इक मुख्तलिफ़ सी मुलाक़ात की, याद यूँ सताती है
ज़ीस्त, लाफानी-ए-इश्क, की गुनेह्ग़ार बन जाती है
मेरी अफ़सुरदादिली संग, मेरे इरादे, ज़िन्दा हैं
तेरी याद, फिर तेरी याद के, बोझ तले दब जाती है
तू भी इतना दर्द सहे, तुझे कभी न चैन मिले
बस घबरा कर बोल पड़े, तू इतनी याद क्यूँ आती है ?
थोड़ी शाम की अपनी उदासी, दिल भी था थोड़ा उदास
रंगत वाले सारे चेहरे, फिर रंगत क्यूँ उड़ जाती है
अक्सर अजनबियत के गिलाफ़, वो ओढ़ सामने आता है
शातिराने खेल न खेल, 'अदा' पहचान जाती है
लाफानी-न ख़त्म होने वाली
ज़ीस्त-ज़िन्दगी
अफ़सुरदादिली = दिल की निराशा
चन्दा ओ चन्दा आवाज़ 'अदा ' की ....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार (17-04-2013) के चर्चामंच - बुधवारीय चर्चा ---- ( 1217 साहित्य दर्पण ) (मयंक का कोना) पर भी होगी!
नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ!
सूचनार्थ...सादर!
धन्यवाद शास्त्री जी, बस आती हूँ देखने।
Deleteनींद उड़ जाए तेरी चैन से सोने वाले-- गीत याद आ रहा है!
ReplyDeleteयूँ चाहने वालों को बददुआएं देना अच्छी बात नहीं :)
अरे हमको तो ऊ गाना याद आ रहा है 'मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे' :)
Deleteवोई तो 'यूँ चाहने वालों को बददुआएं देना सिर्फ अच्छी बात नहीं :), ये बहुत अच्छी बात होती है :):)
सुन्दर अभिव्यक्ति ..सुन्दर आवाज़ ...
ReplyDeleteधन्यवाद शारदा जी !
Deleteअच्छे शब्द बुने है. मक्ता भी जोड़ दें तो शायरी और असरदार लगेगी ( और कॉपी राईट का क्लेम भी पुख्ता हो जाएगा!)
ReplyDeleteलिखते रहिये
आपका आदेश सर-माथे पर मजाल साहेब, 'मक्ता' जोड़ने की कोशिश की है।
Deleteबहुत बहुत शुक्रिया !
थोड़ी शाम की अपनी उदासी, दिल भी था थोड़ा उदास
ReplyDeleteरंगत वाले सारे चेहरे, फिर रंगत क्यूँ उड़ जाती है ...
वाह ... लाजवाब शेर है ... जब उदासी घिरने लगती है रंगत उड़ने लगती है ...
जी हाँ नासावा साहेब,
Deleteअच्छी ख़ासी उड़ जाती है :)
आपका शुक्रिया !
बहुत लाजवाब, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
आप भी तो बेमिसाल हैं ! :)
Deleteशुभकामनायें !
सीते सीते !
उत्तम शब्द शिल्प है!
ReplyDeleteसादर बधाई स्वीकारें।
बधाई हम स्वीकार कर लिए, आपको भी हमारा हार्दिक धन्यवाद !
Deleteबधाई स्वीकार की इसके लिए आपका आभार अब एक निवेदन भी स्वीकार कर लीजिए वह यह कि http://nirjhar-times.blogspot.com पर आपकी यह रचना लिंक की गई है,कृपया पधारें और अवलोकन करें। और हाँ,आपका सुझाव भी सादर आमंत्रित है।
Deleteबस ! सिर्फ बहुत सुन्दर ! और कुछ नहीं ?
ReplyDeleteक्या प्रवीण जी आप भी न ! :)
हाँ नहीं तो !
:)
lajwab
ReplyDeletela-dawaa hai ye gam
kya dua karen charagar se ham.
Aabhaar.
हम तो इस दर्द से ही मुतमा-इन हैं
Deleteगर दवा करोगे तो 'अदा' मर जायेंगे
आपका शुक्रिया !
मुतमा-इन=संतुष्ट
सचमुच अब अदा पहचान जाती हैं -आप तो मजे हुए शायर की तरह ग़ज़ल लिखती हैं -
ReplyDeleteकिसकी रही सोहबत
कहाँ से यह हुनर सीखा ?
:-)
'मजे हुए' ही हैं ज़नाब :)
Deleteअब ट्रिक ऑफ़ दी ट्रेड तो हम बताने से रहे :)
गाना सुनने लिए सब्र करना था ,पहले क्लिक कर दिया और अब ग़ज़ल पढने में कितना डिस्टर्ब कर रही है ,तेरी आवाज़.
ReplyDeleteगाना ख़त्म हो गया..अब दुबारा सुनाने का मन हो रहा है. :)
ग़ज़ल फिर पढ़ते हैं
अरे !
Deleteऊ तो हम घोषित डिस्टर्बिंग एलिमेंट हूँ :):)
तू भी इतना दर्द सहे, तुझे कभी न चैन मिले
ReplyDeleteबस घबरा कर बोल पड़े, तू इतनी याद क्यूँ आती है ?
क्या बात है , नए तेवर की ग़ज़ल
अरे बाबा ई तेवर तो पुराना है, बस ज़रा जंग लग गया था तो रिफर्बिश किया है :):)
Deleteबहुत सुन्दर शब्द चयन !!
ReplyDeletelatest post"मेरे विचार मेरी अनुभूति " ब्लॉग की वर्षगांठ
धन्यवाद कालिपद जी !
Deleteलाजवाब रचना | अद्भुत शब्दावली से रचना को सजाया है | शुभकामनायें |
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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शुक्रिया तुषार जी !
Deleteखूबसूरत ग़ज़ल....क्या खूब कहा है....
ReplyDeleteअदिति जी,
Deleteस्वागत है आपका।
आपको रचना पसंद आई, हमारी मेहनत रंग लाई !
अच्छी और संतुलित रचना.बधाई
ReplyDeleteशुक्र है संतुलित तो नज़र आई :)
Deleteआभार !
खुबसूरत नज़्म सुन्दर शब्द लिए
ReplyDeleteधन्यवाद भईया !
Deleteबढ़िया है...
ReplyDeleteमन भाया...पसंद आया
हमको भी मन भाया !
Deleteआपकी आवाज सुनकर ईश्वर से शिकायत करने की इच्छा होती है कि सबको ऐसी मधुर आवाज क्यों नहीं बख्शते?
ReplyDeleteगाना और रोना ईश्वर ने सबको सिखाया है !
Deleteअदा दी नमस्कार
ReplyDeleteतू भी इतना दर्द सहे, तुझे कभी न चैन मिले
बस घबरा कर बोल पड़े, तू इतनी याद क्यूँ आती है ?
क्या बात है !!
बस यही तो बात है !
Deleteतू भी इतना दर्द सहे, तुझे कभी न चैन मिले
ReplyDeleteबस घबरा कर बोल पड़े, तू इतनी याद क्यूँ आती है ?...
वाह क्या बात कही है..
अब का कहें, कभी-कभी गरियाना भी अच्छा लगता है :)
Deleteमोहक अंदाज़!
ReplyDeleteमन मोहिनी टिप्पणी :)
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