अहले वफ़ा की बात वो, करके मुकर गए
शिक़स्त-ए-दीद बन हम, नज़रों से गिर गए
क़ाबू तो पा सके न हम, अपने वज़ूद पे
जीतेंगे क़ायनात के, दावे किधर गए ?
मुट्ठी में क़ैद था कभी, वो आफ़ताब था
तीरगी ने मुट्ठी खोल दी, मोती बिख़र गए
साहिल से फ़रियाद क्या, क्यों कोई उम्मीद
तूफाँ, कई मेरे पाँव को, छूकर गुज़र गए
वो तिश्नगी मेरे दिल की, सदियों की प्यास 'था'
बस उसको ढूँढने 'अदा', हम दर-ब-दर गए
शिक़स्त = हार
दीद = आँखें
क़ायनात =ब्रह्माण्ड
आफ़ताब =सूरज
तीरगी = अँधेरा
साहिल=किनारा
तिश्नगी=प्यास
सुहानी चाँदनी रातें ...आवाज़ 'अदा' की ..
शिक़स्त-ए-दीद बन हम, नज़रों से गिर गए
क़ाबू तो पा सके न हम, अपने वज़ूद पे
जीतेंगे क़ायनात के, दावे किधर गए ?
मुट्ठी में क़ैद था कभी, वो आफ़ताब था
तीरगी ने मुट्ठी खोल दी, मोती बिख़र गए
साहिल से फ़रियाद क्या, क्यों कोई उम्मीद
तूफाँ, कई मेरे पाँव को, छूकर गुज़र गए
वो तिश्नगी मेरे दिल की, सदियों की प्यास 'था'
बस उसको ढूँढने 'अदा', हम दर-ब-दर गए
शिक़स्त = हार
दीद = आँखें
क़ायनात =ब्रह्माण्ड
आफ़ताब =सूरज
तीरगी = अँधेरा
साहिल=किनारा
तिश्नगी=प्यास
सुहानी चाँदनी रातें ...आवाज़ 'अदा' की ..
दीदी
ReplyDeleteजान ले लोगी क्या
अहले वफ़ा की बात वो, करके मुकर गए
सुन्दर ग़ज़ल
सादर
अरे न रे !
Deleteशुभ शुभ बोल :)
BAHUT BADHIYA....
ReplyDeleteशुक्रिया !
Deleteक्या खूब
ReplyDeleteलिखती हो, बड़ी सुन्दर लिखती हो,फिर से लिखो, लिखती रहो ....:)
Deleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति!
ReplyDelete--
आपकी पोस्ट की चर्चा आज शनिवार (06-04-2013) के चर्चा मंच पर भी है!
सूचनार्थ...सादर!
आपका आभार शास्त्री जी !
Deleteवाह वाह ... क्या गजब है :)
ReplyDeleteधन्यवाद !
Deleteउम्दा..
ReplyDeleteशुक्रिया !
Deleteतुम्हारे प्यार की बातें हमें सोने नहीं देतीं......
ReplyDeleteगजबे गाती हो <3
अनु
तुम गज़बे सुनती हो :)
Delete<3<3
बहुत ही सुन्दर और बेहतरीन ग़ज़ल की प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeleteआपका धन्यवाद हौसलाफजाई के लिए !
Deleteक़ाबू तो पा सके न हम, अपने वज़ूद पे
ReplyDeleteजीतेंगे क़ायनात के, दावे किधर गए ?
वाह, बहुत ही बेहतरीन !
मेरा भी पसंदीदा शेर है ये, आपको भी पसंद आया, शुक्रिया !
Deleteलाजवाब।
ReplyDeleteथैंक्स विकेश !
Deletewaah waah laajavaab...
ReplyDeleteवाह वाह बेमिसाल :)
Deleteवाह
ReplyDeleteआपकी 'वाह' पर हम कुर्बान :)
Deletebahut pyaari gajal...aur aapke blog me aapke gaane sunne ka aanand hee alag aata hai..umda
ReplyDeleteग़ज़ल (मुझे नहीं मालूम इसे ग़ज़ल कहेंगे या नहीं), फिर भी ऐसी रचना के साथ गीत डालना मुझे अच्छा लगता है, पाठक पढ़ भी लेते हैं और सुन भी लेते हैं। यू नो एक ढेले से दो शिकार :)
Deleteआपको पसंद आता है, मेरी कोशिश क़ामयाब ही। आपका हृदय से आभार !
साहिल से फ़रियाद क्या, क्यों कोई उम्मीद
ReplyDeleteतूफाँ, कई मेरे पाँव को, छूकर गुज़र गए
बहुत खूब...बेहतरीन ग़ज़ल
आउर का :)
Deleteवो कोई और हैं, जिनके लोग क़रीब होते हैं
हम तो तन्हाई के संग, खुशनसीब होते हैं
वाह वाह ! कमाल हो गया :)
आपने बहुत सुन्दर ग़ज़ल पोस्ट की है और फिल्मी गीत को तो आपने बहुत ही मस्त होकर मधुर आवाज में गाया है।
ReplyDeleteशास्त्री जी,
Deleteआपका आशीर्वाद तो सदैव ही बना हुआ है। आगे भी बना रहेगा पूरा विश्वास है।
धन्यवाद !
क़ाबू तो पा सके न हम, अपने वज़ूद पे
ReplyDeleteजीतेंगे क़ायनात के, दावे किधर गए ?
bahut khoob....
निशा जी,
Deleteस्वागत है आपका।
आपको पसंद आया, मेरी हिम्मत बढ़ी है।
शुक्रिया !
सुन्दर ग़ज़ल
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत शुक्रिया !
DeleteThanks Yashwant !
ReplyDeleteमेरे विचारों को आपने सराहा, आभारी हूँ।
ReplyDeleteधन्यवाद !
क़ाबू तो पा सके न हम, अपने वज़ूद पे
ReplyDeleteजीतेंगे क़ायनात के, दावे किधर गए ?
वो तिश्नगी मेरे दिल की, सदियों की प्यास 'था'
बस उसको ढूँढने 'अदा', हम दर-ब-दर गए
...........सबसे खूबसूरत शेर
आपका बहुत-बहुत शुक्रिया सरस जी !
Deleteवह वाह क्या बात है
ReplyDeleteममता जी,
Deleteआपका हृदय से स्वागत कर रही हूँ।
साहिल से फ़रियाद क्या, क्यों कोई उम्मीद
ReplyDeleteतूफाँ, कई मेरे पाँव को, छूकर गुज़र गए
क्या खूब !
अरविन्द जी,
Deleteशुक्रिया !
कस्तूरी कुंडल बसे , मृग ढूढत बन माहि...
ReplyDeleteपहले भी एक बार इसी ब्लॉग पर कहा था कि कुछ कृतियाँ इस तरह की होती हैं जो एकदम से दिल छू लेती हैं लेकिन उनकी तारीफ़ करते समय मैं कन्फ़्यूज़ हो जाता हूँ, ऐसी ही प्रस्तुति है ये।
होता है जी, हमारे ब्लॉग पर आकर अच्छे-अच्छे या तो फ्यूज़ हो जाते हैं या कन्फ्यूज़ । इस बार आप कन्फ्यूज़ हुए, हम तो खुद को बड़भागी मान रहे हैं, वर्ना अक्सर आप और आपका कुनबा फ्यूज़ ही नज़र आता है ।
Deleteकविता आपको पसंद आई, इस तारीफ़ के लिए आभारी हैं आपके ।
Deleteमेरा कुनबा?
Deleteहम्म्म, नाईस शॉट। धन्यवाद।
समझे पर समय के साथ..
ReplyDelete