तक्षशिला (जो अब पकिस्तान में है) प्राचीन विश्वविद्यालय होने के लिए जग प्रसिद्ध था, यहाँ दूर-दूर से विद्यार्थी शिक्षा लेने आया करते थे, इसी विश्वविद्यालय के महाज्ञानी और विद्वान् ब्राह्मण चाणक्य, व्यवहारिक राजनीति, दर्शन और हठवादी राजकौशल के सिद्धहस्त व्यवहारदर्शी थे, भारत के आरंभिक इतिहास में इनकी अपार प्रतिष्ठा थी, उन्हें 'विष्णुगुप्त' के नाम से भी जाना जाता था, जो उनके माता-पिता का उनको दिया हुआ नाम था...
उनको उनके छद्मनाम 'कौटिल्य' से भी जाना जाता है जो उन्होंने अपनी प्रसिद्द पुस्तक 'अर्थशास्त्र', जो संस्कृत में लिखी गई है, के लेखक के रूप में अपनाया था ...यह पुस्तक शासन और कूटनीति पर लिखा गया एक वृहत ग्रन्थ है...
उन्होंने अपना छद्मनाम अपने गोत्र 'कुटिल' से लिया था, जबकि उनके सबसे लोकप्रिय नाम 'चाणक्य' का उदगम हुआ था 'चणक' से, जो उनके गाँव का नाम था ...चाणक्य का जन्म चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में 'चणक' नामक ग्राम में हुआ था...
वह शक्तिशाली नन्द वंश को सत्ताविहीन करने और चन्द्रगुप्त मौर्य को, जो सम्राट अशोक के पितामह थे भारत का प्रथम ऐतिहासिक सम्राट बनाने की अतुलनीय उपलब्धि के लिए सर्वाधिक जाने जाते हैं...
चन्द्रगुप्त, मगध के सम्राट बने और पाटलिपुत्र (आधुनिक बिहार की राजधानी पटना के समीप स्थित एक प्राचीन नगरी) को अपनी राजधानी बनाया तथा ईसा पूर्व ३२२ से २९८ तक राज किया ...उनके दरबार में यूनानी राजदूत 'मेगास्थनीज' ने अपनी पुस्तक 'इंडिका' में लिखा था, कि चन्द्रगुप्त के शासन काल में न्याय, शांति और समृद्धि का बोल-बाला था...
यूनानी दार्शनिक 'सुकरात' की तरह ही चाणक्य का चेहरा-मोहरा व्यक्तित्व प्रभावशाली नहीं था, लेकिन वो प्रकांड विद्वान् एवं चिन्तक थे ..सुकरात का मानना था कि 'विचारों का सौन्दर्य, शारीरिक सौन्दर्य से अधिक आकर्षक होता है'..चाणक्य एक कुशाग्र योजनाकार थे,
दॄढ़प्रतिज्ञ चाणक्य के भीतर किसी भी प्रकार की कमजोर भावनाओं के लिए कोई स्थान नहीं था...योजनाओं को बनाने और उनका क्रियान्वयन करने में वो बहुत कठोर थे...
अंतिम नन्द राजा जो कि बहुत अलोकप्रिय था, उसने एक बार चाणक्य का भरी सभा में अपमान कर दिया था ...चाणक्य ने इस अपमान का बदला लेने का संकल्प ..अपनी शिखा खोल कर किया था ...
इसी नन्द राजा के अधीनस्थ उच्च सैन्य पद पर आसीन एक युवा परन्तु महत्वकांक्षी व्यक्ति 'चन्द्रगुप्त' ने तख्ता पलटने की कोशिश की परन्तु असफल होकर उसे भागना पड़ा ...विन्द्य के वनों में चन्द्रगुप्त भटकता रहा और वहीं वह चाणक्य से मिला...चाणक्य को उसने अपना गुरु, संरक्षक मान लिया...चाणक्य के सक्रिय सहयोग से चन्द्रगुप्त ने एक सशक्त सेना का गठन किया और अपने गुरु की सूझ-बुझ और पूर्ण योजनाओं के बल-बूते पर नन्द राजा को सिंहासनच्युत कर मगध का शासक बनने में सफल हुआ..बाद में चन्द्रगुप्त से चाणक्य को अपना सर्वोच्च सलाहकार अर्थात प्रधानमंत्री नियुक्त किया...
इस ज्ञानी और व्यवहारिक दार्शनिक ने धर्म, आचार संहिता, सामजिक व्यवहार शैली और राजनीति में कुछ विवेकपूर्ण विचार प्रकट किये हैं...उन्होंने इन्हें तथा और कई अन्य ग्रंथों से चुने गए सूत्रों को अपनी पुस्तक 'चाणक्य नीति दर्पण' में प्रस्तुत किया है उनके स्वतः सिद्ध सूत्र आज के चलन में भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने वो दो हज़ार साल पहले थे ..ज़रा आप भी जानिये...
विष से प्राप्त अमृत, दूषित स्थान से प्राप्त सोना, और मंगलकारी स्त्री को भार्या के रूप में स्वीकार करना चाहिए भले निम्न परिवार से हो और ऐसी पत्नी से प्राप्त ज्ञान को भी स्वीकार करना चाहिए', विचारों के अभिप्रायों को निकलने नहीं देना चाहिए उन्हें एक गुप्त मन्त्र की तरह प्रयुक्त करना चाहिए,
जो परिश्रम करता है उसके लिए कुछ भी हासिल करना असंभव नहीं है
शिक्षित व्यक्ति के लिए कोई भी देश अनजाना नहीं है
मृदुभाषी का कोई शत्रु नहीं होता
झुंड में भी बछड़ा अपनी माँ को ढूंढ लेता है, उसी प्रकार काम करने वाला सदैव काम ढूंढ लेता है...
