Truth is bitter . Sometimes i think seriously , can't anything be done to prevent this ? can we bloggers start some effort to prevent Ganga to be polluted ? Is it possible to ban burning dead bodies by liting fire at the bank of Ganga ? Can a governmental order or mandate be launched from Gov ? I came to know that in west countries use electric furnace to dispose dead bodies , also it is used for unclaimed bodies in India too ( if i m correct ) , can't same thing be practiced for all ?
Hi Shweta, Welcome to my Blog. The word 'impossible' itself spells, 'I'm possible'. Napoleon Bonaparte once remarked, "That the word 'impossible' is found only in the dictionary of fools". In this world, everything is possible on the basis of will power, dogged determination and sacrifice. Govt of India will have to take harsh measures to stop this nonsense. They will have to built cremation houses in each and every city. I remember my uncle was electrically cremated in Delhi 10-12 years back. Its not that there are no such facilities, but people must be forces to use them. The rules must be made not to allow cremation at the banks of rivers. Dumping of pooja-paath materials into rivers must be banned immediately. This will reduce the problem immediately to some extent.
Yes, you are absolutely right, west has already imposed on citizens to opt for cremation, no burial is allowed. Even multi millionaires are being cremated. Thanks a lot for sharing your thoughts.
In district Chandausi (UP) few years back D.M. of city banned the use of polythene . Later on i have no idea whether this ban was uplifted by subsequent D.M. or not but that time it helped in checking plastic pollution up to much extent . That means lower level of authorities have right to impose such rules at District level . Why cann't this happen in Varanasi or in Delhi ? People should send application signed in mass & send to D.M. But we are lazy and selfish . We find it comfortable to get polythene from shopkeeper instead of carrying cloth bag or paper bag from house. In fact we are a group of double standard people who speak or write thoughts of modernization but donet practice it. Few months back i was discussing about pollution of river with a person ( he was a physics teacher ) and i was shocked to hear his reply >> " गंगा का तो अवतरण ही हुआ है लोगों के पाप धोने के लिए " . I was not expecting such stupid & careless remark from him .
अधिकांश अधजले शव लावारिस हैं, जिन्हें पोस्टमार्टम के बाद ढंग से अग्नि में नहीं जलाया गया। प्रदेशों के स्थानीय पुलिस थानों के केस हैं, इसलिए उनकी लापरवाही कह सकते हैं। वैसे समाज में जब अपनों की ही अनदेखी हो रही है तो लावारिस शवों को कौन पूछता है। आपने बेचैनी बड़ा दी।
जिम्मेदारी पुलिस की हो शासन की हो या नागरिकों की हो, नुक्सान हम सबका है। साँप काटे से अगर मृत्यु होती है तो उस शव को भी नहीं जलाया जाता है। मैंने सिर्फ तस्वीर दिखाई है, लोग इन शवों और गंदगियों के साथ जी रहे हैं।
