रुख को कभी फूल कहा आँखों को कवँल कह देते हैं
जब जब भी दीदार किया हम यूँ ही ग़ज़ल कह देते हैं
वो परवाना लगता है कभी और कभी दीवाना सा
जल कर जब भी ख़ाक हुआ शमा की चुहल कह देते हैं
वो आके खड़े हो जाते हैं जब सादगी लिए उन आँखों में
वो पाक़ मुजस्सिम लगते हैं हम ताजमहल कह देते हैं
लगता तो था कि आज कहीं हम शायद नहीं उठ पायेंगे
सीने में वो जो दर्द उठा चलो उसको अजल कह देते हैं
क्या जाने कितने पत्थर सबने बरसाए हैं आज 'अदा'
मंदिर की जिन्हें पहचान नहीं वो रंग महल कह देते हैं
अजल=मौत
मेरे दोनों बेटे और बिटिया अच्छी चित्रकारी कर लेते है। ये मेरे मयंक की चित्रकारी ...कैसी है ?
यह पूरा sketch पेंसिल से बनाया है...बच्चों का आपलोगों को पता ही है फेंक दिया था मयंक ने इसको...मैंने इसे सहेज कर रखा ...बाद में उसने इसे scan करके कुछ रंग डाला है कहीं कहीं...ये मुझे बहुत पसंद है....आप बताइए कैसी है ..??
ये पेटिंग मयंक ने मृगांक की बनाई है...
और ये कुछ ऐसे ही ....
एक ग़ज़ल 'किसने कहा हुजूर के तेवर बदल गए'
आवाज़ 'अदा',
संगीत 'संतोष शैल'
शायर जनाब रिफत सरोश
कच्चा-पक्का है बुरा मत मानियेगा...
प्रभावी चित्रकारी, बढिया गजल.
ReplyDeleteलाजवाब ग़ज़ल और बढ़िया चित्रकारी |
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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ताजमहल अद्भुत फोटोग्राफी संग में खुबसूरत ग़ज़ल, बाबू मयंक की चित्रकारी और आपका टच क्या कहने रही बात गाने की तो सोने में सुहागा ......सुप्रभात ...
ReplyDeleteशुभ प्रभात दीदी
ReplyDeleteचित्रांकन सराहनीय है..शाबाशी ...और मिठाई दानों मेरी ओऱ से
क्या जाने कितने पत्थर सबने बरसाए हैं आज 'अदा'
मंदिर की जिन्हें पहचान नहीं वो रंग महल कह देते हैं
इस मामले में आप झूठ नहीं न कहते
आज-कल मंदिरों में रंग-पानी अधिक ही हो रही है
ग़ज़ल वाकई में ग़ज़ल है...
भा गई मन को
इसे कल की हलचल में भी देखिये
सादर..
पूरी पोस्ट बढ़िया है ...... चित्र सच में कमाल की है
ReplyDeleteग़ज़ल एवं चित्र दोनों अच्छे है ,आपकी आवाज में मिठास है ,गाते रहिये,
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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बस एक ही शब्द ........लाजबाब
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चित्र..प्रभावी..
ReplyDeleteखूबसूरत ग़ज़ल....चित्रकारी भी खूब ,भविष्य उज्ज्वल है शुभकामनाएं....
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ReplyDeleteयह तो एक मुकम्मल पॅकेज है ,ग़ज़ल और चित्र बहुत ही सुन्दर हैं,खासकर मृगांक का पोट्रेट तो कमाल का है .
ReplyDeleteअपनी दूसरी ग़ज़लों को भी अपनी आवाज़ देने की सोचो....और फिर सी डी निकालने की ..हमारी अग्रिम बुकिंग :)
आपसे ईर्ष्या होती है कितना intellectually talented परिवार है !सब कुछ बहुत सुन्दर ग़ज़ल से पेंटिंग तक . सर्वं मधुरं!
ReplyDeleteरंगों का सुंदर सम्मोहन
ReplyDeleteसुंदर रचना
हार्दिक बधाई और शुभकामनायें
विचार कीं अपेक्षा
आग्रह है मेरे ब्लॉग का अनुसरण करें
jyoti-khare.blogspot.in
कहाँ खड़ा है आज का मजदूर------?