अब मुझे मेरी ज़रुरत न रही
अच्छा है कोई मुसीबत न रही
तेरी सादगी पर मेरी जाँ कुर्बां
हाँ मगर जाँ की क़ीमत न रही
रुख़ हवाओं के देख चलती हूँ मैं
मेरे पाँवों में उतनी ताक़त न रही
यूँ तो हर चीज़ समेट ली है मैंने
बस मेरे घर पे कोई छत न रही
इक अनछुई धड़कन जो थी दिल में
इतनी धडकी कि अजनबियत न रही
बँट ही जाऊँगी मैं दामन-दामन
ग़र तुझे आने की फुर्सत न रही
तुम्हें याद होगा कभी हम मिले थे ..
अच्छा है कोई मुसीबत न रही
तेरी सादगी पर मेरी जाँ कुर्बां
हाँ मगर जाँ की क़ीमत न रही
रुख़ हवाओं के देख चलती हूँ मैं
मेरे पाँवों में उतनी ताक़त न रही
यूँ तो हर चीज़ समेट ली है मैंने
बस मेरे घर पे कोई छत न रही
इक अनछुई धड़कन जो थी दिल में
इतनी धडकी कि अजनबियत न रही
बँट ही जाऊँगी मैं दामन-दामन
ग़र तुझे आने की फुर्सत न रही
तुम्हें याद होगा कभी हम मिले थे ..
जरुरत ना रही , मुसीबत ना रही ...पीछा छूट़ा :)
ReplyDeleteइस बात में भी कोई दिक्कत न रही :)
Deleteयाद तो नहीं पड़ता मगर यकीन है, कभी न कभी मिले ज़रूर होंगे हम <3
ReplyDeleteअनु
का हमरी डारलिन सखी तुम सब भूल-भाल गई हो का ? मिले रहे न हम पिछला जन्म में, झुमरी तलैय्या मा जे तोपचाँची चौक पर, चुलबुल पांडे का पान गुमटी, का बगल से जे गली जा रहा है, उहें तो पांच घर छोड़ के, हमरा दुतल्ला, लाल गेटवा वाला मकान है, उकरे नीचे फुचका बाला ठेला आया था, और हम दुन्नो धड़फडैले एके साथे पहुँचे थे ठेला पर। ईयाद करो जे तुम पियर साड़ी पहरी थी और खोंपा बनाई थी और हम बुल्लू साड़ी में दू गो चोटी बनाए थे। पूरा दू-दू रुपैया का फुचका हमलोग खाए थे। ईयाद आया की नाही !!
Delete:):)
<3
अरे हाँ............ :-)
Deleteआपने याद दिलाया तो हमें याद आया...(ऊ दो रुपैया का उधारी अब तक है तुम पर!!!)
इसी बात पर ढेर सा प्यार <3
अनु
इक अनछुई धड़कन जो थी दिल में
ReplyDeleteइतनी धडकी कि अजनबियत न रही
ये शेर उम्दा बना पड़ा है.
मक्ता कहाँ गया ?
लिखते रहिये
मक्ता आज आई नहीं है, कल आवेगी :)
Deleteधन्यवाद !
बहुत खूब..
ReplyDeleteबहुत बहुत थैंक्स वंदना !
Deleteबहुत अच्छी
ReplyDeleteशोभना दीदी,
Deleteआपका आभार !
बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteशुक्रिया, मेहरबानी, करम :)
Deleteना ना करते देखो हो गये पाँच किलो हम।
ReplyDeleteकम कहने का आदत नहीं गया है :)
Deleteदस किलो का पांच कह रहे हैं ! :)
Very Nice. Ending Line is Most Most Most Beautiful
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