क्या कहा जाये यदि यह सब किसी पावन नदी या गंगा तट का है तो समाज के ठीकेदारों और नेताओं की ऐसी की तैसी जिन्हें ये सब नहीं दिखता और करोड़ों रूपया स्वच्छता पर यूँ ही डकार जाते हैं
क्या कहा जाये यदि यह सब किसी पावन नदी या गंगा तट का है तो समाज के ठीकेदारों और नेताओं की ऐसी की तैसी जिन्हें ये सब नहीं दिखता और करोड़ों रूपया स्वच्छता पर यूँ ही डकार जाते हैं
900 करोड़ रुपैये खर्च हो चुके हैं गंगा की सफाई में और साफ़ करने वाले खुद ही कहते हैं, 'उन्हें नहीं लगता गंगा रंच मात्र भी साफ़ हुई है।' गंगा साफ़ हुई या नहीं हुई, 900 करोड़ रुपैये ज़रूर साफ़ हो गए।
हे भगवान्!!!! इसे कहते हैं घोर कलयुग....मैंने तो सिर्फ २ तस्वीर ही देखीं ऐसी पोस्ट कृपया न किया करें | समाज का ऐसा कुरूप चेहरा भी हो सकता है मैं कभी सोच भी नहीं सकता था | मेरे से ये सब नहीं देखा जाता | कृपया कोई तो उन लोगों को मुक्ति दिलाये |
तुषार जी मुखौटों की आदत ठीक नहीं, यही समाज और हमारी प्राकृतिक सम्पदाओं की हालत है। नहीं देखेंगे तो जानेंगे कैसे , और अगर जानेंगे नहीं तो खुद को और अपने आस-पास को बदलेंगे कैसे ? आशा है अपने छोटे से तरीके से ही सही, आप भी इसके सुधार में योगदान देंगे।
अदा जी, क्षमा चाहता हूँ अत्यधिक व्यस्तता और टूर की वजह से ब्लॉग जगत पर अधिक समय दे पाने में असमर्थ हूँ। आपने जो चित्र यहाँ दिखाए, निश्चित तौर पर वे विचलित करने वाले है, और कुछ लोग अवश्य ही यह भी कहेंगे कि माय गॉड , एक महिला होते हुए भला आप ऐसे चित्रों को देख भी कैसे लेते हो? खैर , और उन्हें मेरा जबाब यही होगा कि अगर आपको कोयले की खदान देखनी है तो उसके अन्दर तो घुसना ही पडेगा, हाथ पाँव काले करने ही पड़ेंगे , अक्सर सच्चाई कडवी ही होती है।
और आपके ब्लॉग के माध्यम से देशवासियों से मेरा एक अनुरोध यह भी कि पहले लोग पुराने खयालात के थे,अब आप और हम तो शिक्षित हैं, चित्र देखकर इस दिशा में भी सुधार के कुछ प्रयास करों न।
गोदियाल साहेब, कोई बात नहीं, काम पहले आता है, फिर ब्लॉग्गिंग। आपने समय निकाला हृदय से आभारी हूँ।
गोदियाल जी, मैं ज़मीनी इंसान हूँ, एक स्त्री ज़रूर हूँ लेकिन मोम की गुडिया नहीं हूँ। आप तस्वीरों की बात कह रहे हैं, मैंने तो साक्षात् देखा है, और मुझे बहुत फ़िक्र है। लोग मुझे जो समझना चाहते हो समझ सकते हैं, लेकिन भारत की बेटी होने के नाते ये मेरा फ़र्ज़ बनता है कि मैं सच्चाई सामने लाऊं। सबसे आग्रह करूँ कि अपनी धरोहर को बचाने में जो भी वो कर सकते हैं अवश्य करें, वर्ना भविष्य बहुत अंधकारमय है।
A Chinese blogger posted such crap earlier -I don't like this uglier phase of humanity however truth it may be... ! I like the truth which is not uglier but beautiful -satyam shivam sundram!
I unfortunately have witnessed such uncomfortable post earlier -please see this discussion and the link on facebook ! Conversation started March 4
Vivek Chouksey
Hi sir, I came across this post by a chinese tourist. He states
"The tour guide said that this kind of fish in the Ganges is called “Gulang” fish, a very nice sounding name…and it is said the flavor is very good, but upon thinking of the corpses soaking in the water, the soap from the bathing, the garbage by the river…I don’t have the courage to try it, not sure if this kind of fish will have a human flesh flavor…"
Being a Fisheries scientist, are these fish carnivore? Do they nibble floating corpses of ganga --even by chance--?
