Tuesday, April 9, 2013

अच्छा है कोई मुसीबत न रही....

अब मुझे मेरी ज़रुरत न रही
अच्छा है कोई मुसीबत न रही

तेरी सादगी पर मेरी जाँ कुर्बां 
हाँ मगर जाँ की क़ीमत न रही

रुख़ हवाओं के देख चलती हूँ मैं 
मेरे पाँवों में उतनी ताक़त न रही

यूँ तो हर चीज़ समेट ली है मैंने 
बस मेरे घर पे कोई छत न रही

इक अनछुई धड़कन जो थी दिल में  
इतनी धडकी कि अजनबियत न रही 

बँट ही जाऊँगी मैं दामन-दामन
ग़र तुझे आने की फुर्सत न रही 

तुम्हें याद होगा कभी हम मिले थे ..

16 comments:

  1. जरुरत ना रही , मुसीबत ना रही ...पीछा छूट़ा :)

    ReplyDelete
    Replies
    1. इस बात में भी कोई दिक्कत न रही :)

      Delete
  2. याद तो नहीं पड़ता मगर यकीन है, कभी न कभी मिले ज़रूर होंगे हम <3

    अनु

    ReplyDelete
    Replies
    1. का हमरी डारलिन सखी तुम सब भूल-भाल गई हो का ? मिले रहे न हम पिछला जन्म में, झुमरी तलैय्या मा जे तोपचाँची चौक पर, चुलबुल पांडे का पान गुमटी, का बगल से जे गली जा रहा है, उहें तो पांच घर छोड़ के, हमरा दुतल्ला, लाल गेटवा वाला मकान है, उकरे नीचे फुचका बाला ठेला आया था, और हम दुन्नो धड़फडैले एके साथे पहुँचे थे ठेला पर। ईयाद करो जे तुम पियर साड़ी पहरी थी और खोंपा बनाई थी और हम बुल्लू साड़ी में दू गो चोटी बनाए थे। पूरा दू-दू रुपैया का फुचका हमलोग खाए थे। ईयाद आया की नाही !!
      :):)
      <3

      Delete
    2. अरे हाँ............ :-)
      आपने याद दिलाया तो हमें याद आया...(ऊ दो रुपैया का उधारी अब तक है तुम पर!!!)
      इसी बात पर ढेर सा प्यार <3

      अनु

      Delete
  3. इक अनछुई धड़कन जो थी दिल में
    इतनी धडकी कि अजनबियत न रही

    ये शेर उम्दा बना पड़ा है.

    मक्ता कहाँ गया ?

    लिखते रहिये

    ReplyDelete
    Replies
    1. मक्ता आज आई नहीं है, कल आवेगी :)
      धन्यवाद !

      Delete
  4. ना ना करते देखो हो गये पाँच किलो हम।

    ReplyDelete
    Replies
    1. कम कहने का आदत नहीं गया है :)
      दस किलो का पांच कह रहे हैं ! :)

      Delete
  5. Very Nice. Ending Line is Most Most Most Beautiful

    ReplyDelete