चाणक्य के बारे में जनमानस में लोगप्रिय धारणा और छवि उनके जीवन काल में ही एक असाधारण, विद्वान्, देशभक्त, संत, गुरु और कर्तव्यपरायण व्यक्ति की थी...प्रधानमन्त्री के उच्च आसन पर आसीन होते हुए भी वो संत का जीवन बिताते थे तथा जीवन के चरम मूल्यों के प्रतीक बन गए थे...
शुभ प्रभात दीदी
ReplyDeleteआज की आपकी पोस्ट निरुत्तर कर गई
तुम्हारी टिप्पणी मुझे निरुत्तर कर गयी :)
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Deleteदीदी
Deleteआप भी न....
कम से कम दो-चार सुना तो देती
सादर
महान चाणक्य को मेरा कोटि कोटि नमन | सुन्दर लेख | आभार
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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धन्यवाद !
Deleteप्रेरक चरित्र।
ReplyDeleteउच्च पद ऐसी ही विभूतियों से शोभा पाते हैं।
पहले भी यह पोस्ट आ चुकी है और ऐसी पोस्ट सदैवप्रासंगिक है। फ़िर से ताजा करने के लिये आभार।
हम्म्म!!
Deleteहृदय से धन्यवाद यशोदा !
ReplyDeleteचाणक्य की दूरदर्शिता सदा प्रभावित करती है, कर्म साधने में किन उपायों का समावेश हो, उसकी समुचित सीख देता है उनका जीवन।
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने प्रवीण जी !
Deleteचाणक्य संत तो बिलकुल नहीं थे ! राजनीति करने वाला व्यक्ति संत कैसे होगा ?! मुझे लगता वो भयंकर रूप से अवसाद से पीड़ित थे. चन्द्रगुप्त को राज्य दिलाने के पूछे एक बहुत बड़ा कारण अपने ऊपर किये गए अपमान का बदला लेना भी थ… तो हमारे हिसाब से संत तो वो दूर दूर तक नहीं थे।
ReplyDeleteबाकी हमने उनकी निति पढ़ी है. वो बहुत व्यवहारिक और प्रभावशाली है। कूटनीति है, पर है जोरदार ... शायर के ही माफिक, हर दूसरे तीसरे श्लोक पर वाह वाह पक्की ... !
लिखते रहिये
संत इसलिए कहा मैंने क्योंकि इतने उच्च पद पर आसीन होने के बावजूद भी वो बहुत सादा जीवन व्यतीत करते थे, उन्होंने अपने पद का कभी दुरूपयोग नहीं किया था।
Deleteचाणक्य के बारे में अच्छा आलेख।
ReplyDeleteधन्यवाद विकेश !
Deleteचाणक्य की नीति हर काल में प्रभावी करती है ...... एक संतुलित आकलन किया है आपने :)
ReplyDeleteनिवेदिता जी,
Deleteआपका आभार !
अभी थोड़े दिन पहले ही चाणक्य से संबंधित बहुत कुछ पढ़ा था, बस उनकी गूढ़ बातों को समझ कर अमल में ले आयें तो पता नहीं कहाँ से कहाँ पहुँच जायें.. डिकोडिंग जारी है ।
ReplyDeleteसही कहते हैं आप, उनकी नीतियों का सही अर्थ निकाल कर अगर उनको देश के राजनीतिज्ञ अपना सकें तो देश की दशा बहुत सुधर सकती है, लेकिन मेहनत से तो सभी कतराते हैं, कौन करेगा इतना परिश्रम ?
Deleteबहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति!
ReplyDeleteसाझा करने के लिए धन्यवाद!
धन्यवाद शास्त्री जी !
Deleteसुन्दर लेख
ReplyDeleteआभार नीलिमा जी !
Deleteसार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteओंकार जी धन्यवाद !
Deleteचाणक्य एक दृढ निश्चयी व्यक्ति तो थे लेकिन प्रतिशोध की भावना से अत्यधिक ग्रसित थे. नन्द वंश को समाप्त करने की प्रतिज्ञा ही मौर्या वंश की स्थापना का कारण है.उनके द्वारा प्रतिपादित नियम निजी अनुभवों पर आधारित है और आज भी सही है.
ReplyDeleteयह सही है कि मौर्य वंश की स्थापना के पीछे उनका अपना उद्देश्य था, परन्तु उनकी इस ज़िद्द ने 'अर्थशास्त्र' जैसी पुस्तक को जन्म दिया, आप इसे ब्लेसिंग इन डिस्गाइस कह सकते हैं।
Deleteचाणक्य के द्वारा दी गयी सीख आज भी उतनी ही सार्थक है...बहुत सुन्दर आलेख ..
ReplyDeleteसही कहते हैं आप कैलाश जी, चाणक्य की नीतियाँ किसी भी काल में सामयिक ही मानी जायेंगी।
Deleteना जाने क्यों कुछ लोग चाणक्य से चिढ़ते हैं तो इसके विपरीत ऐसे भी हैं जो उनके बडे प्रशंसक हैं. आपकी प्रस्तुति प्रशंशनीय है. आभार.
ReplyDeleteये तो हमेशा ही होता है सुब्रमनियन जी, विरोध उनका ही होता है, जिनके पास कुछ कहने या देने को होता है, जिनके पास कुछ नहीं होता उनका विरोश कौन करता है भला :)
Deleteआपका आभार ब्रिजेश जी !
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