http://www.chinasmack.com/2010/pictures/filthy-india-photos-chinese-netizen-reactions.html March 5 12:33pm DrArvind Mishra
Dear Vivek, There are of course some fish species like Silond,Bagarius and Wallago which being highly carnivorous nibble on corpses.But these are usually not sold as they are not preferred by consumers. Morever their number in Ganges have drastically decreased.The fellow wanted to malign India's image with his peculiar satarical writing! 12:34pm DrArvind Mishra
Dear Vivek, There are of course some fish species like Silond,Bagarius and Wallago which being highly carnivorous nibble on corpses.But these are usually not sold as they are not preferred by consumers. Morever their number in Ganges have drastically decreased.The fellow wanted to malign India's image with his peculiar satarical writing! 12:36pm DrArvind Mishra
Dear Vivek, There are of course some fish species like Silond,Bagarius and Wallago which being highly carnivorous nibble on corpses.But these are usually not sold as they are not preferred by consumers. Morever their number in Ganges have drastically decreased.The fellow wanted to malign India's image with his peculiar satarical writing! 12:36pm DrArvind Mishra
Dear Vivek, There are of course some fish species like Silond,Bagarius and Wallago which being highly carnivorous nibble on corpses.But these are usually not sold as they are not preferred by consumers. Morever their number in Ganges have drastically decreased.The fellow wanted to malign India's image with his peculiar satarical writing! 12:38pm DrArvind Mishra
Also there is no fish named Gulung even in vernacular language! 1:32pm Vivek Chouksey
Unfortunately I am not part of Face book, so I wouldn't know. You want to see Satyam Shivam Sundaram ? Then find one and we will be with you. If this is a crap, then thin our crap. I have no idea, which Chinese blog you are talking about.
If we want to see beautiful then we must make one This is what we have created, then why to shy away from our own creation ? You live in Banaras, can you deny, this is what is not happening there ? Most of the time truth is ugly. Let's face it and try to do some thing good, in our own small way.
अदाजी ज्वलंत समस्या उठाई है आपने । चित्र विचलित जरुर करते है लेकिन ये भी सच है की इनसे मुहं नहीं मोड़ सकते | मध्य प्रदेश में महेश्वर ,(अहिल्या बाई की नगरी )मंडलेश्वर नों तहसील है और वहां नर्मदा नदी है या यु कहे की नर्मदा नदी के किनारे दोनों छोटे से नगर है और नहुत सुन्दर घाट भी बने है ,पर्यटक भी बहुत आते है और वहां नर्मदा नदी में फूल इत्यादि का विसर्जन करना सख्त मना है और इसके लिए वहां बड़े बड़े सीमेंट के कुंड बना दिए गये है जिसमे दर्शनार्थी ,और स्थानीय लोग भी विसर्जन सामग्री डाल देते है जिसे वहां की नगर पालिका कर्मचारी ले जाते है ।नदि किनारा और नदी का पानी एकदम साफ सुथरा किनारे पर बैठकर मछलिय के साथ दोस्ती कर सकते है | आप चाहे तो पूरा विवरण यहाँ देख सकती है चित्र सहित http://shobhanaonline.blogspot.in/2010/12/blog-post_24.html
जानकारी का आभार शोभा जी। इस प्रकार की व्यवस्था सभी नदियों/घाटों पर आसानी से की जा सकती है। न केवल प्रदूषण कम होगा बल्कि हर साल मूर्ति विसर्जन मे डूबने से होने वाली अकाल मृत्यु से बचा जा सकता है। यदि अन्य नगरपालिकाओं को जानकारी नहीं है तो वे महेश्वर के निगम/संस्थाओं से सबक ले सकते हैं, खासकर दुनिया भर के पर्यटकों/दानदाताओं से भारी काशी नागरी की संस्थाएं। लेकिन बात वही है कि जिन पर व्यवस्था की ज़िम्मेदारी हो वे भ्रष्ट भी हों और निकम्मे भी तो क्या हो। नदियां ही नहीं, भारत की अधिकांश समस्याओं की जड़ में अधिकारियों/नेताओं/सत्ताधीशों अव्यवस्था और भ्रष्टाचार ही है। आम आदमी पर कैलसनैस के आरोप लगते हैं, जो काफी हद तक सही भी हैं लेकिन अधिकांश लोगों के पास न तो स्थिति बदलने की क्षमता और समय है और न ही इतना ज्ञान कि परिवर्तन ला सकें।
आपका आभार अनुराग जी, गंगा को साफ़ करने में 900 करोड़ का खर्चा हो चूका है, क्या इस तरह की सुविधाओं का इंतज़ाम नहीं किया जा सकता, इतना ही नहीं इनका पालन हो इस पर कड़ी निगरानी नहीं रखी जा सकती ?शोभना जी ने एक बहुत ही सुन्दर उदाहरण दिया है, ऐसे ही संरक्षण के उपाय को हर नदी के तीर पर लगाया जाना चाहिए। हर नागरिक अपनी तरफ से नदियों के संरक्षण की जिम्मेदारी ले, उन्हें दूषित करने का कोई काम न करे यही होगा पहला कदम हर घर से इसकी शुरुआत।
In bad taste -please put a disclaimer !Some photographs could badly disturb the viewers!
