Saturday, April 6, 2013

वो तिश्नगी मेरे दिल की, सदियों की प्यास 'था'....

अहले वफ़ा की बात वो, करके मुकर गए 
शिक़स्त-ए-दीद बन हम, नज़रों से गिर गए 

क़ाबू तो पा सके न हम, अपने वज़ूद पे 
जीतेंगे क़ायनात के, दावे किधर गए ?

मुट्ठी में क़ैद था कभी, वो आफ़ताब था 
तीरगी ने मुट्ठी खोल दी, मोती बिख़र गए  

साहिल से फ़रियाद क्या, क्यों कोई उम्मीद 
तूफाँ, कई मेरे पाँव को, छूकर गुज़र गए 

वो तिश्नगी मेरे दिल की, सदियों की प्यास 'था'
बस उसको ढूँढने 'अदा', हम दर-ब-दर गए  

शिक़स्त = हार 
दीद = आँखें 

क़ायनात =ब्रह्माण्ड 
आफ़ताब =सूरज 
तीरगी = अँधेरा 

साहिल=किनारा 
तिश्नगी=प्यास 

सुहानी चाँदनी  रातें ...आवाज़ 'अदा' की ..

47 comments:

  1. दीदी
    जान ले लोगी क्या
    अहले वफ़ा की बात वो, करके मुकर गए
    सुन्दर ग़ज़ल

    सादर

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    1. लिखती हो, बड़ी सुन्दर लिखती हो,फिर से लिखो, लिखती रहो ....:)

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  3. बहुत बढ़िया प्रस्तुति!
    --
    आपकी पोस्ट की चर्चा आज शनिवार (06-04-2013) के चर्चा मंच पर भी है!
    सूचनार्थ...सादर!

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  4. वाह वाह ... क्या गजब है :)

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  5. तुम्हारे प्यार की बातें हमें सोने नहीं देतीं......
    गजबे गाती हो <3
    अनु

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  6. बहुत ही सुन्दर और बेहतरीन ग़ज़ल की प्रस्तुति,आभार.

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    1. आपका धन्यवाद हौसलाफजाई के लिए !

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  7. क़ाबू तो पा सके न हम, अपने वज़ूद पे
    जीतेंगे क़ायनात के, दावे किधर गए ?
    वाह, बहुत ही बेहतरीन !

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    1. मेरा भी पसंदीदा शेर है ये, आपको भी पसंद आया, शुक्रिया !

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  8. bahut pyaari gajal...aur aapke blog me aapke gaane sunne ka aanand hee alag aata hai..umda

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    1. ग़ज़ल (मुझे नहीं मालूम इसे ग़ज़ल कहेंगे या नहीं), फिर भी ऐसी रचना के साथ गीत डालना मुझे अच्छा लगता है, पाठक पढ़ भी लेते हैं और सुन भी लेते हैं। यू नो एक ढेले से दो शिकार :)
      आपको पसंद आता है, मेरी कोशिश क़ामयाब ही। आपका हृदय से आभार !

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  9. साहिल से फ़रियाद क्या, क्यों कोई उम्मीद
    तूफाँ, कई मेरे पाँव को, छूकर गुज़र गए

    बहुत खूब...बेहतरीन ग़ज़ल

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    1. आउर का :)
      वो कोई और हैं, जिनके लोग क़रीब होते हैं
      हम तो तन्हाई के संग, खुशनसीब होते हैं
      वाह वाह ! कमाल हो गया :)

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  10. आपने बहुत सुन्दर ग़ज़ल पोस्ट की है और फिल्मी गीत को तो आपने बहुत ही मस्त होकर मधुर आवाज में गाया है।

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    1. शास्त्री जी,
      आपका आशीर्वाद तो सदैव ही बना हुआ है। आगे भी बना रहेगा पूरा विश्वास है।
      धन्यवाद !

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  11. क़ाबू तो पा सके न हम, अपने वज़ूद पे
    जीतेंगे क़ायनात के, दावे किधर गए ?
    bahut khoob....

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    1. निशा जी,
      स्वागत है आपका।
      आपको पसंद आया, मेरी हिम्मत बढ़ी है।
      शुक्रिया !

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  12. सुन्दर ग़ज़ल

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    1. आपका बहुत-बहुत शुक्रिया !

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  13. मेरे विचारों को आपने सराहा, आभारी हूँ।
    धन्यवाद !

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  14. क़ाबू तो पा सके न हम, अपने वज़ूद पे
    जीतेंगे क़ायनात के, दावे किधर गए ?

    वो तिश्नगी मेरे दिल की, सदियों की प्यास 'था'
    बस उसको ढूँढने 'अदा', हम दर-ब-दर गए
    ...........सबसे खूबसूरत शेर

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    1. आपका बहुत-बहुत शुक्रिया सरस जी !

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  15. वह वाह क्या बात है

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    1. ममता जी,
      आपका हृदय से स्वागत कर रही हूँ।

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  16. साहिल से फ़रियाद क्या, क्यों कोई उम्मीद
    तूफाँ, कई मेरे पाँव को, छूकर गुज़र गए
    क्या खूब !

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  17. कस्तूरी कुंडल बसे , मृग ढूढत बन माहि...

    पहले भी एक बार इसी ब्लॉग पर कहा था कि कुछ कृतियाँ इस तरह की होती हैं जो एकदम से दिल छू लेती हैं लेकिन उनकी तारीफ़ करते समय मैं कन्फ़्यूज़ हो जाता हूँ, ऐसी ही प्रस्तुति है ये।

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    1. होता है जी, हमारे ब्लॉग पर आकर अच्छे-अच्छे या तो फ्यूज़ हो जाते हैं या कन्फ्यूज़ । इस बार आप कन्फ्यूज़ हुए, हम तो खुद को बड़भागी मान रहे हैं, वर्ना अक्सर आप और आपका कुनबा फ्यूज़ ही नज़र आता है ।

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    2. कविता आपको पसंद आई, इस तारीफ़ के लिए आभारी हैं आपके ।

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    3. मेरा कुनबा?
      हम्म्म, नाईस शॉट। धन्यवाद।

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