और सुनाओ कोई, नई बात हमसफ़र
कैसे कट रहे हैं तेरे, दिन-रात हमसफ़र
नामंज़ूर है हमें, तस्सवुर में भी जुदाई
झुकी नज़र में ढल गयी, हर रात हमसफर
निहाँ हुए आवाज़ की, लर्ज़िश में मेहरबाँ
नगमों में चल पड़े हैं, जज़बात हमसफ़र
अश्कों में घुल गयीं हैं, हर मय की तासीर
मत पोछ, जल न जाएँ, तेरे हाथ हमसफ़र
है खौफ़ का ये दौर 'अदा', खौफज़दा हूँ
बस प्यार की ख़ातिर ही करो, बात हमसफ़र
तस्सवुर=कल्पना
लर्ज़िश=तरकश
निहाँ =छुपा हुआ
और अब एक गीत ....
अरुण यह मधुमय देश
अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को
मिलता एक सहारा।
सरस तामरस गर्भ विभा पर
नाच रही तरुशिखा मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली पर
मंगल कुंकुम सारा।।
लघु सुरधनु से पंख पसारे
शीतल मलय समीर सहारे।
उड़ते खग जिस ओर मुँह किए
समझ नीड़ निज प्यारा।।
बरसाती आँखों के बादल
बनते जहाँ भरे करुणा जल।
लहरें टकरातीं अनंत की
पाकर जहाँ किनारा।।
हेम कुंभ ले उषा सवेरे
भरती ढुलकाती सुख मेरे।
मदिर ऊँघते रहते जब
जग कर रजनी भर तारा।।
- जयशंकर प्रसाद
श्री जयशंकर प्रसाद जी की अमर कृति को सुन लीजिये...
आवाज़ : स्वप्न मंजूषा 'अदा'
संगीत : श्री संतोष शैल
बहुत ही सुन्दर......
ReplyDeleteरचनात्मकता अपने शबाब पर है इन दिनों...
खुदा बुरी नज़र से बचाए.
अनु
हम तो खुदै नज़र बट्टू हूँ :)
Deleteभावपूर्ण -जयशंकर प्रसाद की रचना के साथ बेजोड़ सिनर्जी
ReplyDeleteजब जोर एलर्जी हो जाए, तो बेजोड़ सिनर्जी माँगता है :)
Deleteझुकी नज़र में ढल गयी, हर रात हमसफर ...क्या बात ..बहुत ही ख़ूबसूरत रचना .
ReplyDeleteऔर जयशंकर प्रसाद जी की इस रचना को तुम्हारी आवाज़ में सुनना सुखद अनुभव रहा
Deleteहाँ हाँ, काहे नहीं हम तो सिर्फ कल्पना ही कर रहे हैं, हमारी रचनाओं को तुम्हारा टाँग तोडूँ बाँचना :)
हा हा हा
बहुत खूब, धीरं गंभीरं गज़लं :)
ReplyDeleteवाहं प्रभु !
Deleteबहुरि कृपां करं :)
धीरं गम्भीरं गजलं उपरं अति धीरं गंभीरं टिप्पणीयं :)
पिलिजम धन्यवादम स्वीकारम :)
हमसफ़र का साथ तो चलता रहेगा,
ReplyDeleteसाथ का आभास भी छलता रहेगा।
देखेंगे !
Deleteनवसंवत्सर और जय शंकर प्रसाद की उत्कृष्ट रचना , अच्छा लगा पढ़कर ...
ReplyDeleteआपकी रची पंक्तियाँ भी बहुत अच्छी लगीं
मोनिका जी,
Deleteआपका तहे दिल से धन्यवाद !
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल की रचना,आभार.
ReplyDeleteआभारी हैं !
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