ReplyDeleteडॉक्टर साहेब,
Deleteमैं कोई डिस्क्लेमर नहीं लगाने वाली हूँ। कबूतर की तरह आँख बंद करने से बिल्ली नहीं भाग जायेगी।
यही तो सच्चाई है।
कौन जनम का बदला ले रही हो?????
ReplyDeleteअनु
ये हमारे इसी जन्म का पाप है जो अब उफ़न-उफ़न कर सामने आ रहा है, अब भी नहीं सुधरे तो, भगवान् भी नहीं बक्शेंगे।
Delete:-(
Deleteपता नहीं !!!!! भगवान हैं कहाँ????
Truth is bitter . Sometimes i think seriously , can't anything be done to prevent this ? can we bloggers start some effort to prevent Ganga to be polluted ? Is it possible to ban burning dead bodies by liting fire at the bank of Ganga ?
ReplyDeleteCan a governmental order or mandate be launched from Gov ? I came to know that in west countries use electric furnace to dispose dead bodies , also it is used for unclaimed bodies in India too ( if i m correct ) , can't same thing be practiced for all ?
Hi Shweta,
DeleteWelcome to my Blog.
The word 'impossible' itself spells, 'I'm possible'. Napoleon Bonaparte once remarked, "That the word 'impossible' is found only in the dictionary of fools". In this world, everything is possible on the basis of will power, dogged determination and sacrifice.
Govt of India will have to take harsh measures to stop this nonsense. They will have to built cremation houses in each and every city. I remember my uncle was electrically cremated in Delhi 10-12 years back. Its not that there are no such facilities, but people must be forces to use them. The rules must be made not to allow cremation at the banks of rivers. Dumping of pooja-paath materials into rivers must be banned immediately. This will reduce the problem immediately to some extent.
Yes, you are absolutely right, west has already imposed on citizens to opt for cremation, no burial is allowed. Even multi millionaires are being cremated.
Thanks a lot for sharing your thoughts.
In district Chandausi (UP) few years back D.M. of city banned the use of polythene . Later on i have no idea whether this ban was uplifted by subsequent D.M. or not but that time it helped in checking plastic pollution up to much extent . That means lower level of authorities have right to impose such rules at District level . Why cann't this happen in Varanasi or in Delhi ? People should send application signed in mass & send to D.M. But we are lazy and selfish . We find it comfortable to get polythene from shopkeeper instead of carrying cloth bag or paper bag from house. In fact we are a group of double standard people who speak or write thoughts of modernization but donet practice it. Few months back i was discussing about pollution of river with a person ( he was a physics teacher ) and i was shocked to hear his reply >> " गंगा का तो अवतरण ही हुआ है लोगों के पाप धोने के लिए " . I was not expecting such stupid & careless remark from him .
Deleteमन उद्विग्न हो गया
ReplyDeleteमन को उद्विग्न करने से काम नहीं चलेगा, कुछ करना होगा।
Deleteदेखा है. इनमें से उद्विग्न करने वाले कुछ चित्र किसी चाइनीज ब्लॉग पर पोस्ट हुए थे सबसे पहले.
ReplyDeleteThanks PD !
Deleteऐसी कडवी हकीकत कि चित्रों की तरफ देखना मुश्किल,
ReplyDeleteजल्दी जल्दी स्क्रौल कर नीचे पहुँच गए...इन सबके लिए जिम्मेदार तो हम ही हैं.
