeleteमेरा शक मुझसे ही
मेरा सबूत माँग रहा है
मेरे भीगे पाँव की निशानियाँ बहते पानी में अब नज़र नहीं आ रहीं हैं ......
गजब!
बहुत अच्छी रचना।
ReplyDeleteकिताबे ग़म में ख़ुशी का ठिकाना ढ़ूंढ़ो,
अगर जीना है तो हंसी का बहाना ढ़ूंढ़ो।
sundar rachna fir uspe ek sundar geet...sone pe suhaga..
ReplyDeletebahut sunder rachna hai
ReplyDeleteसुंदर भाव को समेटे एक बढ़िया प्रस्तुति.................
ReplyDeleteमेरा शक मुझसे ही
ReplyDeleteमेरा सबूत माँग रहा है
इक तसल्ली कर लूँ ज़रा
कि मैं साँस लेती हूँ
वर्ना हर गोशे में
तेरे नाम के अलफ़ाज़
मुझसे उलझते हैं
वाह वाह ...........आपकी इस पोस्ट पर कुछ विलम्ब से आये मगर अच्छा लगा कि आपकी लेखनी से लगातार बेहतरीन कवितायेँ निकल रहीं हैं.....आभार !
कितना अच्छा हो अगर ब्लाग चर्चा के अलावा भी आपकी सभी रचनायें पढने के साथ सुनने को भी मिलें।
ReplyDeleteकल का इंतजार है
प्रणाम स्वीकार करें
सुन्दर कविता ।
ReplyDeleteमेरे भीगे पाँव की निशानियाँ
ReplyDeleteबहते पानी में अब नज़र नहीं आ रहीं हैं
...सुन्दर अनुभूति...खूबसूरत भावाभिव्यक्तियाँ....बधाई !!
आपकी आवाज़ तो नहीं सुन पाए हम .......... नेट काफी स्लो है यहाँ पर नज़्म बेहद उम्दा है !! शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteहमेशा की तरह एक और अद्धितीय रचना ...
ReplyDeleteगायकी लाजवाब .
VIKAS PANDEY
www.vicharokadarpan.blogspot.com
अदा जी, आपके पाँव के निशान तो हमें हर जगह नज़र आते हैं, सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteएक सौगात रही जी आपकी ये पोस्ट....
ReplyDeleteकुंवर जी,
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteसब नाराज़ दिखते हैं यहाँ तक कि
ReplyDeleteमेरी शिनाख्स्त से कतराते हैं सबूत कहाँ से लाऊँगी अब ??
hnm...
bahut jyaadaa prabhaavit karti lines...
aabhaar aapkaa....
अदा जी, प्रणाम,
ReplyDeleteआज ब्लॉग समाचार नहीं सुन पाए तो आज के दिन में कुछ कमी सी लग रही है, एक लत लगने के बाद ये थोडा मुश्किल होता है, जिस तरह सुबह की चाय के साथ अखबार की आदत होती है वैसे ही अब हमें सुबह की चाय के साथ ब्लॉग समाचार की लत लग चुकी है, अब ये नहीं चलेगा की आप किसी दिन हमें इसके बिना ही चाय पीने को कहें! कभी समय हो तो www.mathurnilesh.blogspot.com पर आइयेगा, धन्यवाद्!
आपकी आवाज़ सुन्दर है और कविता भी अच्छी है!
ReplyDeleteमंज़िल पर पहुंच कर राह भटकी हैं आप?
ReplyDeleteमेरे भीगे पाँव की निशानियाँ बहते पानी में अब नज़र नहीं आ रहीं हैं ......
???
आपकी आवाज में गाना सुनकर आनंद न आये, ऐसा हो नहीं सकता।
मस्त पोस्ट एकदम।
आभार।