बिलकुल हम सभी जिम्मेदार हैं। अपनी गलतियों को सुधारने का मौका भी हमें ही ढूंढना है, और वो मौका अभी है, इसी वक्त।
Deleteअधिकांश अधजले शव लावारिस हैं, जिन्हें पोस्टमार्टम के बाद ढंग से अग्नि में नहीं जलाया गया। प्रदेशों के स्थानीय पुलिस थानों के केस हैं, इसलिए उनकी लापरवाही कह सकते हैं। वैसे समाज में जब अपनों की ही अनदेखी हो रही है तो लावारिस शवों को कौन पूछता है।
ReplyDeleteआपने बेचैनी बड़ा दी।
जिम्मेदारी पुलिस की हो शासन की हो या नागरिकों की हो, नुक्सान हम सबका है। साँप काटे से अगर मृत्यु होती है तो उस शव को भी नहीं जलाया जाता है।
Deleteमैंने सिर्फ तस्वीर दिखाई है, लोग इन शवों और गंदगियों के साथ जी रहे हैं।
क्या कहा जाये यदि यह सब किसी पावन नदी या गंगा तट का है तो समाज के ठीकेदारों और नेताओं की ऐसी की तैसी जिन्हें ये सब नहीं दिखता और करोड़ों रूपया स्वच्छता पर यूँ ही डकार जाते हैं
ReplyDeleteक्या कहा जाये यदि यह सब किसी पावन नदी या गंगा तट का है तो समाज के ठीकेदारों और नेताओं की ऐसी की तैसी जिन्हें ये सब नहीं दिखता और करोड़ों रूपया स्वच्छता पर यूँ ही डकार जाते हैं
ReplyDelete900 करोड़ रुपैये खर्च हो चुके हैं गंगा की सफाई में और साफ़ करने वाले खुद ही कहते हैं, 'उन्हें नहीं लगता गंगा रंच मात्र भी साफ़ हुई है।' गंगा साफ़ हुई या नहीं हुई, 900 करोड़ रुपैये ज़रूर साफ़ हो गए।
Deletekya khoobi se tasveeron se sab keh diya...
ReplyDeleteA picture speaks a thousand words...
Deleteye benaras ke ghat hain...ye sab aankhon se aksar dekha hai maine
ReplyDeleteप्रत्यक्षम किम प्रमाणं !
Deleteहे भगवान्!!!! इसे कहते हैं घोर कलयुग....मैंने तो सिर्फ २ तस्वीर ही देखीं ऐसी पोस्ट कृपया न किया करें | समाज का ऐसा कुरूप चेहरा भी हो सकता है मैं कभी सोच भी नहीं सकता था | मेरे से ये सब नहीं देखा जाता | कृपया कोई तो उन लोगों को मुक्ति दिलाये |
ReplyDeleteतुषार जी मुखौटों की आदत ठीक नहीं, यही समाज और हमारी प्राकृतिक सम्पदाओं की हालत है। नहीं देखेंगे तो जानेंगे कैसे , और अगर जानेंगे नहीं तो खुद को और अपने आस-पास को बदलेंगे कैसे ? आशा है अपने छोटे से तरीके से ही सही, आप भी इसके सुधार में योगदान देंगे।
Deleteमाफ़ कीजिये पर मैं नहीं देख सकता ये सब |
Deleteकोई बात नहीं तुषार जी,
Deleteलेकिन सच्चाई इससे भी ज्यादा वीभत्स है, ये तो सिर्फ टिप ऑफ़ दी आईसबर्ग है। मैं इस भयानक सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ सकती।
अदा जी, क्षमा चाहता हूँ अत्यधिक व्यस्तता और टूर की वजह से ब्लॉग जगत पर अधिक समय दे पाने में असमर्थ हूँ। आपने जो चित्र यहाँ दिखाए, निश्चित तौर पर वे विचलित करने वाले है, और कुछ लोग अवश्य ही यह भी कहेंगे कि माय गॉड , एक महिला होते हुए भला आप ऐसे चित्रों को देख भी कैसे लेते हो? खैर , और उन्हें मेरा जबाब यही होगा कि अगर आपको कोयले की खदान देखनी है तो उसके अन्दर तो घुसना ही पडेगा, हाथ पाँव काले करने ही पड़ेंगे , अक्सर सच्चाई कडवी ही होती है।
ReplyDeleteऔर आपके ब्लॉग के माध्यम से देशवासियों से मेरा एक अनुरोध यह भी कि पहले लोग पुराने खयालात के थे,अब आप और हम तो शिक्षित हैं, चित्र देखकर इस दिशा में भी सुधार के कुछ प्रयास करों न।
Deleteगोदियाल साहेब,
Deleteकोई बात नहीं, काम पहले आता है, फिर ब्लॉग्गिंग। आपने समय निकाला हृदय से आभारी हूँ।
गोदियाल जी, मैं ज़मीनी इंसान हूँ, एक स्त्री ज़रूर हूँ लेकिन मोम की गुडिया नहीं हूँ। आप तस्वीरों की बात कह रहे हैं, मैंने तो साक्षात् देखा है, और मुझे बहुत फ़िक्र है। लोग मुझे जो समझना चाहते हो समझ सकते हैं, लेकिन भारत की बेटी होने के नाते ये मेरा फ़र्ज़ बनता है कि मैं सच्चाई सामने लाऊं। सबसे आग्रह करूँ कि अपनी धरोहर को बचाने में जो भी वो कर सकते हैं अवश्य करें, वर्ना भविष्य बहुत अंधकारमय है।
A Chinese blogger posted such crap earlier -I don't like this uglier phase of humanity however truth it may be... ! I like the truth which is not uglier but beautiful -satyam shivam sundram!
ReplyDeleteI unfortunately have witnessed such uncomfortable post earlier -please see this discussion and the link on facebook !
ReplyDeleteConversation started March 4
Vivek Chouksey
Hi sir, I came across this post by a chinese tourist. He states
"The tour guide said that this kind of fish in the Ganges is called “Gulang” fish, a very nice sounding name…and it is said the flavor is very good, but upon thinking of the corpses soaking in the water, the soap from the bathing, the garbage by the river…I don’t have the courage to try it, not sure if this kind of fish will have a human flesh flavor…"
Being a Fisheries scientist, are these fish carnivore? Do they nibble floating corpses of ganga --even by chance--?
http://www.chinasmack.com/2010/pictures/filthy-india-photos-chinese-netizen-reactions.html
March 5
12:33pm
DrArvind Mishra
Dear Vivek,
There are of course some fish species like Silond,Bagarius and Wallago which being highly carnivorous nibble on corpses.But these are usually not sold as they are not preferred by consumers. Morever their number in Ganges have drastically decreased.The fellow wanted to malign India's image with his peculiar satarical writing!
12:34pm
DrArvind Mishra
Dear Vivek,
There are of course some fish species like Silond,Bagarius and Wallago which being highly carnivorous nibble on corpses.But these are usually not sold as they are not preferred by consumers. Morever their number in Ganges have drastically decreased.The fellow wanted to malign India's image with his peculiar satarical writing!
12:36pm
DrArvind Mishra
Dear Vivek,
There are of course some fish species like Silond,Bagarius and Wallago which being highly carnivorous nibble on corpses.But these are usually not sold as they are not preferred by consumers. Morever their number in Ganges have drastically decreased.The fellow wanted to malign India's image with his peculiar satarical writing!
12:36pm
DrArvind Mishra
Dear Vivek,
There are of course some fish species like Silond,Bagarius and Wallago which being highly carnivorous nibble on corpses.But these are usually not sold as they are not preferred by consumers. Morever their number in Ganges have drastically decreased.The fellow wanted to malign India's image with his peculiar satarical writing!
12:38pm
DrArvind Mishra
Also there is no fish named Gulung even in vernacular language!
1:32pm
Vivek Chouksey
thanks!
Arvind ji,
DeleteUnfortunately I am not part of Face book, so I wouldn't know.
You want to see Satyam Shivam Sundaram ? Then find one and we will be with you. If this is a crap, then thin our crap.
I have no idea, which Chinese blog you are talking about.
If we want to see beautiful then we must make one This is what we have created, then why to shy away from our own creation ? You live in Banaras, can you deny, this is what is not happening there ? Most of the time truth is ugly. Let's face it and try to do some thing good, in our own small way.
अदाजी
ReplyDeleteज्वलंत समस्या उठाई है आपने । चित्र विचलित जरुर करते है लेकिन ये भी सच है की इनसे मुहं नहीं मोड़ सकते |
मध्य प्रदेश में महेश्वर ,(अहिल्या बाई की नगरी )मंडलेश्वर नों तहसील है और वहां नर्मदा नदी है या यु कहे की नर्मदा नदी के किनारे दोनों छोटे से नगर है और नहुत सुन्दर घाट भी बने है ,पर्यटक भी बहुत आते है और वहां नर्मदा नदी में फूल इत्यादि का विसर्जन करना सख्त मना है और इसके लिए वहां बड़े बड़े सीमेंट के कुंड बना दिए गये है जिसमे दर्शनार्थी ,और स्थानीय लोग भी विसर्जन सामग्री डाल देते है जिसे वहां की नगर पालिका कर्मचारी ले जाते है ।नदि किनारा और नदी का पानी एकदम साफ सुथरा किनारे पर बैठकर मछलिय के साथ दोस्ती कर सकते है | आप चाहे तो पूरा विवरण यहाँ देख सकती है चित्र सहित
http://shobhanaonline.blogspot.in/2010/12/blog-post_24.html
वाह! शोभना दी,
Deleteमन प्रसन्न हो गया, सच में !
जानकारी का आभार शोभा जी। इस प्रकार की व्यवस्था सभी नदियों/घाटों पर आसानी से की जा सकती है। न केवल प्रदूषण कम होगा बल्कि हर साल मूर्ति विसर्जन मे डूबने से होने वाली अकाल मृत्यु से बचा जा सकता है। यदि अन्य नगरपालिकाओं को जानकारी नहीं है तो वे महेश्वर के निगम/संस्थाओं से सबक ले सकते हैं, खासकर दुनिया भर के पर्यटकों/दानदाताओं से भारी काशी नागरी की संस्थाएं। लेकिन बात वही है कि जिन पर व्यवस्था की ज़िम्मेदारी हो वे भ्रष्ट भी हों और निकम्मे भी तो क्या हो। नदियां ही नहीं, भारत की अधिकांश समस्याओं की जड़ में अधिकारियों/नेताओं/सत्ताधीशों अव्यवस्था और भ्रष्टाचार ही है। आम आदमी पर कैलसनैस के आरोप लगते हैं, जो काफी हद तक सही भी हैं लेकिन अधिकांश लोगों के पास न तो स्थिति बदलने की क्षमता और समय है और न ही इतना ज्ञान कि परिवर्तन ला सकें।
Deleteआपका आभार अनुराग जी,
Deleteगंगा को साफ़ करने में 900 करोड़ का खर्चा हो चूका है, क्या इस तरह की सुविधाओं का इंतज़ाम नहीं किया जा सकता, इतना ही नहीं इनका पालन हो इस पर कड़ी निगरानी नहीं रखी जा सकती ?शोभना जी ने एक बहुत ही सुन्दर उदाहरण दिया है, ऐसे ही संरक्षण के उपाय को हर नदी के तीर पर लगाया जाना चाहिए। हर नागरिक अपनी तरफ से नदियों के संरक्षण की जिम्मेदारी ले, उन्हें दूषित करने का कोई काम न करे यही होगा पहला कदम हर घर से इसकी शुरुआत।
लोग हैं कि सुधारते नहीं.... अब भी समय है.
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